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ਮਨਿ ਵਸੰਦੜੋ ਸਚੁ ਸਹੁ ਨਾਨਕ ਹਭੇ ਡੁਖੜੇ ਉਲਾਹਿ ॥੨॥
हे नानक ! ऐसे ही यदि हम परम-सत्य परमेश्वर को अपने हृदय में बसा लें तो दु:खों के अम्बार समाप्त हो जाते हैं।॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਕੋਟਿ ਅਘਾ ਸਭਿ ਨਾਸ ਹੋਹਿ ਸਿਮਰਤ ਹਰਿ ਨਾਉ ॥
भगवान का नाम-सिमरन करने से करोड़ों पाप नाश हो जाते हैं।
ਮਨ ਚਿੰਦੇ ਫਲ ਪਾਈਅਹਿ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥
उसका स्तुतिगान करने से मनुष्य को मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਭੈ ਕਟੀਅਹਿ ਨਿਹਚਲ ਸਚੁ ਥਾਉ ॥
फिर जन्म एवं मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है और मनुष्य को अटल एवं शाश्वत स्थान मिल जाता है।
ਪੂਰਬਿ ਹੋਵੈ ਲਿਖਿਆ ਹਰਿ ਚਰਣ ਸਮਾਉ ॥
यदि मनुष्य की पूर्व से ही ऐसी तकदीर लिखी हुई हो तो वह भगवान के चरणों में समा जाता है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭ ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਨਾਨਕ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥੫॥
नानक का कथन है कि हे प्रभु ! अपनी कृपा करके मेरी रक्षा करो चूंकि मैं तो तुझ पर ही बलिहारी जाता हूँ॥ ५॥
ਸਲੋਕ ॥
श्लोक॥
ਗ੍ਰਿਹ ਰਚਨਾ ਅਪਾਰੰ ਮਨਿ ਬਿਲਾਸ ਸੁਆਦੰ ਰਸਹ ॥
जो इन्सान अपने जीवन में घर की सुन्दर रचना, मन के विलासों, स्वादों एवं भोग रसों में ही मग्न रहते हैं और
ਕਦਾਂਚ ਨਹ ਸਿਮਰੰਤਿ ਨਾਨਕ ਤੇ ਜੰਤ ਬਿਸਟਾ ਕ੍ਰਿਮਹ ॥੧॥
जो कभी भी भगवान का ध्यान-सिमरन नहीं करते, हे नानक ! इस प्रकार के व्यक्ति तो विष्ठा के ही कीड़े हैं॥ १ ॥
ਮੁਚੁ ਅਡੰਬਰੁ ਹਭੁ ਕਿਹੁ ਮੰਝਿ ਮੁਹਬਤਿ ਨੇਹ ॥
जिस इन्सान के पास काफी साज-सजावट एवं सब कुछ उपलब्ध है और उसके हृदय में शान-शौकत से ही प्यार-मोहब्बत बना हुआ है लेकिन
ਸੋ ਸਾਂਈ ਜੈਂ ਵਿਸਰੈ ਨਾਨਕ ਸੋ ਤਨੁ ਖੇਹ ॥੨॥
हे नानक ! यदि वह मालिक को भुला देता है तो उसका शरीर मात्र धूल के समान ही है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
ਸੁੰਦਰ ਸੇਜ ਅਨੇਕ ਸੁਖ ਰਸ ਭੋਗਣ ਪੂਰੇ ॥
इन्सान के पास चाहे सुन्दर शैय्या, जीवन के तमाम सुख तथा रसों का भोग करने के लिए पूर्ण साम्रगी है।
ਗ੍ਰਿਹ ਸੋਇਨ ਚੰਦਨ ਸੁਗੰਧ ਲਾਇ ਮੋਤੀ ਹੀਰੇ ॥
घर में चाहे स्वर्ण, चन्दन, सुगन्धि तथा पहनने हेतु हीरे-मोती उपलब्ध हैं।
ਮਨ ਇਛੇ ਸੁਖ ਮਾਣਦਾ ਕਿਛੁ ਨਾਹਿ ਵਿਸੂਰੇ ॥
वह चाहे मनोवांछित सुख का आनंद प्राप्त करता हो और उसे कोई भी चिन्ता न हो
ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵਈ ਵਿਸਟਾ ਕੇ ਕੀਰੇ ॥
परन्तु यदि वह प्रभु को याद नहीं करता तो वह विष्ठा के कीड़े समान ही है।
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਨਾਮ ਨ ਸਾਂਤਿ ਹੋਇ ਕਿਤੁ ਬਿਧਿ ਮਨੁ ਧੀਰੇ ॥੬॥
हरि-नाम के बिना इन्सान को जीवन में शांति प्राप्त नहीं होती। फिर नाम के अलावा अन्य किस उपाय द्वारा मन को धैर्य हो सकता है॥ ६ ॥
ਸਲੋਕ ॥
श्लोक॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਬਿਰਹੰ ਖੋਜੰਤ ਬੈਰਾਗੀ ਦਹ ਦਿਸਹ ॥
परमात्मा के सुन्दर चरण-कमलों के विरह की पीड़ा से वैरागी वैराग्यवान बनकर उसे दसों दिशाओं में ढूंढता रहता है।
ਤਿਆਗੰਤ ਕਪਟ ਰੂਪ ਮਾਇਆ ਨਾਨਕ ਆਨੰਦ ਰੂਪ ਸਾਧ ਸੰਗਮਹ ॥੧॥
हे नानक ! वह कपट रूप माया को त्याग देता है और आनंद रूपी संतों-महापुरुषों की पवित्र सभा में संगम करता है॥ १॥
ਮਨਿ ਸਾਂਈ ਮੁਖਿ ਉਚਰਾ ਵਤਾ ਹਭੇ ਲੋਅ ॥
मेरे मन में परमात्मा का नाम विद्यमान है, अपने मुख से उसका ही नाम उच्चरित करता हूँ और समस्त देशों में भ्रमण करता हूँ।
ਨਾਨਕ ਹਭਿ ਅਡੰਬਰ ਕੂੜਿਆ ਸੁਣਿ ਜੀਵਾ ਸਚੀ ਸੋਇ ॥੨॥
हे नानक ! जीवन के सभी आडम्बर झूठे हैं और परमात्मा की सच्ची कीर्ति सुनकर ही जीवित हूँ॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਬਸਤਾ ਤੂਟੀ ਝੁੰਪੜੀ ਚੀਰ ਸਭਿ ਛਿੰਨਾ ॥
जो इन्सान टूटी हुई झोपड़ी में रहता है और उसके वस्त्र भी फटे-पुराने हों,
ਜਾਤਿ ਨ ਪਤਿ ਨ ਆਦਰੋ ਉਦਿਆਨ ਭ੍ਰਮਿੰਨਾ ॥
जिसकी न श्रेष्ठ जाति है, न ही आदर-सत्कार है और जो उजाड़ स्थल में भटकता है,
ਮਿਤ੍ਰ ਨ ਇਠ ਧਨ ਰੂਪ ਹੀਣ ਕਿਛੁ ਸਾਕੁ ਨ ਸਿੰਨਾ ॥
जिसका न कोई मित्र अथवा शुभचिन्तक है, जो धन-दौलत एवं सौन्दर्य से विहीन है और जिसका कोई रिश्तेदार अथवा संबंधी भी नहीं,
ਰਾਜਾ ਸਗਲੀ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਕਾ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਮਨੁ ਭਿੰਨਾ ॥
लेकिन यदि उसका मन परमात्मा के नाम में मग्न है तो वह सारे संसार का राजा है।
ਤਿਸ ਕੀ ਧੂੜਿ ਮਨੁ ਉਧਰੈ ਪ੍ਰਭੁ ਹੋਇ ਸੁਪ੍ਰਸੰਨਾ ॥੭॥
उसकी चरण-धूलि से मन का कल्याण हो जाता है और प्रभु भी उस पर बड़ा प्रसन्न होता है॥ ७॥
ਸਲੋਕ ॥
श्लोक॥
ਅਨਿਕ ਲੀਲਾ ਰਾਜ ਰਸ ਰੂਪੰ ਛਤ੍ਰ ਚਮਰ ਤਖਤ ਆਸਨੰ ॥
अनेक लीलाओं, राज्य सुख, मनोरंजन, सौन्दर्य, सिर पर छत्र, चंवर, राजसिंहासन जैसे प्रपंचों में ही डूबे,
ਰਚੰਤਿ ਮੂੜ ਅਗਿਆਨ ਅੰਧਹ ਨਾਨਕ ਸੁਪਨ ਮਨੋਰਥ ਮਾਇਆ ॥੧॥
कुछ मूर्ख, अज्ञानी एवं अन्धे मनुष्य रहते है। हे नानक ! माया के ये मनोरथ एक स्वप्न के समान हैं॥ १॥
ਸੁਪਨੈ ਹਭਿ ਰੰਗ ਮਾਣਿਆ ਮਿਠਾ ਲਗੜਾ ਮੋਹੁ ॥
गुरु जी का फरमान है कि आदमी स्वप्न में ही सभी सुख भोगता रहता है और उसका मोह उसे बड़ा मीठा लगता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਵਿਹੂਣੀਆ ਸੁੰਦਰਿ ਮਾਇਆ ਧ੍ਰੋਹੁ ॥੨॥
किन्तु हे नानक ! नाम के बिना यह सुन्दर दिखने वाली माया छल कपट ही है॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਸੁਪਨੇ ਸੇਤੀ ਚਿਤੁ ਮੂਰਖਿ ਲਾਇਆ ॥
मूर्ख इन्सान का चित स्वप्नों में ही डूबा रहता है।
ਬਿਸਰੇ ਰਾਜ ਰਸ ਭੋਗ ਜਾਗਤ ਭਖਲਾਇਆ ॥
जब वह स्वप्न से जागता है तो उसे माया के प्रपंच-राज्य सुख, मनोरंजन तथा भोग-विलास इत्यादि भूल जाते हैं और वह मायूस हो जाता है।
ਆਰਜਾ ਗਈ ਵਿਹਾਇ ਧੰਧੈ ਧਾਇਆ ॥
इन्सान की सारी जिन्दगी संसार के धन्धों में भाग दौड़ करते ही बीत गई है।
ਪੂਰਨ ਭਏ ਨ ਕਾਮ ਮੋਹਿਆ ਮਾਇਆ ॥
माया के मोह में मग्न रहने के कारण जिस उद्देश्य से वह जीवन में आया था, उसका कार्य सम्पूर्ण नहीं हुआ।
ਕਿਆ ਵੇਚਾਰਾ ਜੰਤੁ ਜਾ ਆਪਿ ਭੁਲਾਇਆ ॥੮॥
सच तो यही है कि जब भगवान ने स्वयं ही उसे मोह-माया में भटकाया हुआ है तो जीव बेचारा भी क्या कर सकता है॥ ८॥
ਸਲੋਕ ॥
श्लोक॥
ਬਸੰਤਿ ਸ੍ਵਰਗ ਲੋਕਹ ਜਿਤਤੇ ਪ੍ਰਿਥਵੀ ਨਵ ਖੰਡਣਹ ॥
प्राणी चाहे स्वर्ग लोक में रहता हो, चाहे उसने पृथ्वी के नौ खण्डों पर भी विजय प्राप्त कर ली हो,
ਬਿਸਰੰਤ ਹਰਿ ਗੋਪਾਲਹ ਨਾਨਕ ਤੇ ਪ੍ਰਾਣੀ ਉਦਿਆਨ ਭਰਮਣਹ ॥੧॥
परन्तु यदि वह पृथ्वीपालक परमात्मा को विस्मृत कर देता है तो हे नानक ! वह भयानक वन में ही भटक रहा है॥ १॥
ਕਉਤਕ ਕੋਡ ਤਮਾਸਿਆ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵਸੁ ਨਾਉ ॥
हे नानक ! जिन्हें कौतुक, आनंद एवं खेल-तमाशों के कारण परमात्मा का नाम याद नहीं आता,
ਨਾਨਕ ਕੋੜੀ ਨਰਕ ਬਰਾਬਰੇ ਉਜੜੁ ਸੋਈ ਥਾਉ ॥੨॥
वे मनुष्य नरक में रहने वाले कुष्ठी समान हैं और उनका निवास स्थान भी उजाड़ समान है॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਮਹਾ ਭਇਆਨ ਉਦਿਆਨ ਨਗਰ ਕਰਿ ਮਾਨਿਆ ॥
यह जगत एक महाभयानक वन के समान है परन्तु मूर्ख जीव ने इसे सुन्दर नगर समझ लिया है और
ਝੂਠ ਸਮਗ੍ਰੀ ਪੇਖਿ ਸਚੁ ਕਰਿ ਜਾਨਿਆ ॥
झूठी सामग्री को देखकर उसने सत्य समझ लिया है।