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ਨਾਰਾਇਣ ਸਭ ਮਾਹਿ ਨਿਵਾਸ ॥
नाराइण सभ माहि निवास ॥
सब जीवों में नारायण का ही निवास है और
ਨਾਰਾਇਣ ਘਟਿ ਘਟਿ ਪਰਗਾਸ ॥
नाराइण घटि घटि परगास ॥
ईश्वर प्रत्येक हृदय को प्रबुद्ध करते हैं।
ਨਾਰਾਇਣ ਕਹਤੇ ਨਰਕਿ ਨ ਜਾਹਿ ॥
नाराइण कहते नरकि न जाहि ॥
जो भक्त प्रेमपूर्वक नारायण का नाम जपते हैं उन्हें कभी कष्ट नहीं सताते,
ਨਾਰਾਇਣ ਸੇਵਿ ਸਗਲ ਫਲ ਪਾਹਿ ॥੧॥
नाराइण सेवि सगल फल पाहि ॥१॥
भगवान् की प्रेमपूर्वक उपासना करने से जीव के सभी मनोरथ पूरे होते हैं। ॥ १॥
ਨਾਰਾਇਣ ਮਨ ਮਾਹਿ ਅਧਾਰ ॥
नाराइण मन माहि अधार ॥
हे प्रिय मित्र, मेरे मन को नारायण के नाम का ही एकमात्र सहारा है और
ਨਾਰਾਇਣ ਬੋਹਿਥ ਸੰਸਾਰ ॥
नाराइण बोहिथ संसार ॥
भगवान् का नाम विकार रूपी संसार-सागर से पार करने वाला जहाज है।
ਨਾਰਾਇਣ ਕਹਤ ਜਮੁ ਭਾਗਿ ਪਲਾਇਣ ॥
नाराइण कहत जमु भागि पलाइण ॥
नारायण जपने से यम का भय भागकर दूर चला जाता है और
ਨਾਰਾਇਣ ਦੰਤ ਭਾਨੇ ਡਾਇਣ ॥੨॥
नाराइण दंत भाने डाइण ॥२॥
भगवान् के नाम की गई आराधना और स्मरण, माया के प्रलोभनों को नष्ट कर देता है; जैसे प्रभु का नाम माया रूपी राक्षसी की शक्ति को छिन्न-भिन्न कर देता है।॥ २॥
ਨਾਰਾਇਣ ਸਦ ਸਦ ਬਖਸਿੰਦ ॥
नाराइण सद सद बखसिंद ॥
हे मेरे मित्र, नारायण सदैव क्षमावान् है और
ਨਾਰਾਇਣ ਕੀਨੇ ਸੂਖ ਅਨੰਦ ॥
नाराइण कीने सूख अनंद ॥
ईश्वर अपने भक्तों को शांति और आनंद का दिव्य आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
ਨਾਰਾਇਣ ਪ੍ਰਗਟ ਕੀਨੋ ਪਰਤਾਪ ॥
नाराइण प्रगट कीनो परताप ॥
ईश्वर अपने भक्तों के अंत:करण में अपनी लीला और महिमा को प्रकट करते हैं।
ਨਾਰਾਇਣ ਸੰਤ ਕੋ ਮਾਈ ਬਾਪ ॥੩॥
नाराइण संत को माई बाप ॥३॥
भक्तों और संतों के लिए भगवान् ही माता-पिता स्वरूप हैं।॥ ३॥
ਨਾਰਾਇਣ ਸਾਧਸੰਗਿ ਨਰਾਇਣ ॥
नाराइण साधसंगि नराइण ॥
हे मित्र, जो व्यक्ति संतों की संगति में प्रेमपूर्वक परमेश्वर का नाम स्मरण करते हैं
ਬਾਰੰ ਬਾਰ ਨਰਾਇਣ ਗਾਇਣ ॥
बारं बार नराइण गाइण ॥
और बारंबार नारायण के ही गुण गाते रहते हैं।
ਬਸਤੁ ਅਗੋਚਰ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਲਹੀ ॥
बसतु अगोचर गुर मिलि लही ॥
गुरु से मिलकर उन्हें अतुलनीय भगवान् के नाम का धन प्राप्त होता है।
ਨਾਰਾਇਣ ਓਟ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਗਹੀ ॥੪॥੧੭॥੧੯॥
नाराइण ओट नानक दास गही ॥४॥१७॥१९॥
इस प्रकार, हे नानक, भगवान् के भक्त सदा प्रभु का आश्रय पाते रहते हैं।॥ ४॥ १७ ॥ १६ ॥
ਗੋਂਡ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गोंड महला ५ ॥
राग गोंड, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜਾ ਕਉ ਰਾਖੈ ਰਾਖਣਹਾਰੁ ॥
जा कउ राखै राखणहारु ॥
हे मेरे मित्र, वह व्यक्ति जिसकी रक्षा स्वयं भगवान् करना चाहते हैं,
ਤਿਸ ਕਾ ਅੰਗੁ ਕਰੇ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तिस का अंगु करे निरंकारु ॥१॥ रहाउ ॥
निराकार ईश्वर सदैव उसके पक्ष में रहते हैं।॥ १॥ रहाउ ॥
ਮਾਤ ਗਰਭ ਮਹਿ ਅਗਨਿ ਨ ਜੋਹੈ ॥
मात गरभ महि अगनि न जोहै ॥
हे मित्र, माता के गर्भ में जठराग्नि भी उस जीव को स्पर्श नहीं करती और
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਲੋਭੁ ਮੋਹੁ ਨ ਪੋਹੈ ॥
कामु क्रोधु लोभु मोहु न पोहै ॥
उसी प्रकार काम, क्रोध, लोभ एवं मोह भी भगवान् के भक्तों को स्पर्श नहीं कर पाते।।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਜਪੈ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ॥
साधसंगि जपै निरंकारु ॥
ऐसा भक्त साधु की संगति में प्रेम पूर्वक निरंकार का नाम जपता रहता है और
ਨਿੰਦਕ ਕੈ ਮੁਹਿ ਲਾਗੈ ਛਾਰੁ ॥੧॥
निंदक कै मुहि लागै छारु ॥१॥
परंतु परमेश्वर की निंदा करने वाला अत्यंत अपमानित होता है। ॥ १॥
ਰਾਮ ਕਵਚੁ ਦਾਸ ਕਾ ਸੰਨਾਹੁ ॥
राम कवचु दास का संनाहु ॥
हे मेरे मित्र, राम का नाम ही दास का सुरक्षा कवच है,
ਦੂਤ ਦੁਸਟ ਤਿਸੁ ਪੋਹਤ ਨਾਹਿ ॥
दूत दुसट तिसु पोहत नाहि ॥
जिसके पास नाम का अभेद्य कवच हो उसे कामादिक दुष्ट दूत स्पर्श नहीं कर सकते।
ਜੋ ਜੋ ਗਰਬੁ ਕਰੇ ਸੋ ਜਾਇ ॥
जो जो गरबु करे सो जाइ ॥
जो भी व्यक्ति घमण्ड करता है, उसका आध्यात्मिक दृष्टि से नाश हो जाता है।
ਗਰੀਬ ਦਾਸ ਕੀ ਪ੍ਰਭੁ ਸਰਣਾਇ ॥੨॥
गरीब दास की प्रभु सरणाइ ॥२॥
क्योंकि भगवान् अपने विनम्र भक्तों को स्वयं अपना आश्रय प्रदान करते हैं।॥ २॥
ਜੋ ਜੋ ਸਰਣਿ ਪਇਆ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥
जो जो सरणि पइआ हरि राइ ॥
हे मेरे मित्र, जो भी मन से सर्वशक्तिमान ईश्वर की शरणागत हुआ,
ਸੋ ਦਾਸੁ ਰਖਿਆ ਅਪਣੈ ਕੰਠਿ ਲਾਇ ॥
सो दासु रखिआ अपणै कंठि लाइ ॥
प्रभु अपने भक्त को अपने सान्निध्य में रखकर प्रत्येक बुराई से बचाते हैं।
ਜੇ ਕੋ ਬਹੁਤੁ ਕਰੇ ਅਹੰਕਾਰੁ ॥
जे को बहुतु करे अहंकारु ॥
परंतु यदि कोई बहुत अहंकार करता है तो
ਓਹੁ ਖਿਨ ਮਹਿ ਰੁਲਤਾ ਖਾਕੂ ਨਾਲਿ ॥੩॥
ओहु खिन महि रुलता खाकू नालि ॥३॥
वह क्षण में ही धूल में मिल जाता है ॥ ३॥
ਹੈ ਭੀ ਸਾਚਾ ਹੋਵਣਹਾਰੁ ॥
है भी साचा होवणहारु ॥
हे मेरे मित्र, ईश्वर ही सत्य है, वह वर्तमान में भी है और भविष्य में भी वही होगा।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਜਾਈ ਬਲਿਹਾਰ ॥
सदा सदा जाईं बलिहार ॥
मैं सदैव उस पर बलिहारी जाता हूँ,
ਅਪਣੇ ਦਾਸ ਰਖੇ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ॥
अपणे दास रखे किरपा धारि ॥
भगवान् अपनी कृपा करके दास की रक्षा करता है।
ਨਾਨਕ ਕੇ ਪ੍ਰਭ ਪ੍ਰਾਣ ਅਧਾਰ ॥੪॥੧੮॥੨੦॥
नानक के प्रभ प्राण अधार ॥४॥१८॥२०॥
भक्त नानक के परमेश्वर ही अपने भक्तों के जीवन का आधार है। ॥ ४॥ १८॥ २०॥
ਗੋਂਡ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गोंड महला ५ ॥
राग गोंड, पांचवें गुरु:५ ॥
ਅਚਰਜ ਕਥਾ ਮਹਾ ਅਨੂਪ ॥ ਪ੍ਰਾਤਮਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕਾ ਰੂਪੁ ॥ ਰਹਾਉ ॥
अचरज कथा महा अनूप ॥ प्रातमा पारब्रहम का रूपु ॥ रहाउ ॥
जिस परमात्मा की अद्भुत कथा बड़ी अनुपम एवं अद्वितीय है; जीवात्मा उसी परमात्मा का ही रूप है। ॥रहाउ॥
ਨਾ ਇਹੁ ਬੂਢਾ ਨਾ ਇਹੁ ਬਾਲਾ ॥
ना इहु बूढा ना इहु बाला ॥
यह (आत्मा) न ही वृद्ध है और न ही बालक और न ही किसी पर निर्भर हैं।
ਨਾ ਇਸੁ ਦੂਖੁ ਨਹੀ ਜਮ ਜਾਲਾ ॥
ना इसु दूखु नही जम जाला ॥
उसे न कभी पीड़ा सताती है, न मृत्युरूपी राक्षस के भय में वह फँसता है।
ਨਾ ਇਹੁ ਬਿਨਸੈ ਨਾ ਇਹੁ ਜਾਇ ॥
ना इहु बिनसै ना इहु जाइ ॥
न ही इसका कभी नाश होता है और न ही यह जन्मता हैं।
ਆਦਿ ਜੁਗਾਦੀ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥੧॥
आदि जुगादी रहिआ समाइ ॥१॥
वह आदि काल से युगों के आरंभ तक सर्वत्र व्याप्त रहा है। ॥ १॥
ਨਾ ਇਸੁ ਉਸਨੁ ਨਹੀ ਇਸੁ ਸੀਤੁ ॥
ना इसु उसनु नही इसु सीतु ॥
उस पर न तो विकारों की तेज गर्मी का प्रभाव पड़ता है और न ही चिंताओं की ठंड का।
ਨਾ ਇਸੁ ਦੁਸਮਨੁ ਨਾ ਇਸੁ ਮੀਤੁ ॥
ना इसु दुसमनु ना इसु मीतु ॥
न इसका कोई दुश्मन है और न ही कोई मित्र है।
ਨਾ ਇਸੁ ਹਰਖੁ ਨਹੀ ਇਸੁ ਸੋਗੁ ॥
ना इसु हरखु नही इसु सोगु ॥
वह न कभी सुख से प्रसन्न होता है, न ही दुःख से विचलित होता है।
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਇਸ ਕਾ ਇਹੁ ਕਰਨੈ ਜੋਗੁ ॥੨॥
सभु किछु इस का इहु करनै जोगु ॥२॥
यह सबकुछ उसका ही है और जो सबकुछ करने में सक्षम है॥ ३॥
ਨਾ ਇਸੁ ਬਾਪੁ ਨਹੀ ਇਸੁ ਮਾਇਆ ॥
ना इसु बापु नही इसु माइआ ॥
हे मेरे मित्र, इस आत्मा का न कोई पिता है, न माता; यह अजन्मा और शाश्वत है।
ਇਹੁ ਅਪਰੰਪਰੁ ਹੋਤਾ ਆਇਆ ॥
इहु अपर्मपरु होता आइआ ॥
यह असीम आत्मा अनादि काल से विद्यमान है।
ਪਾਪ ਪੁੰਨ ਕਾ ਇਸੁ ਲੇਪੁ ਨ ਲਾਗੈ ॥
पाप पुंन का इसु लेपु न लागै ॥
पाप एवं पुण्य का इसे कोई लेप नहीं लगता।
ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਸਦ ਹੀ ਜਾਗੈ ॥੩॥
घट घट अंतरि सद ही जागै ॥३॥
यह प्रदेश हृदय में विद्यमान हैं और सदैव ही जाग्रत है ॥ ३॥
ਤੀਨਿ ਗੁਣਾ ਇਕ ਸਕਤਿ ਉਪਾਇਆ ॥
तीनि गुणा इक सकति उपाइआ ॥
हे मेरे मित्र, वही दिव्य शक्ति समस्त जीवों को माया के तीन गुणों में बाँधती है और उन्हीं के अनुसार उन्हें प्रेरित करती है।
ਮਹਾ ਮਾਇਆ ਤਾ ਕੀ ਹੈ ਛਾਇਆ ॥
महा माइआ ता की है छाइआ ॥
माया, चाहे जितनी भी प्रबल हो परन्तु परमेश्वर की ही शक्ति का प्रतिबिंब मात्र है।
ਅਛਲ ਅਛੇਦ ਅਭੇਦ ਦਇਆਲ ॥
अछल अछेद अभेद दइआल ॥
ईश्वर अज्ञेय, अखंड और अनंत करुणा से परिपूर्ण है; उसका रहस्य किसी के भी समझ में नहीं आता।
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਸਦਾ ਕਿਰਪਾਲ ॥
दीन दइआल सदा किरपाल ॥
वह विनम्र जनों पर विशेष कृपा करते हैं और सर्वदा करुणामय रहते हैं।
ਤਾ ਕੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਕਛੂ ਨ ਪਾਇ ॥
ता की गति मिति कछू न पाइ ॥
उसकी गति एवं अवस्था का अनुमान लगाया नहीं जा सकता।
ਨਾਨਕ ਤਾ ਕੈ ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਇ ॥੪॥੧੯॥੨੧॥
नानक ता कै बलि बलि जाइ ॥४॥१९॥२१॥
नानक सदैव उस पर बलिहारी जाते हैं ॥ ४ ॥ १६ ॥ २१॥