Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 759

Page 759

ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਾਗਰੁ ਗੁਣ ਨਾਮ ਕਾ ਮੈ ਤਿਸੁ ਦੇਖਣ ਕਾ ਚਾਉ ॥ सतगुरु गुणों एवं नाम का सागर है और मुझे उसके दर्शनों का बड़ा चाव है।
ਹਉ ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਘੜੀ ਨ ਜੀਵਊ ਬਿਨੁ ਦੇਖੇ ਮਰਿ ਜਾਉ ॥੬॥ उसके बिना में एक घड़ी भी जीवित नहीं रह सकता और उसे देखें बिना मेरी जीवन-लीला ही समाप्त हो जाती है॥ ६ ॥
ਜਿਉ ਮਛੁਲੀ ਵਿਣੁ ਪਾਣੀਐ ਰਹੈ ਨ ਕਿਤੈ ਉਪਾਇ ॥ जैसे पानी के बिना मछली अन्य किसी भी उपाय से जीवित नहीं रह सकती,
ਤਿਉ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਸੰਤੁ ਨ ਜੀਵਈ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਨਾਮੈ ਮਰਿ ਜਾਇ ॥੭॥ वैसे हरि के बिना संत भी जीवित नहीं रह सकता है और हरि-नाम के बिना उसके प्राण ही पखेरु हो जाते हैं। ७॥
ਮੈ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਤੀ ਪਿਰਹੜੀ ਕਿਉ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਜੀਵਾ ਮਾਉ ॥ मेरी अपने सतिगुरु से बड़ी प्रीति है। हे मेरी माँ! मैं अपने गुरु के बिना कैसे जिंदा रह सकता हूँ।
ਮੈ ਗੁਰਬਾਣੀ ਆਧਾਰੁ ਹੈ ਗੁਰਬਾਣੀ ਲਾਗਿ ਰਹਾਉ ॥੮॥ गुरुवाणी मेरे जीवन का आधार है और मेरा गुरुवाणी से प्रेम लगा रहता है।॥ ८॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਰਤੰਨੁ ਹੈ ਗੁਰੁ ਤੁਠਾ ਦੇਵੈ ਮਾਇ ॥ हरि का नाम अमूल्य रत्न है। हे मेरी माँ! जब गुरु प्रसन्न होता है तो ही वह नाम-रत्न देता है।
ਮੈ ਧਰ ਸਚੇ ਨਾਮ ਕੀ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਰਹਾ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥੯॥ मुझे तो सत्य-नाम का ही सहारा है और मैं हरि-नाम में सुरति लगाकर रखता हूँ॥ ६॥
ਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ਪਦਾਰਥੁ ਨਾਮੁ ਹੈ ਹਰਿ ਨਾਮੋ ਦੇਇ ਦ੍ਰਿੜਾਇ ॥ गुरु का ज्ञान ही नाम रूपी पदार्थ है। वह हरि-नाम मन में बसा देता है।
ਜਿਸੁ ਪਰਾਪਤਿ ਸੋ ਲਹੈ ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਲਾਗੈ ਆਇ ॥੧੦॥ जिसके भाग्य में इसकी प्राप्ति लिखी होती है, उसे मिल जाता है और वह गुरु के चरणों में आ लगता है॥ १० ॥
ਅਕਥ ਕਹਾਣੀ ਪ੍ਰੇਮ ਕੀ ਕੋ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਆਖੈ ਆਇ ॥ परमात्मा के प्रेम की कहानी अकथनीय है, कोई प्रियतम आकर मुझे यह कहानी सुना दे।
ਤਿਸੁ ਦੇਵਾ ਮਨੁ ਆਪਣਾ ਨਿਵਿ ਨਿਵਿ ਲਾਗਾ ਪਾਇ ॥੧੧॥ मैं अपना यह मन उसे अर्पण कर दूँगा और झुक-झुक कर उसके पैरों में लग जाऊँगा ॥ ११॥
ਸਜਣੁ ਮੇਰਾ ਏਕੁ ਤੂੰ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਸੁਜਾਣੁ ॥ हे परमात्मा ! एक तू ही मेरा सज्जन है, तू कर्तापुरुष बड़ा चतुर है।
ਸਤਿਗੁਰਿ ਮੀਤਿ ਮਿਲਾਇਆ ਮੈ ਸਦਾ ਸਦਾ ਤੇਰਾ ਤਾਣੁ ॥੧੨॥ मित्र सतगुरु ने मुझे तुझ से मिला दिया है। अब मुझे सदा के लिए तेरा ही बल है॥ १२ ॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਰਾ ਸਦਾ ਸਦਾ ਨਾ ਆਵੈ ਨਾ ਜਾਇ ॥ मेरा सतगुरु हमेशा के लिए अमर है। न वह जन्मता है और न ही वह मरता है।
ਓਹੁ ਅਬਿਨਾਸੀ ਪੁਰਖੁ ਹੈ ਸਭ ਮਹਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥੧੩॥ वह तो अविनाशी पुरुष है, जो सब में समा रहा है॥ १३॥
ਰਾਮ ਨਾਮ ਧਨੁ ਸੰਚਿਆ ਸਾਬਤੁ ਪੂੰਜੀ ਰਾਸਿ ॥ जिस मनुष्य ने राम नाम रूपी धन संचित कर लिया है, उसकी यह नाम रूपी पूंजी पूरी रहती है।
ਨਾਨਕ ਦਰਗਹ ਮੰਨਿਆ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਸਾਬਾਸਿ ॥੧੪॥੧॥੨॥੧੧॥ हे नानक ! उस मनुष्य को सत्य के दरबार में सम्मानित किया जाता है और पूर्ण गुरु की ओर से उसे शाबाश मिलती है॥ १४॥ १॥ २ ॥ ११॥
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਅਸਟਪਦੀਆ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧ रागु सूही असटपदीआ महला ५ घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਉਰਝਿ ਰਹਿਓ ਬਿਖਿਆ ਕੈ ਸੰਗਾ ॥ मानव जीव विषय-विकारों में ही उलझा हुआ है और
ਮਨਹਿ ਬਿਆਪਤ ਅਨਿਕ ਤਰੰਗਾ ॥੧॥ उसके मन को विकारों की अनेक तरंगें प्रभावित करती हैं।॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰ ॥ ਕਤ ਪਾਈਐ ਪੂਰਨ ਪਰਮੇਸਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे मेरे मन ! ऐसी स्थिति में उस अपहुँच, मन-वाणी से परे पूर्ण परमेश्वर को कैसे पाया जाए॥ १॥ रहाउ॥
ਮੋਹ ਮਗਨ ਮਹਿ ਰਹਿਆ ਬਿਆਪੇ ॥ माया के मोह में मग्न हुआ जीव उसमें ही व्याप्त रहता है।
ਅਤਿ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਕਬਹੂ ਨਹੀ ਧ੍ਰਾਪੇ ॥੨॥ अत्यंत तृष्णा लगी रहने के कारण वह कभी तृप्त नहीं होता।॥ २॥
ਬਸਇ ਕਰੋਧੁ ਸਰੀਰਿ ਚੰਡਾਰਾ ॥ उसके शरीर में चाण्डाल क्रोध ही बसा रहता है
ਅਗਿਆਨਿ ਨ ਸੂਝੈ ਮਹਾ ਗੁਬਾਰਾ ॥੩॥ लेकिन वह अज्ञानी यह नहीं समझता, क्योंकि उसके मन में अज्ञानता का महा अंधेरा बना हुआ है॥ ३॥
ਭ੍ਰਮਤ ਬਿਆਪਤ ਜਰੇ ਕਿਵਾਰਾ ॥ उसके मन को भ्रम में व्याप्त रहने के किवाड़ लगे हुए हैं,
ਜਾਣੁ ਨ ਪਾਈਐ ਪ੍ਰਭ ਦਰਬਾਰਾ ॥੪॥ जिस कारण वह प्रभु के दरबार में जा नहीं पाता॥ ४॥
ਆਸਾ ਅੰਦੇਸਾ ਬੰਧਿ ਪਰਾਨਾ ॥ आशा एवं चिन्ता ने प्राणी को बाँध कर रखा हुआ है,
ਮਹਲੁ ਨ ਪਾਵੈ ਫਿਰਤ ਬਿਗਾਨਾ ॥੫॥ जिससे वह प्रभु को पा नहीं सकता और परायों की तरह भटकता ही रहता है।॥ ५ ॥
ਸਗਲ ਬਿਆਧਿ ਕੈ ਵਸਿ ਕਰਿ ਦੀਨਾ ॥ ऐसे आदमी को तो परमात्मा ने सभी व्याधियों के वश में कर दिया है।
ਫਿਰਤ ਪਿਆਸ ਜਿਉ ਜਲ ਬਿਨੁ ਮੀਨਾ ॥੬॥ जिस तरह जल के बिना मछली तड़पती रहती है, वैसे ही वह तृष्णाओं की प्यास में भटकता रहता है।॥ ६ ॥
ਕਛੂ ਸਿਆਨਪ ਉਕਤਿ ਨ ਮੋਰੀ ॥ मेरी कोई चतुराई एवं उक्ति काम नहीं कर सकती।
ਏਕ ਆਸ ਠਾਕੁਰ ਪ੍ਰਭ ਤੋਰੀ ॥੭॥ हे प्रभु ! मुझे एक तेरी ही आशा है॥ ७ ॥
ਕਰਉ ਬੇਨਤੀ ਸੰਤਨ ਪਾਸੇ ॥ मैं संतों के पास विनती करता हूँ।
ਮੇਲਿ ਲੈਹੁ ਨਾਨਕ ਅਰਦਾਸੇ ॥੮॥ नानक की यही प्रार्थना है कि मुझे अपनी संगति में मिला लो॥ ८ ॥
ਭਇਓ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਸਾਧਸੰਗੁ ਪਾਇਆ ॥ परमात्मा मुझ पर कृपालु हो गया है, जिससे मैंने साधुओं की संगति पा ली है।
ਨਾਨਕ ਤ੍ਰਿਪਤੇ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥੧॥ हे नानक ! पूर्ण प्रभु को पा कर मैं तृप्त हो गया हूँ॥ १॥ रहाउ दूसरा ॥ १॥


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