Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 712

Page 712

ਬਿਨੁ ਸਿਮਰਨ ਜੋ ਜੀਵਨੁ ਬਲਨਾ ਸਰਪ ਜੈਸੇ ਅਰਜਾਰੀ ॥ बिनु सिमरन जो जीवनु बलना सरप जैसे अरजारी ॥ भगवान् के सिमरन के बिना जीना वासनाओं की अग्नि में जलने की भांति है, जिस तरह एक सांप अपने आंतरिक जहर को पालता हुआ लम्बी उम्र तक जहर की जलन में जलता रहता है।
ਨਵ ਖੰਡਨ ਕੋ ਰਾਜੁ ਕਮਾਵੈ ਅੰਤਿ ਚਲੈਗੋ ਹਾਰੀ ॥੧॥ नव खंडन को राजु कमावै अंति चलैगो हारी ॥१॥ चाहे मनुष्य समूचे विश्व को जीतकर शासन कर ले परन्तु सिमरन के बिना अंत में वह जीवन की बाजी हार कर चला जाएगा ॥ १॥
ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਗੁਣ ਤਿਨ ਹੀ ਗਾਏ ਜਾ ਕਉ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ॥ गुण निधान गुण तिन ही गाए जा कउ किरपा धारी ॥ हे नानक ! जिस पर उसने अपनी कृपा-दृष्टि की है, उसने ही गुणों के भण्डार परमात्मा का गुणगान किया है।
ਸੋ ਸੁਖੀਆ ਧੰਨੁ ਉਸੁ ਜਨਮਾ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥੨॥੨॥ सो सुखीआ धंनु उसु जनमा नानक तिसु बलिहारी ॥२॥२॥ वास्तव में वही सुखी है और उसका ही जीवन धन्य है तथा मैं उस पर ही न्यौछावर होता हूँ॥ २॥ २॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨ ਚਉਪਦੇ टोडी महला ५ घरु २ चउपदे राग तोड़ी, पंचम गुरु, दूसरी ताल, चार-पद :
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਧਾਇਓ ਰੇ ਮਨ ਦਹ ਦਿਸ ਧਾਇਓ ॥ धाइओ रे मन दह दिस धाइओ ॥ यह चंचल मन माया के मोह में दसों दिशाओं की तरफ भटकता फिरता है।
ਮਾਇਆ ਮਗਨ ਸੁਆਦਿ ਲੋਭਿ ਮੋਹਿਓ ਤਿਨਿ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ਭੁਲਾਇਓ ॥ ਰਹਾਉ ॥ माइआ मगन सुआदि लोभि मोहिओ तिनि प्रभि आपि भुलाइओ ॥ रहाउ ॥ जो व्यक्ति सांसारिक धन-संपत्ति में लिप्त रहता है और लोभ के मोह में फँस जाता है, उसे ईश्वर स्वयं उस जीव को भटकने देते हैं। ॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਕਥਾ ਹਰਿ ਜਸ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਸਿਉ ਇਕੁ ਮੁਹਤੁ ਨ ਇਹੁ ਮਨੁ ਲਾਇਓ ॥ हरि कथा हरि जस साधसंगति सिउ इकु मुहतु न इहु मनु लाइओ ॥ एक पल के लिए भी कोई अपना मन ईश्वर के संदेश, उनकी स्तुति या संतों की संगति में केंद्रित नहीं कर पाता।
ਬਿਗਸਿਓ ਪੇਖਿ ਰੰਗੁ ਕਸੁੰਭ ਕੋ ਪਰ ਗ੍ਰਿਹ ਜੋਹਨਿ ਜਾਇਓ ॥੧॥ बिगसिओ पेखि रंगु कसु्मभ को पर ग्रिह जोहनि जाइओ ॥१॥ जैसे कुसुम का रंग शीघ्र ही मुरझा जाता है, वैसे ही वह दूसरों की संपत्ति देखकर क्षणिक मोह में पड़ जाता है। ॥ १॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਿਉ ਭਾਉ ਨ ਕੀਨੋ ਨਹ ਸਤ ਪੁਰਖੁ ਮਨਾਇਓ ॥ चरन कमल सिउ भाउ न कीनो नह सत पुरखु मनाइओ ॥ इस चंचल मन ने भगवान् के चरण-कमलों पर श्रद्धा धारण नहीं की और न ही सद्पुरुष को प्रसन्न किया है।
ਧਾਵਤ ਕਉ ਧਾਵਹਿ ਬਹੁ ਭਾਤੀ ਜਿਉ ਤੇਲੀ ਬਲਦੁ ਭ੍ਰਮਾਇਓ ॥੨॥ धावत कउ धावहि बहु भाती जिउ तेली बलदु भ्रमाइओ ॥२॥ इसके विपरीत, वह तेली के बैल की भाँति इधर-उधर भटकता रहता है और क्षणिक सांसारिक धन की लालसा में लगा रहता है। ॥ २॥
ਨਾਮ ਦਾਨੁ ਇਸਨਾਨੁ ਨ ਕੀਓ ਇਕ ਨਿਮਖ ਨ ਕੀਰਤਿ ਗਾਇਓ ॥ नाम दानु इसनानु न कीओ इक निमख न कीरति गाइओ ॥ इसके अतिरिक्त, वह न तो भगवान् को स्मरण करता है, न दान-पुण्य में संलग्न होता है, और न कभी भगवान् की स्तुति करता है।
ਨਾਨਾ ਝੂਠਿ ਲਾਇ ਮਨੁ ਤੋਖਿਓ ਨਹ ਬੂਝਿਓ ਅਪਨਾਇਓ ॥੩॥ नाना झूठि लाइ मनु तोखिओ नह बूझिओ अपनाइओ ॥३॥ यह विभिन्न प्रकार के झूठ अपनाकर अपने चित्त को प्रसन्न करने में लगा रहता है परन्तु अपने स्वरूप को बिल्कुल नहीं समझा ॥ ३॥
ਪਰਉਪਕਾਰ ਨ ਕਬਹੂ ਕੀਏ ਨਹੀ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਧਿਆਇਓ ॥ परउपकार न कबहू कीए नही सतिगुरु सेवि धिआइओ ॥ इसने कोई परोपकार भी नहीं किया, न ही गुरु की सेवा एवं ध्यान किया है।
ਪੰਚ ਦੂਤ ਰਚਿ ਸੰਗਤਿ ਗੋਸਟਿ ਮਤਵਾਰੋ ਮਦ ਮਾਇਓ ॥੪॥ पंच दूत रचि संगति गोसटि मतवारो मद माइओ ॥४॥ यह तो केवल कामादिक विकारों की संगति एवं गोष्ठी में मग्न होकर माया के नशे में ही मतवाला बना रहता है।॥ ४॥
ਕਰਉ ਬੇਨਤੀ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਵਛਲ ਸੁਣਿ ਆਇਓ ॥ करउ बेनती साधसंगति हरि भगति वछल सुणि आइओ ॥ हे हरि ! मैं विनती करता हूँ कि मुझे साध-संगत में मिला दो, आपको भक्तवत्सल जानकर ही मैं आपकी शरण में आया हूँ।
ਨਾਨਕ ਭਾਗਿ ਪਰਿਓ ਹਰਿ ਪਾਛੈ ਰਾਖੁ ਲਾਜ ਅਪੁਨਾਇਓ ॥੫॥੧॥੩॥ नानक भागि परिओ हरि पाछै राखु लाज अपुनाइओ ॥५॥१॥३॥ हे भगवान्! दास नानक आपके चरणों की ओर दौड़ता हुआ आया है, कृपा कर मुझे अपनाकर मेरी लाज बचा लें।॥ ५ ॥ १ ॥ ३ ॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ टोडी महला ५ ॥ राग तोडी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਮਾਨੁਖੁ ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਬਿਰਥਾ ਆਇਆ ॥ मानुखु बिनु बूझे बिरथा आइआ ॥ जो मनुष्य जीवन के उच्चतम उद्देश्य को नहीं समझता, उसका संसार में आगमन व्यर्थ माना जाता है।
ਅਨਿਕ ਸਾਜ ਸੀਗਾਰ ਬਹੁ ਕਰਤਾ ਜਿਉ ਮਿਰਤਕੁ ਓਢਾਇਆ ॥ ਰਹਾਉ ॥ अनिक साज सीगार बहु करता जिउ मिरतकु ओढाइआ ॥ रहाउ ॥ वह अनेक प्रकार की सजावट एवं बहुत प्रकार के श्रृंगार करता है परन्तु यह तो मृतक को सुन्दर वस्त्र पहनाने की भांति ही समझो।॥ रहाउ ॥
ਧਾਇ ਧਾਇ ਕ੍ਰਿਪਨ ਸ੍ਰਮੁ ਕੀਨੋ ਇਕਤ੍ਰ ਕਰੀ ਹੈ ਮਾਇਆ ॥ धाइ धाइ क्रिपन स्रमु कीनो इकत्र करी है माइआ ॥ जैसे कोई कंजूस इधर-उधर भाग दौड़ करके बड़े परिश्रम से धन एकत्रित करता है।
ਦਾਨੁ ਪੁੰਨੁ ਨਹੀ ਸੰਤਨ ਸੇਵਾ ਕਿਤ ਹੀ ਕਾਜਿ ਨ ਆਇਆ ॥੧॥ दानु पुंनु नही संतन सेवा कित ही काजि न आइआ ॥१॥ यदि वह कोई दान-पुण्य एवं संतों की सेवा में नहीं जुटता तो वह धन उसके किसी काम में नहीं आता ॥ १॥
ਕਰਿ ਆਭਰਣ ਸਵਾਰੀ ਸੇਜਾ ਕਾਮਨਿ ਥਾਟੁ ਬਨਾਇਆ ॥ करि आभरण सवारी सेजा कामनि थाटु बनाइआ ॥ जीवन के उद्देश्य को समझे बिना जीना, उस स्त्री के समान है जो स्वयं को असंख्य आभूषणों, शृंगार और विविध प्रकार की सजावटी वस्तुओं से तो अलंकृत करती है,
ਸੰਗੁ ਨ ਪਾਇਓ ਅਪੁਨੇ ਭਰਤੇ ਪੇਖਿ ਪੇਖਿ ਦੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੨॥ संगु न पाइओ अपुने भरते पेखि पेखि दुखु पाइआ ॥२॥ यदि उसे अपने प्रियतम का संयोग प्राप्त नहीं होता तो वह अपने श्रृंगारों को देख-देखकर बहुत दुःखी होती है।॥ २॥
ਸਾਰੋ ਦਿਨਸੁ ਮਜੂਰੀ ਕਰਤਾ ਤੁਹੁ ਮੂਸਲਹਿ ਛਰਾਇਆ ॥ सारो दिनसु मजूरी करता तुहु मूसलहि छराइआ ॥ मनुष्य सारा दिन मजदूरी करता रहा किन्तु वह तो व्यर्थ ही छिलके को मूसल से पीटता रहा।
ਖੇਦੁ ਭਇਓ ਬੇਗਾਰੀ ਨਿਆਈ ਘਰ ਕੈ ਕਾਮਿ ਨ ਆਇਆ ॥੩॥ खेदु भइओ बेगारी निआई घर कै कामि न आइआ ॥३॥ दूसरे की बेगार करने वाले मनुष्य की तरह उसे दुःख ही मिला है क्योंकि उसने अपने घर का कोई भी कार्य नहीं संवारा ॥ ३॥
ਭਇਓ ਅਨੁਗ੍ਰਹੁ ਜਾ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਕੋ ਤਿਸੁ ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਵਸਾਇਆ ॥ भइओ अनुग्रहु जा कउ प्रभ को तिसु हिरदै नामु वसाइआ ॥ जिस पर प्रभु की कृपा हो गई है, उसके हृदय में नाम का निवास हो गया है।
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਕੈ ਪਾਛੈ ਪਰਿਅਉ ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ॥੪॥੨॥੪॥ साधसंगति कै पाछै परिअउ जन नानक हरि रसु पाइआ ॥४॥२॥४॥ हे नानक ! जिसने साधुओं की संगति का अनुसरण किया है, उसे हरि-रस की उपलब्धि हो गई है॥ ४॥ २॥ ४॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ टोडी महला ५ ॥ राग तोडी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਿ ਬਸਹੁ ਰਿਦੈ ਹਰਿ ਨੀਤ ॥ क्रिपा निधि बसहु रिदै हरि नीत ॥ हे कृपानिधान परमात्मा ! सदैव मेरे हृदय में बसे रहो।
ਤੈਸੀ ਬੁਧਿ ਕਰਹੁ ਪਰਗਾਸਾ ਲਾਗੈ ਪ੍ਰਭ ਸੰਗਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥ ਰਹਾਉ ॥ तैसी बुधि करहु परगासा लागै प्रभ संगि प्रीति ॥ रहाउ ॥ मेरे हृदय में ऐसी बुद्धि का प्रकाश करो कि मेरी आप से प्रीति लग जाए॥ रहाउ ॥
ਦਾਸ ਤੁਮਾਰੇ ਕੀ ਪਾਵਉ ਧੂਰਾ ਮਸਤਕਿ ਲੇ ਲੇ ਲਾਵਉ ॥ दास तुमारे की पावउ धूरा मसतकि ले ले लावउ ॥ मैं आपके दास की चरण-धूलि प्राप्त करूँ और उसे लेकर अपने माथे पर लगाऊँ।
ਮਹਾ ਪਤਿਤ ਤੇ ਹੋਤ ਪੁਨੀਤਾ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨ ਗੁਨ ਗਾਵਉ ॥੧॥ महा पतित ते होत पुनीता हरि कीरतन गुन गावउ ॥१॥ हरि का भजन एवं गुणगान करने से मैं महापतित से पवित्र हो गया हूँ॥ १॥


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top