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ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮੋਹਿ ਸਾਧਸੰਗੁ ਦੀਜੈ ॥੪॥
करि किरपा मोहि साधसंगु दीजै ॥४॥
कृपा करके साधुओं की संगति प्रदान कर दें ॥ ४॥
ਤਉ ਕਿਛੁ ਪਾਈਐ ਜਉ ਹੋਈਐ ਰੇਨਾ ॥
तउ किछु पाईऐ जउ होईऐ रेना ॥
हम संतों की संगति से तभी लाभ उठा सकते हैं, जब हम उनके चरणों की धूल जैसी विनम्रता अपनाएं।
ਜਿਸਹਿ ਬੁਝਾਏ ਤਿਸੁ ਨਾਮੁ ਲੈਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥੨॥੮॥
जिसहि बुझाए तिसु नामु लैना ॥१॥ रहाउ ॥२॥८॥
जिसे परमात्मा सूझ प्रदान करता है, वही सत्संग में प्रभु का नाम जपता है॥ १॥ रहाउ ॥ २ ॥ ८ ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
राग सूही, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਘਰ ਮਹਿ ਠਾਕੁਰੁ ਨਦਰਿ ਨ ਆਵੈ ॥
घर महि ठाकुरु नदरि न आवै ॥
अज्ञानी को हृदय-घर में विद्यमान ठाकुर नज़र नहीं आते और
ਗਲ ਮਹਿ ਪਾਹਣੁ ਲੈ ਲਟਕਾਵੈ ॥੧॥
गल महि पाहणु लै लटकावै ॥१॥
उसकी जगह वह गले में पत्थर की मूर्ति लटकाकर घूमता है।॥ १॥
ਭਰਮੇ ਭੂਲਾ ਸਾਕਤੁ ਫਿਰਤਾ ॥
भरमे भूला साकतु फिरता ॥
मायावी जीव भ्रम में पड़कर भटकता ही रहता है।
ਨੀਰੁ ਬਿਰੋਲੈ ਖਪਿ ਖਪਿ ਮਰਤਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नीरु बिरोलै खपि खपि मरता ॥१॥ रहाउ ॥
पत्थर की मूर्ति की पूजा करना तो व्यर्थ ही जल का मंथन करने के समान है। जिससे उसे आध्यात्मिक हानि होती है। १॥ रहाउ॥
ਜਿਸੁ ਪਾਹਣ ਕਉ ਠਾਕੁਰੁ ਕਹਤਾ ॥
जिसु पाहण कउ ठाकुरु कहता ॥
वह जिस पत्थर को अपना ठाकुर कहता है,
ਓਹੁ ਪਾਹਣੁ ਲੈ ਉਸ ਕਉ ਡੁਬਤਾ ॥੨॥
ओहु पाहणु लै उस कउ डुबता ॥२॥
वह पत्थर ही उसे अपने साथ लेकर जल में डूब जाता है॥ २॥
ਗੁਨਹਗਾਰ ਲੂਣ ਹਰਾਮੀ ॥
गुनहगार लूण हरामी ॥
हे गुनहगार एवं कृतघ्न जीव !
ਪਾਹਣ ਨਾਵ ਨ ਪਾਰਗਿਰਾਮੀ ॥੩॥
पाहण नाव न पारगिरामी ॥३॥
पत्थर की नाव यानी मूर्ति पूजा तुम्हें इस संसार सागर से पार नहीं करा सकती। ॥ ३॥
ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਨਾਨਕ ਠਾਕੁਰੁ ਜਾਤਾ ॥
गुर मिलि नानक ठाकुरु जाता ॥
हे नानक ! जिसने गुरु से मिलकर भगवान् को जाना है,
ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਪੂਰਨ ਬਿਧਾਤਾ ॥੪॥੩॥੯॥
जलि थलि महीअलि पूरन बिधाता ॥४॥३॥९॥
वह विधाता तो जल, धरती एवं आसमान में हर जगह व्याप्त देखता है। ॥ ४॥ ३॥ ६॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
राग सूही, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਲਾਲਨੁ ਰਾਵਿਆ ਕਵਨ ਗਤੀ ਰੀ ॥
लालनु राविआ कवन गती री ॥
हे मेरे मित्र! आपने किस विधि द्वारा प्यारे-प्रभु के साथ रमण किया है
ਸਖੀ ਬਤਾਵਹੁ ਮੁਝਹਿ ਮਤੀ ਰੀ ॥੧॥
सखी बतावहु मुझहि मती री ॥१॥
अरी सखी ! मुझे भी यह बात बताओ ॥ १ ॥
ਸੂਹਬ ਸੂਹਬ ਸੂਹਵੀ ॥
सूहब सूहब सूहवी ॥
हे मेरे मित्र! दिव्य शांति से आपका चेहरा दमक रहा है,
ਅਪਨੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਕੈ ਰੰਗਿ ਰਤੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अपने प्रीतम कै रंगि रती ॥१॥ रहाउ ॥
तू अपने प्रियतम के प्रेम-रंग में रंगी हुई है ॥ १॥ रहाउ॥
ਪਾਵ ਮਲੋਵਉ ਸੰਗਿ ਨੈਨ ਭਤੀਰੀ ॥
पाव मलोवउ संगि नैन भतीरी ॥
मैं बहुत विनम्रता से आपकी सेवा करूंगी, जैसे अपनी पलकों से आपके पैर सहलाती हूं।
ਜਹਾ ਪਠਾਵਹੁ ਜਾਂਉ ਤਤੀ ਰੀ ॥੨॥
जहा पठावहु जांउ तती री ॥२॥
जहाँ भी तुम मुझे भेजो, मैं खुशी-खुशी वहाँ जाऊँगी। ॥ २ ॥
ਜਪ ਤਪ ਸੰਜਮ ਦੇਉ ਜਤੀ ਰੀ ॥
जप तप संजम देउ जती री ॥
मैं अपनी सारी पूजा, तपस्या और साधना का श्रेय तुम्हें दूंगी,
ਇਕ ਨਿਮਖ ਮਿਲਾਵਹੁ ਮੋਹਿ ਪ੍ਰਾਨਪਤੀ ਰੀ ॥੩॥
इक निमख मिलावहु मोहि प्रानपती री ॥३॥
यदि एक पल के लिए मेरे प्राणपति से मुझे मिला दो॥ ३॥
ਮਾਣੁ ਤਾਣੁ ਅਹੰਬੁਧਿ ਹਤੀ ਰੀ ॥ ਸਾ ਨਾਨਕ ਸੋਹਾਗਵਤੀ ਰੀ ॥੪॥੪॥੧੦॥
माणु ताणु अह्मबुधि हती री ॥ सा नानक सोहागवती री ॥४॥४॥१०॥
जिसने अपना अभिमान, बल एवं अहंबुद्धि नाश कर दी है, हे नानक ! वही जीव-स्त्री सुहागिन है ॥ ४॥ ४॥ १०॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
राग सूही, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਤੂੰ ਜੀਵਨੁ ਤੂੰ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰਾ ॥
तूं जीवनु तूं प्रान अधारा ॥
हे प्रभु ! आप मेरा जीवन है और आप ही मेरे प्राणों का आधार है।
ਤੁਝ ਹੀ ਪੇਖਿ ਪੇਖਿ ਮਨੁ ਸਾਧਾਰਾ ॥੧॥
तुझ ही पेखि पेखि मनु साधारा ॥१॥
आपको ही देख-देखकर मेरे मन को धीरज मिलता है। १ ॥
ਤੂੰ ਸਾਜਨੁ ਤੂੰ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਮੇਰਾ ॥
तूं साजनु तूं प्रीतमु मेरा ॥
आप मेरे साजन है और आप ही मेरे प्रियतम है।
ਚਿਤਹਿ ਨ ਬਿਸਰਹਿ ਕਾਹੂ ਬੇਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
चितहि न बिसरहि काहू बेरा ॥१॥ रहाउ ॥
किसी भी समय आप मेरे चित्त से नहीं भूलते॥ १॥ रहाउ ॥
ਬੈ ਖਰੀਦੁ ਹਉ ਦਾਸਰੋ ਤੇਰਾ ॥
बै खरीदु हउ दासरो तेरा ॥
हे भगवान्, मैं आपका खरीदा हुआ सेवक हूँ;
ਤੂੰ ਭਾਰੋ ਠਾਕੁਰੁ ਗੁਣੀ ਗਹੇਰਾ ॥੨॥
तूं भारो ठाकुरु गुणी गहेरा ॥२॥
आप मेरे महान् ठाकुर है और गुणों का गहरा सागर है॥ २।
ਕੋਟਿ ਦਾਸ ਜਾ ਕੈ ਦਰਬਾਰੇ ॥
कोटि दास जा कै दरबारे ॥
जिस परमात्मा के दरबार में करोड़ों ही दास रहते हैं,
ਨਿਮਖ ਨਿਮਖ ਵਸੈ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਨਾਲੇ ॥੩॥
निमख निमख वसै तिन्ह नाले ॥३॥
वह स्वयं भी हर क्षण उनके साथ ही बसता है॥ ३॥
ਹਉ ਕਿਛੁ ਨਾਹੀ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤੇਰਾ ॥
हउ किछु नाही सभु किछु तेरा ॥
हे प्रभु ! मैं तो कुछ भी नहीं हूँ मुझे सबकुछ आपका ही दिया हुआ है।
ਓਤਿ ਪੋਤਿ ਨਾਨਕ ਸੰਗਿ ਬਸੇਰਾ ॥੪॥੫॥੧੧॥
ओति पोति नानक संगि बसेरा ॥४॥५॥११॥
नानक कहते हैं कि हे प्रभु! आप हर समय मेरे साथ हैं।॥ ४ ॥ ५ ॥ ११॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
राग सूही, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਸੂਖ ਮਹਲ ਜਾ ਕੇ ਊਚ ਦੁਆਰੇ ॥
सूख महल जा के ऊच दुआरे ॥
हे भाई, भगवान् की आध्यात्मिक अवस्था इतनी ऊँची और आनंदमय है कि हर कोई वहां नहीं पहुँच सकता।
ਤਾ ਮਹਿ ਵਾਸਹਿ ਭਗਤ ਪਿਆਰੇ ॥੧॥
ता महि वासहि भगत पिआरे ॥१॥
वहाँ (ऐसी उच्च आध्यात्मिक अवस्था में) केवल उनके प्रिय भक्त ही निवास करते हैं।।॥ १॥
ਸਹਜ ਕਥਾ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਅਤਿ ਮੀਠੀ ॥
सहज कथा प्रभ की अति मीठी ॥
प्रभु की सहज कथा बड़ी मीठी है और
ਵਿਰਲੈ ਕਾਹੂ ਨੇਤ੍ਰਹੁ ਡੀਠੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
विरलै काहू नेत्रहु डीठी ॥१॥ रहाउ ॥
किसी विरले पुरुष ने ही इसे अपने नेत्रों से देखा है ॥१॥ रहाउ॥
ਤਹ ਗੀਤ ਨਾਦ ਅਖਾਰੇ ਸੰਗਾ ॥
तह गीत नाद अखारे संगा ॥
वहाँ वैकुण्ठ में सत्संग करने के लिए मंच है, जहाँ प्रभु की महिमा के गीत गाए जाते हैं और अनहद नाद गूंजते रहते हैं।
ਊਹਾ ਸੰਤ ਕਰਹਿ ਹਰਿ ਰੰਗਾ ॥੨॥
ऊहा संत करहि हरि रंगा ॥२॥
वहाँ संतजन हरि रंग में आनंद प्राप्त करते हैं।॥ २॥
ਤਹ ਮਰਣੁ ਨ ਜੀਵਣੁ ਸੋਗੁ ਨ ਹਰਖਾ ॥
तह मरणु न जीवणु सोगु न हरखा ॥
वहाँ न मृत्यु है, न जीवन है, और न ही शोकं एवं हर्ष है।
ਸਾਚ ਨਾਮ ਕੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਵਰਖਾ ॥੩॥
साच नाम की अम्रित वरखा ॥३॥
वहाँ तो सत्य-नाम की अमृत-वर्षा होती रहती है ॥३॥
ਗੁਹਜ ਕਥਾ ਇਹ ਗੁਰ ਤੇ ਜਾਣੀ ॥
गुहज कथा इह गुर ते जाणी ॥
यह गुप्त एवं रहस्यमयी कथा मैंने गुरु से जानी है।
ਨਾਨਕੁ ਬੋਲੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਬਾਣੀ ॥੪॥੬॥੧੨॥
नानकु बोलै हरि हरि बाणी ॥४॥६॥१२॥
नानक तो हरि की वाणी ही बोलते रहते है ॥ ४॥ ६॥ १२ ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
राग सूही, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜਾ ਕੈ ਦਰਸਿ ਪਾਪ ਕੋਟਿ ਉਤਾਰੇ ॥
जा कै दरसि पाप कोटि उतारे ॥
जिनके दर्शन करने से करोड़ों ही पाप दूर हो जाते हैं और
ਭੇਟਤ ਸੰਗਿ ਇਹੁ ਭਵਜਲੁ ਤਾਰੇ ॥੧॥
भेटत संगि इहु भवजलु तारे ॥१॥
जिनके मिलने एवं संगति से भवसागर से पार हुआ जा सकता है। १॥
ਓਇ ਸਾਜਨ ਓਇ ਮੀਤ ਪਿਆਰੇ ॥
ओइ साजन ओइ मीत पिआरे ॥
केवल वही मेरे साजन एवं वही मेरे प्यारे मित्र हैं,
ਜੋ ਹਮ ਕਉ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਚਿਤਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो हम कउ हरि नामु चितारे ॥१॥ रहाउ ॥
जो हमें भगवान् का नाम याद कराते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਜਾ ਕਾ ਸਬਦੁ ਸੁਨਤ ਸੁਖ ਸਾਰੇ ॥
जा का सबदु सुनत सुख सारे ॥
जिनका शब्द सुनने से सर्व सुख प्राप्त होता है और
ਜਾ ਕੀ ਟਹਲ ਜਮਦੂਤ ਬਿਦਾਰੇ ॥੨॥
जा की टहल जमदूत बिदारे ॥२॥
जिनकी सेवा करने से यमदूत का डर भी नष्ट हो जाता है। २॥
ਜਾ ਕੀ ਧੀਰਕ ਇਸੁ ਮਨਹਿ ਸਧਾਰੇ ॥
जा की धीरक इसु मनहि सधारे ॥
उन संत मित्रों की सांत्वना से मेरे मन को सहारा और शांति मिलती है,
ਜਾ ਕੈ ਸਿਮਰਣਿ ਮੁਖ ਉਜਲਾਰੇ ॥੩॥
जा कै सिमरणि मुख उजलारे ॥३॥
जिनके सिमरन से मुख उज्ज्वल हो जाता है॥ ३॥
ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਸੇਵਕ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ਸਵਾਰੇ ॥
प्रभ के सेवक प्रभि आपि सवारे ॥
ऐसे प्रभु के सेवक प्रभु ने स्वयं ही संवार दिए हैं।
ਸਰਣਿ ਨਾਨਕ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੇ ॥੪॥੭॥੧੩॥
सरणि नानक तिन्ह सद बलिहारे ॥४॥७॥१३॥
नानक उनकी शरण में है और उन पर हमेशा बलिहारी जाता है ॥४॥७॥१३॥