Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 776

Page 776

ਪੂਰਾ ਪੁਰਖੁ ਪਾਇਆ ਵਡਭਾਗੀ ਸਚਿ ਨਾਮਿ ਲਿਵ ਲਾਵੈ ॥ पूरा पुरखु पाइआ वडभागी सचि नामि लिव लावै ॥ सच्चे नाम पर प्रेमपूर्वक ध्यान केन्द्रित करने से भाग्यशाली मनुष्य को परम सौभाग्य से पूर्ण ब्रह्म की प्राप्ति होती है।
ਮਤਿ ਪਰਗਾਸੁ ਭਈ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਵਡਿਆਈ ॥ मति परगासु भई मनु मानिआ राम नामि वडिआई ॥ उसकी बुद्धि में ज्ञान का प्रकाश हो गया है और राम नाम की प्रतिष्ठठा से उसका मन प्रसन्न हो गया है।
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਸਬਦਿ ਮਿਲਾਇਆ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਈ ॥੪॥੧॥੪॥ नानक प्रभु पाइआ सबदि मिलाइआ जोती जोति मिलाई ॥४॥१॥४॥ हे नानक ! जो व्यक्ति गुरु के वचनों पर ध्यान देता है, उसे ईश्वर का साक्षात्कार होता है और उसकी आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है। ॥४॥१॥४॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੫ सूही महला ४ घरु ५ राग सूही, चतुर्थ गुरु, पंचम ताल:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है। ॥
ਗੁਰੁ ਸੰਤ ਜਨੋ ਪਿਆਰਾ ਮੈ ਮਿਲਿਆ ਮੇਰੀ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਬੁਝਿ ਗਈਆਸੇ ॥ गुरु संत जनो पिआरा मै मिलिआ मेरी त्रिसना बुझि गईआसे ॥ हे संतजनो ! मुझे प्यारे गुरु मिल गए है, जिससे मेरी सांसारिक इच्छाओं की तृष्णा बुझ गई है।
ਹਉ ਮਨੁ ਤਨੁ ਦੇਵਾ ਸਤਿਗੁਰੈ ਮੈ ਮੇਲੇ ਪ੍ਰਭ ਗੁਣਤਾਸੇ ॥ हउ मनु तनु देवा सतिगुरै मै मेले प्रभ गुणतासे ॥ मैं अपना मन एवं तन सतगुरु को अर्पण करता हूँ ताकि वह मुझे गुणों के भण्डार प्रभु से मिला दे।
ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਗੁਰੂ ਵਡ ਪੁਰਖੁ ਹੈ ਮੈ ਦਸੇ ਹਰਿ ਸਾਬਾਸੇ ॥ धनु धंनु गुरू वड पुरखु है मै दसे हरि साबासे ॥ वह महापुरुष गुरु धन्य है, उस गुरु की मैं सराहना करता हूँ, जिसने मुझे हरि के बारे में मार्गदर्शन किया है।
ਵਡਭਾਗੀ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਵਿਗਾਸੇ ॥੧॥ वडभागी हरि पाइआ जन नानक नामि विगासे ॥१॥ हे नानक! मैं भाग्यशाली हूँ, जो हरी को पा लिया है और नाम द्वारा फूल की तरह खिल गया हूँ अर्थात् प्रसन्न हो गया हूँ॥ १॥
ਗੁਰੁ ਸਜਣੁ ਪਿਆਰਾ ਮੈ ਮਿਲਿਆ ਹਰਿ ਮਾਰਗੁ ਪੰਥੁ ਦਸਾਹਾ ॥ गुरु सजणु पिआरा मै मिलिआ हरि मारगु पंथु दसाहा ॥ हे भाई ! मेरे प्यारे सज्जन गुरु मुझे मिल गए है। मैं उनसे हरी का मार्ग पूछती हूँ।
ਘਰਿ ਆਵਹੁ ਚਿਰੀ ਵਿਛੁੰਨਿਆ ਮਿਲੁ ਸਬਦਿ ਗੁਰੂ ਪ੍ਰਭ ਨਾਹਾ ॥ घरि आवहु चिरी विछुंनिआ मिलु सबदि गुरू प्रभ नाहा ॥ हे मेरे प्रभु ! शब्द - गुरु द्वारा मुझे आन मिलो, मेरे हृदय घर में आन बसो, मैं चिरकाल से आपसे दूर हुई हूँ।
ਹਉ ਤੁਝੁ ਬਾਝਹੁ ਖਰੀ ਉਡੀਣੀਆ ਜਿਉ ਜਲ ਬਿਨੁ ਮੀਨੁ ਮਰਾਹਾ ॥ हउ तुझु बाझहु खरी उडीणीआ जिउ जल बिनु मीनु मराहा ॥ जैसे जल बिना मछली तड़पती है वैसे ही आपके बिना मैं बहुत बेचैन रहती हूँ
ਵਡਭਾਗੀ ਹਰਿ ਧਿਆਇਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਸਮਾਹਾ ॥੨॥ वडभागी हरि धिआइआ जन नानक नामि समाहा ॥२॥ हे नानक ! भाग्य से मैंने हरि का मनन किया है और उसके नाम में ही समाहित हो गई हूँ। ॥ २॥
ਮਨੁ ਦਹ ਦਿਸਿ ਚਲਿ ਚਲਿ ਭਰਮਿਆ ਮਨਮੁਖੁ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇਆ ॥ मनु दह दिसि चलि चलि भरमिआ मनमुखु भरमि भुलाइआ ॥ हे भाई ! स्वेच्छाचारी जीव भ्रम में ही भूला हुआ है और उसका मन दसों दिशाओं में भटक रहा है।
ਨਿਤ ਆਸਾ ਮਨਿ ਚਿਤਵੈ ਮਨ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਭੁਖ ਲਗਾਇਆ ॥ नित आसा मनि चितवै मन त्रिसना भुख लगाइआ ॥ वह नित्य अपने मन में अधिक से अधिक सांसारिक धन की नवीन आशा सोचता रहता है और उसने अपने मन को तृष्णा की भूख लगा ली है।
ਅਨਤਾ ਧਨੁ ਧਰਿ ਦਬਿਆ ਫਿਰਿ ਬਿਖੁ ਭਾਲਣ ਗਇਆ ॥ अनता धनु धरि दबिआ फिरि बिखु भालण गइआ ॥ उसने अनंत धन धरती में दबा रखा है लेकिन फिर भी वह इससे अधिक माया रूपी विष ढूंढने के लिए गया है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਸਲਾਹਿ ਤੂ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਪਚਿ ਪਚਿ ਮੁਇਆ ॥੩॥ जन नानक नामु सलाहि तू बिनु नावै पचि पचि मुइआ ॥३॥ हे नानक ! तू भी नाम का स्तुतिगान किया कर, क्योंकि नाम के बिना स्वेच्छाचारी जीव बड़ा दुःखी होकर दम तोड़ गया है॥ ३॥
ਗੁਰੁ ਸੁੰਦਰੁ ਮੋਹਨੁ ਪਾਇ ਕਰੇ ਹਰਿ ਪ੍ਰੇਮ ਬਾਣੀ ਮਨੁ ਮਾਰਿਆ ॥ गुरु सुंदरु मोहनु पाइ करे हरि प्रेम बाणी मनु मारिआ ॥ हे भाई ! मन को मुग्ध करने वाले सुन्दर गुरु को पा कर मैंने हरि की प्रेम वाणी द्वारा मन को नियंत्रण में कर लिया है।
ਮੇਰੈ ਹਿਰਦੈ ਸੁਧਿ ਬੁਧਿ ਵਿਸਰਿ ਗਈ ਮਨ ਆਸਾ ਚਿੰਤ ਵਿਸਾਰਿਆ ॥ मेरै हिरदै सुधि बुधि विसरि गई मन आसा चिंत विसारिआ ॥ मैंने अपने मन की अभिलाषा एवं चिन्ता भुला दी है और मेरे हृदय में से सांसारिक चेतना भूल चुकी है।
ਮੈ ਅੰਤਰਿ ਵੇਦਨ ਪ੍ਰੇਮ ਕੀ ਗੁਰ ਦੇਖਤ ਮਨੁ ਸਾਧਾਰਿਆ ॥ मै अंतरि वेदन प्रेम की गुर देखत मनु साधारिआ ॥ मेरे अन्तर्मन में प्रभु-प्रेम की वेदना है, मगर गुरु के दर्शन करके मन को धीरज हो गया है।
ਵਡਭਾਗੀ ਪ੍ਰਭ ਆਇ ਮਿਲੁ ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਵਾਰਿਆ ॥੪॥੧॥੫॥ वडभागी प्रभ आइ मिलु जनु नानकु खिनु खिनु वारिआ ॥४॥१॥५॥ हे नानक ! सौभाग्य से मुझे प्रभु आकर मिल गया है और मैं उस पर क्षण-क्षण न्यौछावर होता हूँ॥ ४॥ १॥ ५ ॥
ਸੂਹੀ ਛੰਤ ਮਹਲਾ ੪ ॥ सूही छंत महला ४ ॥ राग सूही, छंद, चतुर्थ गुरु: ४ ॥
ਮਾਰੇਹਿਸੁ ਵੇ ਜਨ ਹਉਮੈ ਬਿਖਿਆ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਮਿਲਣ ਨ ਦਿਤੀਆ ॥ मारेहिसु वे जन हउमै बिखिआ जिनि हरि प्रभ मिलण न दितीआ ॥ हे जीव ! उस अभिमान और विषैली सांसारिक संपत्ति व शक्ति के मोह को त्याग दो, जिसने तुझे प्रभु से मिलने नहीं दिया।
ਦੇਹ ਕੰਚਨ ਵੇ ਵੰਨੀਆ ਇਨਿ ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਵਿਗੁਤੀਆ ॥ देह कंचन वे वंनीआ इनि हउमै मारि विगुतीआ ॥ हे जीव ! तेरा यह शरीर सोने जैसा सुन्दर था किन्तु इस अहंकार ने इसे कुरूप कर दिया है।
ਮੋਹੁ ਮਾਇਆ ਵੇ ਸਭ ਕਾਲਖਾ ਇਨਿ ਮਨਮੁਖਿ ਮੂੜਿ ਸਜੁਤੀਆ ॥ मोहु माइआ वे सभ कालखा इनि मनमुखि मूड़ि सजुतीआ ॥ माया का मोह सब कालिख है, किन्तु मूर्ख मनमुख ने स्वयं को इससे जोड़ रखा है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਉਬਰੇ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਹਉਮੈ ਛੁਟੀਆ ॥੧॥ जन नानक गुरमुखि उबरे गुर सबदी हउमै छुटीआ ॥१॥ हे नानक ! गुरुमुख भवसागर में डूबने से बच गया है और वह गुरु के शब्द द्वारा अहंकार से छूट गया है।१॥
ਵਸਿ ਆਣਿਹੁ ਵੇ ਜਨ ਇਸੁ ਮਨ ਕਉ ਮਨੁ ਬਾਸੇ ਜਿਉ ਨਿਤ ਭਉਦਿਆ ॥ वसि आणिहु वे जन इसु मन कउ मनु बासे जिउ नित भउदिआ ॥ हे जीव ! इस मन को अपने वश में रखो, यह तो शिकारी पक्षी की तरह नित्य ही भटकता रहता है।
ਦੁਖਿ ਰੈਣਿ ਵੇ ਵਿਹਾਣੀਆ ਨਿਤ ਆਸਾ ਆਸ ਕਰੇਦਿਆ ॥ दुखि रैणि वे विहाणीआ नित आसा आस करेदिआ ॥ हे भाई ! नित्य ही नवीन अभिलाषा करते हुए मानव की जीवन रूपी रात्रि दुःखों में ही बीत जाती है।
ਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ਵੇ ਸੰਤ ਜਨੋ ਮਨਿ ਆਸ ਪੂਰੀ ਹਰਿ ਚਉਦਿਆ ॥ गुरु पाइआ वे संत जनो मनि आस पूरी हरि चउदिआ ॥ हे संतजनो ! मैंने गुरु को पा लिया है और हरि का नाम जपते हुए मेरे मन की अभिलाषा पूरी हो गयी है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਦੇਹੁ ਮਤੀ ਛਡਿ ਆਸਾ ਨਿਤ ਸੁਖਿ ਸਉਦਿਆ ॥੨॥ जन नानक प्रभ देहु मती छडि आसा नित सुखि सउदिआ ॥२॥ नानक की प्रार्थना है कि हे प्रभु ! मुझे यही बुद्धि दीजिए कि मैं सब कामनाएँ छोड़कर अपनी जीवन रूपी रात्रि सुख की नींद में सोते हुए व्यतीत करूं ॥ २॥
ਸਾ ਧਨ ਆਸਾ ਚਿਤਿ ਕਰੇ ਰਾਮ ਰਾਜਿਆ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਸੇਜੜੀਐ ਆਈ ॥ सा धन आसा चिति करे राम राजिआ हरि प्रभ सेजड़ीऐ आई ॥ हे मेरे राम ! वह जीव-स्त्री अपने चित्त में यही अभिलाषा करती है की प्रभु मेरे हृदय में प्रकट हो जाए।
ਮੇਰਾ ਠਾਕੁਰੁ ਅਗਮ ਦਇਆਲੁ ਹੈ ਰਾਮ ਰਾਜਿਆ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਲੇਹੁ ਮਿਲਾਈ ॥ मेरा ठाकुरु अगम दइआलु है राम राजिआ करि किरपा लेहु मिलाई ॥ आप मेरे स्वामी है, अगम्य एवं बड़े दयालु है कृपा करके मुझे अपने साथ मिला लो।


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