Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 717

Page 717

ਸਾਂਤਿ ਸਹਜ ਸੂਖ ਮਨਿ ਉਪਜਿਓ ਕੋਟਿ ਸੂਰ ਨਾਨਕ ਪਰਗਾਸ ॥੨॥੫॥੨੪॥ हे नानक ! मेरे मन में करोड़ों सूर्य जितना प्रभु ज्योति का प्रकाश हो गया है और मन में सहज सुख एवं शांति उत्पन्न हो गई है॥ २॥ ५ ॥ २४॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ टोडी महला ५ ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ॥ हे पतितपावन परमात्मा !
ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਮਾਨ ਸੁਖਦਾਤਾ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਮਨ ਕੋ ਭਾਵਨ ॥ ਰਹਾਉ ॥ तू ही जीवों को प्राण, मान-सम्मान एवं सुख देने वाला है। तू अंतर्यामी ही हमारे मन को भाया है|रहाउ॥
ਸੁੰਦਰੁ ਸੁਘੜੁ ਚਤੁਰੁ ਸਭ ਬੇਤਾ ਰਿਦ ਦਾਸ ਨਿਵਾਸ ਭਗਤ ਗੁਨ ਗਾਵਨ ॥ हे प्रभु! तू बहुत सुन्दर, समझदार, चतुर एवं सब कुछ जानने वाला है। तू अपने दास के हृदय में निवास करता है और तेरे भक्त हमेशा ही तेरे गुण गाते रहते हैं।
ਨਿਰਮਲ ਰੂਪ ਅਨੂਪ ਸੁਆਮੀ ਕਰਮ ਭੂਮਿ ਬੀਜਨ ਸੋ ਖਾਵਨ ॥੧॥ हे मेरे स्वामी ! तेरा रूप बड़ा निर्मल एवं अनूप है। मनुष्य का शरीर कर्मभूमि है और वह जो कुछ भी अच्छा-बुरा इसमें बोता है, वह वही कुछ खाता है॥१॥
ਬਿਸਮਨ ਬਿਸਮ ਭਏ ਬਿਸਮਾਦਾ ਆਨ ਨ ਬੀਓ ਦੂਸਰ ਲਾਵਨ ॥ मैं उसकी आश्चर्यजनक लीलाएँ देखकर बहुत चकित हो गया हूँ तथा उस प्रभु के बराबर मैं किसी अन्य को नहीं जानता।
ਰਸਨਾ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਜਸੁ ਜੀਵਾ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਸਦਾ ਬਲਿ ਜਾਵਨ ॥੨॥੬॥੨੫॥ मैं तो अपनी रसना से उस प्रभु का भजन-सिमरन करके ही जीवित रहता हूँ और दास नानक तो सदैव ही उस पर कुर्बान जाता है ॥२॥६॥२५॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ टोडी महला ५ ॥
ਮਾਈ ਮਾਇਆ ਛਲੁ ॥ हे माँ ! यह माया केवल छल ही है।
ਤ੍ਰਿਣ ਕੀ ਅਗਨਿ ਮੇਘ ਕੀ ਛਾਇਆ ਗੋਬਿਦ ਭਜਨ ਬਿਨੁ ਹੜ ਕਾ ਜਲੁ ॥ ਰਹਾਉ ॥ गोविन्द के भजन के बिना यह बाढ़ के जल, घास फूस की अग्नि एवं बादलों की छाया मात्र है। रहाउ॥
ਛੋਡਿ ਸਿਆਨਪ ਬਹੁ ਚਤੁਰਾਈ ਦੁਇ ਕਰ ਜੋੜਿ ਸਾਧ ਮਗਿ ਚਲੁ ॥ इसलिए अपनी अधिकतर चतुराई एवं बुद्धिमता को छोड़कर दोनों हाथ जोड़कर साधु-संतों के मार्ग पर चलो।
ਸਿਮਰਿ ਸੁਆਮੀ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਮਾਨੁਖ ਦੇਹ ਕਾ ਇਹੁ ਊਤਮ ਫਲੁ ॥੧॥ मनुष्य शरीर का तो यही उत्तम फल है की उस अंतरयामी परमेश्वर का ही ध्यान-सिमरन करो। ॥ १॥
ਬੇਦ ਬਖਿਆਨ ਕਰਤ ਸਾਧੂ ਜਨ ਭਾਗਹੀਨ ਸਮਝਤ ਨਹੀ ਖਲੁ ॥ वेद एवं साधु-महात्मा भी यही बखान करते हैं किन्तु भाग्यहीन मूर्ख मनुष्य इस भेद को समझता नहीं।
ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਰਾਚੇ ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਸਿਮਰਨਿ ਦਹਨ ਭਏ ਮਲ ॥੨॥੭॥੨੬॥ हे नानक ! भक्तजन प्रेम-भक्ति में ही लीन रहते है और भगवान के सिमरन से उनके पापो की मैल जल गयी है॥ २॥ ७ ॥ २६ ॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ टोडी महला ५ ॥
ਮਾਈ ਚਰਨ ਗੁਰ ਮੀਠੇ ॥ हे मेरी माई ! गुरु के चरण मुझे बड़े मीठे लगते हैं।
ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਦੇਵੈ ਪਰਮੇਸਰੁ ਕੋਟਿ ਫਲਾ ਦਰਸਨ ਗੁਰ ਡੀਠੇ ॥ ਰਹਾਉ ॥ अहोभाग्य से परमेश्वर गुरु-चरणों का स्नेह प्रदान करता है, गुरु के दर्शन करने से मनुष्य को करोड़ों फल मिल जाते हैं।रहाउ॥
ਗੁਨ ਗਾਵਤ ਅਚੁਤ ਅਬਿਨਾਸੀ ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਬਿਨਸੇ ਮਦ ਢੀਠੇ ॥ अच्युत अविनाशी परमेश्वर का स्तुतिगान करने से काम एवं क्रोध रूप ढीठ विकारों के मद नाश हो गए हैं।
ਅਸਥਿਰ ਭਏ ਸਾਚ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਜਨਮ ਮਰਨ ਬਾਹੁਰਿ ਨਹੀ ਪੀਠੇ ॥੧॥ सत्य के प्रेम-रंग में मग्न हुए जिज्ञासु अटल हो गए हैं और वे बार-बार जीवन एवं मृत्यु के चक्र में नहीं पड़े।१॥
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਭਜਨ ਰੰਗ ਰਸ ਜੇਤੇ ਸੰਤ ਦਇਆਲ ਜਾਨੇ ਸਭਿ ਝੂਠੇ ॥ भगवान के भजन के बिना जितने भी रस एवं रंग हैं, उन सबको दयालु संत क्षणभंगुर एवं झूठा ही मानते हैं।
ਨਾਮ ਰਤਨੁ ਪਾਇਓ ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਬਿਹੂਨ ਚਲੇ ਸਭਿ ਮੂਠੇ ॥੨॥੮॥੨੭॥ हे नानक ! भक्तजनों ने नाम रत्न को ही पाया है परन्तु मोहिनी माया में लिप्त नामविहीन मनुष्य जगत से व्यर्थ ही चले गए हैं॥२॥८॥२७॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ टोडी महला ५ ॥
ਸਾਧਸੰਗਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਚਿਤਾਰਾ ॥ मैंने साधुओं की संगति में ईश्वर का नाम-स्मरण किया है,
ਸਹਜਿ ਅਨੰਦੁ ਹੋਵੈ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਅੰਕੁਰੁ ਭਲੋ ਹਮਾਰਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥ जिससे अब मेरे मन में दिन-रात सहज आनंद बना रहता है और मेरे कर्मों का शुभ अंकुर फूट गया है। रहाउ॥
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਭੇਟਿਓ ਬਡਭਾਗੀ ਜਾ ਕੋ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰਾ ॥ बड़ी तकदीर से मुझे पूर्ण गुरु मिला है, जिसका न कोई अन्त है और न ही कोई ओर-छोर है।
ਕਰੁ ਗਹਿ ਕਾਢਿ ਲੀਓ ਜਨੁ ਅਪੁਨਾ ਬਿਖੁ ਸਾਗਰ ਸੰਸਾਰਾ ॥੧॥ इस विष रूपी संसार-सागर में से गुरु ने हाथ पकड़कर अपने सेवक को बाहर निकाल लिया है।१॥
ਜਨਮ ਮਰਨ ਕਾਟੇ ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਬਹੁੜਿ ਨ ਸੰਕਟ ਦੁਆਰਾ ॥ गुरु के वचनों द्वारा मेरे जन्म-मरण के बन्धन कट गए हैं और अब मुझे पुन: संकट का द्वार नहीं देखना पड़ेगा।
ਨਾਨਕ ਸਰਨਿ ਗਹੀ ਸੁਆਮੀ ਕੀ ਪੁਨਹ ਪੁਨਹ ਨਮਸਕਾਰਾ ॥੨॥੯॥੨੮॥ हे नानक ! मैंने तो अपने स्वामी प्रभु की शरण ली है और मैं उसे बार-बार नमन करता हूँ। ॥२॥९॥२८॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ टोडी महला ५ ॥
ਮਾਈ ਮੇਰੇ ਮਨ ਕੋ ਸੁਖੁ ॥ हे माँ ! मेरे मन को सुख मिल गया है।
ਕੋਟਿ ਅਨੰਦ ਰਾਜ ਸੁਖੁ ਭੁਗਵੈ ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਬਿਨਸੈ ਸਭ ਦੁਖੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ भगवान का सिमरन करने से सभी दु:ख विनष्ट हो गए हैं और यह मन राज के करोड़ों आनंद एवं सुख भोगता है।१॥रहाउ॥
ਕੋਟਿ ਜਨਮ ਕੇ ਕਿਲਬਿਖ ਨਾਸਹਿ ਸਿਮਰਤ ਪਾਵਨ ਤਨ ਮਨ ਸੁਖ ॥ ईश्वर का सिमरन करने से करोड़ों जन्म के पाप नाश हो जाते हैं, इससे शरीर पावन हो जाता है और मन को भी बड़ा सुख मिलता है।
ਦੇਖਿ ਸਰੂਪੁ ਪੂਰਨੁ ਭਈ ਆਸਾ ਦਰਸਨੁ ਭੇਟਤ ਉਤਰੀ ਭੁਖ ॥੧॥ भगवान का सुन्दर स्वरूप देखकर मेरी आशा पूरी हो गई है तथा उसके दर्शन करके मेरी भूख मिट गई है॥१॥
ਚਾਰਿ ਪਦਾਰਥ ਅਸਟ ਮਹਾ ਸਿਧਿ ਕਾਮਧੇਨੁ ਪਾਰਜਾਤ ਹਰਿ ਹਰਿ ਰੁਖੁ ॥ मेरे लिए तो हरि-परमेश्वर ही चार पदार्थ-धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष, आठ महासिद्धियों- अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशता, वशिता, कामधेनु एवं पारिजात वृक्ष है।
ਨਾਨਕ ਸਰਨਿ ਗਹੀ ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਜਨਮ ਮਰਨ ਫਿਰਿ ਗਰਭ ਨ ਧੁਖੁ ॥੨॥੧੦॥੨੯॥ हे नानक ! मैंने तो सुखों के सागर भगवान की शरण पकड़ ली है। अब मेरा जन्म-मरण मिट गया है और अब मुझे गर्भ के दु:ख में नहीं पड़ना पड़ेगा। २ ॥ १०॥ २६॥


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