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ਆਪੇ ਸੂਰਾ ਅਮਰੁ ਚਲਾਇਆ ॥
उस शूरवीर प्रभु ने स्वयं ही समूचे विश्व में अपना हुक्म चलाया हुआ है,"
ਆਪੇ ਸਿਵ ਵਰਤਾਈਅਨੁ ਅੰਤਰਿ ਆਪੇ ਸੀਤਲੁ ਠਾਰੁ ਗੜਾ ॥੧੩॥
उसने स्वयं ही अन्तर्मन में सुख-शान्ति का प्रसार किया हुआ है और वह स्वयं ही बर्फ के सादृश शीतल है।१३॥
ਜਿਸਹਿ ਨਿਵਾਜੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਜੇ ॥
जिसे यह कीर्ति प्रदान करता है, उसे गुरुमुख बना देता है।
ਨਾਮੁ ਵਸੈ ਤਿਸੁ ਅਨਹਦ ਵਾਜੇ ॥
जिसके मन में हरि-नाम स्थित हो जाता है, उसके अन्तर्मन में अनाहतं ध्वनियाँ बजती रहती हैं।
ਤਿਸ ਹੀ ਸੁਖੁ ਤਿਸ ਹੀ ਠਕੁਰਾਈ ਤਿਸਹਿ ਨ ਆਵੈ ਜਮੁ ਨੇੜਾ ॥੧੪॥
उसे ही सुख उपलब्ध होता है, उसे ही दुनिया में ऐश्वर्य मिलता है और यम भी उसके निकट नहीं आते॥ १४॥
ਕੀਮਤਿ ਕਾਗਦ ਕਹੀ ਨ ਜਾਈ ॥
कागज़ पर लिखकर भी उसका मूल्य आँका नहीं जा सकता,"
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਬੇਅੰਤ ਗੁਸਾਈ ॥
हे नानक ! परमात्मा बेअंत है।
ਆਦਿ ਮਧਿ ਅੰਤਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਈ ਹਾਥਿ ਤਿਸੈ ਕੈ ਨੇਬੇੜਾ ॥੧੫॥
सृष्टि के आदि, मध्य एवं अन्त तक केवल प्रभु का ही अस्तित्व है और जीवों के किए कर्मों का फैसला उसके ही हाथ में हैं।॥ १५॥
ਤਿਸਹਿ ਸਰੀਕੁ ਨਾਹੀ ਰੇ ਕੋਈ ॥
उसकी बराबरी करने वाला कोई नहीं हैं,"
ਕਿਸ ਹੀ ਬੁਤੈ ਜਬਾਬੁ ਨ ਹੋਈ ॥
किसी भी बहाने से उसके हुक्म को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
ਨਾਨਕ ਕਾ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪੇ ਆਪੇ ਕਰਿ ਕਰਿ ਵੇਖੈ ਚੋਜ ਖੜਾ ॥੧੬॥੧॥੧੦॥
नानक का प्रभु अपने आप ही अपनी अद्भुत लीला कर-करके देख रहा है॥ १६॥ १॥ १०॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५॥
ਅਚੁਤ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪਰਮੇਸੁਰ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥
अन्तर्यामी परब्रह्म परमेश्वर अटल अमर है,"
ਮਧੁਸੂਦਨ ਦਾਮੋਦਰ ਸੁਆਮੀ ॥
श्रीकृष्ण के रूप में मधु राक्षस का संहार करने वाला नहीं मधुसुदन, दामोदर सबका स्वामी है।
ਰਿਖੀਕੇਸ ਗੋਵਰਧਨ ਧਾਰੀ ਮੁਰਲੀ ਮਨੋਹਰ ਹਰਿ ਰੰਗਾ ॥੧॥
यही ह्रषिकेश गोवर्धन पर्वतधारी, मुरली मनोहर श्रीकृष्णावतार है, उस हरि की लीला अपरंपार है। ॥१॥
ਮੋਹਨ ਮਾਧਵ ਕ੍ਰਿਸ੍ਨ ਮੁਰਾਰੇ ॥
उस प्यारे मोहन, माधव, कृष्ण मुरारि,"
ਜਗਦੀਸੁਰ ਹਰਿ ਜੀਉ ਅਸੁਰ ਸੰਘਾਰੇ ॥
जगदीश्वर श्री हरि ने ही असुरों का संहार किया है।
ਜਗਜੀਵਨ ਅਬਿਨਾਸੀ ਠਾਕੁਰ ਘਟ ਘਟ ਵਾਸੀ ਹੈ ਸੰਗਾ ॥੨॥
यह अनश्वर प्रभु समूचे जगत् को जीवन देने वाला हैं, उस ठाकुर जी का घट-घट में वास है॥२॥
ਧਰਣੀਧਰ ਈਸ ਨਰਸਿੰਘ ਨਾਰਾਇਣ ॥
समूची धरती को सहारा देने वाला ईश्वर, नृसिंहावतार में हिरण्यकशिपु का वध करने वाला नारायण ही है।
ਦਾੜਾ ਅਗ੍ਰੇ ਪ੍ਰਿਥਮਿ ਧਰਾਇਣ ॥
अपनी अगली दाढ़ो पर पृथ्वी को उठाकर समुद्र में से निकाल कर लाने वाला वही वाराहावतार है
ਬਾਵਨ ਰੂਪੁ ਕੀਆ ਤੁਧੁ ਕਰਤੇ ਸਭ ਹੀ ਸੇਤੀ ਹੈ ਚੰਗਾ ॥੩॥
हे कर्तार ! तूने ही यामनावतार धारण किया था, तू ही सब का कल्याण करने वाला है॥३॥
ਸ੍ਰੀ ਰਾਮਚੰਦ ਜਿਸੁ ਰੂਪੁ ਨ ਰੇਖਿਆ ॥
जिसका कोई रूप-रंग एव चिन्ह नहीं है, वहीं श्रीरामचन्द्र अवतार हैं।
ਬਨਵਾਲੀ ਚਕ੍ਰਪਾਣਿ ਦਰਸਿ ਅਨੂਪਿਆ ॥
उस बनवारी चक्रपाणि के दर्शन अनुपम है।
ਸਹਸ ਨੇਤ੍ਰ ਮੂਰਤਿ ਹੈ ਸਹਸਾ ਇਕੁ ਦਾਤਾ ਸਭ ਹੈ ਮੰਗਾ ॥੪॥
उसके हजारों ही नेत्र हैं हजारों ही मूर्त है, सबको देने चाला एक परमेश्वर ही है और सभी उससे ही माँगते हैं॥४॥
ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਅਨਾਥਹ ਨਾਥੇ ॥
वह भगतवत्सल, अनाथों का नाथ है,"
ਗੋਪੀ ਨਾਥੁ ਸਗਲ ਹੈ ਸਾਥੇ ॥
सबके संग रहने याला गोपीनाथ भी वहीं कहलाता है,"
ਬਾਸੁਦੇਵ ਨਿਰੰਜਨ ਦਾਤੇ ਬਰਨਿ ਨ ਸਾਕਉ ਗੁਣ ਅੰਗਾ ॥੫॥
उस वासुदेव, मायातीत दाता के गुणों का वर्णन नहीं है सकता॥५॥
ਮੁਕੰਦ ਮਨੋਹਰ ਲਖਮੀ ਨਾਰਾਇਣ ॥
वह मोक्षदाता, मनोहर, श्री लक्ष्मी नारायण समूचे विश्व में पूजनीय है,"
ਦ੍ਰੋਪਤੀ ਲਜਾ ਨਿਵਾਰਿ ਉਧਾਰਣ ॥
द्रौपदी की लाज रखकर उसका उद्धार करने वाला एक वही हैं।
ਕਮਲਾਕੰਤ ਕਰਹਿ ਕੰਤੂਹਲ ਅਨਦ ਬਿਨੋਦੀ ਨਿਹਸੰਗਾ ॥੬॥
वह कमलापति अनेक कौतुक करता रहता हैं। वह आनंद-विनोद करने वाला संसार से सदैव निर्लिप्त रहता है॥६॥
ਅਮੋਘ ਦਰਸਨ ਆਜੂਨੀ ਸੰਭਉ ॥
वह कोई योनि धारण नहीं करता, क्योंकि वह आवागमन के चक्र से रहित है,वह स्वतः प्रकाश स्वयंभू है, उसके दर्शन करने से अवश्य ही शुभ फल मिलता है
ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਜਿਸੁ ਕਦੇ ਨਾਹੀ ਖਉ ॥
यह काल (मृत्यु) से परे है, अविनाशी होने के कारण उसका अस्तित्व सदैव हैं, जिसका कभी नाश नहीं होता।
ਅਬਿਨਾਸੀ ਅਬਿਗਤ ਅਗੋਚਰ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤੁਝ ਹੀ ਹੈ ਲਗਾ ॥੭॥
हे परमेश्वर ! अविनाशी, अव्यक्त्त, अदृष्ट सभी विशेषण तुझे ही शोभा देते हैं॥७॥
ਸ੍ਰੀਰੰਗ ਬੈਕੁੰਠ ਕੇ ਵਾਸੀ ॥
वहीं श्रीरंग वैकुण्ठ में वास कर रहा है।
ਮਛੁ ਕਛੁ ਕੂਰਮੁ ਆਗਿਆ ਅਉਤਰਾਸੀ ॥
मत्स्य, कच्छप एवं कूर्म के रूप में विष्णु ने हुक्म से ही अवतार धारण किया था।
ਕੇਸਵ ਚਲਤ ਕਰਹਿ ਨਿਰਾਲੇ ਕੀਤਾ ਲੋੜਹਿ ਸੋ ਹੋਇਗਾ ॥੮॥
वहीं केशव अद्भुत लीलाएँ करता रहता है, संसार में वही होता है, जो वह चाहता है॥८॥
ਨਿਰਾਹਾਰੀ ਨਿਰਵੈਰੁ ਸਮਾਇਆ ॥
वह भोजन-पानी से रहित है, उसका किसी से कोई वैर नहीं, वह सारी दुनिया में समाया हुआ है।
ਧਾਰਿ ਖੇਲੁ ਚਤੁਰਭੁਜੁ ਕਹਾਇਆ ॥
जग रूपी अद्भुत लीला रचकर ही वह चतुर्भुज कहलाया है।
ਸਾਵਲ ਸੁੰਦਰ ਰੂਪ ਬਣਾਵਹਿ ਬੇਣੁ ਸੁਨਤ ਸਭ ਮੋਹੈਗਾ ॥੯॥
उसने ही साँवला सुंदर रूप बनाया था, जिसकी सुरीली बाँसुरी को सुनकर सभी मुग्ध हो गए थे॥९॥
ਬਨਮਾਲਾ ਬਿਭੂਖਨ ਕਮਲ ਨੈਨ ॥
उस कमलनयन ने वैजयंती माला एवं अनूप आभूषण धारण किए थे।
ਸੁੰਦਰ ਕੁੰਡਲ ਮੁਕਟ ਬੈਨ ॥
उसी ने कानों में सुन्दर कुण्डल, मुकुट धारण किया और वहीं मधुर वचन बोलता है।
ਸੰਖ ਚਕ੍ਰ ਗਦਾ ਹੈ ਧਾਰੀ ਮਹਾ ਸਾਰਥੀ ਸਤਸੰਗਾ ॥੧੦॥
उस ईश्वर ने ही शंख, सुदर्शन चक्र एवं गदा धारण की हुई है और वही (अर्जुन का) महासारथी भी बना॥१०॥
ਪੀਤ ਪੀਤੰਬਰ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਧਣੀ ॥
पीताम्बर धारण करने वाला वहीं तीनों लोकों का स्वामी हैं,"
ਜਗੰਨਾਥੁ ਗੋਪਾਲੁ ਮੁਖਿ ਭਣੀ ॥
उसे ही मुख से जगन्नाथ एवं गोपाल कहा जाता है।
ਸਾਰਿੰਗਧਰ ਭਗਵਾਨ ਬੀਠੁਲਾ ਮੈ ਗਣਤ ਨ ਆਵੈ ਸਰਬੰਗਾ ॥੧੧॥
सारंगधर, भगवान विट्ठल इत्यादि उसके अनेकों ही नाम हैं, उसकी महिमा वर्णन नहीं की जा सकती॥11॥
ਨਿਹਕੰਟਕੁ ਨਿਹਕੇਵਲੁ ਕਹੀਐ ॥
वह दुख-क्लेश और वासनाओं से रहित कहलाता है।
ਧਨੰਜੈ ਜਲਿ ਥਲਿ ਹੈ ਮਹੀਐ ॥
वहीं धनंजय समुद्र, पृथ्वी एवं नभ में व्याप्त है।