Page 906
ਤੀਰਥਿ ਭਰਮਸਿ ਬਿਆਧਿ ਨ ਜਾਵੈ ॥
तीर्थ-यात्रा करने से भी रोग दूर नहीं होते।
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਕੈਸੇ ਸੁਖੁ ਪਾਵੈ ॥੪॥
प्रभु नाम के बिना कैसे सुख प्राप्त हो सकता है। ४॥
ਜਤਨ ਕਰੈ ਬਿੰਦੁ ਕਿਵੈ ਨ ਰਹਾਈ ॥
चाहे मनुष्य कितना ही प्रयास करे, किन्तु वह अपने वीर्य को नियंत्रण में नहीं कर सकता।
ਮਨੂਆ ਡੋਲੈ ਨਰਕੇ ਪਾਈ ॥
उसका मन डगमगाता रहता है और वह नरक में ही पड़ता है।
ਜਮ ਪੁਰਿ ਬਾਧੋ ਲਹੈ ਸਜਾਈ ॥
वह यमपुरी में बंधा हुआ दण्ड भोगता है और
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਜੀਉ ਜਲਿ ਬਲਿ ਜਾਈ ॥੫॥
नाम के बिना मन जलता ही रहता है।॥ ५॥
ਸਿਧ ਸਾਧਿਕ ਕੇਤੇ ਮੁਨਿ ਦੇਵਾ ॥
कितने ही सिद्ध-साधक, ऋषि-मुनि एवं देवता
ਹਠਿ ਨਿਗ੍ਰਹਿ ਨ ਤ੍ਰਿਪਤਾਵਹਿ ਭੇਵਾ ॥
हठ निग्रह द्वारा अपने मन की तृष्णा को तृप्त नहीं कर सकते।
ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਿ ਗਹਹਿ ਗੁਰ ਸੇਵਾ ॥
जो शब्द का चिंतन करते हैं, गुरु की सेवा में लीन रहते हैं,
ਮਨਿ ਤਨਿ ਨਿਰਮਲ ਅਭਿਮਾਨ ਅਭੇਵਾ ॥੬॥
उनका मन-तन निर्मल हो जाता है और अभिमान मिट जाता है।॥ ६॥
ਕਰਮਿ ਮਿਲੈ ਪਾਵੈ ਸਚੁ ਨਾਉ ॥
परमात्मा की कृपा से जिसे गुरु मिल जाता है, उसे सत्य नाम प्राप्त हो जाता है।
ਤੁਮ ਸਰਣਾਗਤਿ ਰਹਉ ਸੁਭਾਉ ॥
हे प्रभु! मैं बड़ी श्रद्धा से तेरी शरण में रहता हूँ और
ਤੁਮ ਤੇ ਉਪਜਿਓ ਭਗਤੀ ਭਾਉ ॥
तुम से ही भक्ति-भावना पैदा होती है।
ਜਪੁ ਜਾਪਉ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਨਾਉ ॥੭॥
गुरु से हरि-नाम का मंत्र लेकर उसका ही जाप जपता रहता हूँ॥ ७ ॥
ਹਉਮੈ ਗਰਬੁ ਜਾਇ ਮਨ ਭੀਨੈ ॥
मन के नाम-रस में भीगने से अहंत्व एवं घमण्ड दूर हो जाता है।
ਝੂਠਿ ਨ ਪਾਵਸਿ ਪਾਖੰਡਿ ਕੀਨੈ ॥
पाखण्ड करने एवं झूठ बोलने से सत्य की प्राप्ति नहीं होती।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਸਬਦ ਨਹੀ ਘਰੁ ਬਾਰੁ ॥
शब्द-गुरु के बिना सत्य का घर प्राप्त नहीं होता।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥੮॥੬॥
हे नानक ! गुरुमुख बनकर परमतत्व का चिंतन करो ॥ ८ ॥ ६॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
रामकली महला १ ॥
ਜਿਉ ਆਇਆ ਤਿਉ ਜਾਵਹਿ ਬਉਰੇ ਜਿਉ ਜਨਮੇ ਤਿਉ ਮਰਣੁ ਭਇਆ ॥
हे भोले प्राणी ! जैसे तू आया है, वैसे ही यहाँ से चले जाना है। जैसे तुझे जन्म मिला है, वैसे ही तेरी मृत्यु हो जानी है।
ਜਿਉ ਰਸ ਭੋਗ ਕੀਏ ਤੇਤਾ ਦੁਖੁ ਲਾਗੈ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿ ਭਵਜਲਿ ਪਇਆ ॥੧॥
जैसे तूने रस-भोग किए हैं, उतना ही दुख लगा है। नाम को भुलाकर तू संसार-सागर में पड़ गया है॥ १॥
ਤਨੁ ਧਨੁ ਦੇਖਤ ਗਰਬਿ ਗਇਆ ॥
अपने तन एवं धन को देख-देखकर तू अभिमान में फंस गया है।
ਕਨਿਕ ਕਾਮਨੀ ਸਿਉ ਹੇਤੁ ਵਧਾਇਹਿ ਕੀ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਹਿ ਭਰਮਿ ਗਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तू सोना चाँदी एवं सुन्दर नारी से प्रेम बढ़ाकर नाम को भुलाकर भ्रम में पड़ गया है॥ १॥ रहाउ॥
ਜਤੁ ਸਤੁ ਸੰਜਮੁ ਸੀਲੁ ਨ ਰਾਖਿਆ ਪ੍ਰੇਤ ਪਿੰਜਰ ਮਹਿ ਕਾਸਟੁ ਭਇਆ ॥
तूने यतीत्व, सदाचार, संयम एवं शील को धारण नहीं किया और प्रेत जैसा शरीर पिंजरे में पड़ा सूख कर लकड़ी हो गया।
ਪੁੰਨੁ ਦਾਨੁ ਇਸਨਾਨੁ ਨ ਸੰਜਮੁ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਬਿਨੁ ਬਾਦਿ ਜਇਆ ॥੨॥
न कोई दान-पुण्य किया, न तीर्थ-स्नान किया, न ही संयम किया, साधु-महापुरुषों की संगति के बिना व्यर्थ ही जीवन बीत गया।॥ २॥
ਲਾਲਚਿ ਲਾਗੈ ਨਾਮੁ ਬਿਸਾਰਿਓ ਆਵਤ ਜਾਵਤ ਜਨਮੁ ਗਇਆ ॥
लालच में फँसकर तूने नाम को भुला दिया, जिससे जन्म-मरण का चक्र पड़ गया है।
ਜਾ ਜਮੁ ਧਾਇ ਕੇਸ ਗਹਿ ਮਾਰੈ ਸੁਰਤਿ ਨਹੀ ਮੁਖਿ ਕਾਲ ਗਇਆ ॥੩॥
जब यम केशों से पकड़ कर मारता है तो जीव को कोई ख्याल नहीं रहता और वह मृत्यु के मुँह में चला जाता है॥ ३॥
ਅਹਿਨਿਸਿ ਨਿੰਦਾ ਤਾਤਿ ਪਰਾਈ ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਨ ਸਰਬ ਦਇਆ ॥
तू रात-दिन पराई निन्दा, चुगली एवं ईर्ष्या में ही पड़ा रहा है, जिससे तेरे हृदय में न ही नाम का वास है और न ही सबके प्रति दया है।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਸਬਦ ਨ ਗਤਿ ਪਤਿ ਪਾਵਹਿ ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਨਰਕਿ ਗਇਆ ॥੪॥
गुरु के शब्द के बिना तेरी गति नहीं होनी और न ही सम्मान प्राप्त होना है। राम-नाम के बिना तूने नरक में ही जाना है॥ ४॥
ਖਿਨ ਮਹਿ ਵੇਸ ਕਰਹਿ ਨਟੂਆ ਜਿਉ ਮੋਹ ਪਾਪ ਮਹਿ ਗਲਤੁ ਗਇਆ ॥
एक क्षण में ही तू नट की तरह वेष धारण कर लेता है और मोह-पाप में लीन रहता है।
ਇਤ ਉਤ ਮਾਇਆ ਦੇਖਿ ਪਸਾਰੀ ਮੋਹ ਮਾਇਆ ਕੈ ਮਗਨੁ ਭਇਆ ॥੫॥
इधर-उधर माया का प्रसार देखकर तू मोह-माया में ही मग्न हो गया है॥ ५ ॥
ਕਰਹਿ ਬਿਕਾਰ ਵਿਥਾਰ ਘਨੇਰੇ ਸੁਰਤਿ ਸਬਦ ਬਿਨੁ ਭਰਮਿ ਪਇਆ ॥
तू बड़े पाप-विकार का विस्तार करता है और शब्द के ज्ञान के बिना भ्रम में पड़ा हुआ है।
ਹਉਮੈ ਰੋਗੁ ਮਹਾ ਦੁਖੁ ਲਾਗਾ ਗੁਰਮਤਿ ਲੇਵਹੁ ਰੋਗੁ ਗਇਆ ॥੬॥
तुझे अहम् रोग रूपी बड़ा दुख लगा हुआ है। गुरु-उपदेश ग्रहण करो, तेरा रोग दूर हो जाएगा ॥ ६॥
ਸੁਖ ਸੰਪਤਿ ਕਉ ਆਵਤ ਦੇਖੈ ਸਾਕਤ ਮਨਿ ਅਭਿਮਾਨੁ ਭਇਆ ॥
जब पदार्थवादी इन्सान घर में सुख-संपत्ति को आते देखता है तो उसका मन अभिमान का शिकार हो जाता है।
ਜਿਸ ਕਾ ਇਹੁ ਤਨੁ ਧਨੁ ਸੋ ਫਿਰਿ ਲੇਵੈ ਅੰਤਰਿ ਸਹਸਾ ਦੂਖੁ ਪਇਆ ॥੭॥
जिस परमात्मा ने यह तन एवं धन दिया हुआ है, जब वह वापिस ले लेता है तो उसके मन में चिंता एवं दुख पैदा हो जाता है॥ ७॥
ਅੰਤਿ ਕਾਲਿ ਕਿਛੁ ਸਾਥਿ ਨ ਚਾਲੈ ਜੋ ਦੀਸੈ ਸਭੁ ਤਿਸਹਿ ਮਇਆ ॥
अन्तिम समय कुछ भी साथ नहीं जाता, जो कुछ नजर आता है, सब उसकी माया है।
ਆਦਿ ਪੁਰਖੁ ਅਪਰੰਪਰੁ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਲੈ ਪਾਰਿ ਪਇਆ ॥੮॥
आदिपुरुष प्रभु अपरंपार है, हरि-नाम को हृदय में बसाने से भवसागर से पार हुआ जा सकता है॥ ८॥
ਮੂਏ ਕਉ ਰੋਵਹਿ ਕਿਸਹਿ ਸੁਣਾਵਹਿ ਭੈ ਸਾਗਰ ਅਸਰਾਲਿ ਪਇਆ ॥
हे जीव ! अपने मृतक रिश्तेदार पर रो रो कर किसे सुना रहा है? तू स्वयं ही भवसागर में गिर रहा है।
ਦੇਖਿ ਕੁਟੰਬੁ ਮਾਇਆ ਗ੍ਰਿਹ ਮੰਦਰੁ ਸਾਕਤੁ ਜੰਜਾਲਿ ਪਰਾਲਿ ਪਇਆ ॥੯॥
पदार्थवादी जीव अपने परिवार, माया एवं सुन्दर घर-महल को देखकर व्यर्थ जंजाल में फँसा हुआ है॥ ९ ॥