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ਹਰਿ ਆਪੇ ਪੰਚ ਤਤੁ ਬਿਸਥਾਰਾ ਵਿਚਿ ਧਾਤੂ ਪੰਚ ਆਪਿ ਪਾਵੈ ॥
उस परमात्मा ने स्वयं आकाश, वायु अग्नि, जल एवं पृथ्वी इन पाँच तत्वों का जगत प्रसार किया है और वह स्वयं ही इसमें काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार रूपी पाँच विकार डालता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲੇ ਆਪੇ ਹਰਿ ਆਪੇ ਝਗਰੁ ਚੁਕਾਵੈ ॥੨॥੩॥
हे नानक ! परमात्मा स्वयं ही अपने भक्तों को सतगुरु से मिलाता है और वह स्वयं ही विषय-विकारों का झगड़ा मिटा देता है। २॥ ३॥
ਬੈਰਾੜੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
बैराड़ी महला ४ ॥
ਜਪਿ ਮਨ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਨਿਸਤਾਰਾ ॥
हे मेरे मन ! राम का नाम जप, चूंकि इससे ही मोक्ष की उपलब्धि होती है।
ਕੋਟ ਕੋਟੰਤਰ ਕੇ ਪਾਪ ਸਭਿ ਖੋਵੈ ਹਰਿ ਭਵਜਲੁ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राम का नाम करोड़ों ही जन्मों के समस्त पाप नष्ट कर देता है और मनुष्य को भवसागर से पार कर देता है ॥१॥ रहाउ ॥
ਕਾਇਆ ਨਗਰਿ ਬਸਤ ਹਰਿ ਸੁਆਮੀ ਹਰਿ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਨਿਰੰਕਾਰਾ ॥
जगत का स्वामी प्रभु मनुष्य के शरीर रूपी नगर में ही रहता है और वह निर्भय, निर्वैर एवं निराकार है।
ਹਰਿ ਨਿਕਟਿ ਬਸਤ ਕਛੁ ਨਦਰਿ ਨ ਆਵੈ ਹਰਿ ਲਾਧਾ ਗੁਰ ਵੀਚਾਰਾ ॥੧॥
परमात्मा हमारे समीप ही रहता है, परन्तु हमें कुछ भी दिखाई नहीं देता। गुरु के उपदेश द्वारा ही परमात्मा प्राप्त होता है॥१॥
ਹਰਿ ਆਪੇ ਸਾਹੁ ਸਰਾਫੁ ਰਤਨੁ ਹੀਰਾ ਹਰਿ ਆਪਿ ਕੀਆ ਪਾਸਾਰਾ ॥
परमात्मा स्वयं ही साहूकार, स्वयं ही सर्राफ, स्वयं ही रत्न एवं स्वयं ही अनमोल हीरा है और उसने स्वयं ही सृष्टि का प्रसार किया हुआ है।
ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਸੁ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਿਹਾਝੇ ਸੋ ਸਾਹੁ ਸਚਾ ਵਣਜਾਰਾ ॥੨॥੪॥
हे नानक ! जिस पर वह अपनी कृपा करता है, वही हरि-नाम को खरीदता है और वही सच्चा साहूकार एवं सच्चा व्यापारी है। २ । ४ ॥
ਬੈਰਾੜੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
बैराड़ी महला ४ ॥
ਜਪਿ ਮਨ ਹਰਿ ਨਿਰੰਜਨੁ ਨਿਰੰਕਾਰਾ ॥
हे मन ! निरंजन एवं निराकार परमात्मा का जाप करो।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਹਰਿ ਧਿਆਈਐ ਸੁਖਦਾਤਾ ਜਾ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सदा-सर्वदा सुख देने वाले परमेश्वर का ही ध्यान-मनन करना चाहिए, जिसका कोई अन्त एवं आरपार नहीं है ॥१॥ रहाउ ॥
ਅਗਨਿ ਕੁੰਟ ਮਹਿ ਉਰਧ ਲਿਵ ਲਾਗਾ ਹਰਿ ਰਾਖੈ ਉਦਰ ਮੰਝਾਰਾ ॥
माँ के उदर में ईश्वर ही जीव की रक्षा करता है, जहाँ वह जठराग्नि के कुण्ड में उल्टे मुँह पड़ा हुआ उसमे अपनी सुरति लगाकर रखता है।
ਸੋ ਐਸਾ ਹਰਿ ਸੇਵਹੁ ਮੇਰੇ ਮਨ ਹਰਿ ਅੰਤਿ ਛਡਾਵਣਹਾਰਾ ॥੧॥
है मन ! सो ऐसे ईश्वर की उपासना करो, क्योकि जीवन के अन्तिम क्षणों में एक वही जीव को यम से स्वतंत्र कराने वाला है। १॥
ਜਾ ਕੈ ਹਿਰਦੈ ਬਸਿਆ ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਤਿਸੁ ਜਨ ਕਉ ਕਰਹੁ ਨਮਸਕਾਰਾ ॥
जिस महापुरुष के हृदय में मेरा परमेश्वर निवास कर गया है, उसे सदैव ही नमन करो।
ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਜਪੁ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰਾ ॥੨॥੫॥
हे नानक ! परमात्मा का नाम ही हमारे जीवन का आधार है परन्तु परमात्मा का सिमरन उसकी कृपा से ही प्राप्त होता ॥२॥५॥
ਬੈਰਾੜੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
बैराड़ी महला ४ ॥
ਜਪਿ ਮਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਤ ਧਿਆਇ ॥
हे मेरे मन ! ईश्वर का जाप करो और नित्य ही उसके नाम का ध्यान करते रहो।
ਜੋ ਇਛਹਿ ਸੋਈ ਫਲੁ ਪਾਵਹਿ ਫਿਰਿ ਦੂਖੁ ਨ ਲਾਗੈ ਆਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
उसका ध्यान करने से जो भी कामना होती है, वही फल प्राप्त हो जाता है और फिर से कोई भी दु:ख आकर नहीं लगता ॥ १ ॥ रहाउ ॥
ਸੋ ਜਪੁ ਸੋ ਤਪੁ ਸਾ ਬ੍ਰਤ ਪੂਜਾ ਜਿਤੁ ਹਰਿ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗਾਇ ॥
जिससे ईश्वर की प्रीति लग जाती है, वही जप, तप, तपस्या, व्रत एवं पूजा है।
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਹੋਰ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਭ ਝੂਠੀ ਇਕ ਖਿਨ ਮਹਿ ਬਿਸਰਿ ਸਭ ਜਾਇ ॥੧॥
ईश्वर से प्रीति के सिवाय शेष सारी प्रीति झूठी है जो एक क्षण में ही सब भूल जाती है। १॥
ਤੂ ਬੇਅੰਤੁ ਸਰਬ ਕਲ ਪੂਰਾ ਕਿਛੁ ਕੀਮਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਇ ॥
हे ईश्वर ! तू बेअंत एवं सर्वकला सम्पूर्ण है और तेरा मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।
ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੀ ਹਰਿ ਜੀਉ ਭਾਵੈ ਤਿਵੈ ਛਡਾਇ ॥੨॥੬॥
नानक वंदना करता है कि हे परमेश्वर ! मैं तेरी शरण में आया हूँ, जैसे तुझे उपयुक्त लगता है, वैसे ही मुझे बन्धनों से छुड़ा लो ॥ २॥ ६॥
ਰਾਗੁ ਬੈਰਾੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧
रागु बैराड़ी महला ५ घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਸੰਤ ਜਨਾ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਜਸੁ ਗਾਇਓ ॥
संतजनों के संग मिलकर मैंने भगवान का ही यशगान किया है और
ਕੋਟਿ ਜਨਮ ਕੇ ਦੂਖ ਗਵਾਇਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अपने करोड़ों जन्मों के दु:ख दूर कर लिए हैं। १॥ रहाउ॥
ਜੋ ਚਾਹਤ ਸੋਈ ਮਨਿ ਪਾਇਓ ॥
मन में जो भी अभिलाषा थी, वही कुछ प्राप्त कर लिया है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦਿਵਾਇਓ ॥੧॥
भगवान ने कृपा करके (संतों से) मुझे अपना नाम दिलवा दिया है॥१॥
ਸਰਬ ਸੂਖ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਵਡਾਈ ॥
हरि-नाम की बड़ाई करने से लोक एवं परलोक में बड़ी शोभा एवं सर्व सुख प्राप्त होते हैं।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਨਾਨਕ ਮਤਿ ਪਾਈ ॥੨॥੧॥੭॥
हे नानक ! गुरु की कृपा से ही मुझे सुमति प्राप्त हुई है॥ २॥ १॥ ७॥