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ਜਿਤੁ ਲਾਈਅਨਿ ਤਿਤੈ ਲਗਦੀਆ ਨਹ ਖਿੰਜੋਤਾੜਾ ॥
अब इन्हें जिधर लगाता हूँ, उधर ही लगती हैं और मेरे साथ किसी प्रकार की खींचतान नहीं करती।
ਜੋ ਇਛੀ ਸੋ ਫਲੁ ਪਾਇਦਾ ਗੁਰਿ ਅੰਦਰਿ ਵਾੜਾ ॥
गुरु ने मेरे मन को अन्तर्मुखी बना दिया है और जो इच्छा करता हूँ वही फल प्राप्त करता हूँ!
ਗੁਰੁ ਨਾਨਕੁ ਤੁਠਾ ਭਾਇਰਹੁ ਹਰਿ ਵਸਦਾ ਨੇੜਾ ॥੧੦॥
हे भाइयो ! गुरु नानक मुझ पर प्रसन्न हो गया है और अब परमात्मा मेरे निकट ही रहता है।॥१०॥
ਡਖਣੇ ਮਃ ੫ ॥
डखणे महला ५॥
ਜਾ ਮੂੰ ਆਵਹਿ ਚਿਤਿ ਤੂ ਤਾ ਹਭੇ ਸੁਖ ਲਹਾਉ ॥
हे ईश्वर ! जब तू मुझे याद आता है तो सभी सुख पा लेता हूँ।
ਨਾਨਕ ਮਨ ਹੀ ਮੰਝਿ ਰੰਗਾਵਲਾ ਪਿਰੀ ਤਹਿਜਾ ਨਾਉ ॥੧॥
नानक का कथन है कि हे मेरे प्रियतम ! मुझे तेरा नाम मन में बड़ा ही प्यारा लगता है॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
महला ५॥
ਕਪੜ ਭੋਗ ਵਿਕਾਰ ਏ ਹਭੇ ਹੀ ਛਾਰ ॥
सुन्दर कपड़े, भोग-विकार ये सभी धूल के समान हैं।
ਖਾਕੁ ਲੋੁੜੇਦਾ ਤੰਨਿ ਖੇ ਜੋ ਰਤੇ ਦੀਦਾਰ ॥੨॥
जो परमात्मा के दीदार में लीन रहते हैं, मैं उनकी ही चरण-धूलि पाना चाहता हूँ॥ २॥
ਮਃ ੫ ॥
महला ५॥
ਕਿਆ ਤਕਹਿ ਬਿਆ ਪਾਸ ਕਰਿ ਹੀਅੜੇ ਹਿਕੁ ਅਧਾਰੁ ॥
हे मानव ! क्यों लोगों का सहारा देख रहा है ? अपने हृदय में एक ईश्वर का ही सहारा बना ले।
ਥੀਉ ਸੰਤਨ ਕੀ ਰੇਣੁ ਜਿਤੁ ਲਭੀ ਸੁਖ ਦਾਤਾਰੁ ॥੩॥
संत-महापुरुषों की चरण-धूलि बन जाओ, जिससे तुझे सुख देने वाला प्रभु मिल जाएगा।॥ ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਵਿਣੁ ਕਰਮਾ ਹਰਿ ਜੀਉ ਨ ਪਾਈਐ ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਮਨੂਆ ਨ ਲਗੈ ॥
भाग्य के बिना परमात्मा को पाया नहीं जा सकता और सतिगुरु के बिना मन प्रभु में नहीं लगता।
ਧਰਮੁ ਧੀਰਾ ਕਲਿ ਅੰਦਰੇ ਇਹੁ ਪਾਪੀ ਮੂਲਿ ਨ ਤਗੈ ॥
इस कलियुग में केवल धर्म ही दृढ़ सहारा है किन्तु यह पापी मन बिल्कुल भी स्थित नहीं होता।
ਅਹਿ ਕਰੁ ਕਰੇ ਸੁ ਅਹਿ ਕਰੁ ਪਾਏ ਇਕ ਘੜੀ ਮੁਹਤੁ ਨ ਲਗੈ ॥
मनुष्य इस हाथ पाप करता है और उस हाथ उसका फल पाता है, पाप-कर्म का फल मिलते एक घड़ी मुहूर्त भी नहीं लगता।
ਚਾਰੇ ਜੁਗ ਮੈ ਸੋਧਿਆ ਵਿਣੁ ਸੰਗਤਿ ਅਹੰਕਾਰੁ ਨ ਭਗੈ ॥
मैंने चारों युगों का भलीभांति विश्लेषण करके देख लिया है कि सुसंगति किए बिना अहंकार दूर नहीं होता।
ਹਉਮੈ ਮੂਲਿ ਨ ਛੁਟਈ ਵਿਣੁ ਸਾਧੂ ਸਤਸੰਗੈ ॥
साधुओं की संगत किए बिना तो अहम्-भावना बिल्कुल ही नहीं छूटती।
ਤਿਚਰੁ ਥਾਹ ਨ ਪਾਵਈ ਜਿਚਰੁ ਸਾਹਿਬ ਸਿਉ ਮਨ ਭੰਗੈ ॥
जब तक मन मालिक से टूटा रहता है, तब तक सत्य का ज्ञान नहीं मिलता।
ਜਿਨਿ ਜਨਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੇਵਿਆ ਤਿਸੁ ਘਰਿ ਦੀਬਾਣੁ ਅਭਗੈ ॥
जिसने गुरुमुख बनकर परमात्मा की उपासना की है, उसके हृदय-घर में अटूट आश्रय बन गया है।
ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਚਰਣੀ ਲਗੈ ॥੧੧॥
परमात्मा की कृपा से उसने परम-सुख पा लिया है और वह गुरु-चरणों में ही लीन रहता है॥ ११॥
ਡਖਣੇ ਮਃ ੫ ॥
डखणे महला ५॥
ਲੋੜੀਦੋ ਹਭ ਜਾਇ ਸੋ ਮੀਰਾ ਮੀਰੰਨ ਸਿਰਿ ॥
जिसे मैं हर स्थान पर ढूंढता रहता हूँ, वह बादशाहों का भी बादशाह है।
ਹਠ ਮੰਝਾਹੂ ਸੋ ਧਣੀ ਚਉਦੋ ਮੁਖਿ ਅਲਾਇ ॥੧॥
वह मालिक तो मेरे हृदय में ही रहता है और मुँह से बोलकर उसका ही नाम जपता रहता हूँ॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
महला ५॥
ਮਾਣਿਕੂ ਮੋਹਿ ਮਾਉ ਡਿੰਨਾ ਧਣੀ ਅਪਾਹਿ ॥
हे मेरी माँ! मालिक-प्रभु ने स्वयं ही मुझे नाम रूपी माणिक्य दिया है,
ਹਿਆਉ ਮਹਿਜਾ ਠੰਢੜਾ ਮੁਖਹੁ ਸਚੁ ਅਲਾਇ ॥੨॥
अतः भुख से उस परम-सत्य का स्तुतिगान करने से मेरा हृदय शीतल हो गया है॥ २॥
ਮਃ ੫ ॥
महला ५॥
ਮੂ ਥੀਆਊ ਸੇਜ ਨੈਣਾ ਪਿਰੀ ਵਿਛਾਵਣਾ ॥
हे प्रियतम ! मेरा हृदय तेरे लिए सेज बन गया है और मेरे नेत्र बिछौना बन गए हैं।
ਜੇ ਡੇਖੈ ਹਿਕ ਵਾਰ ਤਾ ਸੁਖ ਕੀਮਾ ਹੂ ਬਾਹਰੇ ॥੩॥
यदि तू एक बार भी मेरी तरफ देख ले तो मुझे अमूल्य सुख मिल जाए॥ ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਮਨੁ ਲੋਚੈ ਹਰਿ ਮਿਲਣ ਕਉ ਕਿਉ ਦਰਸਨੁ ਪਾਈਆ ॥
मेरा मन प्रभु-मिलन का ख्वाहिशमंद है, फिर क्योंकर उसके दर्शन पा सकता हूँ।
ਮੈ ਲਖ ਵਿੜਤੇ ਸਾਹਿਬਾ ਜੇ ਬਿੰਦ ਬੋੁਲਾਈਆ ॥
है मेरे मालिक अगर तू मुझ से एक क्षणभर के लिए बोल पड़े तो मैं समझूंगा की मैंने लाखो रुपए कमा लिए।
ਮੈ ਚਾਰੇ ਕੁੰਡਾ ਭਾਲੀਆ ਤੁਧੁ ਜੇਵਡੁ ਨ ਸਾਈਆ ॥
हे स्वामी ! मैंने चारों दिशाएँ खोज ली हैं, किन्तु तुझ जैसा कोई नहीं।
ਮੈ ਦਸਿਹੁ ਮਾਰਗੁ ਸੰਤਹੋ ਕਿਉ ਪ੍ਰਭੂ ਮਿਲਾਈਆ ॥
हे संतजनो ! मुझे मार्ग बताओ कि प्रभु को कैसे मिला जा सकता है ?
ਮਨੁ ਅਰਪਿਹੁ ਹਉਮੈ ਤਜਹੁ ਇਤੁ ਪੰਥਿ ਜੁਲਾਈਆ ॥
(संतजनों का उत्तर है कि) अपना मन अर्पण कर दो, अभिमान को त्याग दो, इस मार्ग पर चलते रहो।
ਨਿਤ ਸੇਵਿਹੁ ਸਾਹਿਬੁ ਆਪਣਾ ਸਤਸੰਗਿ ਮਿਲਾਈਆ ॥
नित्य अपने मालिक की बंदगी कूरो, सत्संग में प्रभु से मिला जाता है।
ਸਭੇ ਆਸਾ ਪੂਰੀਆ ਗੁਰ ਮਹਲਿ ਬੁਲਾਈਆ ॥
गुरु-परमेश्वर ने मुझे अपने चरणों में बुला लिया है, अतः मेरी सभी अभिलाषाएँ पूरी हो गई हैं।
ਤੁਧੁ ਜੇਵਡੁ ਹੋਰੁ ਨ ਸੁਝਈ ਮੇਰੇ ਮਿਤ੍ਰ ਗੋੁਸਾਈਆ ॥੧੨॥
हे मेरे मित्र गुसाँई ! तुझ जैसा मुझे अन्य कोई नहीं सूझता॥ १२॥
ਡਖਣੇ ਮਃ ੫ ॥
डखणे महला ५॥
ਮੂ ਥੀਆਊ ਤਖਤੁ ਪਿਰੀ ਮਹਿੰਜੇ ਪਾਤਿਸਾਹ ॥
अगर मेरा हृदय सिंहासन बन जाए और मेरा प्रियतम बादशाह बनकर उस पर बैठ जाए तो
ਪਾਵ ਮਿਲਾਵੇ ਕੋਲਿ ਕਵਲ ਜਿਵੈ ਬਿਗਸਾਵਦੋ ॥੧॥
जब वे अपने चरण मेरे ह्रदय-कमल को स्पर्श करेगा तो वह कमल की तरह विकसित हो जाएगा॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
महला ५॥
ਪਿਰੀਆ ਸੰਦੜੀ ਭੁਖ ਮੂ ਲਾਵਣ ਥੀ ਵਿਥਰਾ ॥
अपने प्रियतम की भूख मिटाने के लिए अगर मैं सलोना भोजन बनकर बिखर जाऊँ,
ਜਾਣੁ ਮਿਠਾਈ ਇਖ ਬੇਈ ਪੀੜੇ ਨਾ ਹੁਟੈ ॥੨॥
यह अच्छी तरह जानो कि मैं गन्ने की मिठास हूँ, अगर मुझे बार-बार दलोगे, तो भी मिठास देने से न हटूंगी॥ २॥
ਮਃ ੫ ॥
महला ५॥
ਠਗਾ ਨੀਹੁ ਮਤ੍ਰੋੜਿ ਜਾਣੁ ਗੰਧ੍ਰਬਾ ਨਗਰੀ ॥
कामादिक ठगों से अपना नाता तोड़ दो और इसे गन्धर्व-नगरी की तरह धोखा ही समझो।
ਸੁਖ ਘਟਾਊ ਡੂਇ ਇਸੁ ਪੰਧਾਣੂ ਘਰ ਘਣੇ ॥੩॥
दो घड़ियों के इस सुख के कारण जीव रूपी यात्री अनेक घर अर्थात् योनियों में भटकता रहता है॥ ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਅਕਲ ਕਲਾ ਨਹ ਪਾਈਐ ਪ੍ਰਭੁ ਅਲਖ ਅਲੇਖੰ ॥
प्रभु को किसी से भी पाया नहीं जा सकता, वह अदृष्ट एवं कर्मों के लेखे से रहित है।