Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 672

Page 672

ਅਲੰਕਾਰ ਮਿਲਿ ਥੈਲੀ ਹੋਈ ਹੈ ਤਾ ਤੇ ਕਨਿਕ ਵਖਾਨੀ ॥੩॥ अलंकार मिलि थैली होई है ता ते कनिक वखानी ॥३॥ जैसे सोने के विभिन्न आभूषण पिघलकर एक ही सोने की गांठ बन जाते हैं, और वह अब भी सोना ही कहलाता है, वैसे ही मैं स्वयं को और सभी प्राणियों को एक ही मूल स्रोत, ईश्वर का अभिन्न अंश अनुभव करता हूँ।॥३॥
ਪ੍ਰਗਟਿਓ ਜੋਤਿ ਸਹਜ ਸੁਖ ਸੋਭਾ ਬਾਜੇ ਅਨਹਤ ਬਾਨੀ ॥ प्रगटिओ जोति सहज सुख सोभा बाजे अनहत बानी ॥ मेरे मन में प्रभु की ज्योति प्रगट हो गई है और मन में सहज सुख उत्पन्न हो गया है। अब हर जगह मेरी शोभा हो रही है और मन में अनहद शब्द गूंज रहा है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਨਿਹਚਲ ਘਰੁ ਬਾਧਿਓ ਗੁਰਿ ਕੀਓ ਬੰਧਾਨੀ ॥੪॥੫॥ कहु नानक निहचल घरु बाधिओ गुरि कीओ बंधानी ॥४॥५॥ हे नानक ! जिस पर सच्चे गुरु की कृपा से नाम का आशीर्वाद बरसता है, वही प्रभु की उपस्थिति में अचल स्थान प्राप्त करता है। ॥४॥५॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ धनासरी महला ५ ॥ राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਵਡੇ ਵਡੇ ਰਾਜਨ ਅਰੁ ਭੂਮਨ ਤਾ ਕੀ ਤ੍ਰਿਸਨ ਨ ਬੂਝੀ ॥ वडे वडे राजन अरु भूमन ता की त्रिसन न बूझी ॥ जगत् में बड़े-बड़े राजा एवं भूमिपति हुए हैं, परन्तु उनकी तृष्णाग्नि नहीं बुझी।
ਲਪਟਿ ਰਹੇ ਮਾਇਆ ਰੰਗ ਮਾਤੇ ਲੋਚਨ ਕਛੂ ਨ ਸੂਝੀ ॥੧॥ लपटि रहे माइआ रंग माते लोचन कछू न सूझी ॥१॥ वे माया के मोह में मस्त हुए उससे लिपटे रहे हैं और उन्हें अपनी आँखों से माया के अतिरिक्त अन्य कुछ दिखाई नहीं दिया॥१॥
ਬਿਖਿਆ ਮਹਿ ਕਿਨ ਹੀ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਨ ਪਾਈ ॥ बिखिआ महि किन ही त्रिपति न पाई ॥ विष रूपी माया में किसी को तृप्ति प्राप्त नहीं हुई।
ਜਿਉ ਪਾਵਕੁ ਈਧਨਿ ਨਹੀ ਧ੍ਰਾਪੈ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਕਹਾ ਅਘਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥ जिउ पावकु ईधनि नही ध्रापै बिनु हरि कहा अघाई ॥ रहाउ ॥ जैसे अग्नि ईंधन से तृप्त नहीं होती, वैसे ही भगवान् के बिना मन कैसे तृप्त हो सकता है? ॥ रहाउ ॥
ਦਿਨੁ ਦਿਨੁ ਕਰਤ ਭੋਜਨ ਬਹੁ ਬਿੰਜਨ ਤਾ ਕੀ ਮਿਟੈ ਨ ਭੂਖਾ ॥ दिनु दिनु करत भोजन बहु बिंजन ता की मिटै न भूखा ॥ मनुष्य प्रतिदिन अनेक प्रकार के स्वादिष्ट भोजन एवं व्यंजन खाता रहता है, परन्तु उसकी खाने की भूख नहीं मिटती।
ਉਦਮੁ ਕਰੈ ਸੁਆਨ ਕੀ ਨਿਆਈ ਚਾਰੇ ਕੁੰਟਾ ਘੋਖਾ ॥੨॥ उदमु करै सुआन की निआई चारे कुंटा घोखा ॥२॥ वह स्वादिष्ट भोजन के लिए चारों दिशाओं में भोजन की तलाश में कुत्ते की तरह इधर-उधर दौड़ता है। ॥ २॥
ਕਾਮਵੰਤ ਕਾਮੀ ਬਹੁ ਨਾਰੀ ਪਰ ਗ੍ਰਿਹ ਜੋਹ ਨ ਚੂਕੈ ॥ कामवंत कामी बहु नारी पर ग्रिह जोह न चूकै ॥ कामासक्त हुआ कामुक मनुष्य अनेक नारियों से भोग-विलास करता है परन्तु फिर भी उसका पराए घरों की नारियों की ओर देखना खत्म नहीं होता।
ਦਿਨ ਪ੍ਰਤਿ ਕਰੈ ਕਰੈ ਪਛੁਤਾਪੈ ਸੋਗ ਲੋਭ ਮਹਿ ਸੂਕੈ ॥੩॥ दिन प्रति करै करै पछुतापै सोग लोभ महि सूकै ॥३॥ वह नित्य-प्रतिदिन पाप कर करके पछताता है और शोक एवं लोभ में सूखता जाता है ॥३॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਪਾਰ ਅਮੋਲਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਏਕੁ ਨਿਧਾਨਾ ॥ हरि हरि नामु अपार अमोला अम्रितु एकु निधाना ॥ परमात्मा का नाम बड़ा अपार-अनमोल है और यह एक अमृत रूपी खजाना है।
ਸੂਖੁ ਸਹਜੁ ਆਨੰਦੁ ਸੰਤਨ ਕੈ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਤੇ ਜਾਨਾ ॥੪॥੬॥ सूखु सहजु आनंदु संतन कै नानक गुर ते जाना ॥४॥६॥ हे नानक ! मैंने यह भेद गुरु से समझ लिया है कि नामामृत से संतजनों के हृदय में सहज सुख एवं आनंद बना रहता है।॥४॥६॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਃ ੫ ॥ धनासरी मः ५ ॥ राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਲਵੈ ਨ ਲਾਗਨ ਕਉ ਹੈ ਕਛੂਐ ਜਾ ਕਉ ਫਿਰਿ ਇਹੁ ਧਾਵੈ ॥ लवै न लागन कउ है कछूऐ जा कउ फिरि इहु धावै ॥ जिन पदार्थों के लिए मानव बार-बार इधर-उधर दौड़ता रहता है, इनमें से कुछ भी प्रभु-नाम के तुल्य नहीं है।
ਜਾ ਕਉ ਗੁਰਿ ਦੀਨੋ ਇਹੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਤਿਸ ਹੀ ਕਉ ਬਨਿ ਆਵੈ ॥੧॥ जा कउ गुरि दीनो इहु अम्रितु तिस ही कउ बनि आवै ॥१॥ गुरु ने जिस व्यक्ति को यह नामामृत प्रदान किया है, उसे ही इसके मूल्य की समझ आती है॥१॥
ਜਾ ਕਉ ਆਇਓ ਏਕੁ ਰਸਾ ॥ जा कउ आइओ एकु रसा ॥ जिस जिज्ञासु को प्रभु-नाम का एक स्वाद मिल गया है,
ਖਾਨ ਪਾਨ ਆਨ ਨਹੀ ਖੁਧਿਆ ਤਾ ਕੈ ਚਿਤਿ ਨ ਬਸਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥ खान पान आन नही खुधिआ ता कै चिति न बसा ॥ रहाउ ॥ उसके चित्त में खाने-पीने एवं किसी अन्य पदार्थ की भूख नहीं रहती॥ रहाउ॥
ਮਉਲਿਓ ਮਨੁ ਤਨੁ ਹੋਇਓ ਹਰਿਆ ਏਕ ਬੂੰਦ ਜਿਨਿ ਪਾਈ ॥ मउलिओ मनु तनु होइओ हरिआ एक बूंद जिनि पाई ॥ जिसे इस नामामृत की एक बूंद भी मिल गई है, उसका मन एवं तन प्रफुल्लित एवं हरा-भरा हो गया है।
ਬਰਨਿ ਨ ਸਾਕਉ ਉਸਤਤਿ ਤਾ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ॥੨॥ बरनि न साकउ उसतति ता की कीमति कहणु न जाई ॥२॥ मैं उसकी प्रशंसा वर्णन नहीं कर सकता और मुझ से उसका मूल्यांकन किया नहीं जा सकता॥ २॥
ਘਾਲ ਨ ਮਿਲਿਓ ਸੇਵ ਨ ਮਿਲਿਓ ਮਿਲਿਓ ਆਇ ਅਚਿੰਤਾ ॥ घाल न मिलिओ सेव न मिलिओ मिलिओ आइ अचिंता ॥ प्रभु मुझे कठिन परिश्रम करने से नहीं मिला और न ही सेवा करने से मिला, वह तो स्वयं ही आकर अचिन्त हो मुझे मिल गया है।
ਜਾ ਕਉ ਦਇਆ ਕਰੀ ਮੇਰੈ ਠਾਕੁਰਿ ਤਿਨਿ ਗੁਰਹਿ ਕਮਾਨੋ ਮੰਤਾ ॥੩॥ जा कउ दइआ करी मेरै ठाकुरि तिनि गुरहि कमानो मंता ॥३॥ मेरे ठाकुर ने जिस पर अपनी दया की है, उसने ही गुरु-मंत्र को कमाया है॥ ३॥
ਦੀਨ ਦੈਆਲ ਸਦਾ ਕਿਰਪਾਲਾ ਸਰਬ ਜੀਆ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਾ ॥ दीन दैआल सदा किरपाला सरब जीआ प्रतिपाला ॥ वह दीनदयाल सदैव कृपा का घर है और सब जीवों का पोषण करता है।
ਓਤਿ ਪੋਤਿ ਨਾਨਕ ਸੰਗਿ ਰਵਿਆ ਜਿਉ ਮਾਤਾ ਬਾਲ ਗੋੁਪਾਲਾ ॥੪॥੭॥ ओति पोति नानक संगि रविआ जिउ माता बाल गोपाला ॥४॥७॥ हे नानक ! परमात्मा जीव के संग ताने-बाने की तरह मिला रहता है और वह जीव का यूं पोषण करता है, जैसे एक माता अपने बालक का पोषण करती है॥ ४॥ ७ ॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ धनासरी महला ५ ॥ राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਬਾਰਿ ਜਾਉ ਗੁਰ ਅਪੁਨੇ ਊਪਰਿ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜ੍ਹ੍ਹਾਯਾ ॥ बारि जाउ गुर अपुने ऊपरि जिनि हरि हरि नामु द्रिड़्हाया ॥ मैं अपने गुरु पर बलिहारी जाता हूँ, जिसने परमात्मा का नाम मेरे हृदय में दृढ़ कर दिया है,
ਮਹਾ ਉਦਿਆਨ ਅੰਧਕਾਰ ਮਹਿ ਜਿਨਿ ਸੀਧਾ ਮਾਰਗੁ ਦਿਖਾਯਾ ॥੧॥ महा उदिआन अंधकार महि जिनि सीधा मारगु दिखाया ॥१॥ जिसने मुझे संसार रूपी महा भयंकर जंगल के घोर अन्धकार में भटकते हुए को सन्मार्ग दिखा दिया है॥१ ॥
ਹਮਰੇ ਪ੍ਰਾਨ ਗੁਪਾਲ ਗੋਬਿੰਦ ॥ हमरे प्रान गुपाल गोबिंद ॥ जगतपालक परमेश्वर ही मेरे प्राण है,
ਈਹਾ ਊਹਾ ਸਰਬ ਥੋਕ ਕੀ ਜਿਸਹਿ ਹਮਾਰੀ ਚਿੰਦ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ईहा ऊहा सरब थोक की जिसहि हमारी चिंद ॥१॥ रहाउ ॥ जिसे लोक एवं परलोक में समस्त पदार्थ देने की हमारी चिन्ता रहती है।॥१॥ रहाउ॥
ਜਾ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਸਰਬ ਨਿਧਾਨਾ ਮਾਨੁ ਮਹਤੁ ਪਤਿ ਪੂਰੀ ॥ जा कै सिमरनि सरब निधाना मानु महतु पति पूरी ॥ जिसका सिमरन करने से सब निधियाँ, आदर-सत्कार, शोभा एवं पूर्ण सम्मान मिल जाता है,
ਨਾਮੁ ਲੈਤ ਕੋਟਿ ਅਘ ਨਾਸੇ ਭਗਤ ਬਾਛਹਿ ਸਭਿ ਧੂਰੀ ॥੨॥ नामु लैत कोटि अघ नासे भगत बाछहि सभि धूरी ॥२॥ जिसका नाम लेने से करोड़ों पाप नाश हो जाते हैं, सब भक्तजन उस प्रभु की चरण-धूलि की कामना करते हैं।॥ २॥
ਸਰਬ ਮਨੋਰਥ ਜੇ ਕੋ ਚਾਹੈ ਸੇਵੈ ਏਕੁ ਨਿਧਾਨਾ ॥ सरब मनोरथ जे को चाहै सेवै एकु निधाना ॥ यदि कोई अपने समस्त मनोरथ पूरे करना चाहता है तो उसे एक ईश्वर की ही उपासना करनी चाहिए, जो समस्त पदार्थों का खजाना है।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਅਪਰੰਪਰ ਸੁਆਮੀ ਸਿਮਰਤ ਪਾਰਿ ਪਰਾਨਾ ॥੩॥ पारब्रहम अपर्मपर सुआमी सिमरत पारि पराना ॥३॥ जगत् का स्वामी परब्रह्म अपरंपार है, जिसका चिंतन करने से जीव का कल्याण हो जाता है।३॥
ਸੀਤਲ ਸਾਂਤਿ ਮਹਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਸੰਤਸੰਗਿ ਰਹਿਓ ਓਲ੍ਹ੍ਹਾ ॥ सीतल सांति महा सुखु पाइआ संतसंगि रहिओ ओल्हा ॥ मेरा मन शीतल हो गया है और मैंने शांति एवं परम सुख पा लिया है। संतों की संगति में मेरा मान-सम्मान स्थिर रह गया है।
ਹਰਿ ਧਨੁ ਸੰਚਨੁ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਭੋਜਨੁ ਇਹੁ ਨਾਨਕ ਕੀਨੋ ਚੋਲ੍ਹ੍ਹਾ ॥੪॥੮॥ हरि धनु संचनु हरि नामु भोजनु इहु नानक कीनो चोल्हा ॥४॥८॥ हे नानक हरि-नाम धन संचित करना एवं हरि-नाम रूपी भोजन खाना मैंने यह अपना स्वादिष्ट पकवान बना लिया है॥४॥८॥


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