Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 683

Page 683

ਮਹਾ ਕਲੋਲ ਬੁਝਹਿ ਮਾਇਆ ਕੇ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮੇਰੇ ਦੀਨ ਦਇਆਲ ॥ महा कलोल बुझहि माइआ के करि किरपा मेरे दीन दइआल ॥ हे मेरे दीन-दयालु प्रभु ! मुझ पर अपनी कृपा करो, ताकि मेरे मन में से माया के बड़े आनंद-कौतुक प्राप्त करने की तृष्णा बुझ जाए।
ਅਪਣਾ ਨਾਮੁ ਦੇਹਿ ਜਪਿ ਜੀਵਾ ਪੂਰਨ ਹੋਇ ਦਾਸ ਕੀ ਘਾਲ ॥੧॥ अपणा नामु देहि जपि जीवा पूरन होइ दास की घाल ॥१॥ मुझे अपना नाम प्रदान कीजिए, जिसका जाप करके मैं जीवित रहूँ और आपके दास की साधना सफल हो जाए॥१॥
ਸਰਬ ਮਨੋਰਥ ਰਾਜ ਸੂਖ ਰਸ ਸਦ ਖੁਸੀਆ ਕੀਰਤਨੁ ਜਪਿ ਨਾਮ ॥ सरब मनोरथ राज सूख रस सद खुसीआ कीरतनु जपि नाम ॥ हरि-कीर्तन करने एवं नाम का जाप करने से सदैव ही खुशियाँ बनी रहती हैं, सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं तथा राज के सभी सुख एवं आनंद प्राप्त हो जाते हैं।
ਜਿਸ ਕੈ ਕਰਮਿ ਲਿਖਿਆ ਧੁਰਿ ਕਰਤੈ ਨਾਨਕ ਜਨ ਕੇ ਪੂਰਨ ਕਾਮ ॥੨॥੨੦॥੫੧॥ जिस कै करमि लिखिआ धुरि करतै नानक जन के पूरन काम ॥२॥२०॥५१॥ हे नानक ! जिसके भाग्य में कर्ता-प्रभु ने प्रारम्भ से ही ऐसा लेख लिखा होता है, उस व्यक्ति के सब काम पूर्ण होते हैं॥२॥२०॥५१॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਃ ੫ ॥ धनासरी मः ५ ॥ राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜਨ ਕੀ ਕੀਨੀ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮਿ ਸਾਰ ॥ जन की कीनी पारब्रहमि सार ॥ पारब्रह्म ने अपने दास की देखरेख की है,
ਨਿੰਦਕ ਟਿਕਨੁ ਨ ਪਾਵਨਿ ਮੂਲੇ ਊਡਿ ਗਏ ਬੇਕਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ निंदक टिकनु न पावनि मूले ऊडि गए बेकार ॥१॥ रहाउ ॥ भक्तों की निंदा करने वाले टिक नहीं पाते; वे व्यर्थ होकर ऐसे उड़ जाते हैं, जैसे सूखे पत्ते हवा में बह जाते हैं। ॥१॥ रहाउ ॥
ਜਹ ਜਹ ਦੇਖਉ ਤਹ ਤਹ ਸੁਆਮੀ ਕੋਇ ਨ ਪਹੁਚਨਹਾਰ ॥ जह जह देखउ तह तह सुआमी कोइ न पहुचनहार ॥ जहाँ कहीं भी मैं देखता हूँ, वहाँ ही मेरे स्वामी प्रभु स्थित है और कोई भी उसकी बराबरी नहीं कर सकता।
ਜੋ ਜੋ ਕਰੈ ਅਵਗਿਆ ਜਨ ਕੀ ਹੋਇ ਗਇਆ ਤਤ ਛਾਰ ॥੧॥ जो जो करै अवगिआ जन की होइ गइआ तत छार ॥१॥ जो कोई भी दास की अवज्ञा करता है, वह तुरंत ही नष्ट हो गया है॥१॥
ਕਰਨਹਾਰੁ ਰਖਵਾਲਾ ਹੋਆ ਜਾ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰ ॥ करनहारु रखवाला होआ जा का अंतु न पारावार ॥ जिसका न कोई अन्त है, न ही कोई आर-पार है, वह सबके रचियता प्रभु स्वयं रखवाले बन गए है।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਰਖੇ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪੁਨੈ ਨਿੰਦਕ ਕਾਢੇ ਮਾਰਿ ॥੨॥੨੧॥੫੨॥ नानक दास रखे प्रभि अपुनै निंदक काढे मारि ॥२॥२१॥५२॥ हे नानक ! प्रभु ने अपने दास को बचा लिया है और निन्दकों को मार कर संगत में से बाहर निकाल दिया है॥२॥२१॥५२॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੯ ਪੜਤਾਲ धनासरी महला ५ घरु ९ पड़ताल राग धनश्री, पंचम गुरु, नवम ताल, अंश
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਹਰਿ ਚਰਨ ਸਰਨ ਗੋਬਿੰਦ ਦੁਖ ਭੰਜਨਾ ਦਾਸ ਅਪੁਨੇ ਕਉ ਨਾਮੁ ਦੇਵਹੁ ॥ हरि चरन सरन गोबिंद दुख भंजना दास अपुने कउ नामु देवहु ॥ हे दुःख नाश करने वाले गोविन्द ! हे हरि ! मैं आपके चरणों की शरण चाहता हूँ, अपने दास को अपना अमूल्य नाम प्रदान करो।
ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਪ੍ਰਭ ਧਾਰਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ਤਾਰਹੁ ਭੁਜਾ ਗਹਿ ਕੂਪ ਤੇ ਕਾਢਿ ਲੇਵਹੁ ॥ ਰਹਾਉ ॥ द्रिसटि प्रभ धारहु क्रिपा करि तारहु भुजा गहि कूप ते काढि लेवहु ॥ रहाउ ॥ हे प्रभु ! मुझ पर कृपा-दृष्टि करो; मुझे भवसागर में से पार कर दो और मेरी भुजा पकड़ कर अज्ञान के कुएँ में से निकाल लो॥ रहाउ ॥
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਕਰਿ ਅੰਧ ਮਾਇਆ ਕੇ ਬੰਧ ਅਨਿਕ ਦੋਖਾ ਤਨਿ ਛਾਦਿ ਪੂਰੇ ॥ काम क्रोध करि अंध माइआ के बंध अनिक दोखा तनि छादि पूरे ॥ काम, क्रोध के कारण मैं अन्धा होकर माया के बंधनों में फँसा हुआ हूँ और मेरे शरीर पर अनेक पाप पूर्णतया भरे हुए हैं।
ਪ੍ਰਭ ਬਿਨਾ ਆਨ ਨ ਰਾਖਨਹਾਰਾ ਨਾਮੁ ਸਿਮਰਾਵਹੁ ਸਰਨਿ ਸੂਰੇ ॥੧॥ प्रभ बिना आन न राखनहारा नामु सिमरावहु सरनि सूरे ॥१॥ प्रभु के अतिरिक्त अन्य कोई भी बंधनों से बचाने वाला नही हैं। हे शूरवीर प्रभु ! मैं आपकी शरण में आया हूँ, अंतः मुझसे अपने नाम का सिमरन करवाओ ॥१॥
ਪਤਿਤ ਉਧਾਰਣਾ ਜੀਅ ਜੰਤ ਤਾਰਣਾ ਬੇਦ ਉਚਾਰ ਨਹੀ ਅੰਤੁ ਪਾਇਓ ॥ पतित उधारणा जीअ जंत तारणा बेद उचार नही अंतु पाइओ ॥ हे ईश्वर ! आप पतितों का उद्वार करने वाले एवं जीव-जन्तुओं का कल्याण करने वाले हैं। वेदों का अध्ययन करने वाले पण्डित भी आपकी महिमा का अन्त नहीं पा सके।
ਗੁਣਹ ਸੁਖ ਸਾਗਰਾ ਬ੍ਰਹਮ ਰਤਨਾਗਰਾ ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਨਾਨਕ ਗਾਇਓ ॥੨॥੧॥੫੩॥ गुणह सुख सागरा ब्रहम रतनागरा भगति वछलु नानक गाइओ ॥२॥१॥५३॥ हे ब्रह्म ! आप गुणों एवं सुखों के सागर है और आप ही रत्नों की खान है। नानक ने तो भक्तवत्सल परमात्मा का ही स्तुतिगान किया है॥ २॥ १॥ ५३॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ धनासरी महला ५ ॥ राग धनश्री, पंचम गुरु ५ ॥
ਹਲਤਿ ਸੁਖੁ ਪਲਤਿ ਸੁਖੁ ਨਿਤ ਸੁਖੁ ਸਿਮਰਨੋ ਨਾਮੁ ਗੋਬਿੰਦ ਕਾ ਸਦਾ ਲੀਜੈ ॥ हलति सुखु पलति सुखु नित सुखु सिमरनो नामु गोबिंद का सदा लीजै ॥ सदा-सर्वदा गोविन्द का नाम जपना चाहिए; नाम-सिमरन से इहलोक एवं परलोक में भी नित्य ही सुख प्राप्त होता है।
ਮਿਟਹਿ ਕਮਾਣੇ ਪਾਪ ਚਿਰਾਣੇ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਮੁਆ ਜੀਜੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मिटहि कमाणे पाप चिराणे साधसंगति मिलि मुआ जीजै ॥१॥ रहाउ ॥ साधु-संगति में सम्मिलित होने से आध्यात्मिक रूप से मृत व्यक्ति भी जीवित हो जाता है अर्थात् शाक्त से गुरुमुख बन जाता है तथा उसके पूर्वकृत पाप भी मिट जाते हैं॥१॥ रहाउ॥
ਰਾਜ ਜੋਬਨ ਬਿਸਰੰਤ ਹਰਿ ਮਾਇਆ ਮਹਾ ਦੁਖੁ ਏਹੁ ਮਹਾਂਤ ਕਹੈ ॥ राज जोबन बिसरंत हरि माइआ महा दुखु एहु महांत कहै ॥ राज एवं यौवन में मनुष्य को भगवान् भूल जाता है। महापुरुष यही बात कहते हैं कि माया का मोह एक महा दुःख है।
ਆਸ ਪਿਆਸ ਰਮਣ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨ ਏਹੁ ਪਦਾਰਥੁ ਭਾਗਵੰਤੁ ਲਹੈ ॥੧॥ आस पिआस रमण हरि कीरतन एहु पदारथु भागवंतु लहै ॥१॥ मनुष्य को भगवान् का कीर्तन करने की अभिलाषा एवं प्यास लगी रहनी चाहिए परन्तु यह अनमोल पदार्थ कोई भाग्यवान् ही प्राप्त करता है॥ १॥
ਸਰਣਿ ਸਮਰਥ ਅਕਥ ਅਗੋਚਰਾ ਪਤਿਤ ਉਧਾਰਣ ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ॥ सरणि समरथ अकथ अगोचरा पतित उधारण नामु तेरा ॥ हे अगोचर एवं अकथनीय प्रभु ! आप अपने भक्तों को शरण देने में समर्थ है, आपका नाम पापियों का उद्धार करने वाला है।
ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਨਾਨਕ ਕੇ ਸੁਆਮੀ ਸਰਬਤ ਪੂਰਨ ਠਾਕੁਰੁ ਮੇਰਾ ॥੨॥੨॥੫੪॥ अंतरजामी नानक के सुआमी सरबत पूरन ठाकुरु मेरा ॥२॥२॥५४॥ हे नानक के स्वामी प्रभु ! आप अन्तर्यामी है। मेरा ठाकुर सर्वव्यापी है ॥२॥२॥५४॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧੨ धनासरी महला ५ घरु १२ राग धनश्री, पाँचवें गुरु, बारहवीं ताल:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਬੰਦਨਾ ਹਰਿ ਬੰਦਨਾ ਗੁਣ ਗਾਵਹੁ ਗੋਪਾਲ ਰਾਇ ॥ ਰਹਾਉ ॥ बंदना हरि बंदना गुण गावहु गोपाल राइ ॥ रहाउ ॥ भगवान् की हमेशा वन्दना करो, जगतपालक परमात्मा का गुणगान करो ॥ रहाउ ॥
ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਭੇਟੇ ਗੁਰਦੇਵਾ ॥ वडै भागि भेटे गुरदेवा ॥ सौभाग्य से ही गुरुदेव से भेंट होती है।
ਕੋਟਿ ਪਰਾਧ ਮਿਟੇ ਹਰਿ ਸੇਵਾ ॥੧॥ कोटि पराध मिटे हरि सेवा ॥१॥ भगवान् की भक्ति करने से करोड़ों ही अपराध मिट जाते हैं।॥१॥


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top