Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 676

Page 676

ਤਾਣੁ ਮਾਣੁ ਦੀਬਾਣੁ ਸਾਚਾ ਨਾਨਕ ਕੀ ਪ੍ਰਭ ਟੇਕ ॥੪॥੨॥੨੦॥ ताणु माणु दीबाणु साचा नानक की प्रभ टेक ॥४॥२॥२०॥ हे नानक, ईश्वर की शरण ही उनकी एकमात्र शक्ति, सम्मान और शाश्वत सहारा है। ॥ ४॥ २॥ २०॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ धनासरी महला ५ ॥ राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਫਿਰਤ ਫਿਰਤ ਭੇਟੇ ਜਨ ਸਾਧੂ ਪੂਰੈ ਗੁਰਿ ਸਮਝਾਇਆ ॥ फिरत फिरत भेटे जन साधू पूरै गुरि समझाइआ ॥ इधर-उधर भ्रमण करते हुए जब मेरा साधु-महापुरुष (गुरु) से साक्षात्कार हुआ तो पूर्ण गुरु ने मुझे उपदेश दिया कि
ਆਨ ਸਗਲ ਬਿਧਿ ਕਾਂਮਿ ਨ ਆਵੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥੧॥ आन सगल बिधि कांमि न आवै हरि हरि नामु धिआइआ ॥१॥ अन्य समस्त विधियों काम नहीं आनी, इसलिए हरि-नाम का ही ध्यान-मनन किया है॥ १ ॥
ਤਾ ਤੇ ਮੋਹਿ ਧਾਰੀ ਓਟ ਗੋਪਾਲ ॥ ता ते मोहि धारी ओट गोपाल ॥ इसलिए मैंने ईश्वर का ही सहारा लिया है।
ਸਰਨਿ ਪਰਿਓ ਪੂਰਨ ਪਰਮੇਸੁਰ ਬਿਨਸੇ ਸਗਲ ਜੰਜਾਲ ॥ ਰਹਾਉ ॥ सरनि परिओ पूरन परमेसुर बिनसे सगल जंजाल ॥ रहाउ ॥ मैं तो पूर्ण परमेश्वर की शरण में आ गया हूँ और मेरे सभी कष्ट जंजाल नष्ट हो गए हैं।॥ रहाउ॥
ਸੁਰਗ ਮਿਰਤ ਪਇਆਲ ਭੂ ਮੰਡਲ ਸਗਲ ਬਿਆਪੇ ਮਾਇ ॥ सुरग मिरत पइआल भू मंडल सगल बिआपे माइ ॥ स्वर्गलोक, मृत्युलोक, पाताललोक एवं समूचे भूमण्डल में माया व्यापक है।
ਜੀਅ ਉਧਾਰਨ ਸਭ ਕੁਲ ਤਾਰਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥੨॥ जीअ उधारन सभ कुल तारन हरि हरि नामु धिआइ ॥२॥ अपनी आत्मा का उद्धार करने के लिए एवं अपनी समस्त वंशावलि को भवसागर में से पार कराने के लिए हरि-नाम का ही ध्यान करना चाहिए॥२॥
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਗਾਈਐ ਪਾਈਐ ਸਰਬ ਨਿਧਾਨਾ ॥ नानक नामु निरंजनु गाईऐ पाईऐ सरब निधाना ॥ हे नानक ! यदि मायातीत प्रभु-नाम का स्तुतिगान किया जाए तो सर्व सुखों के भण्डार प्राप्त हो जाते हैं।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਜਿਸੁ ਦੇਇ ਸੁਆਮੀ ਬਿਰਲੇ ਕਾਹੂ ਜਾਨਾ ॥੩॥੩॥੨੧॥ करि किरपा जिसु देइ सुआमी बिरले काहू जाना ॥३॥३॥२१॥ इस रहस्य को किसी विरले पुरुष ने ही समझा है, जिसे जगत् के स्वामी प्रभु कृपा करके नाम की देन प्रदान करते हैं ॥३॥३॥२१॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨ ਚਉਪਦੇ धनासरी महला ५ घरु २ चउपदे राग धनश्री, पाँचवें गुरु, दूसरी ताल, चौ-पद:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਛੋਡਿ ਜਾਹਿ ਸੇ ਕਰਹਿ ਪਰਾਲ ॥ छोडि जाहि से करहि पराल ॥ अज्ञानी मनुष्य उन क्षणभंगुर पदार्थों को संचित करता रहता है, जिसे उसने यहीं छोड़कर चले जाना है।
ਕਾਮਿ ਨ ਆਵਹਿ ਸੇ ਜੰਜਾਲ ॥ कामि न आवहि से जंजाल ॥ वह उन झांझट-जंजालों में उलझा रहता है, जो किसी काम नहीं आते।
ਸੰਗਿ ਨ ਚਾਲਹਿ ਤਿਨ ਸਿਉ ਹੀਤ ॥ संगि न चालहि तिन सिउ हीत ॥ वह उनसे स्नेह करता है, जो जीवन के अन्तिम क्षणों में उसके साथ नहीं जाते।
ਜੋ ਬੈਰਾਈ ਸੇਈ ਮੀਤ ॥੧॥ जो बैराई सेई मीत ॥१॥ जो उसके शत्रु हैं, वही उसके मित्र बने हुए हैं।॥१॥
ਐਸੇ ਭਰਮਿ ਭੁਲੇ ਸੰਸਾਰਾ ॥ ऐसे भरमि भुले संसारा ॥ ऐसे ही यह संसार भ्रम में फँसकर भटका हुआ है और
ਜਨਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਖੋਇ ਗਵਾਰਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥ जनमु पदारथु खोइ गवारा ॥ रहाउ ॥ अज्ञानी मनुष्य यूं ही अपना अमूल्य जन्म व्यर्थ गंवा रहा है ॥ रहाउ ॥
ਸਾਚੁ ਧਰਮੁ ਨਹੀ ਭਾਵੈ ਡੀਠਾ ॥ साचु धरमु नही भावै डीठा ॥ वह सत्य एवं धर्म को देखना भी पसंद नहीं करता।
ਝੂਠ ਧੋਹ ਸਿਉ ਰਚਿਓ ਮੀਠਾ ॥ झूठ धोह सिउ रचिओ मीठा ॥ वह तो झूठ एवं छल-कपट में ही मग्न रहता है और यह उसे बड़ा मीठा लगता है।
ਦਾਤਿ ਪਿਆਰੀ ਵਿਸਰਿਆ ਦਾਤਾਰਾ ॥ दाति पिआरी विसरिआ दातारा ॥ वह दी हुई वस्तुओं से तो बड़ा प्रेम करता है परन्तु देने वाले दाता को भूल गया है।
ਜਾਣੈ ਨਾਹੀ ਮਰਣੁ ਵਿਚਾਰਾ ॥੨॥ जाणै नाही मरणु विचारा ॥२॥ बेचारा भाग्यहीन अपनी मृत्यु का विचार नहीं करता ॥२॥
ਵਸਤੁ ਪਰਾਈ ਕਉ ਉਠਿ ਰੋਵੈ ॥ वसतु पराई कउ उठि रोवै ॥ वह पराई वस्तु को प्राप्त करने के लिए उठ-उठकर कोशिश करता है और न मिलने पर विलाप करता है।
ਕਰਮ ਧਰਮ ਸਗਲਾ ਈ ਖੋਵੈ ॥ करम धरम सगला ई खोवै ॥ वह अपने धर्म कर्म का समूचा फल गंवा देता है।
ਹੁਕਮੁ ਨ ਬੂਝੈ ਆਵਣ ਜਾਣੇ ॥ हुकमु न बूझै आवण जाणे ॥ वह भगवान् के आदेश को नहीं समझता, इसलिए जन्म-मरण के चक्र में पड़ा रहता हैं।
ਪਾਪ ਕਰੈ ਤਾ ਪਛੋਤਾਣੇ ॥੩॥ पाप करै ता पछोताणे ॥३॥ जब वह पाप करता है तो तदुपरांत पछताता है॥ ३॥
ਜੋ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਸੋ ਪਰਵਾਣੁ ॥ जो तुधु भावै सो परवाणु ॥ हे प्रभु ! जो आपकी इच्छा है, वही मुझे सहर्ष स्वीकार है।
ਤੇਰੇ ਭਾਣੇ ਨੋ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥ तेरे भाणे नो कुरबाणु ॥ मैं आपकी इच्छा पर बलिहारी जाता हूँ।
ਨਾਨਕੁ ਗਰੀਬੁ ਬੰਦਾ ਜਨੁ ਤੇਰਾ ॥ नानकु गरीबु बंदा जनु तेरा ॥ गरीब नानक आपका जीव एवं सेवक है,
ਰਾਖਿ ਲੇਇ ਸਾਹਿਬੁ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ॥੪॥੧॥੨੨॥ राखि लेइ साहिबु प्रभु मेरा ॥४॥१॥२२॥ हे मालिक प्रभु ! मेरी रक्षा करना ॥ ४ ॥ १॥ २२ ॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ धनासरी महला ५ ॥ राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਮੋਹਿ ਮਸਕੀਨ ਪ੍ਰਭੁ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ॥ मोहि मसकीन प्रभु नामु अधारु ॥ मुझ विनीत को प्रभु का नाम ही एक सहारा है।
ਖਾਟਣ ਕਉ ਹਰਿ ਹਰਿ ਰੋਜਗਾਰੁ ॥ खाटण कउ हरि हरि रोजगारु ॥ मेरे कमाने के लिए हरि-नाम ही मेरा रोजगार है।
ਸੰਚਣ ਕਉ ਹਰਿ ਏਕੋ ਨਾਮੁ ॥ संचण कउ हरि एको नामु ॥ जिस व्यक्ति के पास संचित करने के लिए एकमात्र हरि-नाम है,
ਹਲਤਿ ਪਲਤਿ ਤਾ ਕੈ ਆਵੈ ਕਾਮ ॥੧॥ हलति पलति ता कै आवै काम ॥१॥ यह नाम ही इहलोक एवं आगे परलोक में उसके काम आता है॥ १॥
ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਪ੍ਰਭ ਰੰਗਿ ਅਪਾਰ ॥ नामि रते प्रभ रंगि अपार ॥ प्रभु के प्रेम रंग एवं नाम में लीन होकर
ਸਾਧ ਗਾਵਹਿ ਗੁਣ ਏਕ ਨਿਰੰਕਾਰ ॥ ਰਹਾਉ ॥ साध गावहि गुण एक निरंकार ॥ रहाउ ॥ साधुजन तो केवल निराकार परमेश्वर का ही गुणगान करते हैं।॥ रहाउ ॥
ਸਾਧ ਕੀ ਸੋਭਾ ਅਤਿ ਮਸਕੀਨੀ ॥ साध की सोभा अति मसकीनी ॥ साधु की शोभा उसकी अत्यंत विनम्रता में है।
ਸੰਤ ਵਡਾਈ ਹਰਿ ਜਸੁ ਚੀਨੀ ॥ संत वडाई हरि जसु चीनी ॥ संत का बड़प्पन उसके हरि-यश गायन करने से जाना जाता है।
ਅਨਦੁ ਸੰਤਨ ਕੈ ਭਗਤਿ ਗੋਵਿੰਦ ॥ अनदु संतन कै भगति गोविंद ॥ परमात्मा की भक्ति उनके हृदय में आनंद उत्पन्न करती है।
ਸੂਖੁ ਸੰਤਨ ਕੈ ਬਿਨਸੀ ਚਿੰਦ ॥੨॥ सूखु संतन कै बिनसी चिंद ॥२॥ संतों के मन में यही सुख की अनुभूति होती है कि उनकी चिंता का नाश हो जाता है॥ २॥
ਜਹ ਸਾਧ ਸੰਤਨ ਹੋਵਹਿ ਇਕਤ੍ਰ ॥ जह साध संतन होवहि इकत्र ॥ जहाँ भी साधु-संत एकत्र होते हैं,
ਤਹ ਹਰਿ ਜਸੁ ਗਾਵਹਿ ਨਾਦ ਕਵਿਤ ॥ तह हरि जसु गावहि नाद कवित ॥ वहाँ ही वे संगीत एवं काव्य द्वारा हरि का यश-गान करते हैं।
ਸਾਧ ਸਭਾ ਮਹਿ ਅਨਦ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ॥ साध सभा महि अनद बिस्राम ॥ साधुओं की सभा में आनंद एवं शान्ति की प्राप्ति होती है।
ਉਨ ਸੰਗੁ ਸੋ ਪਾਏ ਜਿਸੁ ਮਸਤਕਿ ਕਰਾਮ ॥੩॥ उन संगु सो पाए जिसु मसतकि कराम ॥३॥ उनकी संगति भी वही मनुष्य करता है, जिसके मस्तक पर पूर्व कर्मों द्वारा ऐसा भाग्य लिखा होता है॥ ३॥
ਦੁਇ ਕਰ ਜੋੜਿ ਕਰੀ ਅਰਦਾਸਿ ॥ दुइ कर जोड़ि करी अरदासि ॥ मैं अपने दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूँ कि
ਚਰਨ ਪਖਾਰਿ ਕਹਾਂ ਗੁਣਤਾਸ ॥ चरन पखारि कहां गुणतास ॥ मैं संतों के चरण धोता रहूँ और गुणों के भण्डार प्रभु का ही नाम-सिमरन करने में मग्न रहूँ।
ਪ੍ਰਭ ਦਇਆਲ ਕਿਰਪਾਲ ਹਜੂਰਿ ॥ प्रभ दइआल किरपाल हजूरि ॥ जो हमेशा ही दयालु एवं कृपालु प्रभु की उपस्थिति में रहते हैं,"
ਨਾਨਕੁ ਜੀਵੈ ਸੰਤਾ ਧੂਰਿ ॥੪॥੨॥੨੩॥ नानकु जीवै संता धूरि ॥४॥२॥२३॥ नानक तो उन संतों की चरण-धूलि के सहारे ही जीवित है।॥४॥२॥२३॥


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top