Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1194

Page 1194

ਹਣਵੰਤੁ ਜਾਗੈ ਧਰਿ ਲੰਕੂਰੁ ॥ हणवंतु जागै धरि लंकूरु ॥ लम्बी पूँछ वाले भक्त हनुमान मोह-माया से सावधान बने रहे।
ਸੰਕਰੁ ਜਾਗੈ ਚਰਨ ਸੇਵ ॥ संकरु जागै चरन सेव ॥ ईश्वर की चरण सेवा में शिवशंकर जागृत हैं।
ਕਲਿ ਜਾਗੇ ਨਾਮਾ ਜੈਦੇਵ ॥੨॥ कलि जागे नामा जैदेव ॥२॥ कलियुग में भक्त नामदेव और भक्त जयदेव प्रभु-भक्ति में जागृत कहे जा सकते हैं।॥२॥
ਜਾਗਤ ਸੋਵਤ ਬਹੁ ਪ੍ਰਕਾਰ ॥ जागत सोवत बहु प्रकार ॥ यह जागना और सोना भी बहुत प्रकार का है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਗੈ ਸੋਈ ਸਾਰੁ ॥ गुरमुखि जागै सोई सारु ॥ गुरमुख पुरुषों का जागना श्रेष्ठ है।
ਇਸੁ ਦੇਹੀ ਕੇ ਅਧਿਕ ਕਾਮ ॥ इसु देही के अधिक काम ॥ इस शरीर के लिए अधिकतर लाभदायक है
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਭਜਿ ਰਾਮ ਨਾਮ ॥੩॥੨॥ कहि कबीर भजि राम नाम ॥३॥२॥ कबीर जी कहते हैं कि राम नाम का भजन ही करो ॥३॥२॥
ਜੋਇ ਖਸਮੁ ਹੈ ਜਾਇਆ ॥ जोइ खसमु है जाइआ ॥ (माया रूपी) पत्नी ने अपने पति को जन्म दिया है,
ਪੂਤਿ ਬਾਪੁ ਖੇਲਾਇਆ ॥ पूति बापु खेलाइआ ॥ मन रूपी पुत्र अपने पिता (आत्मा) को खेला रहा है और
ਬਿਨੁ ਸ੍ਰਵਣਾ ਖੀਰੁ ਪਿਲਾਇਆ ॥੧॥ बिनु स्रवणा खीरु पिलाइआ ॥१॥ बिना स्तनों के ही आत्मा को दुग्धपान करवाया जा रहा है॥१॥
ਦੇਖਹੁ ਲੋਗਾ ਕਲਿ ਕੋ ਭਾਉ ॥ देखहु लोगा कलि को भाउ ॥ हे लोगो ! कलियुग का वैभव बड़ा निराला है,
ਸੁਤਿ ਮੁਕਲਾਈ ਅਪਨੀ ਮਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सुति मुकलाई अपनी माउ ॥१॥ रहाउ ॥ (मन रूपी) पुत्र ने (माया रूपी) अपनी माता से विवाह रचा लिया है॥१॥रहाउ॥।
ਪਗਾ ਬਿਨੁ ਹੁਰੀਆ ਮਾਰਤਾ ॥ पगा बिनु हुरीआ मारता ॥ यह पैरों के बिना छलांगें मार रहा है,
ਬਦਨੈ ਬਿਨੁ ਖਿਰ ਖਿਰ ਹਾਸਤਾ ॥ बदनै बिनु खिर खिर हासता ॥ मुंह के बिना ही खिल खिलाकर हस रहा है।
ਨਿਦ੍ਰਾ ਬਿਨੁ ਨਰੁ ਪੈ ਸੋਵੈ ॥ निद्रा बिनु नरु पै सोवै ॥ यह निद्रा के बिना ही मनुष्य के तन में लम्बी नींद सोता है और
ਬਿਨੁ ਬਾਸਨ ਖੀਰੁ ਬਿਲੋਵੈ ॥੨॥ बिनु बासन खीरु बिलोवै ॥२॥ बर्तनों के बिना दूध को विलो रहा है॥२॥
ਬਿਨੁ ਅਸਥਨ ਗਊ ਲਵੇਰੀ ॥ बिनु असथन गऊ लवेरी ॥ माया रूपी गाय स्तनों के बिना (विकारों का) दूध दे रही है।
ਪੈਡੇ ਬਿਨੁ ਬਾਟ ਘਨੇਰੀ ॥ पैडे बिनु बाट घनेरी ॥ सत्य रूपी रास्ता पाए बिना मनुष्य के लिए जन्म-मरण का लम्बा रास्ता बन गया है।
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਟ ਨ ਪਾਈ ॥ बिनु सतिगुर बाट न पाई ॥ सच्चे गुरु के बिना सच्चा रास्ता नहीं पाया जा सकता
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਸਮਝਾਈ ॥੩॥੩॥ कहु कबीर समझाई ॥३॥३॥ यह कबीर जी समझाते हैं ॥३॥ ३ ॥
ਪ੍ਰਹਲਾਦ ਪਠਾਏ ਪੜਨ ਸਾਲ ॥ प्रहलाद पठाए पड़न साल ॥ जब प्रहलाद को पढ़ने के लिए पाठशाला में भेज दिया गया तो
ਸੰਗਿ ਸਖਾ ਬਹੁ ਲੀਏ ਬਾਲ ॥ संगि सखा बहु लीए बाल ॥ वहाँ उसने बहुत सारे बच्चों को अपना साथी बनाकर प्रभु भजन में लगा लिया।
ਮੋ ਕਉ ਕਹਾ ਪੜ੍ਹ੍ਹਾਵਸਿ ਆਲ ਜਾਲ ॥ मो कउ कहा पड़्हावसि आल जाल ॥ एक दिन उसने अपने अध्यापकों से कहा कि प्रभु के अतिरिक्त आप मुझे क्यों गलत पढ़ा रहे हो।
ਮੇਰੀ ਪਟੀਆ ਲਿਖਿ ਦੇਹੁ ਸ੍ਰੀ ਗੋੁਪਾਲ ॥੧॥ मेरी पटीआ लिखि देहु स्री गोपाल ॥१॥ आपसे अनुरोध है कि मेरी तख्ती पर परमात्मा का नाम लिख दो ॥१॥
ਨਹੀ ਛੋਡਉ ਰੇ ਬਾਬਾ ਰਾਮ ਨਾਮ ॥ नही छोडउ रे बाबा राम नाम ॥ हे बाबा ! मैं राम नाम का जाप हरगिज नहीं छोडूंगा और
ਮੇਰੋ ਅਉਰ ਪੜ੍ਹ੍ਹਨ ਸਿਉ ਨਹੀ ਕਾਮੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मेरो अउर पड़्हन सिउ नही कामु ॥१॥ रहाउ ॥ मेरी कुछ अन्य पाठ-पठन की कोई इच्छा नहीं ॥१॥रहाउ॥।
ਸੰਡੈ ਮਰਕੈ ਕਹਿਓ ਜਾਇ ॥ संडै मरकै कहिओ जाइ ॥ तदन्तर प्रहलाद के अध्यापकों शण्ड एवं अमरक ने राजा हिरण्यकशिपु को जाकर शिकायत की तो
ਪ੍ਰਹਲਾਦ ਬੁਲਾਏ ਬੇਗਿ ਧਾਇ ॥ प्रहलाद बुलाए बेगि धाइ ॥ उसने शीघ्र ही प्रहलाद को बुला लिया।
ਤੂ ਰਾਮ ਕਹਨ ਕੀ ਛੋਡੁ ਬਾਨਿ ॥ तू राम कहन की छोडु बानि ॥ (राजा ने कहा-) तू राम नाम जपने की आदत छोड़ दे,
ਤੁਝੁ ਤੁਰਤੁ ਛਡਾਊ ਮੇਰੋ ਕਹਿਓ ਮਾਨਿ ॥੨॥ तुझु तुरतु छडाऊ मेरो कहिओ मानि ॥२॥ मेरा कहना मान ले, मैं तुझे तुरंत स्वतंत्र कर दूँगा ॥२॥
ਮੋ ਕਉ ਕਹਾ ਸਤਾਵਹੁ ਬਾਰ ਬਾਰ ॥ मो कउ कहा सतावहु बार बार ॥ प्रहलाद ने प्रत्युत्तर दिया कि आप मुझे बार-बार क्यों तंग कर रहे हो ?
ਪ੍ਰਭਿ ਜਲ ਥਲ ਗਿਰਿ ਕੀਏ ਪਹਾਰ ॥ प्रभि जल थल गिरि कीए पहार ॥ समुद्र, पृथ्वी, पर्वत एवं पहाड़ प्रभु ने बनाए हुए हैं।
ਇਕੁ ਰਾਮੁ ਨ ਛੋਡਉ ਗੁਰਹਿ ਗਾਰਿ ॥ इकु रामु न छोडउ गुरहि गारि ॥ मैं राम नाम का जाप किसी भी कीमत पर छोड़ नहीं सकता, ऐसा करना तो मेरे लिए गुरु जाप के प्रति गाली (तिरस्कार) के बराबर है।
ਮੋ ਕਉ ਘਾਲਿ ਜਾਰਿ ਭਾਵੈ ਮਾਰਿ ਡਾਰਿ ॥੩॥ मो कउ घालि जारि भावै मारि डारि ॥३॥ आप चाहे मुझे जिंदा जला दो या आपको भला लगे तो बेशक मुझे मार डालो ॥३॥
ਕਾਢਿ ਖੜਗੁ ਕੋਪਿਓ ਰਿਸਾਇ ॥ काढि खड़गु कोपिओ रिसाइ ॥ यह सुनकर हिरण्यकशिपु ने क्रोध में खडग निकाल लिया और कहा
ਤੁਝ ਰਾਖਨਹਾਰੋ ਮੋਹਿ ਬਤਾਇ ॥ तुझ राखनहारो मोहि बताइ ॥ मुझे बताओ कौन तेरी रक्षा करने वाला है ?
ਪ੍ਰਭ ਥੰਭ ਤੇ ਨਿਕਸੇ ਕੈ ਬਿਸਥਾਰ ॥ प्रभ थ्मभ ते निकसे कै बिसथार ॥ तब भयानक नृसिंह रूप धारण कर प्रभु स्तंभ से निकल आया और
ਹਰਨਾਖਸੁ ਛੇਦਿਓ ਨਖ ਬਿਦਾਰ ॥੪॥ हरनाखसु छेदिओ नख बिदार ॥४॥ दुष्ट हिरण्यकशिपु को अपने नाखुनों से चीरकर खत्म कर दिया ॥४॥
ਓਇ ਪਰਮ ਪੁਰਖ ਦੇਵਾਧਿ ਦੇਵ ॥ ओइ परम पुरख देवाधि देव ॥ उस परमपुरुष देवाधिदेव ने
ਭਗਤਿ ਹੇਤਿ ਨਰਸਿੰਘ ਭੇਵ ॥ भगति हेति नरसिंघ भेव ॥ अपने भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर नृसिंह रूप धारण किया।
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਕੋ ਲਖੈ ਨ ਪਾਰ ॥ कहि कबीर को लखै न पार ॥ कबीर जी कहते हैं कि उस अनंतशक्ति का रहस्य नहीं पाया जा सकता और
ਪ੍ਰਹਲਾਦ ਉਧਾਰੇ ਅਨਿਕ ਬਾਰ ॥੫॥੪॥ प्रहलाद उधारे अनिक बार ॥५॥४॥ उस प्रभु ने अनेक बार अपने भक्त प्रहलाद की संकट के समय रक्षा की॥५॥४॥
ਇਸੁ ਤਨ ਮਨ ਮਧੇ ਮਦਨ ਚੋਰ ॥ इसु तन मन मधे मदन चोर ॥ इस तन एवं मन में कामदेव सरीखा चोर दाखिल हो गया है,
ਜਿਨਿ ਗਿਆਨ ਰਤਨੁ ਹਿਰਿ ਲੀਨ ਮੋਰ ॥ जिनि गिआन रतनु हिरि लीन मोर ॥ जिसने मेरे ज्ञान रूपी रत्न को चुरा लिया है।
ਮੈ ਅਨਾਥੁ ਪ੍ਰਭ ਕਹਉ ਕਾਹਿ ॥ मै अनाथु प्रभ कहउ काहि ॥ हे प्रभु ! मुझ जैसा असहाय अपनी दास्तां किसको जाकर बताए।
ਕੋ ਕੋ ਨ ਬਿਗੂਤੋ ਮੈ ਕੋ ਆਹਿ ॥੧॥ को को न बिगूतो मै को आहि ॥१॥ इस काम की वजह से कौन-कौन पीड़ित नहीं हुआ है, फिर भला मैं क्या चीज हूँ॥१॥
ਮਾਧਉ ਦਾਰੁਨ ਦੁਖੁ ਸਹਿਓ ਨ ਜਾਇ ॥ माधउ दारुन दुखु सहिओ न जाइ ॥ हे परमेश्वर ! काम का भयानक दुख बर्दाश्त नहीं होता,
ਮੇਰੋ ਚਪਲ ਬੁਧਿ ਸਿਉ ਕਹਾ ਬਸਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मेरो चपल बुधि सिउ कहा बसाइ ॥१॥ रहाउ ॥ मेरी चंचल बुद्धि की भला क्या मजाल है॥१॥रहाउ॥।
ਸਨਕ ਸਨੰਦਨ ਸਿਵ ਸੁਕਾਦਿ ॥ सनक सनंदन सिव सुकादि ॥ सनक, सनंदन, शिव, शुक इत्यादि,
ਨਾਭਿ ਕਮਲ ਜਾਨੇ ਬ੍ਰਹਮਾਦਿ ॥ नाभि कमल जाने ब्रहमादि ॥ नाभिकमल से उत्पन्न ब्रह्मा,
ਕਬਿ ਜਨ ਜੋਗੀ ਜਟਾਧਾਰਿ ॥ कबि जन जोगी जटाधारि ॥ कवि, योगी तथा जटाधारी
ਸਭ ਆਪਨ ਅਉਸਰ ਚਲੇ ਸਾਰਿ ॥੨॥ सभ आपन अउसर चले सारि ॥२॥ सभी अपना जीवन बिताकर चले गए ॥२॥
ਤੂ ਅਥਾਹੁ ਮੋਹਿ ਥਾਹ ਨਾਹਿ ॥ तू अथाहु मोहि थाह नाहि ॥ हे प्रभु ! तू अथाह है, तेरे सिवा मेरा कोई किनारा नहीं।
ਪ੍ਰਭ ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਦੁਖੁ ਕਹਉ ਕਾਹਿ ॥ प्रभ दीना नाथ दुखु कहउ काहि ॥ हे दीनानाथ ! तेरे अलावा अपना दुख किसे बताऊँ।
ਮੋਰੋ ਜਨਮ ਮਰਨ ਦੁਖੁ ਆਥਿ ਧੀਰ ॥ मोरो जनम मरन दुखु आथि धीर ॥ मेरे जन्म-मरण का दुख निवृत्त करके शान्ति प्रदान करो
ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਗੁਨ ਰਉ ਕਬੀਰ ॥੩॥੫॥ सुख सागर गुन रउ कबीर ॥३॥५॥ हे सुखों के सागर ! कबीर जी कहते हैं, ताकि तेरे यशोगान में तल्लीन रहूँ॥३॥५॥
ਨਾਇਕੁ ਏਕੁ ਬਨਜਾਰੇ ਪਾਚ ॥ नाइकु एकु बनजारे पाच ॥ जीवात्मा रूपी एक मुखिया के ज्ञानेन्द्रियाँ रूपी पाँच व्यापारी हैं।
ਬਰਧ ਪਚੀਸਕ ਸੰਗੁ ਕਾਚ ॥ बरध पचीसक संगु काच ॥ बैल रूप में प्रकृतियाँ हैं, जिनका साथ कच्चा है।
ਨਉ ਬਹੀਆਂ ਦਸ ਗੋਨਿ ਆਹਿ ॥ नउ बहीआं दस गोनि आहि ॥ गोलकों के रूप में नौ बहियाँ हैं, दस इन्द्रियाँ बोरियाँ हैं और इसको कसने
ਕਸਨਿ ਬਹਤਰਿ ਲਾਗੀ ਤਾਹਿ ॥੧॥ कसनि बहतरि लागी ताहि ॥१॥ के लिए बहतर नाड़ियाँ भी जुड़ी हुई हैं।॥१॥
ਮੋਹਿ ਐਸੇ ਬਨਜ ਸਿਉ ਨਹੀਨ ਕਾਜੁ ॥ मोहि ऐसे बनज सिउ नहीन काजु ॥ मेरा ऐसा व्यापार करने से कोई वास्ता नहीं,


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