Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1195

Page 1195

ਜਿਹ ਘਟੈ ਮੂਲੁ ਨਿਤ ਬਢੈ ਬਿਆਜੁ ॥ ਰਹਾਉ ॥ जिह घटै मूलु नित बढै बिआजु ॥ रहाउ ॥ जिसे करने से मूलधन घट जाए और ब्याज में नित्य बढ़ौत्तरी हो।॥रहाउ॥।
ਸਾਤ ਸੂਤ ਮਿਲਿ ਬਨਜੁ ਕੀਨ ॥ सात सूत मिलि बनजु कीन ॥ दरअसल इन व्यापारियों ने साथ मिलकर बहुत प्रकार के सूतों (विकारों) का व्यापार कर लिया है और
ਕਰਮ ਭਾਵਨੀ ਸੰਗ ਲੀਨ ॥ करम भावनी संग लीन ॥ अपने कृत कर्मो को साथ ले लिया है।
ਤੀਨਿ ਜਗਾਤੀ ਕਰਤ ਰਾਰਿ ॥ तीनि जगाती करत रारि ॥ तीन गुण भी बहुत हंगामा करते हैं,
ਚਲੋ ਬਨਜਾਰਾ ਹਾਥ ਝਾਰਿ ॥੨॥ चलो बनजारा हाथ झारि ॥२॥ अंततः पाँच व्यापारी हाथ झाड़कर चल पड़ते हैं।॥२॥
ਪੂੰਜੀ ਹਿਰਾਨੀ ਬਨਜੁ ਟੂਟ ॥ पूंजी हिरानी बनजु टूट ॥ जब साँसों की पूंजी छीन ली जाती है, तब व्यापार टूट जाता है और
ਦਹ ਦਿਸ ਟਾਂਡੋ ਗਇਓ ਫੂਟਿ ॥ दह दिस टांडो गइओ फूटि ॥ मनुष्य का काफेिला दसों दिशाओं में तितर वितर हो जाता है।
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਮਨ ਸਰਸੀ ਕਾਜ ॥ कहि कबीर मन सरसी काज ॥ कबीर जी कहते हैं कि हे मन ! तेरा काम तभी सिद्ध होगा,
ਸਹਜ ਸਮਾਨੋ ਤ ਭਰਮ ਭਾਜ ॥੩॥੬॥ सहज समानो त भरम भाज ॥३॥६॥ अगर तू सहजावस्था में लीन होगा, इस तरह तेरा भ्रम भी दूर हो जाएगा ॥ ३ ॥ ६ ॥
ਬਸੰਤੁ ਹਿੰਡੋਲੁ ਘਰੁ ੨ बसंतु हिंडोलु घरु २ बसंतु हिंडोलु घरु २
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਮਾਤਾ ਜੂਠੀ ਪਿਤਾ ਭੀ ਜੂਠਾ ਜੂਠੇ ਹੀ ਫਲ ਲਾਗੇ ॥ माता जूठी पिता भी जूठा जूठे ही फल लागे ॥ अब जबकि माता जूठी है, पिता भी जूठा है तो इनके पैदा होने वाले बच्चे भी जूठे ही होंगे।
ਆਵਹਿ ਜੂਠੇ ਜਾਹਿ ਭੀ ਜੂਠੇ ਜੂਠੇ ਮਰਹਿ ਅਭਾਗੇ ॥੧॥ आवहि जूठे जाहि भी जूठे जूठे मरहि अभागे ॥१॥ जन्म लेने वाले जूठे हैं, बुराईयों में लिप्त रहकर मरने वाले भी जूठे हैं, ऐसे दुर्भाग्यशाली जीव जूठन में पड़े मौत को प्राप्त होंगे ॥१॥
ਕਹੁ ਪੰਡਿਤ ਸੂਚਾ ਕਵਨੁ ਠਾਉ ॥ कहु पंडित सूचा कवनु ठाउ ॥ हे पण्डित ! बताओ कौन-सा ठिकाना पवित्र है,
ਜਹਾਂ ਬੈਸਿ ਹਉ ਭੋਜਨੁ ਖਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जहां बैसि हउ भोजनु खाउ ॥१॥ रहाउ ॥ जहाँ बैठकर भोजन कर सकता हूँ॥१॥रहाउ॥।
ਜਿਹਬਾ ਜੂਠੀ ਬੋਲਤ ਜੂਠਾ ਕਰਨ ਨੇਤ੍ਰ ਸਭਿ ਜੂਠੇ ॥ जिहबा जूठी बोलत जूठा करन नेत्र सभि जूठे ॥ (झूठ बोलने के कारण) जीभ झूठी है, (अपशब्द बोलने के कारण) वचन मैले हैं, (चुगली सुनने के कारण) कान जूठे हैं, (पराया रूप देखने की वजह से) नेत्र सभी जूठे हैं।
ਇੰਦ੍ਰੀ ਕੀ ਜੂਠਿ ਉਤਰਸਿ ਨਾਹੀ ਬ੍ਰਹਮ ਅਗਨਿ ਕੇ ਲੂਠੇ ॥੨॥ इंद्री की जूठि उतरसि नाही ब्रहम अगनि के लूठे ॥२॥ हे पण्डित ! ब्राह्मण होने के अभिमान की आग में तू जल रहा है परन्तु कामवासना की मैल तेरी उतरती ही नहीं ॥२॥
ਅਗਨਿ ਭੀ ਜੂਠੀ ਪਾਨੀ ਜੂਠਾ ਜੂਠੀ ਬੈਸਿ ਪਕਾਇਆ ॥ अगनि भी जूठी पानी जूठा जूठी बैसि पकाइआ ॥ अग्नि भी अपवित्र है, (गंदगी की वजह से) पानी अशुद्ध है, खाना पकाने वाली स्त्री भी जूठी है,
ਜੂਠੀ ਕਰਛੀ ਪਰੋਸਨ ਲਾਗਾ ਜੂਠੇ ਹੀ ਬੈਠਿ ਖਾਇਆ ॥੩॥ जूठी करछी परोसन लागा जूठे ही बैठि खाइआ ॥३॥ परोसने वाली कलछी भी जूठी है, जो बैठकर रोटी खाता है, वह व्यक्ति भी तो अपवित्र ही है॥३॥
ਗੋਬਰੁ ਜੂਠਾ ਚਉਕਾ ਜੂਠਾ ਜੂਠੀ ਦੀਨੀ ਕਾਰਾ ॥ गोबरु जूठा चउका जूठा जूठी दीनी कारा ॥ गोबर तथा चौका भी अपवित्र है तथा चौके पर खींची लकीरें मलिन हैं।
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਤੇਈ ਨਰ ਸੂਚੇ ਸਾਚੀ ਪਰੀ ਬਿਚਾਰਾ ॥੪॥੧॥੭॥ कहि कबीर तेई नर सूचे साची परी बिचारा ॥४॥१॥७॥ कबीर जी कहते हैं कि दरअसल वही व्यक्ति शुद्ध हैं, जिनके मन में सच्चे विचार विद्यमान हैं ॥ ४ ॥१॥७॥
ਰਾਮਾਨੰਦ ਜੀ ਘਰੁ ੧ रामानंद जी घरु १ रामानंद जी घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਕਤ ਜਾਈਐ ਰੇ ਘਰ ਲਾਗੋ ਰੰਗੁ ॥ कत जाईऐ रे घर लागो रंगु ॥ अरे भाई ! हम किसी अन्य जगह क्यों जाएँ ? जब घर में ही (प्रभु-भक्ति में) सुख-आनंद है।
ਮੇਰਾ ਚਿਤੁ ਨ ਚਲੈ ਮਨੁ ਭਇਓ ਪੰਗੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मेरा चितु न चलै मनु भइओ पंगु ॥१॥ रहाउ ॥ मेरा चित्त दोलायमान नहीं होता, अब यह टिक गया है॥१॥रहाउ॥।
ਏਕ ਦਿਵਸ ਮਨ ਭਈ ਉਮੰਗ ॥ एक दिवस मन भई उमंग ॥ एक दिन मेरे मन में महत्वाकांक्षा हुई।
ਘਸਿ ਚੰਦਨ ਚੋਆ ਬਹੁ ਸੁਗੰਧ ॥ घसि चंदन चोआ बहु सुगंध ॥ फिर मैं चंदन घिसकर, खुशबू एवं अन्य सुगन्धित पदार्थ लेकर
ਪੂਜਨ ਚਾਲੀ ਬ੍ਰਹਮ ਠਾਇ ॥ पूजन चाली ब्रहम ठाइ ॥ ठाकुर जी की पूजा के लिए मन्दिर की ओर चलने लगी।
ਸੋ ਬ੍ਰਹਮੁ ਬਤਾਇਓ ਗੁਰ ਮਨ ਹੀ ਮਾਹਿ ॥੧॥ सो ब्रहमु बताइओ गुर मन ही माहि ॥१॥ परन्तु गुरु ने मन में ईश्वर का दर्शन बता दिया ॥१॥
ਜਹਾ ਜਾਈਐ ਤਹ ਜਲ ਪਖਾਨ ॥ जहा जाईऐ तह जल पखान ॥ हम तीर्थ स्थानों एवं मन्दिर में मूर्तियों के पास चले जाते हैं (कि यहाँ ईश्वर है)
ਤੂ ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਹੈ ਸਭ ਸਮਾਨ ॥ तू पूरि रहिओ है सभ समान ॥ परन्तु हे ईश्वर ! तू सब में समान रूप से व्याप्त है।
ਬੇਦ ਪੁਰਾਨ ਸਭ ਦੇਖੇ ਜੋਇ ॥ बेद पुरान सभ देखे जोइ ॥ वेद-पुराणों सबका विश्लेषण करके देख लिया है,
ਊਹਾਂ ਤਉ ਜਾਈਐ ਜਉ ਈਹਾਂ ਨ ਹੋਇ ॥੨॥ ऊहां तउ जाईऐ जउ ईहां न होइ ॥२॥ (यही निष्कर्ष है कि) वहाँ (तीथों-मन्दिरों में) तभी जाने की आवश्यकता है, यदि ईश्वर हमारे अन्तर्मन में विद्यमान नहीं ॥२॥
ਸਤਿਗੁਰ ਮੈ ਬਲਿਹਾਰੀ ਤੋਰ ॥ सतिगुर मै बलिहारी तोर ॥ हे सच्चे गुरु ! मैं तुझ पर कुर्बान हूँ,
ਜਿਨਿ ਸਕਲ ਬਿਕਲ ਭ੍ਰਮ ਕਾਟੇ ਮੋਰ ॥ जिनि सकल बिकल भ्रम काटे मोर ॥ जिसने मेरे भ्रमों एवं सब उलझनों को काट दिया है।
ਰਾਮਾਨੰਦ ਸੁਆਮੀ ਰਮਤ ਬ੍ਰਹਮ ॥ रामानंद सुआमी रमत ब्रहम ॥ रामानंद जी का कथन है कि हमारा स्वामी परब्रह्मा सर्वव्यापक है और
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਕਾਟੈ ਕੋਟਿ ਕਰਮ ॥੩॥੧॥ गुर का सबदु काटै कोटि करम ॥३॥१॥ गुरु का उपदेश करोड़ों कर्मों को नष्ट करता है॥३॥१॥
ਬਸੰਤੁ ਬਾਣੀ ਨਾਮਦੇਉ ਜੀ ਕੀ बसंतु बाणी नामदेउ जी की बसंतु बाणी नामदेउ जी की
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਸਾਹਿਬੁ ਸੰਕਟਵੈ ਸੇਵਕੁ ਭਜੈ ॥ साहिबु संकटवै सेवकु भजै ॥ यदि मालिक किसी संकट में आ जाए और नौकर (संकट की घडी में) डरता हुआ भाग जाए तो
ਚਿਰੰਕਾਲ ਨ ਜੀਵੈ ਦੋਊ ਕੁਲ ਲਜੈ ॥੧॥ चिरंकाल न जीवै दोऊ कुल लजै ॥१॥ अधिक समय जिंदा नहीं रहता और उस नौकर तथा उसकी कुल की बदनामी ही होती है॥१॥
ਤੇਰੀ ਭਗਤਿ ਨ ਛੋਡਉ ਭਾਵੈ ਲੋਗੁ ਹਸੈ ॥ तेरी भगति न छोडउ भावै लोगु हसै ॥ हे परमेश्वर ! मैं तेरी भक्ति बिल्कुल नहीं छोडूंगा, चाहे दुनिया के लोग मेरी हँसी उड़ाते रहें।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਮੇਰੇ ਹੀਅਰੇ ਬਸੈਂ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ चरन कमल मेरे हीअरे बसैं ॥१॥ रहाउ ॥ तेरे चरण कमल मेरे हृदय में बसते रहें ॥ १॥ रहाउ ॥
ਜੈਸੇ ਅਪਨੇ ਧਨਹਿ ਪ੍ਰਾਨੀ ਮਰਨੁ ਮਾਂਡੈ ॥ जैसे अपने धनहि प्रानी मरनु मांडै ॥ जैसे प्राणी अपने धन अथवा पत्नी की रक्षा के लिए मरने मारने पर उतारू हो जाता है,
ਤੈਸੇ ਸੰਤ ਜਨਾਂ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਨ ਛਾਡੈਂ ॥੨॥ तैसे संत जनां राम नामु न छाडैं ॥२॥ वैसे ही संतजन राम नाम का जाप हरगिज नहीं छोड़ते ॥२॥
ਗੰਗਾ ਗਇਆ ਗੋਦਾਵਰੀ ਸੰਸਾਰ ਕੇ ਕਾਮਾ ॥ गंगा गइआ गोदावरी संसार के कामा ॥ गंगा, गया तथा गोदावरी सरीखे तीर्थ स्थानों की यात्रा निरा संसार के कर्मकाण्ड ही हैं।


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