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ਤਾਣੁ ਮਾਣੁ ਦੀਬਾਣੁ ਸਾਚਾ ਨਾਨਕ ਕੀ ਪ੍ਰਭ ਟੇਕ ॥੪॥੨॥੨੦॥
सच्चा प्रभु ही उनका बल, मान-सम्मान एवं दरबार है। हे नानक ! प्रभु ही उनका अवलम्व है॥ ४॥ २॥ २०॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी महला ५ ॥
ਫਿਰਤ ਫਿਰਤ ਭੇਟੇ ਜਨ ਸਾਧੂ ਪੂਰੈ ਗੁਰਿ ਸਮਝਾਇਆ ॥
इधर-उधर भ्रमण करते हुए जब मेरा साधु-महापुरुष (गुरु) से साक्षात्कार हुआ तो पूर्ण गुरु ने मुझे उपदेश दिया कि
ਆਨ ਸਗਲ ਬਿਧਿ ਕਾਂਮਿ ਨ ਆਵੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥੧॥
अन्य समस्त विधियों काम नहीं आनी, इसलिए हरि-नाम का ही ध्यान-मनन किया है॥ १ ॥
ਤਾ ਤੇ ਮੋਹਿ ਧਾਰੀ ਓਟ ਗੋਪਾਲ ॥
इसलिए मैंने ईश्वर का ही सहारा लिया है।
ਸਰਨਿ ਪਰਿਓ ਪੂਰਨ ਪਰਮੇਸੁਰ ਬਿਨਸੇ ਸਗਲ ਜੰਜਾਲ ॥ ਰਹਾਉ ॥
मैं तो पूर्ण परमेश्वर की शरण में आ गया हूँ और मेरे सभी कष्ट जंजाल नाश हो गए हैं।॥ रहाउ॥
ਸੁਰਗ ਮਿਰਤ ਪਇਆਲ ਭੂ ਮੰਡਲ ਸਗਲ ਬਿਆਪੇ ਮਾਇ ॥
स्वर्गलोक, मृत्युलोक, पाताललोक एवं समूचे भूमण्डल में माया व्यापक है।
ਜੀਅ ਉਧਾਰਨ ਸਭ ਕੁਲ ਤਾਰਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥੨॥
अपनी आत्मा का उद्धार करने के लिए एवं अपनी समस्त वंशावलि को भवसागर में से पार करवाने के लिए हरि-नाम का ही ध्यान करना चाहिए॥२॥
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਗਾਈਐ ਪਾਈਐ ਸਰਬ ਨਿਧਾਨਾ ॥
हे नानक ! यदि मायातीत प्रभु-नाम का स्तुतिगान किया जाए तो सर्व सुखों के भण्डार प्राप्त हो जाते हैं।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਜਿਸੁ ਦੇਇ ਸੁਆਮੀ ਬਿਰਲੇ ਕਾਹੂ ਜਾਨਾ ॥੩॥੩॥੨੧॥
इस रहस्य को किसी विरले पुरुष ने ही समझा है, जिसे जगत का स्वामी प्रभु कृपा करके नाम की देन प्रदान करता है ॥३॥३॥२१॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨ ਚਉਪਦੇ
धनासरी महला ५ घरु २ चउपदे
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਛੋਡਿ ਜਾਹਿ ਸੇ ਕਰਹਿ ਪਰਾਲ ॥
अज्ञानी मनुष्य उन क्षणभंगुर पदार्थों को संचित करता रहता है, जिसे उसने यहीं छोड़कर चले जाना है।
ਕਾਮਿ ਨ ਆਵਹਿ ਸੇ ਜੰਜਾਲ ॥
वह उन झांझट-जंजालों में उलझा रहता है, जो किसी काम नहीं आते।
ਸੰਗਿ ਨ ਚਾਲਹਿ ਤਿਨ ਸਿਉ ਹੀਤ ॥
वह उनसे स्नेह करता है, जो जीवन के अन्तिम क्षणों में उसके साथ नहीं जाते।
ਜੋ ਬੈਰਾਈ ਸੇਈ ਮੀਤ ॥੧॥
जो उसके शत्रु हैं, वही उसके मित्र बने हुए हैं।॥१॥
ਐਸੇ ਭਰਮਿ ਭੁਲੇ ਸੰਸਾਰਾ ॥
ऐसे ही यह संसार भ्रम में फँसकर भटका हुआ है और
ਜਨਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਖੋਇ ਗਵਾਰਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥
अज्ञानी मनुष्य यूं ही अपना अमूल्य जन्म व्यर्थ गंवा रहा है ॥ रहाउ ॥
ਸਾਚੁ ਧਰਮੁ ਨਹੀ ਭਾਵੈ ਡੀਠਾ ॥
वह सत्य एवं धर्म को देखना भी पसंद नहीं करता।
ਝੂਠ ਧੋਹ ਸਿਉ ਰਚਿਓ ਮੀਠਾ ॥
वह तो झूठ एवं छल-कपट में ही मग्न रहता है और यह उसे बड़ा मीठा लगता है।
ਦਾਤਿ ਪਿਆਰੀ ਵਿਸਰਿਆ ਦਾਤਾਰਾ ॥
वह दी हुई वस्तुओं से तो बड़ा प्रेम करता है परन्तु देने वाले दातार को भूल गया है।
ਜਾਣੈ ਨਾਹੀ ਮਰਣੁ ਵਿਚਾਰਾ ॥੨॥
बेचारा भाग्यहीन अपनी मृत्यु का ख्याल नहीं करता ॥२॥
ਵਸਤੁ ਪਰਾਈ ਕਉ ਉਠਿ ਰੋਵੈ ॥
वह पराई वस्तु को प्राप्त करने के लिए उठ-उठकर कोशिश करता है और न मिलने पर विलाप करता है।
ਕਰਮ ਧਰਮ ਸਗਲਾ ਈ ਖੋਵੈ ॥
वह अपने धर्म कर्म का समूचा फल गंवा देता है।
ਹੁਕਮੁ ਨ ਬੂਝੈ ਆਵਣ ਜਾਣੇ ॥
वह भगवान के हुक्म को नहीं समझता, इसलिए उसे जन्म-मरण के चक्र पड़े रहते हैं।
ਪਾਪ ਕਰੈ ਤਾ ਪਛੋਤਾਣੇ ॥੩॥
जब वह पाप करता है तो तदुपरांत पछताता है॥ ३॥
ਜੋ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਸੋ ਪਰਵਾਣੁ ॥
हे प्रभु ! जो तुझे मंजूर है, वही मुझे सहर्ष स्वीकार है।
ਤੇਰੇ ਭਾਣੇ ਨੋ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥
मैं तेरी रज़ा पर कुर्बान जाता हूँ।
ਨਾਨਕੁ ਗਰੀਬੁ ਬੰਦਾ ਜਨੁ ਤੇਰਾ ॥
गरीब नानक तेरा बंदा एवं सेवक है,
ਰਾਖਿ ਲੇਇ ਸਾਹਿਬੁ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ॥੪॥੧॥੨੨॥
हे मालिक प्रभु ! मेरी रक्षा करना ॥ ४ ॥ १॥ २२ ॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी महला ५ ॥
ਮੋਹਿ ਮਸਕੀਨ ਪ੍ਰਭੁ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ॥
मुझ विनीत को प्रभु का नाम ही एक सहारा है।
ਖਾਟਣ ਕਉ ਹਰਿ ਹਰਿ ਰੋਜਗਾਰੁ ॥
मेरे कमाने के लिए हरि-नाम ही मेरा रोजगार है।
ਸੰਚਣ ਕਉ ਹਰਿ ਏਕੋ ਨਾਮੁ ॥
जिस व्यक्ति के पास संचित करने के लिए एकमात्र हरि-नाम है,
ਹਲਤਿ ਪਲਤਿ ਤਾ ਕੈ ਆਵੈ ਕਾਮ ॥੧॥
यह नाम ही इहलोक एवं आगे परलोक में उसके काम आता है॥ १॥
ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਪ੍ਰਭ ਰੰਗਿ ਅਪਾਰ ॥
प्रभु के प्रेम रंग एवं नाम में लीन होकर
ਸਾਧ ਗਾਵਹਿ ਗੁਣ ਏਕ ਨਿਰੰਕਾਰ ॥ ਰਹਾਉ ॥
साधुजन तो केवल निराकार परमेश्वर का ही गुणगान करते हैं।॥ रहाउ ॥
ਸਾਧ ਕੀ ਸੋਭਾ ਅਤਿ ਮਸਕੀਨੀ ॥
साधु की शोभा उसकी अत्यंत विनम्रता में है।
ਸੰਤ ਵਡਾਈ ਹਰਿ ਜਸੁ ਚੀਨੀ ॥
संत का बड़प्पन उसके हरि-यश गायन करने से जाना जाता है।
ਅਨਦੁ ਸੰਤਨ ਕੈ ਭਗਤਿ ਗੋਵਿੰਦ ॥
परमात्मा की भक्ति उनके हृदय में आनंद उत्पन्न करती है।
ਸੂਖੁ ਸੰਤਨ ਕੈ ਬਿਨਸੀ ਚਿੰਦ ॥੨॥
संतों के मन में यही सुख की अनुभूति होती है कि उनकी चिंता का नाश हो जाता है॥ २॥
ਜਹ ਸਾਧ ਸੰਤਨ ਹੋਵਹਿ ਇਕਤ੍ਰ ॥
जहाँ भी साधु-संत एकत्र होते हैं,
ਤਹ ਹਰਿ ਜਸੁ ਗਾਵਹਿ ਨਾਦ ਕਵਿਤ ॥
वहाँ ही वे संगीत एवं काव्य द्वारा हरि का यश-गान करते हैं।
ਸਾਧ ਸਭਾ ਮਹਿ ਅਨਦ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ॥
साधुओं की सभा में आनंद एवं शान्ति की प्राप्ति होती है।
ਉਨ ਸੰਗੁ ਸੋ ਪਾਏ ਜਿਸੁ ਮਸਤਕਿ ਕਰਾਮ ॥੩॥
उनकी संगति भी वही मनुष्य करता है, जिसके मस्तक पर पूर्व कर्मों द्वारा ऐसा भाग्य लिखा होता है॥ ३॥
ਦੁਇ ਕਰ ਜੋੜਿ ਕਰੀ ਅਰਦਾਸਿ ॥
मैं अपने दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूँ कि
ਚਰਨ ਪਖਾਰਿ ਕਹਾਂ ਗੁਣਤਾਸ ॥
मैं संतों के चरण धोता रहूँ और गुणों के भण्डार प्रभु का ही नाम-सिमरन करने में मग्न रहूँ।
ਪ੍ਰਭ ਦਇਆਲ ਕਿਰਪਾਲ ਹਜੂਰਿ ॥
जो हमेशा ही दयालु एवं कृपालु प्रभु की उपस्थिति में रहते हैं,"
ਨਾਨਕੁ ਜੀਵੈ ਸੰਤਾ ਧੂਰਿ ॥੪॥੨॥੨੩॥
नानक तो उन संतों की चरण-धूलि के सहारे ही जीवित है।॥४॥२॥२३॥