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ਕਰਿ ਦਇਆ ਲੇਹੁ ਲੜਿ ਲਾਇ ॥
नानक विनती करता है कि हे प्रभु ! दया करके मुझे अपने साथ मिला लो,
ਨਾਨਕਾ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥੧॥
मैं तो नाम का ही ध्यान करता रहता हूँ॥ १॥
ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਦਇਆਲ ਮੇਰੇ ਸੁਆਮੀ ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਦਇਆਲ ॥
हे मेरे स्वामी ! तू दीनानाथ एवं बड़ा दयालु है और
ਜਾਚਉ ਸੰਤ ਰਵਾਲ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मैं संतों की चरण-धूलि की ही कामना करता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਸੰਸਾਰੁ ਬਿਖਿਆ ਕੂਪ ॥
यह संसार माया रूपी विष का कुआं है,
ਤਮ ਅਗਿਆਨ ਮੋਹਤ ਘੂਪ ॥
जिसमें अज्ञान एवं मोह का घोर अंधेरा है।
ਗਹਿ ਭੁਜਾ ਪ੍ਰਭ ਜੀ ਲੇਹੁ ॥
हे प्रभु जी ! मेरी बाँह पकड़ कर मुझे बचा लो और
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਪੁਨਾ ਦੇਹੁ ॥
अपना नाम दे दीजिए।
ਪ੍ਰਭ ਤੁਝ ਬਿਨਾ ਨਹੀ ਠਾਉ ॥
तेरे अतिरिक्त मेरा कोई ठिकाना नहीं।
ਨਾਨਕਾ ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥੨॥
नानक तुझ पर बारंबार कुर्बान जाता है॥ २॥
ਲੋਭਿ ਮੋਹਿ ਬਾਧੀ ਦੇਹ ॥
लोभ मोह ने मेरे शरीर को बांध लिया है और
ਬਿਨੁ ਭਜਨ ਹੋਵਤ ਖੇਹ ॥
प्रभु-भजन बिना यह मिट्टी हो जाता है।
ਜਮਦੂਤ ਮਹਾ ਭਇਆਨ ॥
यमदूत बहुत भयानक हैं और
ਚਿਤ ਗੁਪਤ ਕਰਮਹਿ ਜਾਨ ॥
चित्रगुप्त मेरे किए कर्मों को जानता है और
ਦਿਨੁ ਰੈਨਿ ਸਾਖਿ ਸੁਨਾਇ ॥
वह साक्षी बनकर दिन-रात मेरे किए कर्मों को यमराज की कचहरी में सुनाता है।
ਨਾਨਕਾ ਹਰਿ ਸਰਨਾਇ ॥੩॥
हे नानक ! मैं हरि की शरण में आ गया हूँ॥ ३॥
ਭੈ ਭੰਜਨਾ ਮੁਰਾਰਿ ॥
हे भयभंजन मुरारि !
ਕਰਿ ਦਇਆ ਪਤਿਤ ਉਧਾਰਿ ॥
दया करके मुझ पतित का उद्धार कर दो।
ਮੇਰੇ ਦੋਖ ਗਨੇ ਨ ਜਾਹਿ ॥
मेरे दोष गिने नहीं जा सकते,
ਹਰਿ ਬਿਨਾ ਕਤਹਿ ਸਮਾਹਿ ॥
तेरे बिना यह पाप अन्य कहाँ समा सकते हैं।
ਗਹਿ ਓਟ ਚਿਤਵੀ ਨਾਥ ॥
नानक की प्रार्थना है कि हे नाथ ! मैंने तेरा सहारा लेने के बारे में सोचा है,
ਨਾਨਕਾ ਦੇ ਰਖੁ ਹਾਥ ॥੪॥
अतः अपना हाथ देकर मेरी रक्षा करो।॥ ४॥
ਹਰਿ ਗੁਣ ਨਿਧੇ ਗੋਪਾਲ ॥
हे गुणनिधि प्रभु !
ਸਰਬ ਘਟ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ॥
तू सारे जगत् का प्रतिपालक है।
ਮਨਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਦਰਸਨ ਪਿਆਸ ॥
मेरे मन में तेरा ही प्रेम बना हुआ है और तेरे दर्शन की तीव्र लालसा है।
ਗੋਬਿੰਦ ਪੂਰਨ ਆਸ ॥
हे गोविंद ! मेरी अभिलाषा पूरी करो,
ਇਕ ਨਿਮਖ ਰਹਨੁ ਨ ਜਾਇ ॥
तेरे बिना मुझसे एक क्षण भर भी रहा नहीं जाता।
ਵਡ ਭਾਗਿ ਨਾਨਕ ਪਾਇ ॥੫॥
हे नानक ! भाग्यशाली को ही उसकी प्राप्ति होती है।॥ ५॥
ਪ੍ਰਭ ਤੁਝ ਬਿਨਾ ਨਹੀ ਹੋਰ ॥
हे प्रभु ! तेरे बिना मेरा अन्य कोई नहीं है,
ਮਨਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਚੰਦ ਚਕੋਰ ॥
मेरे मन में तेरे लिए ऐसा प्रेम बना हुआ है, जैसे चाँद के साथ चकोर का है,
ਜਿਉ ਮੀਨ ਜਲ ਸਿਉ ਹੇਤੁ ॥
जैसे मछली को जल से है,
ਅਲਿ ਕਮਲ ਭਿੰਨੁ ਨ ਭੇਤੁ ॥
जैसे भंवरे का कमल के साथ कोई अन्तर नहीं है और
ਜਿਉ ਚਕਵੀ ਸੂਰਜ ਆਸ ॥
जैसे चकवी को सूर्योदय की उम्मीद लगी रहती है,
ਨਾਨਕ ਚਰਨ ਪਿਆਸ ॥੬॥
वैसे ही नानक को तेरे चरणों की प्यास लगी रहती है।॥ ६॥!
ਜਿਉ ਤਰੁਨਿ ਭਰਤ ਪਰਾਨ ॥
जैसे नवयुवती का पति उसके प्राण है,
ਜਿਉ ਲੋਭੀਐ ਧਨੁ ਦਾਨੁ ॥
जैसे लालची आदमी को धन लेकर बड़ी खुशी होती है,
ਜਿਉ ਦੂਧ ਜਲਹਿ ਸੰਜੋਗੁ ॥
जैसे दूध का जल से संयोग होता है,
ਜਿਉ ਮਹਾ ਖੁਧਿਆਰਥ ਭੋਗੁ ॥
जैसे भूखे व्यक्ति को भोजन प्रिय होता है,
ਜਿਉ ਮਾਤ ਪੂਤਹਿ ਹੇਤੁ ॥
जैसे माता का अपने पुत्र से स्नेह होता है,
ਹਰਿ ਸਿਮਰਿ ਨਾਨਕ ਨੇਤ ॥੭॥
हे नानक ! वैसे ही नित्य भगवान् का सिमरन करना चाहिए॥ ७ ॥
ਜਿਉ ਦੀਪ ਪਤਨ ਪਤੰਗ ॥
जैसे पतंगा दीए पर गिरता है,
ਜਿਉ ਚੋਰੁ ਹਿਰਤ ਨਿਸੰਗ ॥
जैसे चोर निस्संकोच होकर चोरी करता है,
ਮੈਗਲਹਿ ਕਾਮੈ ਬੰਧੁ ॥
जैसे हाथी का कामवासना से संबंध है,
ਜਿਉ ਗ੍ਰਸਤ ਬਿਖਈ ਧੰਧੁ ॥
जैसे विकारों का धंधा विकारी आदमी को वश में किए रखता है,
ਜਿਉ ਜੂਆਰ ਬਿਸਨੁ ਨ ਜਾਇ ॥
जैसे जुआरी की जुआ खेलने की बुरी आदत नहीं जाती
ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਇਹੁ ਮਨੁ ਲਾਇ ॥੮॥
वैसे ही तू अपना मन परमात्मा के साथ लगाकर रख ॥८॥
ਕੁਰੰਕ ਨਾਦੈ ਨੇਹੁ ॥
जैसे हिरण का नाद से प्यार होता है,
ਚਾਤ੍ਰਿਕੁ ਚਾਹਤ ਮੇਹੁ ॥
जैसे पपीहा वर्षा की अभिलाषा करता है,
ਜਨ ਜੀਵਨਾ ਸਤਸੰਗਿ ॥
वैसे ही भक्तजनों का जीवन सत्संग से बना होता है और
ਗੋਬਿਦੁ ਭਜਨਾ ਰੰਗਿ ॥
वे प्रेमपूर्वक गोविंद का भजन करते रहते हैं।
ਰਸਨਾ ਬਖਾਨੈ ਨਾਮੁ ॥ ਨਾਨਕ ਦਰਸਨ ਦਾਨੁ ॥੯॥
वे अपनी जीभ से प्रभु नाम का ही बखान करते हैं। हे नानक ! वे तो भगवान् के दर्शनों का ही दान मांगते हैं।॥९॥
ਗੁਨ ਗਾਇ ਸੁਨਿ ਲਿਖਿ ਦੇਇ ॥
जो व्यक्ति भगवान् का गुणगान करता, सुनता, लिखता एवं दूसरों को भी यह गुण देता है,
ਸੋ ਸਰਬ ਫਲ ਹਰਿ ਲੇਇ ॥
उसे सभी फल प्राप्त हो जाते हैं।
ਕੁਲ ਸਮੂਹ ਕਰਤ ਉਧਾਰੁ ॥ ਸੰਸਾਰੁ ਉਤਰਸਿ ਪਾਰਿ ॥
वह अपने समूचे वंश का उद्धार कर देता है और स्वयं भी संसार-सागर से पार हो जाता है।
ਹਰਿ ਚਰਨ ਬੋਹਿਥ ਤਾਹਿ ॥ ਮਿਲਿ ਸਾਧਸੰਗਿ ਜਸੁ ਗਾਹਿ ॥
हरि के चरण उसका जहाज है और संतों के साथ मिलकर परमेश्वर का यश गाता रहता है।
ਹਰਿ ਪੈਜ ਰਖੈ ਮੁਰਾਰਿ ॥ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਸਰਨਿ ਦੁਆਰਿ ॥੧੦॥੨॥
ईश्वर उसकी लाज रखता है, इसलिए नानक भी हरि के द्वार पर उसकी शरण में आ गया है॥ १० ॥ २ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੧ ਥਿਤੀ ਘਰੁ ੧੦ ਜਤਿ
बिलावलु महला १ थिती घरु १० जति
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਏਕਮ ਏਕੰਕਾਰੁ ਨਿਰਾਲਾ ॥
प्रतिपदा तिथि (द्वारा बताया है कि) ईश्वर एक ही है, वह सबसे निराला है,
ਅਮਰੁ ਅਜੋਨੀ ਜਾਤਿ ਨ ਜਾਲਾ ॥
वह अमर, अयोनि एवं जाति बन्धन से रहित है।
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਰੂਪੁ ਨ ਰੇਖਿਆ ॥
वह मन वाणी से परे, इन्द्रियातीत है और उसका कोई रूप एवं चिन्ह नहीं है।
ਖੋਜਤ ਖੋਜਤ ਘਟਿ ਘਟਿ ਦੇਖਿਆ ॥
खोजते-खोजते मैंने उसे घट-घट देखा है।