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ਅਉਖਧ ਮੰਤ੍ਰ ਮੂਲ ਮਨ ਏਕੈ ਮਨਿ ਬਿਸ੍ਵਾਸੁ ਪ੍ਰਭ ਧਾਰਿਆ ॥
अउखध मंत्र मूल मन एकै मनि बिस्वासु प्रभ धारिआ ॥
जगत् के मूल प्रभु के नाम रूपी मंत्र का सिमरन ही सभी रोगों की एकमात्र औषधि है। अपने मन में मैंने प्रभु के प्रति आस्था धारण कर ली है।
ਚਰਨ ਰੇਨ ਬਾਂਛੈ ਨਿਤ ਨਾਨਕੁ ਪੁਨਹ ਪੁਨਹ ਬਲਿਹਾਰਿਆ ॥੨॥੧੬॥
चरन रेन बांछै नित नानकु पुनह पुनह बलिहारिआ ॥२॥१६॥
नानक नित्य ही प्रभु की चरण-धूलि की कामना करता है और बार-बार उस पर बलिहारी जाता है॥ २॥ १६॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी महला ५ ॥
राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਮੇਰਾ ਲਾਗੋ ਰਾਮ ਸਿਉ ਹੇਤੁ ॥
मेरा लागो राम सिउ हेतु ॥
मेरा राम से प्रेम हो गया है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਰਾ ਸਦਾ ਸਹਾਈ ਜਿਨਿ ਦੁਖ ਕਾ ਕਾਟਿਆ ਕੇਤੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सतिगुरु मेरा सदा सहाई जिनि दुख का काटिआ केतु ॥१॥ रहाउ ॥
सतगुरु सदैव ही मेरा सहायक है, जिसने मेरे दुःख की जड़ ही काट दी है॥ १॥ रहाउ ॥
ਹਾਥ ਦੇਇ ਰਾਖਿਓ ਅਪੁਨਾ ਕਰਿ ਬਿਰਥਾ ਸਗਲ ਮਿਟਾਈ ॥
हाथ देइ राखिओ अपुना करि बिरथा सगल मिटाई ॥
उसने मुझे अपना बना कर अपना हाथ देकर मेरी रक्षा की है और मेरी सारी पीड़ा मिटा दी है।
ਨਿੰਦਕ ਕੇ ਮੁਖ ਕਾਲੇ ਕੀਨੇ ਜਨ ਕਾ ਆਪਿ ਸਹਾਈ ॥੧॥
निंदक के मुख काले कीने जन का आपि सहाई ॥१॥
भगवान् स्वयं अपने भक्तों के सहायक और आश्रयदाता होते हैं तथा उनकी निंदा करने वालों को अपमानित करते हैं। १
ਸਾਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਹੋਆ ਰਖਵਾਲਾ ਰਾਖਿ ਲੀਏ ਕੰਠਿ ਲਾਇ ॥
साचा साहिबु होआ रखवाला राखि लीए कंठि लाइ ॥
शाश्वत भगवान् अपने भक्तों के रक्षक हैं और उन्हें सदा अपने समीप रखकर उनकी रक्षा करते हैं।
ਨਿਰਭਉ ਭਏ ਸਦਾ ਸੁਖ ਮਾਣੇ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥੨॥੧੭॥
निरभउ भए सदा सुख माणे नानक हरि गुण गाइ ॥२॥१७॥
हे नानक ! भगवान् का गुणगान करने से निडर हो गया हूँ और हमेशा ही सुख की अनुभूति करता हूँ॥ २॥ १७॥
ਧਨਾਸਿਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासिरी महला ५ ॥
राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਅਉਖਧੁ ਤੇਰੋ ਨਾਮੁ ਦਇਆਲ ॥
अउखधु तेरो नामु दइआल ॥
हे दीनदयाल ! आपका नाम सर्व रोगों की औषधि है परन्तु
ਮੋਹਿ ਆਤੁਰ ਤੇਰੀ ਗਤਿ ਨਹੀ ਜਾਨੀ ਤੂੰ ਆਪਿ ਕਰਹਿ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मोहि आतुर तेरी गति नही जानी तूं आपि करहि प्रतिपाल ॥१॥ रहाउ ॥
परन्तु मैं, अभागा, आपकी सर्वोच्च आध्यात्मिक स्थिति को समझ नहीं पाया हूँ; आप ही मुझे जीविका प्रदान करते हैं। ॥ १॥ रहाउ॥
ਧਾਰਿ ਅਨੁਗ੍ਰਹੁ ਸੁਆਮੀ ਮੇਰੇ ਦੁਤੀਆ ਭਾਉ ਨਿਵਾਰਿ ॥
धारि अनुग्रहु सुआमी मेरे दुतीआ भाउ निवारि ॥
हे मेरे स्वामी ! मुझ पर अपनी कृपा करो और मेरे मन में से दैतभाव दूर कर दो।
ਬੰਧਨ ਕਾਟਿ ਲੇਹੁ ਅਪੁਨੇ ਕਰਿ ਕਬਹੂ ਨ ਆਵਹ ਹਾਰਿ ॥੧॥
बंधन काटि लेहु अपुने करि कबहू न आवह हारि ॥१॥
मेरे माया के बन्धन काट कर मुझे अपना सेवक बना लो, ताकि मैं जीवन की बाजी में कभी पराजित न होऊँ॥ १॥
ਤੇਰੀ ਸਰਨਿ ਪਇਆ ਹਉ ਜੀਵਾਂ ਤੂੰ ਸੰਮ੍ਰਥੁ ਪੁਰਖੁ ਮਿਹਰਵਾਨੁ ॥
तेरी सरनि पइआ हउ जीवां तूं सम्रथु पुरखु मिहरवानु ॥
हे प्रभु ! आप सर्वकला समर्थ एवं दयालु है तथा आपकी शरण लेने से ही मैं जीवित रहता हूँ।
ਆਠ ਪਹਰ ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਆਰਾਧੀ ਨਾਨਕ ਸਦ ਕੁਰਬਾਨੁ ॥੨॥੧੮॥
आठ पहर प्रभ कउ आराधी नानक सद कुरबानु ॥२॥१८॥
हे नानक ! मैं तो आठ प्रहर प्रभु की आराधना करता रहता हूँ और सदैव ही उस पर बलिहारी जाता हूँ॥२॥१८॥
ਰਾਗੁ ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫
रागु धनासरी महला ५
राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਹਾ ਹਾ ਪ੍ਰਭ ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ॥
हा हा प्रभ राखि लेहु ॥
हे भगवान, कृपया हमें बचाएं, हमें इन बुराइयों से बचाएं!
ਹਮ ਤੇ ਕਿਛੂ ਨ ਹੋਇ ਮੇਰੇ ਸ੍ਵਾਮੀ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਅਪੁਨਾ ਨਾਮੁ ਦੇਹੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हम ते किछू न होइ मेरे स्वामी करि किरपा अपुना नामु देहु ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे प्रभु, हम स्वयं बुराइयों से बच नहीं सकते; कृपादृष्टि कर हमें अपने पावन नाम से आशीर्वाद दें। ॥१॥ रहाउ ॥
ਅਗਨਿ ਕੁਟੰਬ ਸਾਗਰ ਸੰਸਾਰ ॥
अगनि कुट्मब सागर संसार ॥
मेरा कुटुंब संसार सागर के समान है,जिसमें जल के स्थान पर तृष्णा रूपी अग्नि भरी हुई है।
ਭਰਮ ਮੋਹ ਅਗਿਆਨ ਅੰਧਾਰ ॥੧॥
भरम मोह अगिआन अंधार ॥१॥
मोह, जो सांसारिक मोह और अज्ञान के अंधकार से भरा हुआ है, मन को भ्रमित कर देता है। ।॥१ ॥
ਊਚ ਨੀਚ ਸੂਖ ਦੂਖ ॥
ऊच नीच सूख दूख ॥
सभी सुख-सुविधाएँ मिलने पर व्यक्ति अहंकारी हो जाता है, और जब बुरे समय या दुःख आते हैं तो वह उदास हो जाता है।
ਧ੍ਰਾਪਸਿ ਨਾਹੀ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਭੂਖ ॥੨॥
ध्रापसि नाही त्रिसना भूख ॥२॥
मुझे सदैव ही माया की तृष्णा एवं भूख लगी रहती है और कभी भी संतुष्ट नहीं होता।॥ २॥
ਮਨਿ ਬਾਸਨਾ ਰਚਿ ਬਿਖੈ ਬਿਆਧਿ ॥
मनि बासना रचि बिखै बिआधि ॥
मेरे मन में वासना है और विषय विकारों में लीन होने से मुझे रोग लग गए हैं।
ਪੰਚ ਦੂਤ ਸੰਗਿ ਮਹਾ ਅਸਾਧ ॥੩॥
पंच दूत संगि महा असाध ॥३॥
माया के पाँच दूत-काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार सदैव ही मेरे साथ रहते हैं और ये बड़े असाध्य हैं अर्थात् मेरे वश में आने वाले नहीं हैं।॥ ३॥
ਜੀਅ ਜਹਾਨੁ ਪ੍ਰਾਨ ਧਨੁ ਤੇਰਾ ॥
जीअ जहानु प्रान धनु तेरा ॥
हे प्रभु ! ये सभी जीव, समूचा जगत्, प्राण एवं धन सभी तेरा ही है।
ਨਾਨਕ ਜਾਨੁ ਸਦਾ ਹਰਿ ਨੇਰਾ ॥੪॥੧॥੧੯॥
नानक जानु सदा हरि नेरा ॥४॥१॥१९॥
हे नानक ! भगवान् को हमेशा अपने समीप ही समझो।॥४॥१॥१६॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी महला ५ ॥
राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਦੀਨ ਦਰਦ ਨਿਵਾਰਿ ਠਾਕੁਰ ਰਾਖੈ ਜਨ ਕੀ ਆਪਿ ॥
दीन दरद निवारि ठाकुर राखै जन की आपि ॥
दीनों के दुःख निवृत्त करके ईश्वर स्वयं ही अपने सेवकों की लाज रखता है।
ਤਰਣ ਤਾਰਣ ਹਰਿ ਨਿਧਿ ਦੂਖੁ ਨ ਸਕੈ ਬਿਆਪਿ ॥੧॥
तरण तारण हरि निधि दूखु न सकै बिआपि ॥१॥
वह तो सुखों का भण्डार है, वह भवसागर में से पार कराने वाला जहाज है, इसलिए उसके भक्तजनों को कोई भी दु:ख प्रभावित नहीं कर सकता ॥१॥
ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਭਜਹੁ ਗੁਪਾਲ ॥
साधू संगि भजहु गुपाल ॥
साधु की पावन सभा में सम्मिलित होकर भगवान् का भजन करो।
ਆਨ ਸੰਜਮ ਕਿਛੁ ਨ ਸੂਝੈ ਇਹ ਜਤਨ ਕਾਟਿ ਕਲਿ ਕਾਲ ॥ ਰਹਾਉ ॥
आन संजम किछु न सूझै इह जतन काटि कलि काल ॥ रहाउ ॥
मैं किसी और रास्ते का विचार नहीं कर सकता; प्रभु के नाम का ध्यान करें और सांसारिक बंधनों को मुक्त करें। ॥ रहाउ ॥
ਆਦਿ ਅੰਤਿ ਦਇਆਲ ਪੂਰਨ ਤਿਸੁ ਬਿਨਾ ਨਹੀ ਕੋਇ ॥
आदि अंति दइआल पूरन तिसु बिना नही कोइ ॥
सृष्टि के आदि एवं अंत में उस पूर्ण दयालु प्रभु के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं है।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਨਿਵਾਰਿ ਹਰਿ ਜਪਿ ਸਿਮਰਿ ਸੁਆਮੀ ਸੋਇ ॥੨॥
जनम मरण निवारि हरि जपि सिमरि सुआमी सोइ ॥२॥
भगवान् का भजन करके अपना जन्म-मरण का चक्र समाप्त कर लो और उस स्वामी का सिमरन करते रहो॥२॥
ਬੇਦ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਕਥੈ ਸਾਸਤ ਭਗਤ ਕਰਹਿ ਬੀਚਾਰੁ ॥
बेद सिम्रिति कथै सासत भगत करहि बीचारु ॥
हे प्रभु ! वेद, स्मृतियाँ एवं शास्त्र ये सभी आपकी ही महिमा कथन करते हैं और भक्तजन आपके गुणों पर विचार करते हैं।
ਮੁਕਤਿ ਪਾਈਐ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਬਿਨਸਿ ਜਾਇ ਅੰਧਾਰੁ ॥੩॥
मुकति पाईऐ साधसंगति बिनसि जाइ अंधारु ॥३॥
मनुष्य को मुक्ति साधुओं की संगति करने से ही प्राप्त होती है और अज्ञानता का अन्धेरा दूर हो जाता है ॥३॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਅਧਾਰੁ ਜਨ ਕਾ ਰਾਸਿ ਪੂੰਜੀ ਏਕ ॥
चरन कमल अधारु जन का रासि पूंजी एक ॥
प्रभु के सुन्दर चरण-कमल भक्तजनों का सहारा है और यही उनकी राशि एवं पूंजी है।