Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 871

Page 871

ਮਨ ਕਠੋਰੁ ਅਜਹੂ ਨ ਪਤੀਨਾ ॥ उसका कठोर मन फिर भी संतुष्ट नहीं हुआ।
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਹਮਰਾ ਗੋਬਿੰਦੁ ॥ कबीर जी कहते हैं कि गोविंद हमारा रखवाला है,
ਚਉਥੇ ਪਦ ਮਹਿ ਜਨ ਕੀ ਜਿੰਦੁ ॥੪॥੧॥੪॥ भक्त के प्राण तुरीयावस्था में बसते हैं ॥ ४॥ १॥ ४॥
ਗੋਂਡ ॥ गोंड ॥
ਨਾ ਇਹੁ ਮਾਨਸੁ ਨਾ ਇਹੁ ਦੇਉ ॥ यह (आत्मा) न ही मनुष्य है और न ही यह देवता है।
ਨਾ ਇਹੁ ਜਤੀ ਕਹਾਵੈ ਸੇਉ ॥ न ही यह ब्रह्मचारी और न ही शैव कहलाता है।
ਨਾ ਇਹੁ ਜੋਗੀ ਨਾ ਅਵਧੂਤਾ ॥ न ही यह कोई योगी है और न ही कोई अवधूत है।
ਨਾ ਇਸੁ ਮਾਇ ਨ ਕਾਹੂ ਪੂਤਾ ॥੧॥ न ही इसकी कोई जन्म देने वाली माता है और न ही यह किसी का पुत्र है॥ १॥
ਇਆ ਮੰਦਰ ਮਹਿ ਕੌਨ ਬਸਾਈ ॥ काया रूपी मन्दिर में कौन निवास कर रहा है,
ਤਾ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਕੋਊ ਪਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ इसका रहस्य कोई नहीं पा सकता॥ १॥ रहाउ॥
ਨਾ ਇਹੁ ਗਿਰਹੀ ਨਾ ਓਦਾਸੀ ॥ न ही यह गृहस्थी है और न ही उदासी हैं।
ਨਾ ਇਹੁ ਰਾਜ ਨ ਭੀਖ ਮੰਗਾਸੀ ॥ न ही यह कोई राजा है और न ही कोई भीख माँगने वाला भिखारी है।
ਨਾ ਇਸੁ ਪਿੰਡੁ ਨ ਰਕਤੂ ਰਾਤੀ ॥ न इसका कोई शरीर है और न ही थोड़ा-सा रक्त है।
ਨਾ ਇਹੁ ਬ੍ਰਹਮਨੁ ਨਾ ਇਹੁ ਖਾਤੀ ॥੨॥ न यह कोई ब्राह्मण है और न ही क्षत्रिय है॥३॥
ਨਾ ਇਹੁ ਤਪਾ ਕਹਾਵੈ ਸੇਖੁ ॥ यह कोई तपस्वी अथवा शेख भी नहीं कहलाता।
ਨਾ ਇਹੁ ਜੀਵੈ ਨ ਮਰਤਾ ਦੇਖੁ ॥ न ही यह जिंदा देखा जाता है और न ही यह मरता देखा जाता है।
ਇਸੁ ਮਰਤੇ ਕਉ ਜੇ ਕੋਊ ਰੋਵੈ ॥ यदि कोई इस आत्मा को मरता समझ कर रोता है तो
ਜੋ ਰੋਵੈ ਸੋਈ ਪਤਿ ਖੋਵੈ ॥੩॥ वह अपनी इज्जत गंवा देता है॥ ३॥
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਮੈ ਡਗਰੋ ਪਾਇਆ ॥ गुरु की कृपा से मैंने सन्मार्ग पा लिया है और
ਜੀਵਨ ਮਰਨੁ ਦੋਊ ਮਿਟਵਾਇਆ ॥ जन्म-मरण दोनों को मिटवा लिया है।
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਇਹੁ ਰਾਮ ਕੀ ਅੰਸੁ ॥ हे कबीर ! यह आत्मा तो राम की अंश है,
ਜਸ ਕਾਗਦ ਪਰ ਮਿਟੈ ਨ ਮੰਸੁ ॥੪॥੨॥੫॥ जैसे कागज पर लिखी हुई स्याही कभी नहीं मिटती, वैसे ही आत्मा कभी नाश नहीं होती॥ ४॥३॥ ५ ॥
ਗੋਂਡ ॥ गोंड॥
ਤੂਟੇ ਤਾਗੇ ਨਿਖੁਟੀ ਪਾਨਿ ॥ धागे टूट गए हैं और पाण समाप्त हो गया है,
ਦੁਆਰ ਊਪਰਿ ਝਿਲਕਾਵਹਿ ਕਾਨ ॥ द्वार पर तोरण चमक रहे हैं और
ਕੂਚ ਬਿਚਾਰੇ ਫੂਏ ਫਾਲ ॥ बेचारे कूच टूट कर फैले हुए हैं।
ਇਆ ਮੁੰਡੀਆ ਸਿਰਿ ਚਢਿਬੋ ਕਾਲ ॥੧॥ इस लड़के (कबीर) के सिर पर काल सवार हो गया है॥ १॥
ਇਹੁ ਮੁੰਡੀਆ ਸਗਲੋ ਦ੍ਰਬੁ ਖੋਈ ॥ इस लड़के ने अपना सारा धन गंवा दिया है और
ਆਵਤ ਜਾਤ ਨਾਕ ਸਰ ਹੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ घर में आने जाने वाले संत-महात्माओं ने मेरे नाक में दम कर दिया है।॥१॥ रहाउ ॥
ਤੁਰੀ ਨਾਰਿ ਕੀ ਛੋਡੀ ਬਾਤਾ ॥ इसने खड्डी की लठ और तानी तनने वाली नलकियों की तो बात करनी ही छोड़ दी है और
ਰਾਮ ਨਾਮ ਵਾ ਕਾ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ॥ इसका मन तो राम नाम में ही लीन हो गया है।
ਲਰਿਕੀ ਲਰਿਕਨ ਖੈਬੋ ਨਾਹਿ ॥ इसकी लड़की - लड़के को पेट भर भोजन नसीब नहीं लेकिन
ਮੁੰਡੀਆ ਅਨਦਿਨੁ ਧਾਪੇ ਜਾਹਿ ॥੨॥ साधु-संत पेट भर कर तृप्त हो कर जाते है। ॥ २ ॥
ਇਕ ਦੁਇ ਮੰਦਰਿ ਇਕ ਦੁਇ ਬਾਟ ॥ एक दो साधु तो घर में पहले ही बैठे होते है और एक दो अन्य चले आते है।
ਹਮ ਕਉ ਸਾਥਰੁ ਉਨ ਕਉ ਖਾਟ ॥ हमे सोने के लिए तो चटाई नसीब नहीं होती किन्तु साधुओं को चारपाई मिल जाती है।
ਮੂਡ ਪਲੋਸਿ ਕਮਰ ਬਧਿ ਪੋਥੀ ॥ वे अपनी कमर से पोथी बाँधकर सिर पर हाथ फेरते हुए घर की ओर चले आते हैं।
ਹਮ ਕਉ ਚਾਬਨੁ ਉਨ ਕਉ ਰੋਟੀ ॥੩॥ हमें चबाने के लिए भुने हुए दाने मिलते हैं किन्तु उन्हें रोटी खिलाई जाती है। ३॥
ਮੁੰਡੀਆ ਮੁੰਡੀਆ ਹੂਏ ਏਕ ॥ यह लड़का और साधु आपस में एक हो गए हैं।
ਏ ਮੁੰਡੀਆ ਬੂਡਤ ਕੀ ਟੇਕ ॥ यह साधुजन डूबते लोगों का सहारा हैं।
ਸੁਨਿ ਅੰਧਲੀ ਲੋਈ ਬੇਪੀਰਿ ॥ कबीर जी का कथन है कि हे ज्ञानहीन एवं निगुरी लोई ! जरा सुन!
ਇਨ੍ਹ੍ਹ ਮੁੰਡੀਅਨ ਭਜਿ ਸਰਨਿ ਕਬੀਰ ॥੪॥੩॥੬॥ तू भी मांगकर इन साधुओं की शरण में आ जा ॥४॥३॥६॥
ਗੋਂਡ ॥ गोंड ॥
ਖਸਮੁ ਮਰੈ ਤਉ ਨਾਰਿ ਨ ਰੋਵੈ ॥ जब माया रूपी नारी का स्वामी मर जाता है तो वह रोती नहीं,
ਉਸੁ ਰਖਵਾਰਾ ਅਉਰੋ ਹੋਵੈ ॥ क्योंकि उसका रखवाला कोई अन्य बन जाता है।
ਰਖਵਾਰੇ ਕਾ ਹੋਇ ਬਿਨਾਸ ॥ जब उस रखवाले का नाश हो जाता है तो
ਆਗੈ ਨਰਕੁ ਈਹਾ ਭੋਗ ਬਿਲਾਸ ॥੧॥ इहलोक में भोग-विलास करने वाला आगे परलोक में नरक ही भोगता है। १॥
ਏਕ ਸੁਹਾਗਨਿ ਜਗਤ ਪਿਆਰੀ ॥ एक माया रूपी सुहागिन सारे जगत् की प्यारी बनी हुई है और
ਸਗਲੇ ਜੀਅ ਜੰਤ ਕੀ ਨਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ यह सब जीवों की नारी है ॥१॥ रहाउ ॥
ਸੋਹਾਗਨਿ ਗਲਿ ਸੋਹੈ ਹਾਰੁ ॥ माया रूपी सुहागिन के गले में पड़ा हुआ विकारों का हार पड़ा है।
ਸੰਤ ਕਉ ਬਿਖੁ ਬਿਗਸੈ ਸੰਸਾਰੁ ॥ संतों को यह विष के समान बुरी नजर आती है।
ਕਰਿ ਸੀਗਾਰੁ ਬਹੈ ਪਖਿਆਰੀ ॥ यह माया रुपी नारी वेश्या की तरह श्रृंगार लगाकर बैठती है,
ਸੰਤ ਕੀ ਠਿਠਕੀ ਫਿਰੈ ਬਿਚਾਰੀ ॥੨॥ परन्तु संतों द्वारा ठुकराई होने के कारण यह बेचारी भटकती ही रहती है।२॥
ਸੰਤ ਭਾਗਿ ਓਹ ਪਾਛੈ ਪਰੈ ॥ यह भागकर संतों के पीछे पड़ी रहती है
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਮਾਰਹੁ ਡਰੈ ॥ लेकिन गुरु-कृपा से मार से डरती भी है।
ਸਾਕਤ ਕੀ ਓਹ ਪਿੰਡ ਪਰਾਇਣਿ ॥ शाक्त जीवों का पोषण करने वाली यह प्राणप्रिया है।
ਹਮ ਕਉ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਪਰੈ ਤ੍ਰਖਿ ਡਾਇਣਿ ॥੩॥ परन्तु मुझे तो यह रक्त पियासु डायन लगती है ॥३॥
ਹਮ ਤਿਸ ਕਾ ਬਹੁ ਜਾਨਿਆ ਭੇਉ ॥ मैंने इसका सारा भेद जान लिया,"
ਜਬ ਹੂਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਮਿਲੇ ਗੁਰਦੇਉ ॥ जब कृपालु होकर गुरुदेव मिल गए।
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਅਬ ਬਾਹਰਿ ਪਰੀ ॥ कबीर जी कहते हैं कि अब यह माया मेरे मन में से बाहर निकल गई है और
ਸੰਸਾਰੈ ਕੈ ਅੰਚਲਿ ਲਰੀ ॥੪॥੪॥੭॥ संसार के आंचल में जा लगी है ॥४॥४॥७॥


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