Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 737

Page 737

ਜਿਸ ਨੋ ਲਾਇ ਲਏ ਸੋ ਲਾਗੈ ॥ जिसे परमात्मा स्वयं अपने साथ लगाता है, वही उससे लगता है।
ਗਿਆਨ ਰਤਨੁ ਅੰਤਰਿ ਤਿਸੁ ਜਾਗੈ ॥ रत्न जैसा अमूल्य ज्ञान उसके मन में जाग जाता है।
ਦੁਰਮਤਿ ਜਾਇ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਏ ॥ उसकी दुर्मति नाश हो जाती है और वह परमपद पा लेता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ॥੩॥ गुरु की कृपा से वह परमात्मा के नाम का ध्यान करता रहता है॥ ३॥
ਦੁਇ ਕਰ ਜੋੜਿ ਕਰਉ ਅਰਦਾਸਿ ॥ हे प्रभु ! मैं अपने दोनों हाथ जोड़कर तेरे समक्ष प्रार्थना करता हूँ।
ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਆਣਹਿ ਰਾਸਿ ॥ जब तुझे अच्छा लगता है, तब तू मेरे कार्य संवार देता है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਅਪਨੀ ਭਗਤੀ ਲਾਇ ॥ कृपा करके अपनी भक्ति में लगाकर रख।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭੁ ਸਦਾ ਧਿਆਇ ॥੪॥੨॥ नानक तो सदैव ही प्रभु का ध्यान करता रहता है॥ ४॥ २॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सूही महला ५ ॥
ਧਨੁ ਸੋਹਾਗਨਿ ਜੋ ਪ੍ਰਭੂ ਪਛਾਨੈ ॥ वह सुहागिन धन्य है, जो अपने पति-प्रभु को पहचानती है।
ਮਾਨੈ ਹੁਕਮੁ ਤਜੈ ਅਭਿਮਾਨੈ ॥ वह अपने पति-प्रभु का हुक्म मानती है और अभिमान को त्याग देती है।
ਪ੍ਰਿਅ ਸਿਉ ਰਾਤੀ ਰਲੀਆ ਮਾਨੈ ॥੧॥ यह अपने प्रिय के प्रेम में मग्न रहकर आनंद प्राप्त करती है॥ १॥
ਸੁਨਿ ਸਖੀਏ ਪ੍ਰਭ ਮਿਲਣ ਨੀਸਾਨੀ ॥ हे मेरी सखी ! प्रभु से मिलन की निशानी सुन।
ਮਨੁ ਤਨੁ ਅਰਪਿ ਤਜਿ ਲਾਜ ਲੋਕਾਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ लोक-लाज छोड़कर अपना मन-तन प्रभु को अर्पण कर दे॥ १॥ रहाउ॥
ਸਖੀ ਸਹੇਲੀ ਕਉ ਸਮਝਾਵੈ ॥ सखी अपनी सहेली को समझाती है कि
ਸੋਈ ਕਮਾਵੈ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵੈ ॥ ਸਾ ਸੋਹਾਗਣਿ ਅੰਕਿ ਸਮਾਵੈ ॥੨॥ वह वही कार्य करे जो प्रभु को अच्छा लगे। फिर वह सुहागिन प्रभु-चरणों में समा जाती है। ॥२॥
ਗਰਬਿ ਗਹੇਲੀ ਮਹਲੁ ਨ ਪਾਵੈ ॥ अहंकार में फँसी जीव-स्त्री प्रभु को नहीं पा सकती।
ਫਿਰਿ ਪਛੁਤਾਵੈ ਜਬ ਰੈਣਿ ਬਿਹਾਵੈ ॥ जब उसकी जीवन रूपी रात्रि बीत जाती है तो फिर वह पछतावा करती है।
ਕਰਮਹੀਣਿ ਮਨਮੁਖਿ ਦੁਖੁ ਪਾਵੈ ॥੩॥ कर्महीन मनमुखी जीव-स्त्री बहुत दुख प्राप्त करती है॥ ३॥
ਬਿਨਉ ਕਰੀ ਜੇ ਜਾਣਾ ਦੂਰਿ ॥ मैं प्रभु के समक्ष तो ही विनती करूँ, यदि मैं उसे कहीं दूर समझें।
ਪ੍ਰਭੁ ਅਬਿਨਾਸੀ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰਿ ॥ वह अविनाशी प्रभु तो सर्वव्यापक है।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਗਾਵੈ ਦੇਖਿ ਹਦੂਰਿ ॥੪॥੩॥ नानक उसे अपने आसपास देखकर उसका ही गुणगान करता है॥ ४॥ ३॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सूही महला ५ ॥
ਗ੍ਰਿਹੁ ਵਸਿ ਗੁਰਿ ਕੀਨਾ ਹਉ ਘਰ ਕੀ ਨਾਰਿ ॥ हे सखी ! गुरु ने मेरा हृदय-घर मेरे वश में कर दिया है और अब मैं इस हृदय-घर की स्वामिनी बन चुकी हूँ।
ਦਸ ਦਾਸੀ ਕਰਿ ਦੀਨੀ ਭਤਾਰਿ ॥ मेरे पति-प्रभु ने मेरी दसों इन्द्रियों को मेरी दासियाँ बना दिया है।
ਸਗਲ ਸਮਗ੍ਰੀ ਮੈ ਘਰ ਕੀ ਜੋੜੀ ॥ मैंने अपने हृदय-घर की सारी सामग्री इकट्टी कर ली है।
ਆਸ ਪਿਆਸੀ ਪਿਰ ਕਉ ਲੋੜੀ ॥੧॥ अब मैं मिलन की तीव्र लालसा से पति-प्रभु को पाना चाहती हूँ॥ १॥
ਕਵਨ ਕਹਾ ਗੁਨ ਕੰਤ ਪਿਆਰੇ ॥ मैं उस प्यारे प्रभु के कौन-कौन से गुण व्यक्त करूँ ?
ਸੁਘੜ ਸਰੂਪ ਦਇਆਲ ਮੁਰਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ वह मुरारि तो बड़ा चतुर, सुन्दर रूप वाला एवं बड़ा ही दयालु है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਤੁ ਸੀਗਾਰੁ ਭਉ ਅੰਜਨੁ ਪਾਇਆ ॥ मैंने सत्य का श्रृंगार किया है और उसके प्रेम-भय का सुरमा अपनी आंखों में डाल लिया है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਤੰਬੋਲੁ ਮੁਖਿ ਖਾਇਆ ॥ मैंने अमृतमयी नाम रूपी पान को अपने मुख से खाया है।
ਕੰਗਨ ਬਸਤ੍ਰ ਗਹਨੇ ਬਨੇ ਸੁਹਾਵੇ ॥ अब मेरे (सत्य के श्रृंगार से सुसज्जित) कगन, वस्त्र एवं आभूषण बहुत सुन्दर लगते हैं।
ਧਨ ਸਭ ਸੁਖ ਪਾਵੈ ਜਾਂ ਪਿਰੁ ਘਰਿ ਆਵੈ ॥੨॥ हे सखी ! जीव-स्त्री तो ही सर्व सुख पाती है, जब उसका पति-प्रभु उसके हृदय-घर में आ बसता है। २॥
ਗੁਣ ਕਾਮਣ ਕਰਿ ਕੰਤੁ ਰੀਝਾਇਆ ॥ मैंने शुभ गुणों का जादू-टोना करके अपने पति-परमेश्वर को प्रसन्न कर लिया है।
ਵਸਿ ਕਰਿ ਲੀਨਾ ਗੁਰਿ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥ गुरु ने मेरा भ्रम दूर कर दिया तो ही मैंने उसे अपने वश में कर लिया।
ਸਭ ਤੇ ਊਚਾ ਮੰਦਰੁ ਮੇਰਾ ॥ मेरा हृदय रूपी मन्दिर सर्वोत्तम बन गया है।
ਸਭ ਕਾਮਣਿ ਤਿਆਗੀ ਪ੍ਰਿਉ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਮੇਰਾ ॥੩॥ मेरे प्रियतम-प्रभु ने अन्य सब जीव-स्त्रियों को छोड़कर मुझे अपना बना लिया है॥ ३॥
ਪ੍ਰਗਟਿਆ ਸੂਰੁ ਜੋਤਿ ਉਜੀਆਰਾ ॥ जब प्रभु रूपी सूर्य मेरे हृदय में उदय हो गया तो उसकी ज्योति का उजाला हो गया।
ਸੇਜ ਵਿਛਾਈ ਸਰਧ ਅਪਾਰਾ ॥ उसके लिए मैंने हृदय रूपी सेज बिछाई है।
ਨਵ ਰੰਗ ਲਾਲੁ ਸੇਜ ਰਾਵਣ ਆਇਆ ॥ नवरंग प्रियतम प्रभु रमण करने के लिए मेरी हृदय रूपी सेज पर आ गया है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਪਿਰ ਧਨ ਮਿਲਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੪॥੪॥ हे नानक ! जीव-स्त्री ने पति-प्रभु से मिलकर सुख पा लिया है॥ ४॥ ४॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सूही महला ५ ॥
ਉਮਕਿਓ ਹੀਉ ਮਿਲਨ ਪ੍ਰਭ ਤਾਈ ॥ प्रभु-मिलन,के लिए मेरा हृदय चाव से भर गया और
ਖੋਜਤ ਚਰਿਓ ਦੇਖਉ ਪ੍ਰਿਅ ਜਾਈ ॥ मैं उसे खोजने के लिए चल पड़ी हूँ ताकि जाकर अपने प्रियवर को देख सकूं।
ਸੁਨਤ ਸਦੇਸਰੋ ਪ੍ਰਿਅ ਗ੍ਰਿਹਿ ਸੇਜ ਵਿਛਾਈ ॥ अपने प्रिय-प्रभु के आगमन का संदेश सुनकर मैंने अपने हृदय रूपी घर में सेज बिछा दी।
ਭ੍ਰਮਿ ਭ੍ਰਮਿ ਆਇਓ ਤਉ ਨਦਰਿ ਨ ਪਾਈ ॥੧॥ मैं भटक-भटक कर लौट आई हूँ परन्तु वह मुझे दिखाई नहीं दिया ॥ १॥
ਕਿਨ ਬਿਧਿ ਹੀਅਰੋ ਧੀਰੈ ਨਿਮਾਨੋ ॥ किस विधि द्वारा मेरे इस मायूस हृदय को धीरज होवे ?
ਮਿਲੁ ਸਾਜਨ ਹਉ ਤੁਝੁ ਕੁਰਬਾਨੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे मेरे साजन ! मुझे आकर मिलो, मैं तुझ पर कुर्बान जाती हूँ॥ १॥ रहाउ ॥
ਏਕਾ ਸੇਜ ਵਿਛੀ ਧਨ ਕੰਤਾ ॥ जीव-स्त्री एवं पति-प्रभु के लिए एक सेज बिछी हुई है।
ਧਨ ਸੂਤੀ ਪਿਰੁ ਸਦ ਜਾਗੰਤਾ ॥ जीव-स्त्री अज्ञानता की निद्रा में सोई रहती है मगर पति-प्रभु हमेशा ज्ञान में जागता रहता है।
ਪੀਓ ਮਦਰੋ ਧਨ ਮਤਵੰਤਾ ॥ वह मोह-माया रूपी मदिरा-पान करके मतवाली हो गई है।
ਧਨ ਜਾਗੈ ਜੇ ਪਿਰੁ ਬੋਲੰਤਾ ॥੨॥ यदि पति-प्रभु उसे बोलकर जगा दे तो ही वह अज्ञानता की निद्रा से जागती है॥ २॥
ਭਈ ਨਿਰਾਸੀ ਬਹੁਤੁ ਦਿਨ ਲਾਗੇ ॥ हे सखी ! उस पति-प्रभु को खोजते हुए बहुत दिन बीत गए हैं और अब मैं निराश हो गई हूँ।
ਦੇਸ ਦਿਸੰਤਰ ਮੈ ਸਗਲੇ ਝਾਗੇ ॥ मैंने देश एवं प्रदेश खोज कर देख लिए हैं।


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