Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1111

Page 1111

ਨਾਨਕ ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਪਤੀਣੇ ਤਾਰਾ ਚੜਿਆ ਲੰਮਾ ॥੧॥ गुरु साहिब फुरमाते हैं कि जो अहम् को मिटाकर प्रसन्न हो जाता है, उसके लिए लम्बा तारा चढ़ा रहता है।॥१॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਗਿ ਰਹੇ ਚੂਕੀ ਅਭਿਮਾਨੀ ਰਾਮ ॥ गुरुमुख अभिमान को मिटाकर जाग्रत रहते हैं।
ਅਨਦਿਨੁ ਭੋਰੁ ਭਇਆ ਸਾਚਿ ਸਮਾਨੀ ਰਾਮ ॥ उनके लिए सत्य का सवेरा बना रहता है और वे परम सत्य प्रभु में विलीन रहते हैं।
ਸਾਚਿ ਸਮਾਨੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਨਿ ਭਾਨੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਬਤੁ ਜਾਗੇ ॥ गुरुमुख परम सत्य में लवलीन रहते हैं, यही उनके मन को भाता है और वे सदैव जाग्रत रहते हैं।
ਸਾਚੁ ਨਾਮੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਗੁਰਿ ਦੀਆ ਹਰਿ ਚਰਨੀ ਲਿਵ ਲਾਗੇ ॥ गुरु उन्हें सच्चा नामामृत देता है और उनकी प्रभु-चरणों में लगन लगी रहती है।
ਪ੍ਰਗਟੀ ਜੋਤਿ ਜੋਤਿ ਮਹਿ ਜਾਤਾ ਮਨਮੁਖਿ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਣੀ ॥ उनके अन्तर्मन में परम-ज्योति प्रगट हो जाती है, वे परम-सत्य को जान लेते हैं, मगर मनमुखी जीव भ्रमों में ही भूले रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਭੋਰੁ ਭਇਆ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ਜਾਗਤ ਰੈਣਿ ਵਿਹਾਣੀ ॥੨॥ गुरु नानक का मत है कि गुरमुख जनों के लिए सत्य का भोर बना रहता है, उनका मन प्रसन्न हो जाता है और उनकी प्रभु-भक्ति में जागते ही जीवन रूपी रात्रि व्यतीत होती है।॥२॥
ਅਉਗਣ ਵੀਸਰਿਆ ਗੁਣੀ ਘਰੁ ਕੀਆ ਰਾਮ ॥ जिसके हृदय-घर में गुण बस जाते हैं, उसके अवगुण समाप्त हो जाते हैं।
ਏਕੋ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਅਵਰੁ ਨ ਬੀਆ ਰਾਮ ॥ एक ईश्वर ही सबमें रमण कर रहा है, उसके बिना कोई नहीं।
ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸੋਈ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ਮਨ ਹੀ ਤੇ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ॥ घट-घट में केवल ईश्वर रमण कर रहा है, अन्य कोई नहीं और मन में मन को प्रसन्नता प्राप्त होती है।
ਜਿਨਿ ਜਲ ਥਲ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਘਟੁ ਘਟੁ ਥਾਪਿਆ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਨਿਆ ॥ जिसने जल, थल, तीन लोक, घट-घट बनाया है, वह प्रभु तो गुरु के माध्यम से ही जाना जाता है।
ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥ ਅਪਾਰਾ ਤ੍ਰਿਬਿਧਿ ਮੇਟਿ ਸਮਾਈ ॥ सर्वकर्ता परमेश्वर सब कुछ करने योग्य है और उसने त्रिगुणात्मक माया को मिटा दिया है।
ਨਾਨਕ ਅਵਗਣ ਗੁਣਹ ਸਮਾਣੇ ਐਸੀ ਗੁਰਮਤਿ ਪਾਈ ॥੩॥ गुरु नानक फुरमाते हैं कि ऐसी गुरु-शिक्षा प्राप्त की है कि अवगुण गुणों में लीन होकर दूर हो गए हैं।॥ ३॥
ਆਵਣ ਜਾਣ ਰਹੇ ਚੂਕਾ ਭੋਲਾ ਰਾਮ ॥ आवागमन मिट गया है और सब भ्रम निवृत्त हो गए हैं।
ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਮਿਲੇ ਸਾਚਾ ਚੋਲਾ ਰਾਮ ॥ अहम्-भाव को मिटाकर मिलन हुआ तो शरीर सफल हो गया।
ਹਉਮੈ ਗੁਰਿ ਖੋਈ ਪਰਗਟੁ ਹੋਈ ਚੂਕੇ ਸੋਗ ਸੰਤਾਪੈ ॥ गुरु ने अहम्-भाव को निवृत किया तो वह प्रगट हो गया और शोक-संताप निवृत्त हो गए।
ਜੋਤੀ ਅੰਦਰਿ ਜੋਤਿ ਸਮਾਣੀ ਆਪੁ ਪਛਾਤਾ ਆਪੈ ॥ अपने आप को पहचानकर आत्म-ज्योति ब्रह्म-ज्योति में विलीन हो गई।
ਪੇਈਅੜੈ ਘਰਿ ਸਬਦਿ ਪਤੀਣੀ ਸਾਹੁਰੜੈ ਪਿਰ ਭਾਣੀ ॥ जीव इहलोक में शब्द-गुरु द्वारा आचरण करता है और परलोक में पति-प्रभु के संग रहता है।
ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰਿ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਈ ਚੂਕੀ ਕਾਣਿ ਲੋਕਾਣੀ ॥੪॥੩॥ गुरु नानक फुरमाते हैं कि सतगुरु ने जिसे प्रभु से मिला दिया है, उसकी संसार से निर्भरता दूर हो गई है॥ ४॥ ३॥
ਤੁਖਾਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ तुखारी महला १॥
ਭੋਲਾਵੜੈ ਭੁਲੀ ਭੁਲਿ ਭੁਲਿ ਪਛੋਤਾਣੀ ॥ जीव-स्त्री भुलावे में भूली रही और बार-बार भूल-भूलकर पछताती है।
ਪਿਰਿ ਛੋਡਿਅੜੀ ਸੁਤੀ ਪਿਰ ਕੀ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣੀ ॥ पति-प्रभु को छोड़कर मोह-माया में मग्न रही, मगर पति-प्रभु की महत्ता को नहीं जाना।
ਪਿਰਿ ਛੋਡੀ ਸੁਤੀ ਅਵਗਣਿ ਮੁਤੀ ਤਿਸੁ ਧਨ ਵਿਧਣ ਰਾਤੇ ॥ प्रियतम को छोड़कर अवगुणों में लीन रही, जिसके फलस्वरूप जीव-स्त्री का जीवन विधवा की तरह बना रहा।
ਕਾਮਿ ਕ੍ਰੋਧਿ ਅਹੰਕਾਰਿ ਵਿਗੁਤੀ ਹਉਮੈ ਲਗੀ ਤਾਤੇ ॥ वह काम, क्रोध, अहंकार में विनष्ट हुई और अहम्-भावना में पड़कर दुख भोगती रही।
ਉਡਰਿ ਹੰਸੁ ਚਲਿਆ ਫੁਰਮਾਇਆ ਭਸਮੈ ਭਸਮ ਸਮਾਣੀ ॥ जब मौत का बुलावा आया तो आत्मा रूपी हंस शरीर में से निकल कर उड़ गया और भस्म रूपी शरीर भस्म में ही मिल गया।
ਨਾਨਕ ਸਚੇ ਨਾਮ ਵਿਹੂਣੀ ਭੁਲਿ ਭੁਲਿ ਪਛੋਤਾਣੀ ॥੧॥ गुरु नानक का फुरमान है कि प्रभु-नाम से विहीन जीव-स्त्री भूल-भूल कर पछताती है॥ १॥
ਸੁਣਿ ਨਾਹ ਪਿਆਰੇ ਇਕ ਬੇਨੰਤੀ ਮੇਰੀ ॥ हे प्यारे प्रभु ! मेरी एक विनती सुनो,"
ਤੂ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਸਿਅੜਾ ਹਉ ਰੁਲਿ ਭਸਮੈ ਢੇਰੀ ॥ तुम तो अपने घर में आनंदपूर्वक रह रहे हो, मगर मैं राख की ढेरी बनकर भटक रही हूँ।
ਬਿਨੁ ਅਪਨੇ ਨਾਹੈ ਕੋਇ ਨ ਚਾਹੈ ਕਿਆ ਕਹੀਐ ਕਿਆ ਕੀਜੈ ॥ निःसंकोच कुछ भी कहा अथवा किया ही क्यों न जाए, मगर अपने प्रियतम के बिना कोई भी हमदर्द नहीं।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਰਸਨ ਰਸੁ ਰਸਨਾ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਰਸੁ ਪੀਜੈ ॥ हरिनामामृत रसों का भण्डार है, अतः गुरु-उपदेशानुसार जिव्हा से इस रस का पान करो।
ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਕੋ ਸੰਗਿ ਨ ਸਾਥੀ ਆਵੈ ਜਾਇ ਘਨੇਰੀ ॥ हरिनाम बिना कोई संगी-साथी नहीं, दुनिया में कितने लोग आते-जाते रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਲਾਹਾ ਲੈ ਘਰਿ ਜਾਈਐ ਸਾਚੀ ਸਚੁ ਮਤਿ ਤੇਰੀ ॥੨॥ गुरु नानक का मत है कि हरिनाम रूपी लाभ पाकर सच्चे घर जाना चाहिए क्योंकि यही तेरा, हे सच्चे प्रभु ! सच्चा उपदेश है॥ २॥
ਸਾਜਨ ਦੇਸਿ ਵਿਦੇਸੀਅੜੇ ਸਾਨੇਹੜੇ ਦੇਦੀ ॥ विदेश गए सज्जन-प्रभु को जीव-स्त्री संदेश भेजती है।
ਸਾਰਿ ਸਮਾਲੇ ਤਿਨ ਸਜਣਾ ਮੁੰਧ ਨੈਣ ਭਰੇਦੀ ॥ नयनों में जल भरकर वह सज्जन का स्मरण करती है।
ਮੁੰਧ ਨੈਣ ਭਰੇਦੀ ਗੁਣ ਸਾਰੇਦੀ ਕਿਉ ਪ੍ਰਭ ਮਿਲਾ ਪਿਆਰੇ ॥ नयनों में जल भरकर उसके गुणों को स्मरण करती हुई यही चाहती है कि प्यारे प्रभु को कैसे मिला जाए।
ਮਾਰਗੁ ਪੰਥੁ ਨ ਜਾਣਉ ਵਿਖੜਾ ਕਿਉ ਪਾਈਐ ਪਿਰੁ ਪਾਰੇ ॥ जाने का रास्ता कठिन है, प्रियतम को कैसे पाया जा सकता है?"
ਸਤਿਗੁਰ ਸਬਦੀ ਮਿਲੈ ਵਿਛੁੰਨੀ ਤਨੁ ਮਨੁ ਆਗੈ ਰਾਖੈ ॥ गुरु के उपदेश द्वारा अगर तन-मन समर्पित कर दे तो बिछुड़ी हुई का प्रभु से मिलन हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਿਰਖੁ ਮਹਾ ਰਸ ਫਲਿਆ ਮਿਲਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਰਸੁ ਚਾਖੈ ॥੩॥ गुरु नानक का कथन है कि हरिनाम अमृतमय वृक्ष, महारस एवं फलदायक है और प्रियतम से मिलकर ही वह इस रस को चख पाती है॥ ३॥
ਮਹਲਿ ਬੁਲਾਇੜੀਏ ਬਿਲਮੁ ਨ ਕੀਜੈ ॥ हे प्रभु ! अपने चरणों में बुला लो, देरी मत करो।


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