Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 673

Page 673

ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ धनासरी महला ५ ॥ राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜਿਹ ਕਰਣੀ ਹੋਵਹਿ ਸਰਮਿੰਦਾ ਇਹਾ ਕਮਾਨੀ ਰੀਤਿ ॥ जिह करणी होवहि सरमिंदा इहा कमानी रीति ॥ हे प्राणी ! तुम ऐसे कर्म कर रहे हो जिन्हें देखकर तुम्हें एक दिन भगवान् के सम्मुख लज्जित होना पड़ेगा।
ਸੰਤ ਕੀ ਨਿੰਦਾ ਸਾਕਤ ਕੀ ਪੂਜਾ ਐਸੀ ਦ੍ਰਿੜ੍ਹ੍ਹੀ ਬਿਪਰੀਤਿ ॥੧॥ संत की निंदा साकत की पूजा ऐसी द्रिड़्ही बिपरीति ॥१॥ तू संतों की निन्दा करता है और भगवान् से विमुख व्यक्ति की पूजा करता है। तूने ऐसी परम्परा ग्रहण कर ली है, जो धर्म की मर्यादा से विपरीत है॥ १॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹ ਭੂਲੋ ਅਵਰੈ ਹੀਤ ॥ माइआ मोह भूलो अवरै हीत ॥ हे प्राणी ! माया (सांसारिक धन) के प्रति भावनात्मक लगाव से भ्रमित होकर, तुम भगवान् के अतिरिक्त अन्य वस्तुोओं से प्यार करते हो।
ਹਰਿਚੰਦਉਰੀ ਬਨ ਹਰ ਪਾਤ ਰੇ ਇਹੈ ਤੁਹਾਰੋ ਬੀਤ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हरिचंदउरी बन हर पात रे इहै तुहारो बीत ॥१॥ रहाउ ॥ तुम्हारा जीवन आकाश में बने राजा हरिचंद के एक काल्पनिक महल की तरह है या जैसे किसी घने वन में हरे पत्तों की क्षणिक हरियाली, जो जल्द ही मुरझा जाती है। ॥१॥ रहाउ॥
ਚੰਦਨ ਲੇਪ ਹੋਤ ਦੇਹ ਕਉ ਸੁਖੁ ਗਰਧਭ ਭਸਮ ਸੰਗੀਤਿ ॥ चंदन लेप होत देह कउ सुखु गरधभ भसम संगीति ॥ चाहे गधे के शरीर पर चन्दन का लेप भी कर दिया जाए लेकिन फिर भी गधे को मिट्टी में लेट कर ही सुख मिलता है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸੰਗਿ ਨਾਹਿ ਰੁਚ ਆਵਤ ਬਿਖੈ ਠਗਉਰੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥੨॥ अम्रित संगि नाहि रुच आवत बिखै ठगउरी प्रीति ॥२॥ हे प्राणी ! नामामृत के संग तेरे मन में रुचि पैदा नहीं होती परन्तु विष रूपी ठगौरी से तू प्रेम करता है॥ २॥
ਉਤਮ ਸੰਤ ਭਲੇ ਸੰਜੋਗੀ ਇਸੁ ਜੁਗ ਮਹਿ ਪਵਿਤ ਪੁਨੀਤ ॥ उतम संत भले संजोगी इसु जुग महि पवित पुनीत ॥ उत्तम एवं भले संत संयोग से ही मिलते हैं, जो इस युग में पवित्र एवं पुनीत हैं।
ਜਾਤ ਅਕਾਰਥ ਜਨਮੁ ਪਦਾਰਥ ਕਾਚ ਬਾਦਰੈ ਜੀਤ ॥੩॥ जात अकारथ जनमु पदारथ काच बादरै जीत ॥३॥ हे प्राणी ! तेरा अनमोल मानव-जन्म व्यर्थ जा रहा है और यह काँच के बदले में जीता जा रहा है ॥३॥
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਕਿਲਵਿਖ ਦੁਖ ਭਾਗੇ ਗੁਰਿ ਗਿਆਨ ਅੰਜਨੁ ਨੇਤ੍ਰ ਦੀਤ ॥ जनम जनम के किलविख दुख भागे गुरि गिआन अंजनु नेत्र दीत ॥ जब गुरु ने आध्यात्मिक ज्ञान का सुरमा नेत्रों में लगा दिया तो जन्म-जन्मांतरों के दुःख भाग गए।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਇਨ ਦੁਖ ਤੇ ਨਿਕਸਿਓ ਨਾਨਕ ਏਕ ਪਰੀਤ ॥੪॥੯॥ साधसंगि इन दुख ते निकसिओ नानक एक परीत ॥४॥९॥ हे नानक ! साधुओं की संगत से इन दुःखों से निकल आया हूँ और अब मैंने एक प्रभु से ही प्रेम लगा लिया है ॥४॥६॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ धनासरी महला ५ ॥ राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਪਾਨੀ ਪਖਾ ਪੀਸਉ ਸੰਤ ਆਗੈ ਗੁਣ ਗੋਵਿੰਦ ਜਸੁ ਗਾਈ ॥ पानी पखा पीसउ संत आगै गुण गोविंद जसु गाई ॥ मैं संतों की सेवा में पानी ढोता, पंखा करता और गेहूँ पीसता हूँ और गोविन्द का ही यशोगान करता हूँ।
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਮਨੁ ਨਾਮੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰੈ ਇਹੁ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ਨਿਧਿ ਪਾਈ ॥੧॥ सासि सासि मनु नामु सम्हारै इहु बिस्राम निधि पाई ॥१॥ मेरा मन श्वास-श्वास से नाम जपता रहता है और मैंने यह नाम रूपी सुखों की निधि प्राप्त कर ली है॥ १॥
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਕਰਹੁ ਦਇਆ ਮੇਰੇ ਸਾਈ ॥ तुम्ह करहु दइआ मेरे साई ॥ हे मेरे मालिक ! मुझ पर दया करो।
ਐਸੀ ਮਤਿ ਦੀਜੈ ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਸਦਾ ਸਦਾ ਤੁਧੁ ਧਿਆਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ऐसी मति दीजै मेरे ठाकुर सदा सदा तुधु धिआई ॥१॥ रहाउ ॥ हे मेरे ठाकुर ! मुझे ऐसी सुमति दीजिए कि मैं सर्वदा ही आपका ध्यान करता रहूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੇ ਮੋਹੁ ਮਾਨੁ ਛੂਟੈ ਬਿਨਸਿ ਜਾਇ ਭਰਮਾਈ ॥ तुम्हरी क्रिपा ते मोहु मानु छूटै बिनसि जाइ भरमाई ॥ आपकी कृपा से मेरा मोह एवं अभिमान छूट जाए और मेरा भ्रम भी मिट जाए।
ਅਨਦ ਰੂਪੁ ਰਵਿਓ ਸਭ ਮਧੇ ਜਤ ਕਤ ਪੇਖਉ ਜਾਈ ॥੨॥ अनद रूपु रविओ सभ मधे जत कत पेखउ जाई ॥२॥ आनंद स्वरूप वह प्रभु सबमें समाए हुए है, मैं जिधर भी जाता हूँ, उसे ही देखता हूँ॥ २॥
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਦਇਆਲ ਕਿਰਪਾਲ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਿ ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਗੋਸਾਈ ॥ तुम्ह दइआल किरपाल क्रिपा निधि पतित पावन गोसाई ॥ हे पतित पावन सृष्टि के स्वामी ! आप बड़े दयालु, कृपालु एवं कृपानिधि हो।
ਕੋਟਿ ਸੂਖ ਆਨੰਦ ਰਾਜ ਪਾਏ ਮੁਖ ਤੇ ਨਿਮਖ ਬੁਲਾਈ ॥੩॥ कोटि सूख आनंद राज पाए मुख ते निमख बुलाई ॥३॥ मैंने अपने मुँह से एक क्षण भर आपके नाम का उच्चारण करके राज-भाग के करोड़ों सुख एवं आनंद पा लिए हैं।॥३॥
ਜਾਪ ਤਾਪ ਭਗਤਿ ਸਾ ਪੂਰੀ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਮਨਿ ਭਾਈ ॥ जाप ताप भगति सा पूरी जो प्रभ कै मनि भाई ॥ केवल वही पूजा, तपस्या एवं भक्ति पूर्ण होती है, जो प्रभु के मन में भा गई है।
ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਸਭ ਬੁਝੀ ਹੈ ਨਾਨਕ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਈ ॥੪॥੧੦॥ नामु जपत त्रिसना सभ बुझी है नानक त्रिपति अघाई ॥४॥१०॥ हे नानक ! नाम का जाप करने से मेरी सारी तृष्णा बुझ गई है, अब मैं तृप्त एवं संतृष्ट हो गया हूँ॥ ४॥ १०॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ धनासरी महला ५ ॥ राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜਿਨਿ ਕੀਨੇ ਵਸਿ ਅਪੁਨੈ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਭਵਣ ਚਤੁਰ ਸੰਸਾਰਾ ॥ जिनि कीने वसि अपुनै त्रै गुण भवण चतुर संसारा ॥ माया ने तीनो भवनों-आकाश, पाताल, पृथ्वी एवं सत्यलोक को जीत कर अपने वशीभूत कर लिया है,
ਜਗ ਇਸਨਾਨ ਤਾਪ ਥਾਨ ਖੰਡੇ ਕਿਆ ਇਹੁ ਜੰਤੁ ਵਿਚਾਰਾ ॥੧॥ जग इसनान ताप थान खंडे किआ इहु जंतु विचारा ॥१॥ जिसने यज्ञ करने वाले, स्नान करने वाले एवं तपस्या करने वाले इन समस्त स्थानों को खण्डित कर दिया है, ये बेचारा जीव इसके समक्ष क्या चीज़ हैं ?॥ १॥
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਓਟ ਗਹੀ ਤਉ ਛੂਟੋ ॥ प्रभ की ओट गही तउ छूटो ॥ जब मैंने प्रभु की शरण ली तो मैं माया से स्वतन्त्र हो गया।
ਸਾਧ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗਾਏ ਬਿਖੈ ਬਿਆਧਿ ਤਬ ਹੂਟੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ साध प्रसादि हरि हरि हरि गाए बिखै बिआधि तब हूटो ॥१॥ रहाउ ॥ साधु-महापुरुष की कृपा से जब परमात्मा का स्तुतिगान किया तो मेरे पाप एवं रोग दूर हो गए। ॥१॥ रहाउ ॥
ਨਹ ਸੁਣੀਐ ਨਹ ਮੁਖ ਤੇ ਬਕੀਐ ਨਹ ਮੋਹੈ ਉਹ ਡੀਠੀ ॥ नह सुणीऐ नह मुख ते बकीऐ नह मोहै उह डीठी ॥ वह माया जीवों को मुग्ध करती हुई इन नेत्रों से दिखाई नहीं देती, उसकी आवाज भी सुनाई नहीं देती और न ही वह अपने मुंह से बोलती है।
ਐਸੀ ਠਗਉਰੀ ਪਾਇ ਭੁਲਾਵੈ ਮਨਿ ਸਭ ਕੈ ਲਾਗੈ ਮੀਠੀ ॥੨॥ ऐसी ठगउरी पाइ भुलावै मनि सभ कै लागै मीठी ॥२॥ वह अपनी मोहक माया रूपी नशीली औषधि से लोगों को भ्रमित कर देते हैं; और यह सबके मन को आकर्षक व सुखद प्रतीत होता है। ॥२॥
ਮਾਇ ਬਾਪ ਪੂਤ ਹਿਤ ਭ੍ਰਾਤਾ ਉਨਿ ਘਰਿ ਘਰਿ ਮੇਲਿਓ ਦੂਆ ॥ माइ बाप पूत हित भ्राता उनि घरि घरि मेलिओ दूआ ॥ घर-घर में परस्पर प्रेम करने वाले माता-पिता, पुत्रों एवं भाइयों में माया ने भेदभाव एवं अलगाव उत्पन्न कर दिया है।
ਕਿਸ ਹੀ ਵਾਧਿ ਘਾਟਿ ਕਿਸ ਹੀ ਪਹਿ ਸਗਲੇ ਲਰਿ ਲਰਿ ਮੂਆ ॥੩॥ किस ही वाधि घाटि किस ही पहि सगले लरि लरि मूआ ॥३॥ माया किसी के पास कम है, किसी के पास अधिक है और वे सभी परस्पर लड़-लड़कर मरते हैं॥ ३॥
ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਸਤਿਗੁਰ ਅਪੁਨੇ ਜਿਨਿ ਇਹੁ ਚਲਤੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥ हउ बलिहारी सतिगुर अपुने जिनि इहु चलतु दिखाइआ ॥ मैं अपने सतगुरु पर बलिहारी जाता हूँ, जिसने मुझे माया की यह विचित्र लीला दिखा दी है।
ਗੂਝੀ ਭਾਹਿ ਜਲੈ ਸੰਸਾਰਾ ਭਗਤ ਨ ਬਿਆਪੈ ਮਾਇਆ ॥੪॥ गूझी भाहि जलै संसारा भगत न बिआपै माइआ ॥४॥ शरीरों में छिपी हुई इस तृष्णाग्नि से समूचा जगत् जल रहा है परन्तु भक्तजनों को यह माया प्रभावित नहीं करती। ॥४॥
ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਮਹਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਸਗਲੇ ਬੰਧਨ ਕਾਟੇ ॥ संत प्रसादि महा सुखु पाइआ सगले बंधन काटे ॥ संतों की कृपा से मुझे परम सुख प्राप्त हो गया है और उन्होंने मेरे सभी बन्धन काट दिए हैं।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨਾਨਕ ਧਨੁ ਪਾਇਆ ਅਪੁਨੈ ਘਰਿ ਲੈ ਆਇਆ ਖਾਟੇ ॥੫॥੧੧॥ हरि हरि नामु नानक धनु पाइआ अपुनै घरि लै आइआ खाटे ॥५॥११॥ हे नानक ! मैंने हरि-नाम रूपी धन को पा लिया है और मैं यह नाम-धन कमा कर अपने हृदय रूपी घर में ले आया हूँ ॥५॥११॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ धनासरी महला ५ ॥ राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਤੁਮ ਦਾਤੇ ਠਾਕੁਰ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਕ ਨਾਇਕ ਖਸਮ ਹਮਾਰੇ ॥ तुम दाते ठाकुर प्रतिपालक नाइक खसम हमारे ॥ हे ईश्वर ! आप हमारे दाता एवं ठाकुर हो, आप ही हमारा पालन-पोषण करते हो, आप ही समूचे विश्व के नायक और आप ही हमारे स्वामी हो।


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