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ਆਵਣੁ ਜਾਣਾ ਰਹਿ ਗਏ ਮਨਿ ਵੁਠਾ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ਜੀਉ ॥
आवणु जाणा रहि गए मनि वुठा निरंकारु जीउ ॥
हे मेरे मित्रो, जिसके मन में निराकार परमेश्वर का निवास हो जाता है, उसका जन्म और मृत्यु का चक्र सदा के लिए समाप्त हो जाता है।
ਤਾ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਈਐ ਊਚਾ ਅਗਮ ਅਪਾਰੁ ਜੀਉ ॥
ता का अंतु न पाईऐ ऊचा अगम अपारु जीउ ॥
उस सर्वश्रेष्ठ, अगम्य एवं अपरंपार प्रभु का अंत नहीं पाया जा सकता।
ਜਿਸੁ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪਣਾ ਵਿਸਰੈ ਸੋ ਮਰਿ ਜੰਮੈ ਲਖ ਵਾਰ ਜੀਉ ॥੬॥
जिसु प्रभु अपणा विसरै सो मरि जमै लख वार जीउ ॥६॥
जिस जीव को अपना प्रभु ही भूल जाता है, वह लाखों बार जन्मता एवं मरता है॥ ६॥
ਸਾਚੁ ਨੇਹੁ ਤਿਨ ਪ੍ਰੀਤਮਾ ਜਿਨ ਮਨਿ ਵੁਠਾ ਆਪਿ ਜੀਉ ॥
साचु नेहु तिन प्रीतमा जिन मनि वुठा आपि जीउ ॥
जिनके मन में वह स्वयं आकर बस जाते है, उनका अपने प्रियतम प्रभु से सच्चा प्रेम बन जाता है।
ਗੁਣ ਸਾਝੀ ਤਿਨ ਸੰਗਿ ਬਸੇ ਆਠ ਪਹਰ ਪ੍ਰਭ ਜਾਪਿ ਜੀਉ ॥
गुण साझी तिन संगि बसे आठ पहर प्रभ जापि जीउ ॥
जो व्यक्ति उनकी संगत में रहते हैं, वह उनके साथ गुण साझा करते हैं और आठ प्रहर प्रभु को ही जपते रहते हैं।
ਰੰਗਿ ਰਤੇ ਪਰਮੇਸਰੈ ਬਿਨਸੇ ਸਗਲ ਸੰਤਾਪ ਜੀਉ ॥੭॥
रंगि रते परमेसरै बिनसे सगल संताप जीउ ॥७॥
परमेश्वर के रंग में रंगकर उनके सारे दुःख-संताप नष्ट हो जाते हैं।॥ ७॥
ਤੂੰ ਕਰਤਾ ਤੂੰ ਕਰਣਹਾਰੁ ਤੂਹੈ ਏਕੁ ਅਨੇਕ ਜੀਉ ॥
तूं करता तूं करणहारु तूहै एकु अनेक जीउ ॥
हे ईश्वर ! आप सभी वस्तुओं के निर्माता और कर्ता हैं; आप ही एक हैं और आप ही असंख्य रूपों में प्रकट हैं।
ਤੂ ਸਮਰਥੁ ਤੂ ਸਰਬ ਮੈ ਤੂਹੈ ਬੁਧਿ ਬਿਬੇਕ ਜੀਉ ॥
तू समरथु तू सरब मै तूहै बुधि बिबेक जीउ ॥
आप सर्वकला समर्थ है और आप सब में व्याप्त है। आप ही जीवों को बुद्धि एवं ज्ञान देने वाले है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਜਪੀ ਭਗਤ ਜਨਾ ਕੀ ਟੇਕ ਜੀਉ ॥੮॥੧॥੩॥
नानक नामु सदा जपी भगत जना की टेक जीउ ॥८॥१॥३॥
हे नानक ! प्रभु ही भक्तजनों का आधार है और वे सदा ही उनका नाम जपते रहते हैं।॥ ८॥ १॥ ३॥
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ਅਸਟਪਦੀਆ ਘਰੁ ੧੦ ਕਾਫੀ
रागु सूही महला ५ असटपदीआ घरु १० काफी
राग सूही, पाँचवें गुरु, अष्टपदी, दसवीं ताल, काफ़ी:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है। ॥
ਜੇ ਭੁਲੀ ਜੇ ਚੁਕੀ ਸਾਈ ਭੀ ਤਹਿੰਜੀ ਕਾਢੀਆ ॥
जे भुली जे चुकी साईं भी तहिंजी काढीआ ॥
हे प्रभु ! यदि मुझ से कोई भूल चूक भी हो गई है तो भी मैं आपकी ही कहलाती हूँ।
ਜਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਨੇਹੁ ਦੂਜਾਣੇ ਲਗਾ ਝੂਰਿ ਮਰਹੁ ਸੇ ਵਾਢੀਆ ॥੧॥
जिन्हा नेहु दूजाणे लगा झूरि मरहु से वाढीआ ॥१॥
जिन जीव-स्त्रियों का प्रेम किसी दूसरे से लगा हुआ है तो वे परित्यक्ताएँ बड़ी दुःखी होकर मरती हैं ॥ १॥
ਹਉ ਨਾ ਛੋਡਉ ਕੰਤ ਪਾਸਰਾ ॥
हउ ना छोडउ कंत पासरा ॥
हे मेरी सखी ! मैं अपने पति-प्रभु का साथ कभी भी नहीं छोडूंगी।
ਸਦਾ ਰੰਗੀਲਾ ਲਾਲੁ ਪਿਆਰਾ ਏਹੁ ਮਹਿੰਜਾ ਆਸਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सदा रंगीला लालु पिआरा एहु महिंजा आसरा ॥१॥ रहाउ ॥
वह हमेशा मेरे लिए जीवंत और प्रिय है, और वही मेरा एकमात्र सहारा है। ॥ ॥१॥ रहाउ॥
ਸਜਣੁ ਤੂਹੈ ਸੈਣੁ ਤੂ ਮੈ ਤੁਝ ਉਪਰਿ ਬਹੁ ਮਾਣੀਆ ॥
सजणु तूहै सैणु तू मै तुझ उपरि बहु माणीआ ॥
हे प्रभु जी ! जब मैं आपको अपने भीतर महसूस करता हूँ, तो हृदय में एक गहन शांति उतरती है; आप मेरे सरल से अस्तित्व की शोभा हो।
ਜਾ ਤੂ ਅੰਦਰਿ ਤਾ ਸੁਖੇ ਤੂੰ ਨਿਮਾਣੀ ਮਾਣੀਆ ॥੨॥
जा तू अंदरि ता सुखे तूं निमाणी माणीआ ॥२॥
आप ही मुझ जैसी मानहीन का सम्मान है। जब आप मेरे हृदय-घर में आ बसते है तो मुझे बड़ा सुख प्राप्त होता है॥ २॥
ਜੇ ਤੂ ਤੁਠਾ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਾਨ ਨਾ ਦੂਜਾ ਵੇਖਾਲਿ ॥
जे तू तुठा क्रिपा निधान ना दूजा वेखालि ॥
हे कृपानिधान ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हो गए है तो मुझे किसी अन्य की सहायत मत दिलाना।
ਏਹਾ ਪਾਈ ਮੂ ਦਾਤੜੀ ਨਿਤ ਹਿਰਦੈ ਰਖਾ ਸਮਾਲਿ ॥੩॥
एहा पाई मू दातड़ी नित हिरदै रखा समालि ॥३॥
मैंने आप से यही देन प्राप्त की है और मैं आपको नित्य ही संभाल कर रखती हूँ॥ ३॥
ਪਾਵ ਜੁਲਾਈ ਪੰਧ ਤਉ ਨੈਣੀ ਦਰਸੁ ਦਿਖਾਲਿ ॥
पाव जुलाई पंध तउ नैणी दरसु दिखालि ॥
हे कृपानिधान ! कृपा करें कि मैं आपके मिलन-पथ पर चल सकूं और आपकी पावन दृष्टि का दर्शन पा सकूं।
ਸ੍ਰਵਣੀ ਸੁਣੀ ਕਹਾਣੀਆ ਜੇ ਗੁਰੁ ਥੀਵੈ ਕਿਰਪਾਲਿ ॥੪॥
स्रवणी सुणी कहाणीआ जे गुरु थीवै किरपालि ॥४॥
यदि गुरु मुझ पर कृपालु हो जाए तो मैं उनसे अपने कानों द्वारा आपकी कहानियों का श्रवण करूँ ॥ ४॥
ਕਿਤੀ ਲਖ ਕਰੋੜਿ ਪਿਰੀਏ ਰੋਮ ਨ ਪੁਜਨਿ ਤੇਰਿਆ ॥
किती लख करोड़ि पिरीए रोम न पुजनि तेरिआ ॥
हे प्रिय ! दुनिया में लाखों-करोड़ों कितने ही बड़े-बड़े महापुरुष हैं लेकिन वे सारे ही आपके एक रोम के बराबर भी नहीं पहुँचते।
ਤੂ ਸਾਹੀ ਹੂ ਸਾਹੁ ਹਉ ਕਹਿ ਨ ਸਕਾ ਗੁਣ ਤੇਰਿਆ ॥੫॥
तू साही हू साहु हउ कहि न सका गुण तेरिआ ॥५॥
आप बादशाहों का बादशाह है, मैं आपको गुणों को व्यक्त नहीं कर सकती ॥ ५॥
ਸਹੀਆ ਤਊ ਅਸੰਖ ਮੰਞਹੁ ਹਭਿ ਵਧਾਣੀਆ ॥
सहीआ तऊ असंख मंञहु हभि वधाणीआ ॥
हे प्रभु ! असंख्य सखियाँ आपकी दासियाँ हैं, वे सब मुझ से एक से बढ़कर एक बहुत सुन्दर हैं।
ਹਿਕ ਭੋਰੀ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿ ਦੇਹਿ ਦਰਸੁ ਰੰਗੁ ਮਾਣੀਆ ॥੬॥
हिक भोरी नदरि निहालि देहि दरसु रंगु माणीआ ॥६॥
कृपया एक क्षण के लिए अपनी कृपा-दृष्टि से मुझे आशीर्वाद दें, और मुझे अपना दर्शन दें ताकि मैं भी आपके प्रेम का अनुभव कर सकूं। ॥६॥
ਜੈ ਡਿਠੇ ਮਨੁ ਧੀਰੀਐ ਕਿਲਵਿਖ ਵੰਞਨ੍ਹ੍ਹਿ ਦੂਰੇ ॥
जै डिठे मनु धीरीऐ किलविख वंञन्हि दूरे ॥
जिस प्रभु को को देखने से मन को धीरज होता है और मेरे पाप दूर हो जाते हैं,
ਸੋ ਕਿਉ ਵਿਸਰੈ ਮਾਉ ਮੈ ਜੋ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰੇ ॥੭॥
सो किउ विसरै माउ मै जो रहिआ भरपूरे ॥७॥
हे मेरी माँ ! वह मुझे क्यों भूलें, जो सारे जगत् में बसा हुआ है॥ ७ ॥
ਹੋਇ ਨਿਮਾਣੀ ਢਹਿ ਪਈ ਮਿਲਿਆ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥
होइ निमाणी ढहि पई मिलिआ सहजि सुभाइ ॥
जब में विनम्र होकर उनके द्वार पर नतमस्तक हो गई तो वह मुझे सहज स्वभाव ही मिल गए।
ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਪਾਇਆ ਨਾਨਕ ਸੰਤ ਸਹਾਇ ॥੮॥੧॥੪॥
पूरबि लिखिआ पाइआ नानक संत सहाइ ॥८॥१॥४॥
हे नानक ! इस तरह गुरु की सहायता से मुझे वह मिल गया जो मेरे लिए पूर्वनिर्धारित था। ॥८॥१॥४॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
राग सूही, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਬੇਦ ਪੁਰਾਣ ਪੁਕਾਰਨਿ ਪੋਥੀਆ ॥
सिम्रिति बेद पुराण पुकारनि पोथीआ ॥
स्मृतियाँ, वेद, पुराण, इत्यादि सारे धार्मिक ग्रंथ पुकार-पुकार कर कह रहे हैं कि
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਸਭਿ ਕੂੜੁ ਗਾਲ੍ਹ੍ਹੀ ਹੋਛੀਆ ॥੧॥
नाम बिना सभि कूड़ु गाल्ही होछीआ ॥१॥
नाम के बिना अन्य सबकुछ झूठ एवं व्यर्थ बातें हैं।॥१॥
ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਅਪਾਰੁ ਭਗਤਾ ਮਨਿ ਵਸੈ ॥
नामु निधानु अपारु भगता मनि वसै ॥
नाम रूपी अपार खजाना तो भक्तों के मन में बसता है।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਮੋਹੁ ਦੁਖੁ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਨਸੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जनम मरण मोहु दुखु साधू संगि नसै ॥१॥ रहाउ ॥
साधुओं की संगत करने से जन्म-मरण, मोह एवं दुःख इत्यादि सब दूर हो जाते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਮੋਹਿ ਬਾਦਿ ਅਹੰਕਾਰਿ ਸਰਪਰ ਰੁੰਨਿਆ ॥
मोहि बादि अहंकारि सरपर रुंनिआ ॥
मोह, वाद-विवाद एवं अहंकार में फँसकर आदमी अवश्य ही दुःखी होकर रोता है।
ਸੁਖੁ ਨ ਪਾਇਨ੍ਹ੍ਹਿ ਮੂਲਿ ਨਾਮ ਵਿਛੁੰਨਿਆ ॥੨॥
सुखु न पाइन्हि मूलि नाम विछुंनिआ ॥२॥
परमात्मा के नाम से दूर हुआ वह बिल्कुल भी सुख हासिल नहीं करता ॥ २ ॥
ਮੇਰੀ ਮੇਰੀ ਧਾਰਿ ਬੰਧਨਿ ਬੰਧਿਆ ॥
मेरी मेरी धारि बंधनि बंधिआ ॥
मेरी-मेरी की भावना धारण करके जीव माया के बन्धनों में बंध जाता है और
ਨਰਕਿ ਸੁਰਗਿ ਅਵਤਾਰ ਮਾਇਆ ਧੰਧਿਆ ॥੩॥
नरकि सुरगि अवतार माइआ धंधिआ ॥३॥
माया के धंधों में फंसकर नरक-स्वर्ग में जन्म लेता रहता है। ॥३ ॥
ਸੋਧਤ ਸੋਧਤ ਸੋਧਿ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰਿਆ ॥
सोधत सोधत सोधि ततु बीचारिआ ॥
भलीभांति विचार-विचार कर मैंने यह परिणाम निकाला है कि
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਸੁਖੁ ਨਾਹਿ ਸਰਪਰ ਹਾਰਿਆ ॥੪॥
नाम बिना सुखु नाहि सरपर हारिआ ॥४॥
परमात्मा के नाम बिना आदमी को सुख नहीं मिलता और वह अवश्य ही अपनी जीवन-बाजी हार जाता है॥ ४॥