Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 641

Page 641

ਤਿਨਾ ਪਿਛੈ ਛੁਟੀਐ ਪਿਆਰੇ ਜੋ ਸਾਚੀ ਸਰਣਾਇ ॥੨॥ (गुरु जी बताते हैं कि) जीव परम सत्य से उत्पन्न होता है और सत्य में ही विलीन हो जाता है और सत्य से मिलकर पावन होकर उसका ही रूप बन जाता है।
ਮਿਠਾ ਕਰਿ ਕੈ ਖਾਇਆ ਪਿਆਰੇ ਤਿਨਿ ਤਨਿ ਕੀਤਾ ਰੋਗੁ ॥ झूठे जीव जन्म लेकर आते हैं किन्तु द्वैतभाव के कारण उन्हें कोई सुख का स्थान नहीं मिलता और आवागमन का चक्र ही पड़ा रहता है।
ਕਉੜਾ ਹੋਇ ਪਤਿਸਟਿਆ ਪਿਆਰੇ ਤਿਸ ਤੇ ਉਪਜਿਆ ਸੋਗੁ ॥ उनका आवागमन का चक्र गुरु के शब्द द्वारा ही मिटता है। ईश्वर स्वयं ही अच्छे बुरे जीवों की परख करता है और स्वयं ही उन्हें क्षमा कर देता है।
ਭੋਗ ਭੁੰਚਾਇ ਭੁਲਾਇਅਨੁ ਪਿਆਰੇ ਉਤਰੈ ਨਹੀ ਵਿਜੋਗੁ ॥ द्वैतभाव के कारण सब जीवों को एक ही वेदना लगी हुई है कि उन्हें नाम-रसायन भूल गया है।
ਜੋ ਗੁਰ ਮੇਲਿ ਉਧਾਰਿਆ ਪਿਆਰੇ ਤਿਨ ਧੁਰੇ ਪਇਆ ਸੰਜੋਗੁ ॥੩॥ हे प्यारे ! जिनका गुरु के मिलन से उद्धार हो गया है, उनका ऐसा ही संयोग लिखा था ॥ ३॥
ਮਾਇਆ ਲਾਲਚਿ ਅਟਿਆ ਪਿਆਰੇ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵਹਿ ਮੂਲਿ ॥ हे प्रभु ! मनुष्य तो धन-दौलत के लालच में ही भरा हुआ है और उसके चित्त में तू कदापि स्मरण नहीं होता।
ਜਿਨ ਤੂ ਵਿਸਰਹਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਸੁਆਮੀ ਸੇ ਤਨ ਹੋਏ ਧੂੜਿ ॥ हे परब्रह्म-परमेश्वर ! जो तुझे भुला देते हैं, उनका शरीर धूल बन जाता है।
ਬਿਲਲਾਟ ਕਰਹਿ ਬਹੁਤੇਰਿਆ ਪਿਆਰੇ ਉਤਰੈ ਨਾਹੀ ਸੂਲੁ ॥ वे बहुत रोते-चिल्लाते हैं किन्तु उनकी पीड़ा निवृत्त नहीं होती।
ਜੋ ਗੁਰ ਮੇਲਿ ਸਵਾਰਿਆ ਪਿਆਰੇ ਤਿਨ ਕਾ ਰਹਿਆ ਮੂਲੁ ॥੪॥ हे प्यारे ! गुरु से मिलाकर तूने जिनका जीवन संवार दिया है, उनका मूल बरकरार रह गया है॥ ४॥
ਸਾਕਤ ਸੰਗੁ ਨ ਕੀਜਈ ਪਿਆਰੇ ਜੇ ਕਾ ਪਾਰਿ ਵਸਾਇ ॥ हे प्यारे मित्र ! जहाँ तक मुमकिन हो सके भगवान से विमुख मनुष्य की संगति मत करो।
ਜਿਸੁ ਮਿਲਿਐ ਹਰਿ ਵਿਸਰੈ ਪਿਆਰੇ ਸੋੁ ਮੁਹਿ ਕਾਲੈ ਉਠਿ ਜਾਇ ॥ जिस विमुख को मिलकर भगवान ही भूल जाता है, फिर कुसंग के कारण मनुष्य तिरस्कृत होकर संसार से चला जाता है।
ਮਨਮੁਖਿ ਢੋਈ ਨਹ ਮਿਲੈ ਪਿਆਰੇ ਦਰਗਹ ਮਿਲੈ ਸਜਾਇ ॥ हे प्यारे ! मनमुख व्यक्तियों को तो कहीं भी शरण नहीं मिलती और उन्हें भगवान के दरबार में कठोर दण्ड ही प्राप्त होता है।
ਜੋ ਗੁਰ ਮੇਲਿ ਸਵਾਰਿਆ ਪਿਆਰੇ ਤਿਨਾ ਪੂਰੀ ਪਾਇ ॥੫॥ जो लोग गुरु से मिलकर अपना जीवन संवार लेते हैं, उनके सभी कार्य संवर जाते हैं।॥५॥
ਸੰਜਮ ਸਹਸ ਸਿਆਣਪਾ ਪਿਆਰੇ ਇਕ ਨ ਚਲੀ ਨਾਲਿ ॥ हे प्यारे ! जीवन में यदि कोई व्यक्ति हजारों ही युक्तियाँ एवं चतुराईयों का प्रयोग भी क्यों न कर ले किन्तु एक भी युक्ति एवं चतुराई उसका साथ नहीं देती।
ਜੋ ਬੇਮੁਖ ਗੋਬਿੰਦ ਤੇ ਪਿਆਰੇ ਤਿਨ ਕੁਲਿ ਲਾਗੈ ਗਾਲਿ ॥ जो परमात्मा से विमुख हो जाते हैं, उनका वंश ही कलंकित हो जाता है।
ਹੋਦੀ ਵਸਤੁ ਨ ਜਾਤੀਆ ਪਿਆਰੇ ਕੂੜੁ ਨ ਚਲੀ ਨਾਲਿ ॥ हे प्यारे ! जो सदैव नाम रूपी वस्तु है, उसे व्यक्ति जानता ही नहीं और झूठ उसके किसी काम नहीं आने वाला।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਜਿਨਾ ਮਿਲਾਇਓਨੁ ਪਿਆਰੇ ਸਾਚਾ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਿ ॥੬॥ हे प्यारे ! ईश्वर जिसे सतगुरु से मिला देता है, वह सत्य नाम का ही चिंतन करता रहता है॥ ६॥
ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਪਿਆਰੇ ਜਿਸ ਨੋ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ॥ हे प्यारे ! जिस पर वह अपनी कृपा-दृष्टि करता है, उसे सत्यं, संतोष, ज्ञान एवं ध्यान की प्राप्ति हो जाती है।
ਅਨਦਿਨੁ ਕੀਰਤਨੁ ਗੁਣ ਰਵੈ ਪਿਆਰੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤਿ ਪੂਰ ਭਰੇ ॥ फिर वह रात-दिन भगवान का ही गुणगान करता रहता है और उसका हृदय नामामृत से भरपूर हो जाता है।
ਦੁਖ ਸਾਗਰੁ ਤਿਨ ਲੰਘਿਆ ਪਿਆਰੇ ਭਵਜਲੁ ਪਾਰਿ ਪਰੇ ॥ वह जीवन के दु:खों के सागर से पार होकर भवसागर से भी पार हो जाता है।
ਜਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਿਸੁ ਮੇਲਿ ਲੈਹਿ ਪਿਆਰੇ ਸੇਈ ਸਦਾ ਖਰੇ ॥੭॥ हे प्यारे प्रभु! जिसे तू पसंद करता है, उसे अपने साथ मिला लेता है और वे सदैव ही सत्यवादी एवं भले हैं।॥७॥
ਸੰਮ੍ਰਥ ਪੁਰਖੁ ਦਇਆਲ ਦੇਉ ਪਿਆਰੇ ਭਗਤਾ ਤਿਸ ਕਾ ਤਾਣੁ ॥ हे प्यारे ! ईश्वर सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी, दीन-दयालु एवं ज्योतिर्मय है और भक्तों को तो उसका ही सहारा है।
ਤਿਸੁ ਸਰਣਾਈ ਢਹਿ ਪਏ ਪਿਆਰੇ ਜਿ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਜਾਣੁ ॥ जो बड़ा अन्तर्यामी एवं दक्ष है, भक्त उसकी शरण में ही पड़े रहते हैं।
ਹਲਤੁ ਪਲਤੁ ਸਵਾਰਿਆ ਪਿਆਰੇ ਮਸਤਕਿ ਸਚੁ ਨੀਸਾਣੁ ॥ हे प्यारे ! भगवान ने तो हमारा लोक-परलोक ही संवार दिया है और मस्तक पर सत्य का चिन्ह अंकित कर दिया है।
ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਕਦੇ ਨ ਵੀਸਰੈ ਪਿਆਰੇ ਨਾਨਕ ਸਦ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥੮॥੨॥ हे प्यारे ! वह प्रभु कदापि विस्मृत न हो चूंकि नानक तो सदा ही उस पर कुर्बान जाता है ॥८॥२॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨ ਅਸਟਪਦੀਆ सोरठि महला ५ घरु २ असटपदीआ
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਪਾਠੁ ਪੜਿਓ ਅਰੁ ਬੇਦੁ ਬੀਚਾਰਿਓ ਨਿਵਲਿ ਭੁਅੰਗਮ ਸਾਧੇ ॥ मनुष्य ने अपने जीवन में विभिन्न पाठों का अध्ययन और वेदों का चिन्तन किया। उसने योगासन श्वास-नियन्त्रण एवं कुण्डलिनी की साधना भी की किन्तु फिर भी
ਪੰਚ ਜਨਾ ਸਿਉ ਸੰਗੁ ਨ ਛੁਟਕਿਓ ਅਧਿਕ ਅਹੰਬੁਧਿ ਬਾਧੇ ॥੧॥ उसका पाँचों विकारों-काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार से साथ नहीं छूटा अपितु वह अधिक अहंकार में ही बंध गया ॥१॥
ਪਿਆਰੇ ਇਨ ਬਿਧਿ ਮਿਲਣੁ ਨ ਜਾਈ ਮੈ ਕੀਏ ਕਰਮ ਅਨੇਕਾ ॥ हे प्यारे ! मैंने भी ऐसे अनेक कर्म किए हैं। लेकिन इन विधियों द्वारा भगवान से मिलन नहीं होता,
ਹਾਰਿ ਪਰਿਓ ਸੁਆਮੀ ਕੈ ਦੁਆਰੈ ਦੀਜੈ ਬੁਧਿ ਬਿਬੇਕਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥ मैं हार-थक प्रभु के द्वार पर आ गया हूँ और उससे यही प्रार्थना करता हूँ कि हे जगत के स्वामी ! दया करके मुझे विवेक-बुद्धि दीजिए॥ रहाउ॥
ਮੋਨਿ ਭਇਓ ਕਰਪਾਤੀ ਰਹਿਓ ਨਗਨ ਫਿਰਿਓ ਬਨ ਮਾਹੀ ॥ मनुष्य मौन धारण करता है, अपने हाथों का ही पतल के रूप में प्रयोग करता है, वह वनों में नग्न भटकता है और
ਤਟ ਤੀਰਥ ਸਭ ਧਰਤੀ ਭ੍ਰਮਿਓ ਦੁਬਿਧਾ ਛੁਟਕੈ ਨਾਹੀ ॥੨॥ तीर्थों के तटों सहित समस्त धरती में भ्रमण करता है परन्तु फिर भी उसकी दुविधा समाप्त नहीं होती॥ २॥


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