Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 831

Page 831

ਜੋਗ ਜਗ ਨਿਹਫਲ ਤਿਹ ਮਾਨਉ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਜਸੁ ਬਿਸਰਾਵੈ ॥੧॥ जो प्रभु का यश भुला देता है, उसके योग एवं यज्ञ करने को निष्फल ही समझो।॥ १॥
ਮਾਨ ਮੋਹ ਦੋਨੋ ਕਉ ਪਰਹਰਿ ਗੋਬਿੰਦ ਕੇ ਗੁਨ ਗਾਵੈ ॥ हे नानक ! जो अभिमान एवं मोह दोनों को त्याग कर गोविंद का गुणगान करता है,
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਇਹ ਬਿਧਿ ਕੋ ਪ੍ਰਾਨੀ ਜੀਵਨ ਮੁਕਤਿ ਕਹਾਵੈ ॥੨॥੨॥ इस विधि से ही प्राणी जीवन्मुक्त कहलाता है ॥ २ ॥ २॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੯ ॥ बिलावलु महला ९ ॥
ਜਾ ਮੈ ਭਜਨੁ ਰਾਮ ਕੋ ਨਾਹੀ ॥ जिसने राम का भजन नहीं किया
ਤਿਹ ਨਰ ਜਨਮੁ ਅਕਾਰਥੁ ਖੋਇਆ ਯਹ ਰਾਖਹੁ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ उसने मनुष्य-जन्म व्यर्थ ही गंवा दिया है, यह बात हमेशा अपने मन में याद रखो॥ १॥ रहाउ॥
ਤੀਰਥ ਕਰੈ ਬ੍ਰਤ ਫੁਨਿ ਰਾਖੈ ਨਹ ਮਨੂਆ ਬਸਿ ਜਾ ਕੋ ॥ जो व्यक्ति तीर्थ-स्नान करता है, व्रत-उपवास भी रखता है, किन्तु मन उसके वश में नहीं है,
ਨਿਹਫਲ ਧਰਮੁ ਤਾਹਿ ਤੁਮ ਮਾਨਹੁ ਸਾਚੁ ਕਹਤ ਮੈ ਯਾ ਕਉ ॥੧॥ तो उसका धर्म कर्म निष्फल ही मानो ! यह मैं सत्य ही कहता हूँ॥ १॥
ਜੈਸੇ ਪਾਹਨੁ ਜਲ ਮਹਿ ਰਾਖਿਓ ਭੇਦੈ ਨਾਹਿ ਤਿਹ ਪਾਨੀ ॥ जैसे पत्थर को जल में डुबोकर रखा जाता है। परन्तु उसके अन्दर पानी प्रवेश नहीं करता,
ਤੈਸੇ ਹੀ ਤੁਮ ਤਾਹਿ ਪਛਾਨਹੁ ਭਗਤਿ ਹੀਨ ਜੋ ਪ੍ਰਾਨੀ ॥੨॥ वैसे ही तुम भक्तिहीन प्राणी को पहचानो ॥ २ ॥
ਕਲ ਮੈ ਮੁਕਤਿ ਨਾਮ ਤੇ ਪਾਵਤ ਗੁਰੁ ਯਹ ਭੇਦੁ ਬਤਾਵੈ ॥ गुरु ने यह भेद बताया है कि कलियुग में जीव प्रभु-नाम से ही मुक्ति प्राप्त करता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੋਈ ਨਰੁ ਗਰੂਆ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਗੁਨ ਗਾਵੈ ॥੩॥੩॥ हे नानक ! वही व्यक्ति श्रेष्ठ है, जो प्रभु का गुणगान करता है॥ ३ ॥ ३ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਅਸਟਪਦੀਆ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧੦ बिलावलु असटपदीआ महला १ घरु १०
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਨਿਕਟਿ ਵਸੈ ਦੇਖੈ ਸਭੁ ਸੋਈ ॥ परमेश्वर जीव के निकट ही निवास करता है और सब को देखता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਿਰਲਾ ਬੂਝੈ ਕੋਈ ॥ यह तथ्य कोई विरला गुरुमुख ही समझता है।
ਵਿਣੁ ਭੈ ਪਇਐ ਭਗਤਿ ਨ ਹੋਈ ॥ प्रभु-भय के बिना भक्ति नहीं हो सकती और
ਸਬਦਿ ਰਤੇ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥੧॥ शब्द में लीन होने से सदैव सुख हासिल होता है।१॥
ਐਸਾ ਗਿਆਨੁ ਪਦਾਰਥੁ ਨਾਮੁ ॥ ईश्वर का नाम ऐसा ज्ञान पदार्थ है,
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਵਸਿ ਰਸਿ ਰਸਿ ਮਾਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जो व्यक्ति गुरु द्वारा इसे पा लेता है, उसे बड़ा आनंद मिलता है।१॥ रहाउ॥
ਗਿਆਨੁ ਗਿਆਨੁ ਕਥੈ ਸਭੁ ਕੋਈ ॥ हर कोई ज्ञान की बातें करता है,
ਕਥਿ ਕਥਿ ਬਾਦੁ ਕਰੇ ਦੁਖੁ ਹੋਈ ॥ लेकिन कह-कहकर वह झगड़ा ही उत्पन्न करता है, जिससे बड़ा दुखी होता है।
ਕਥਿ ਕਹਣੈ ਤੇ ਰਹੈ ਨ ਕੋਈ ॥ कथन करने एवं चर्चा करने से कोई भी रह नहीं सकता।
ਬਿਨੁ ਰਸ ਰਾਤੇ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਈ ॥੨॥ वास्तव में नाम-रस में लीन हुए बिना किसी की भी मुक्ति नहीं होती।॥ २॥
ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਸਭੁ ਗੁਰ ਤੇ ਹੋਈ ॥ ज्ञान एवं ध्यान सब गुरु से ही प्राप्त होता है।
ਸਾਚੀ ਰਹਤ ਸਾਚਾ ਮਨਿ ਸੋਈ ॥ जिसका जीवन-आचरण सच्चा है, उसका ही मन सच्चा है
ਮਨਮੁਖ ਕਥਨੀ ਹੈ ਪਰੁ ਰਹਤ ਨ ਹੋਈ ॥ मनमुख व्यक्ति बस कहता है किन्तु उसका जीवन-आचरण शुद्ध नहीं होता।
ਨਾਵਹੁ ਭੂਲੇ ਥਾਉ ਨ ਕੋਈ ॥੩॥ परमात्मा के नाम से भूले हुए जीव को कोई स्थान नहीं मिलता ॥ ३॥
ਮਨੁ ਮਾਇਆ ਬੰਧਿਓ ਸਰ ਜਾਲਿ ॥ माया ने मन को मोह रूपी सरोवर के जाल में बांध लिया है,
ਘਟਿ ਘਟਿ ਬਿਆਪਿ ਰਹਿਓ ਬਿਖੁ ਨਾਲਿ ॥ माया रूपी विष घट-घट में व्याप्त हो रहा है।
ਜੋ ਆਂਜੈ ਸੋ ਦੀਸੈ ਕਾਲਿ ॥ जो भी जन्म लेता है, वह मृत्यु के वश में नजर आ रहा है।
ਕਾਰਜੁ ਸੀਧੋ ਰਿਦੈ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲਿ ॥੪॥ जो हृदय में परमात्मा का ध्यान करता है, उसका कार्य सिद्ध हो जाता है॥ ४॥
ਸੋ ਗਿਆਨੀ ਜਿਨਿ ਸਬਦਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥ वही ज्ञानी है, जिसने शब्द में वृत्ति लगाई है।
ਮਨਮੁਖਿ ਹਉਮੈ ਪਤਿ ਗਵਾਈ ॥ स्वेच्छाचारी ने अहंकार में अपनी प्रतिष्ठा ही गंवा दी है।
ਆਪੇ ਕਰਤੈ ਭਗਤਿ ਕਰਾਈ ॥ ईश्वर ने ही भक्ति करवाई है और
ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਪੇ ਦੇ ਵਡਿਆਈ ॥੫॥ गुरुमुख को स्वयं ही बड़ाई देता है॥ ५॥
ਰੈਣਿ ਅੰਧਾਰੀ ਨਿਰਮਲ ਜੋਤਿ ॥ इन्सान की जीवन रूपी रात्रि अंधकारमय है और परमज्योति ही निर्मल है।
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਝੂਠੇ ਕੁਚਲ ਕਛੋਤਿ ॥ परमात्मा के नाम बिना मनुष्य झूठे, मलिन एवं अछूत हैं।
ਬੇਦੁ ਪੁਕਾਰੈ ਭਗਤਿ ਸਰੋਤਿ ॥ वेद पुकार-पुकार कर भक्ति का उपदेश देते हैं,
ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਮਾਨੈ ਵੇਖੈ ਜੋਤਿ ॥੬॥ जो जीव उनके उपदेश को सुन-सुनकर एकाग्रचित होते हैं, उन्हें परमज्योति के दर्शन हो जाते हैं।॥ ६॥
ਸਾਸਤ੍ਰ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਮੰ ॥ शास्त्र एवं स्मृतियाँ भी नाम-सिमरन का ही उपदेश करती हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਂਤਿ ਊਤਮ ਕਰਾਮੰ ॥ गुरुमुख नाम-सिमरन का उत्तम कर्म करता है, जिससे उसके मन को बड़ी शान्ति मिलती है।
ਮਨਮੁਖਿ ਜੋਨੀ ਦੂਖ ਸਹਾਮੰ ॥ स्वेच्छाचारी अनेक योनियों में पड़कर बड़ा दुख भोगता है।
ਬੰਧਨ ਤੂਟੇ ਇਕੁ ਨਾਮੁ ਵਸਾਮੰ ॥੭॥ लेकिन ईश्वर का नाम मन में बसाने से सब बन्धन टूट जाते हैं।॥ ७ ॥
ਮੰਨੇ ਨਾਮੁ ਸਚੀ ਪਤਿ ਪੂਜਾ ॥ प्रभु-नाम का मनन करना ही सच्ची पूजा एवं प्रतिष्ठा है।
ਕਿਸੁ ਵੇਖਾ ਨਾਹੀ ਕੋ ਦੂਜਾ ॥ जब प्रभु के बिना अन्य कोई नहीं है तो मैं किसे देखूं ?
ਦੇਖਿ ਕਹਉ ਭਾਵੈ ਮਨਿ ਸੋਇ ॥ मैं देखकर यही कहता हूँ कि वही मेरे मन को अच्छा लगता है।
ਨਾਨਕੁ ਕਹੈ ਅਵਰੁ ਨਹੀ ਕੋਇ ॥੮॥੧॥ हे नानक ! उस प्रभु के बिना अन्य कोई नहीं है।८ ॥ १॥


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