Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 929

Page 929

ਸਾਧ ਪਠਾਏ ਆਪਿ ਹਰਿ ਹਮ ਤੁਮ ਤੇ ਨਾਹੀ ਦੂਰਿ ॥ ईश्वर ने स्वयं ही यह सत्य बताने के लिए साधुओं को संसार में भेजा है कि वह तुमसे कहीं दूर नहीं।
ਨਾਨਕ ਭ੍ਰਮ ਭੈ ਮਿਟਿ ਗਏ ਰਮਣ ਰਾਮ ਭਰਪੂਰਿ ॥੨॥ हे नानक ! सब भ्रम एवं भय मिट गए हैं, एक राग ही सब जीवों में रमण कर रहा है॥ २ ॥
ਛੰਤੁ ॥ छंद॥
ਰੁਤਿ ਸਿਸੀਅਰ ਸੀਤਲ ਹਰਿ ਪ੍ਰਗਟੇ ਮੰਘਰ ਪੋਹਿ ਜੀਉ ॥ मार्गशीर्ष एवं पौष के महीनों में शीतल शिशिर ऋतु आई है और प्रभु अन्तर्मन में प्रगट हो गया है।
ਜਲਨਿ ਬੁਝੀ ਦਰਸੁ ਪਾਇਆ ਬਿਨਸੇ ਮਾਇਆ ਧ੍ਰੋਹ ਜੀਉ ॥ उसके दर्शन करके सारी जलन दूर हो गई है और माया के सब बन्धन नाश हो गए हैं।
ਸਭਿ ਕਾਮ ਪੂਰੇ ਮਿਲਿ ਹਜੂਰੇ ਹਰਿ ਚਰਣ ਸੇਵਕਿ ਸੇਵਿਆ ॥ सेवक ने हरि-चरणों की सेवा की है और प्रत्यक्ष प्रभु से मिलकर सब कामनाएँ पूरी हो गई हैं।
ਹਾਰ ਡੋਰ ਸੀਗਾਰ ਸਭਿ ਰਸ ਗੁਣ ਗਾਉ ਅਲਖ ਅਭੇਵਿਆ ॥ सब ने हार श्रृंगार सहित आनंद से उस अलक्ष्य, रहस्यातीत, परमात्मा का ही गुणगान किया है।
ਭਾਉ ਭਗਤਿ ਗੋਵਿੰਦ ਬਾਂਛਤ ਜਮੁ ਨ ਸਾਕੈ ਜੋਹਿ ਜੀਉ ॥ जो गोविंद की प्रेम-भक्ति की कामना करते हैं, यम भी उन्हें तंग नहीं करता।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ਮੇਲੀ ਤਹ ਨ ਪ੍ਰੇਮ ਬਿਛੋਹ ਜੀਉ ॥੬॥ नानक विनती करते हैं कि जिस जीव-स्त्री को प्रभु ने साथ मिला लिया है, उसका प्रेम वियोग नहीं होता ॥ ६॥
ਸਲੋਕ ॥ श्लोक॥
ਹਰਿ ਧਨੁ ਪਾਇਆ ਸੋਹਾਗਣੀ ਡੋਲਤ ਨਾਹੀ ਚੀਤ ॥ जिस सुहागिन ने पति-प्रभु को पा लिया है, उसका मन कभी विचलित नहीं होता।
ਸੰਤ ਸੰਜੋਗੀ ਨਾਨਕਾ ਗ੍ਰਿਹਿ ਪ੍ਰਗਟੇ ਪ੍ਰਭ ਮੀਤ ॥੧॥ हे नानक ! संतों के संयोग से ही मित्र-प्रभु उसके हृदय-घर में प्रगट हो गया है॥ १॥
ਨਾਦ ਬਿਨੋਦ ਅਨੰਦ ਕੋਡ ਪ੍ਰਿਅ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸੰਗਿ ਬਨੇ ॥ प्रियतम के संग ही आनंद, विनोद एवं संगीत इत्यादि सब खुशियां मिलती हैं।
ਮਨ ਬਾਂਛਤ ਫਲ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਭਨੇ ॥੨॥ हे नानक ! हरि-नाम का जाप करके मनोवांछित फल प्राप्त हो गया है॥ २ ॥
ਛੰਤੁ ॥ छंद ॥
ਹਿਮਕਰ ਰੁਤਿ ਮਨਿ ਭਾਵਤੀ ਮਾਘੁ ਫਗਣੁ ਗੁਣਵੰਤ ਜੀਉ ॥ हेमंत ऋतु मन को बहुत अच्छी लगती है, माघ-फाल्गुन के महीने बड़े गुणवान् हैं।
ਸਖੀ ਸਹੇਲੀ ਗਾਉ ਮੰਗਲੋ ਗ੍ਰਿਹਿ ਆਏ ਹਰਿ ਕੰਤ ਜੀਉ ॥ हे मेरी सखी-सहेली, प्रभु हृदय-घर में आ गया है, इसलिए उसका मंगलगान करो।
ਗ੍ਰਿਹਿ ਲਾਲ ਆਏ ਮਨਿ ਧਿਆਏ ਸੇਜ ਸੁੰਦਰਿ ਸੋਹੀਆ ॥ मन में उसका ध्यान किया है और हृदय-घर में वह प्रभु जी आए हैं और मेरी हृदय रूपी सेज सुन्दर एवं सुहावनी हो गई है।
ਵਣੁ ਤ੍ਰਿਣੁ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਭਏ ਹਰਿਆ ਦੇਖਿ ਦਰਸਨ ਮੋਹੀਆ ॥ वन, तृण एवं तीनों लोक सब खुशहाल हो गए हैं और उसके दर्शन करके मोहित हो गई हूँ।
ਮਿਲੇ ਸੁਆਮੀ ਇਛ ਪੁੰਨੀ ਮਨਿ ਜਪਿਆ ਨਿਰਮਲ ਮੰਤ ਜੀਉ ॥ मेरा स्वामी मुझे मिल गया है, मेरी कामना पूरी हो गई है, चूंकि मन में उसके निर्मल नाम-मंत्र का ही जाप किया है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਨਿਤ ਕਰਹੁ ਰਲੀਆ ਹਰਿ ਮਿਲੇ ਸ੍ਰੀਧਰ ਕੰਤ ਜੀਉ ॥੭॥ नानक विनती करते हैं कि नित्य आनंद प्राप्त करो, चूंकि श्रीधर हरि रूपी पति मिल गया है॥ ७ ॥
ਸਲੋਕ ॥ श्लोक ॥
ਸੰਤ ਸਹਾਈ ਜੀਅ ਕੇ ਭਵਜਲ ਤਾਰਣਹਾਰ ॥ संत ही जीवों के सहायक हैं, जो संसार-सागर से पार करवाने वाले हैं।
ਸਭ ਤੇ ਊਚੇ ਜਾਣੀਅਹਿ ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਪਿਆਰ ॥੧॥ हे नानक ! जो प्रभु-नाम से प्रेम करता है, वही सर्वश्रेष्ठ माना जाता है॥ १॥
ਜਿਨ ਜਾਨਿਆ ਸੇਈ ਤਰੇ ਸੇ ਸੂਰੇ ਸੇ ਬੀਰ ॥ जिन्होंने ईश्वर को पहचान लिया है, वे संसार से मुक्त हो गए हैं, वही शूरवीर एवं पराक्रमी हैं।
ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਬਲਿਹਾਰਣੈ ਹਰਿ ਜਪਿ ਉਤਰੇ ਤੀਰ ॥੨॥ हे नानक ! मैं उन पर बलिहारी जाता हूँ, जो भगवान का जाप करके पार हो गए हैं।॥ २॥
ਛੰਤੁ ॥ छंद॥
ਚਰਣ ਬਿਰਾਜਿਤ ਸਭ ਊਪਰੇ ਮਿਟਿਆ ਸਗਲ ਕਲੇਸੁ ਜੀਉ ॥ सब के ऊपर भगवान के चरण विराजमान हैं और उनका सारा दुख-क्लेश मिट गया है।
ਆਵਣ ਜਾਵਣ ਦੁਖ ਹਰੇ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਕੀਆ ਪਰਵੇਸੁ ਜੀਉ ॥ जिनके हृदय में भगवान की भक्ति का प्रवेश हो गया है, उनका आवागमन का दुख मिट गया है।
ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਸਹਜਿ ਮਾਤੇ ਤਿਲੁ ਨ ਮਨ ਤੇ ਬੀਸਰੈ ॥ वे हरि-रंग में लीन रहकर सहज ही मस्त रहते हैं और तिल मात्र समय के लिए भी उन्हें प्रभु मन से नहीं भूलता।
ਤਜਿ ਆਪੁ ਸਰਣੀ ਪਰੇ ਚਰਨੀ ਸਰਬ ਗੁਣ ਜਗਦੀਸਰੈ ॥ वे अपना अहंत्व त्यागकर सर्वगुणसम्पन्न जगदीश्वर के चरणों की शरण में आ गए हैं।
ਗੋਵਿੰਦ ਗੁਣ ਨਿਧਿ ਸ੍ਰੀਰੰਗ ਸੁਆਮੀ ਆਦਿ ਕਉ ਆਦੇਸੁ ਜੀਉ ॥ गुणों के भण्डार, श्रीरंग, स्वामी, सृष्टि के आदि उस गोविन्द को हमारा शत् शत् नमन है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਮਇਆ ਧਾਰਹੁ ਜੁਗੁ ਜੁਗੋ ਇਕ ਵੇਸੁ ਜੀਉ ॥੮॥੧॥੬॥੮॥ नानक विनती करते हैं कि हे स्वामी ! मुझ पर दया करो, युगों-युगान्तरों से एक तेरा ही अस्तित्व है॥ ८॥ १॥ ६॥ ८ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੧ ਦਖਣੀ ਓਅੰਕਾਰੁ रामकली महला १ दखणी ओअंकारु
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਓਅੰਕਾਰਿ ਬ੍ਰਹਮਾ ਉਤਪਤਿ ॥ ऑकार से ब्रह्मा की उत्पति हुई,
ਓਅੰਕਾਰੁ ਕੀਆ ਜਿਨਿ ਚਿਤਿ ॥ जिसने चित्त में ऑकार का ही ध्यान किया,"
ਓਅੰਕਾਰਿ ਸੈਲ ਜੁਗ ਭਏ ॥ अनेक पर्वत एवं युग ऑकार से पैदा हुए और
ਓਅੰਕਾਰਿ ਬੇਦ ਨਿਰਮਏ ॥ ऑकार ने वेदों का निर्माण किया।


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