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ਨਿਮਖ ਨਿਮਖ ਤੁਮ ਹੀ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਹੁ ਹਮ ਬਾਰਿਕ ਤੁਮਰੇ ਧਾਰੇ ॥੧॥
क्षण-क्षण तुम हमारा पालन-पोषण करते रहते हो, हम तुम्हारी ही पैदा की हुई संतान हैं।॥ १॥
ਜਿਹਵਾ ਏਕ ਕਵਨ ਗੁਨ ਕਹੀਐ ॥
हम अपनी एक जिह्वा से तेरे कौन-कौन से गुण कथन करें ?
ਬੇਸੁਮਾਰ ਬੇਅੰਤ ਸੁਆਮੀ ਤੇਰੋ ਅੰਤੁ ਨ ਕਿਨ ਹੀ ਲਹੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे बेशुमार एवं बेअन्त स्वामी ! किसी ने भी तेरा अन्त नहीं जाना॥१॥ रहाउ॥
ਕੋਟਿ ਪਰਾਧ ਹਮਾਰੇ ਖੰਡਹੁ ਅਨਿਕ ਬਿਧੀ ਸਮਝਾਵਹੁ ॥
हे प्रभु ! तुम हमारे करोड़ों पापों को नाश करते रहते हो और अनेक विधियों द्वारा उपदेश देते रहते हो।
ਹਮ ਅਗਿਆਨ ਅਲਪ ਮਤਿ ਥੋਰੀ ਤੁਮ ਆਪਨ ਬਿਰਦੁ ਰਖਾਵਹੁ ॥੨॥
हम तो ज्ञानहीन हैं और हमारी मति बहुत ही थोड़ी एवं तुच्छ है, तुम अपने विरद की लाज रखते हो॥ २॥
ਤੁਮਰੀ ਸਰਣਿ ਤੁਮਾਰੀ ਆਸਾ ਤੁਮ ਹੀ ਸਜਨ ਸੁਹੇਲੇ ॥
हे प्रभु ! हम तेरी शरण में आए हैं और हमें तेरी ही आशा है, चूंकि तू ही हमारा सुखदायक सज्जन है।
ਰਾਖਹੁ ਰਾਖਨਹਾਰ ਦਇਆਲਾ ਨਾਨਕ ਘਰ ਕੇ ਗੋਲੇ ॥੩॥੧੨॥
नानक प्रार्थना करता है कि हे रक्षा करने वाले दयालु प्रभु ! हमारी रक्षा करो, चूंकि हम तेरे घर के सेवक हैं।॥ ३॥ १२॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी मः ५ ॥
ਪੂਜਾ ਵਰਤ ਤਿਲਕ ਇਸਨਾਨਾ ਪੁੰਨ ਦਾਨ ਬਹੁ ਦੈਨ ॥
लोग अपने देवताओं की पूजा करते हैं, व्रत-उपवास रखते हैं, अपने माथे पर तिलक लगाते हैं, तीर्थों पर स्नान करते हैं, पुण्य-कर्म भी करते हैं और बहुत दान देते हैं,
ਕਹੂੰ ਨ ਭੀਜੈ ਸੰਜਮ ਸੁਆਮੀ ਬੋਲਹਿ ਮੀਠੇ ਬੈਨ ॥੧॥
वे मधुर वचन भी बोलते हैं परन्तु स्वामी-प्रभु इनमें से किसी भी युक्ति द्वारा प्रसन्न नहीं होता ॥१॥
ਪ੍ਰਭ ਜੀ ਕੋ ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਮਨ ਚੈਨ ॥
प्रभु का नाम जपने से ही मन को शांति मिलती है।
ਬਹੁ ਪ੍ਰਕਾਰ ਖੋਜਹਿ ਸਭਿ ਤਾ ਕਉ ਬਿਖਮੁ ਨ ਜਾਈ ਲੈਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सभी लोग अनेक प्रकार की विधियों से उस प्रभु की तलाश करते रहते हैं परन्तु उसकी तलाश बड़ी कठिन है और उसे ढूंढ़ा नहीं जा सकता ॥१॥ रहाउ ॥
ਜਾਪ ਤਾਪ ਭ੍ਰਮਨ ਬਸੁਧਾ ਕਰਿ ਉਰਧ ਤਾਪ ਲੈ ਗੈਨ ॥
मंत्रों के जाप करने से, तपस्या करने से, पृथ्वी पर भ्रमण करने से, सिर के बल तप करने से, प्राणायाम द्वारा श्वासों को दसम द्वार में करने इत्यादि से
ਇਹ ਬਿਧਿ ਨਹ ਪਤੀਆਨੋ ਠਾਕੁਰ ਜੋਗ ਜੁਗਤਿ ਕਰਿ ਜੈਨ ॥੨॥
ठाकुर प्रभु प्रसन्न नहीं होता, वह योग मत एवं जैन मत की युक्तियाँ करने से भी खुश नहीं होता ॥२॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਨਿਰਮੋਲਕੁ ਹਰਿ ਜਸੁ ਤਿਨਿ ਪਾਇਓ ਜਿਸੁ ਕਿਰਪੈਨ ॥
प्रभु का अमृत नाम अनमोल है और हरि-यश की देन उस खुशकिस्मत ने ही प्राप्त की है, जिस पर उसकी कृपा हुई है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਰੰਗਿ ਪ੍ਰਭ ਭੇਟੇ ਨਾਨਕ ਸੁਖਿ ਜਨ ਰੈਨ ॥੩॥੧੩॥
हे नानक ! जिसे सत्संगति में प्रेम द्वारा प्रभु मिल जाता है, उस मनुष्य की जीवन-रात्रि सुख में बीतती है॥३॥१३॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी मः ५ ॥
ਬੰਧਨ ਤੇ ਛੁਟਕਾਵੈ ਪ੍ਰਭੂ ਮਿਲਾਵੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸੁਨਾਵੈ ॥
क्या कोई ऐसा है ? जो मुझे माया के बन्धनों से स्वतंत्र करवा दे, मुझे प्रभु से मिला दे, मुझे हरि का नाम सुनाए,
ਅਸਥਿਰੁ ਕਰੇ ਨਿਹਚਲੁ ਇਹੁ ਮਨੂਆ ਬਹੁਰਿ ਨ ਕਤਹੂ ਧਾਵੈ ॥੧॥
मेरा यह मन स्थिर एवं अटल कर दे, ताकि वह इधर-उधर कहीं न भटके ॥ १॥
ਹੈ ਕੋਊ ਐਸੋ ਹਮਰਾ ਮੀਤੁ ॥
क्या कोई ऐसा मेरा मित्र है ?
ਸਗਲ ਸਮਗ੍ਰੀ ਜੀਉ ਹੀਉ ਦੇਉ ਅਰਪਉ ਅਪਨੋ ਚੀਤੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मैं उसे अपनी सारी धन-सम्पति, अपने प्राण, अपना हृदय सब कुछ सौंप दूँगा ॥ १॥ रहाउ ॥
ਪਰ ਧਨ ਪਰ ਤਨ ਪਰ ਕੀ ਨਿੰਦਾ ਇਨ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨ ਲਾਗੈ ॥
मेरी अभिलाषा है कि पराया धन, पराई नारी के तन एवं पराई निन्दा-इनसे मेरी प्रीति कदापि न लगे।
ਸੰਤਹ ਸੰਗੁ ਸੰਤ ਸੰਭਾਖਨੁ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨਿ ਮਨੁ ਜਾਗੈ ॥੨॥
मैं संतों के संग ज्ञान-गोष्ठी किया करूं एवं हरि-कीर्तन में मेरा मन जाग्रत रहे॥ २॥
ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਦਇਆਲ ਪੁਰਖ ਪ੍ਰਭ ਸਰਬ ਸੂਖ ਦਇਆਲਾ ॥
हे परमपुरुष ! तू गुणों का भण्डार है, तू बड़ा दयालु है। हे दयालु प्रभु ! तू सर्व सुख प्रदान करने वाला है।
ਮਾਗੈ ਦਾਨੁ ਨਾਮੁ ਤੇਰੋ ਨਾਨਕੁ ਜਿਉ ਮਾਤਾ ਬਾਲ ਗੁਪਾਲਾ ॥੩॥੧੪॥
हे जगतपालक ! जैसे बच्चे अपनी माता से भोजन माँगते हैं, वैसे ही नानक तुझसे तेरे नाम का दान माँगता है॥३॥१४॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी मः ५ ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਲੀਨੇ ਸੰਤ ਉਬਾਰਿ ॥
हरि ने अपने संतों को बचा लिया है।
ਹਰਿ ਕੇ ਦਾਸ ਕੀ ਚਿਤਵੈ ਬੁਰਿਆਈ ਤਿਸ ਹੀ ਕਉ ਫਿਰਿ ਮਾਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो व्यक्ति हरि के दास की बुराई सोचता है, उसे ही वह अंततः नष्ट कर देता है॥ १॥ रहाउ॥
ਜਨ ਕਾ ਆਪਿ ਸਹਾਈ ਹੋਆ ਨਿੰਦਕ ਭਾਗੇ ਹਾਰਿ ॥
प्रभु अपने सेवक का स्वयं ही मददगार बन गया है तथा निंदक पराजित होकर भाग गए हैं।
ਭ੍ਰਮਤ ਭ੍ਰਮਤ ਊਹਾਂ ਹੀ ਮੂਏ ਬਾਹੁੜਿ ਗ੍ਰਿਹਿ ਨ ਮੰਝਾਰਿ ॥੧॥
भटकते-भटकते निंदक वहाँ ही मर गए हैं और वे पुनः अनेक योनियों में भटकते हैं एवं उन्हें अपने घर में निवास नहीं मिलता ॥ १॥
ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਪਰਿਓ ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਗੁਨ ਗਾਵੈ ਸਦਾ ਅਪਾਰਿ ॥
नानक ने तो दुःखनाशक प्रभु की शरण ली है और सदैव ही अनंत प्रभु का गुणगान करता रहता है।
ਨਿੰਦਕ ਕਾ ਮੁਖੁ ਕਾਲਾ ਹੋਆ ਦੀਨ ਦੁਨੀਆ ਕੈ ਦਰਬਾਰਿ ॥੨॥੧੫॥
दीन-दुनिया के स्वामी प्रभु के दरबार में उस निंदक का मुँह काला हुआ है अर्थात् तिरस्कृत हुआ है॥ २॥ १५॥ l
ਧਨਾਸਿਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी मः ५ ॥
ਅਬ ਹਰਿ ਰਾਖਨਹਾਰੁ ਚਿਤਾਰਿਆ ॥
अब जब मैंने रक्षक हरि को याद किया तो
ਪਤਿਤ ਪੁਨੀਤ ਕੀਏ ਖਿਨ ਭੀਤਰਿ ਸਗਲਾ ਰੋਗੁ ਬਿਦਾਰਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
उसने मुझ पतित को एक क्षण में ही पवित्र बना दिया और मेरा सारा रोग नाश कर दिया ॥१॥ रहाउ॥
ਗੋਸਟਿ ਭਈ ਸਾਧ ਕੈ ਸੰਗਮਿ ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧੁ ਲੋਭੁ ਮਾਰਿਆ ॥
जब साधुओं के समागम में मेरी ज्ञान चर्चा हुई तो मेरे मन में से काम, क्रोध एवं लोभ नष्ट हो गए।
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਪੂਰਨ ਨਾਰਾਇਨ ਸੰਗੀ ਸਗਲੇ ਤਾਰਿਆ ॥੧॥
मैंने उस पूर्ण नारायण का सिमरन करके अपने समस्त संगी-साथियों को भी भवसागर में डूबने से बचा लिया है॥ १॥