Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 657

Page 657

ਨਾਦਿ ਸਮਾਇਲੋ ਰੇ ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟਿਲੇ ਦੇਵਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सतगुरु से भेंट होने पर अनहद शब्द में समा गया हूँ।॥ १ ॥ रहाउ ॥
ਜਹ ਝਿਲਿ ਮਿਲਿ ਕਾਰੁ ਦਿਸੰਤਾ ॥ जहाँ झिलमिल उजाले का प्रकाश दिखाई देता है,
ਤਹ ਅਨਹਦ ਸਬਦ ਬਜੰਤਾ ॥ वहाँ अनहद शब्द बजता रहता है।
ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਸਮਾਨੀ ॥ मेरी ज्योति परम ज्योति में विलीन हो गई है।
ਮੈ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਜਾਨੀ ॥੨॥ गुरु की कृपा से मैंने इस तथ्य को समझ लिया है।२।
ਰਤਨ ਕਮਲ ਕੋਠਰੀ ॥ हृदय-कमल की कोठरी में गुणों के रत्न विद्यमान हैं और
ਚਮਕਾਰ ਬੀਜੁਲ ਤਹੀ ॥ वहाँ वे दामिनी की तरह चमकते हैं।
ਨੇਰੈ ਨਾਹੀ ਦੂਰਿ ॥ वह प्रभु कहीं दूर नहीं अपितु पास ही है।
ਨਿਜ ਆਤਮੈ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰਿ ॥੩॥ वह तो मेरी आत्मा में ही निवास कर रहा है।॥३॥
ਜਹ ਅਨਹਤ ਸੂਰ ਉਜ੍ਯ੍ਯਾਰਾ ॥ जहाँ अनश्वर सूर्य का उजाला है,
ਤਹ ਦੀਪਕ ਜਲੈ ਛੰਛਾਰਾ ॥ वहाँ जलते हुए सूर्य एवं चन्द्रमा के दीपक तुच्छ प्रतीत होते हैं।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਜਾਨਿਆ ॥ गुरु की अपार कृपा से मैंने यह समझ लिया है और
ਜਨੁ ਨਾਮਾ ਸਹਜ ਸਮਾਨਿਆ ॥੪॥੧॥ दास नामदेव सहज ही प्रभु में समा गया है ॥४॥१॥
ਘਰੁ ੪ ਸੋਰਠਿ ॥ घरु ४ सोरठि ॥
ਪਾੜ ਪੜੋਸਣਿ ਪੂਛਿ ਲੇ ਨਾਮਾ ਕਾ ਪਹਿ ਛਾਨਿ ਛਵਾਈ ਹੋ ॥ निकटवर्ती पड़ोसिन पूछती है कि हे नामदेव ! ‘तूने अपनी यह कुटिया किससे बनवाई है?”
ਤੋ ਪਹਿ ਦੁਗਣੀ ਮਜੂਰੀ ਦੈਹਉ ਮੋ ਕਉ ਬੇਢੀ ਦੇਹੁ ਬਤਾਈ ਹੋ ॥੧॥ तुम मुझे उस बढ़ई के बारे में बता दो, मैं उसे तुझ से भी दुगुनी मजदूरी दूँगी।॥१॥
ਰੀ ਬਾਈ ਬੇਢੀ ਦੇਨੁ ਨ ਜਾਈ ॥ अरी बहन ! उस बढ़ई के बारे में तुझे बताया अथवा उसका पता दिया नहीं जा सकता।
ਦੇਖੁ ਬੇਢੀ ਰਹਿਓ ਸਮਾਈ ॥ देख ! मेरा बढ़ई तो सबमें समां रहा है।
ਹਮਾਰੈ ਬੇਢੀ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ वह बढ़ई हमारे प्राणो का आधार है।॥१॥ रहाउ ॥
ਬੇਢੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਮਜੂਰੀ ਮਾਂਗੈ ਜਉ ਕੋਊ ਛਾਨਿ ਛਵਾਵੈ ਹੋ ॥ यदि कोई उससे कुटिया बनवाना चाहे तो बढ़ई प्रीति की ही मजदूरी माँगता है।
ਲੋਗ ਕੁਟੰਬ ਸਭਹੁ ਤੇ ਤੋਰੈ ਤਉ ਆਪਨ ਬੇਢੀ ਆਵੈ ਹੋ ॥੨॥ जब मनुष्य लोगो एवं कुटुंब से रिश्ता तोड़ लेता है तो बढ़ई ही हृदय में आ जाता है।॥२॥
ਐਸੋ ਬੇਢੀ ਬਰਨਿ ਨ ਸਾਕਉ ਸਭ ਅੰਤਰ ਸਭ ਠਾਂਈ ਹੋ ॥ मैं ऐसे बढ़ई के बारे में वर्णन नहीं कर सकता, चूँकि वह तो सबके भीतर में स्थित है एवं सर्वव्यापी है।
ਗੂੰਗੈ ਮਹਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਚਾਖਿਆ ਪੂਛੇ ਕਹਨੁ ਨ ਜਾਈ ਹੋ ॥੩॥ जैसे कोई गूंगा महा अमृत रस को चखता हैं, परन्तु यदि उससे पूछा जाए तो वह इसे कथन नहीं कर सकता ॥३॥
ਬੇਢੀ ਕੇ ਗੁਣ ਸੁਨਿ ਰੀ ਬਾਈ ਜਲਧਿ ਬਾਂਧਿ ਧ੍ਰੂ ਥਾਪਿਓ ਹੋ ॥ अरी बहन ! तू उस बढ़ई की महिमा सुन: उसने ही समुद्र पर सेतु बनाया था और भक्त ध्रुव को भी उसने ही उच्च पदवी पर स्थापित किया था।
ਨਾਮੇ ਕੇ ਸੁਆਮੀ ਸੀਅ ਬਹੋਰੀ ਲੰਕ ਭਭੀਖਣ ਆਪਿਓ ਹੋ ॥੪॥੨॥ नामदेव के स्वामी राम ही लंका पर विजय पाकर सीता जी को ले आए थे और लंका का शाशन विभीषण को सौंप दिया था। ॥४॥२॥
ਸੋਰਠਿ ਘਰੁ ੩ ॥ सोरठि घरु ३ ॥
ਅਣਮੜਿਆ ਮੰਦਲੁ ਬਾਜੈ ॥ खाल के बिना मढ़ा हुआ ढोलक बजता है।
ਬਿਨੁ ਸਾਵਣ ਘਨਹਰੁ ਗਾਜੈ ॥ सावन के बिना ही बादल गर्जता है।
ਬਾਦਲ ਬਿਨੁ ਬਰਖਾ ਹੋਈ ॥ बादल के बिना ही वर्षा होती है,
ਜਉ ਤਤੁ ਬਿਚਾਰੈ ਕੋਈ ॥੧॥ यदि कोई परम-तत्व का विचार करता है तो ही ऐसा प्रतीत होता है ॥१॥
ਮੋ ਕਉ ਮਿਲਿਓ ਰਾਮੁ ਸਨੇਹੀ ॥ मुझे अपना स्नेही राम मिल गया है,
ਜਿਹ ਮਿਲਿਐ ਦੇਹ ਸੁਦੇਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जिसको मिलने से मेरी यह देह निर्मल बन गई है ॥१॥ रहाउ ॥
ਮਿਲਿ ਪਾਰਸ ਕੰਚਨੁ ਹੋਇਆ ॥ पारस रूपी गुरु से मिलकर मैं सोना अर्थात् पावन बन गया हूँ।
ਮੁਖ ਮਨਸਾ ਰਤਨੁ ਪਰੋਇਆ ॥ अपने मुँह एवं मन में उस प्रभु-नाम के रत्नों को पिरोया हुआ है।
ਨਿਜ ਭਾਉ ਭਇਆ ਭ੍ਰਮੁ ਭਾਗਾ ॥ उस प्रभु को मैं अपना समझ कर प्यार करता हूँ और मेरा भ्रम निवृत हो गया है।
ਗੁਰ ਪੂਛੇ ਮਨੁ ਪਤੀਆਗਾ ॥੨॥ गुरु से उपदेश प्राप्त करके मेरा मन तृप्त हो गया है॥२॥
ਜਲ ਭੀਤਰਿ ਕੁੰਭ ਸਮਾਨਿਆ ॥ जैसे जल घड़े के भीतर ही समाया हुआ है
ਸਭ ਰਾਮੁ ਏਕੁ ਕਰਿ ਜਾਨਿਆ ॥ वैसे ही मैं जानता हूँ कि एक राम ही सब जीवों में समाया हुआ है।
ਗੁਰ ਚੇਲੇ ਹੈ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ॥ चेले का मन गुरु पर ही भरोसा करता है।
ਜਨ ਨਾਮੈ ਤਤੁ ਪਛਾਨਿਆ ॥੩॥੩॥ सेवक नामदेव ने इस तथ्य को पहचान लिया है ॥३॥३॥
ਰਾਗੁ ਸੋਰਠਿ ਬਾਣੀ ਭਗਤ ਰਵਿਦਾਸ ਜੀ ਕੀ रागु सोरठि बाणी भगत रविदास जी की
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਜਬ ਹਮ ਹੋਤੇ ਤਬ ਤੂ ਨਾਹੀ ਅਬ ਤੂਹੀ ਮੈ ਨਾਹੀ ॥ हे ईश्वर ! जब मुझ में आत्माभिमान था, तब तू मुझ में नहीं था, अब जब तू मेरे भीतर है तो मेरा आत्माभिमान दूर हो गया है।
ਅਨਲ ਅਗਮ ਜੈਸੇ ਲਹਰਿ ਮਇ ਓਦਧਿ ਜਲ ਕੇਵਲ ਜਲ ਮਾਂਹੀ ॥੧॥ जैसे-जैसे अग्नि की अनंत चिंगारियाँ होती हैं, पर वे अग्नि का ही रूप होती हैं। पवन के साथ बड़े समुद्र में भारी लहरें उठती हैं परन्तु वे लहरें केवल समुद्र के जल में जल ही होती हैं वैसे ही यह जगत परमात्मा में से पैदा होने के कारण उसका रूप है ।१।
ਮਾਧਵੇ ਕਿਆ ਕਹੀਐ ਭ੍ਰਮੁ ਐਸਾ ॥ हे माधव ! हम प्राणियों का तो भ्रम ही ऐसा है, हम इसके बारे में क्या कह सकते हैं ?
ਜੈਸਾ ਮਾਨੀਐ ਹੋਇ ਨ ਤੈਸਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जैसा हम किसी वस्तु को मानते हैं, वह वैसी नहीं होती॥ १ ॥ रहाउ॥
ਨਰਪਤਿ ਏਕੁ ਸਿੰਘਾਸਨਿ ਸੋਇਆ ਸੁਪਨੇ ਭਇਆ ਭਿਖਾਰੀ ॥ जैसे एक राजा अपने सिंहासन पर निद्रा-मग्न हो जाता है और स्वप्न में वह भिखारी बन जाता है।
ਅਛਤ ਰਾਜ ਬਿਛੁਰਤ ਦੁਖੁ ਪਾਇਆ ਸੋ ਗਤਿ ਭਈ ਹਮਾਰੀ ॥੨॥ उसका राज्य अच्छा है परन्तु इससे विछुड़ कर वह बहुत दुखी होता है।ऐसी ही हालत हमारी हुई है ॥२॥


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