Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 640

Page 640

ਮੇਰਾ ਤੇਰਾ ਛੋਡੀਐ ਭਾਈ ਹੋਈਐ ਸਭ ਕੀ ਧੂਰਿ ॥ तूने किस विधि द्वारा अपनी आशा एवं अभिलाषाओं को समाप्त कर लिया है और
ਘਟਿ ਘਟਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਪਸਾਰਿਆ ਭਾਈ ਪੇਖੈ ਸੁਣੈ ਹਜੂਰਿ ॥ किस विधि द्वारा परम-ज्योति प्राप्त कर ली है?
ਜਿਤੁ ਦਿਨਿ ਵਿਸਰੈ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਭਾਈ ਤਿਤੁ ਦਿਨਿ ਮਰੀਐ ਝੂਰਿ ॥ दाँतों के बिना अहंत्व रूपी लोहा कैसे चबाया जा सकता है ?
ਕਰਨ ਕਰਾਵਨ ਸਮਰਥੋ ਭਾਈ ਸਰਬ ਕਲਾ ਭਰਪੂਰਿ ॥੪॥ हे नानक ! इस बारे में सच्चा विचार करो ॥१९॥
ਪ੍ਰੇਮ ਪਦਾਰਥੁ ਨਾਮੁ ਹੈ ਭਾਈ ਮਾਇਆ ਮੋਹ ਬਿਨਾਸੁ ॥ (गुरु नानक देव जी उत्तर देते हैं कि) जब मैंने सतगुरु का आश्रय लेकर जीवन बदल लिया तो उसने मेरा आवागमन ही मिटा दिया।
ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਮੇਲਿ ਲਏ ਭਾਈ ਹਿਰਦੈ ਨਾਮ ਨਿਵਾਸੁ ॥ मेरा मन अनाहत शब्द में ही प्रवृत्त रहता है और
ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਮਲੁ ਪ੍ਰਗਾਸੀਐ ਭਾਈ ਰਿਦੈ ਹੋਵੈ ਪਰਗਾਸੁ ॥ ब्रह्म-शब्द द्वारा आशा-अभिलाषा को जला दिया है।
ਪ੍ਰਗਟੁ ਭਇਆ ਪਰਤਾਪੁ ਪ੍ਰਭ ਭਾਈ ਮਉਲਿਆ ਧਰਤਿ ਅਕਾਸੁ ॥੫॥ मैंने गुरुमुख बनकर निरंतर प्रज्वलित परम-ज्योति प्राप्त कर ली है।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਸੰਤੋਖਿਆ ਭਾਈ ਅਹਿਨਿਸਿ ਲਾਗਾ ਭਾਉ ॥ जो माया के तीन गुणों को अपने मन से मिटा देता है, वही अहंत्व रूपी लोहे को चबाता है।
ਰਸਨਾ ਰਾਮੁ ਰਵੈ ਸਦਾ ਭਾਈ ਸਾਚਾ ਸਾਦੁ ਸੁਆਉ ॥ हे नानक ! तारनहार परमेश्वर स्वयं ही भवसागर से पार करा देता है॥ २० ॥
ਕਰਨੀ ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਜੀਵਿਆ ਭਾਈ ਨਿਹਚਲੁ ਪਾਇਆ ਥਾਉ ॥ (सिद्धों ने पुनः पूछा-) सृष्टि-रचना के संबंध में आपका क्या विचार है और यह भी बताइए कि शून्य रूप में परम-सत्य का कहाँ वास था ?
ਜਿਸੁ ਪਰਤੀਤਿ ਨ ਆਵਈ ਭਾਈ ਸੋ ਜੀਅੜਾ ਜਲਿ ਜਾਉ ॥੬॥ ज्ञान की मुद्रा के बारे में आप क्या कहते हैं और घट-घट में किसका निवास है ?
ਬਹੁ ਗੁਣ ਮੇਰੇ ਸਾਹਿਬੈ ਭਾਈ ਹਉ ਤਿਸ ਕੈ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥ काल की चोट से कैसे बचा जा सकता है? और निर्भय होकर सच्चे घर में कैसे जाया जाए ?
ਓਹੁ ਨਿਰਗੁਣੀਆਰੇ ਪਾਲਦਾ ਭਾਈ ਦੇਇ ਨਿਥਾਵੇ ਥਾਉ ॥ सहज संतोष का आसन कैसे जान लिया जाए और कामादिक चैरियों का नाश कैसे किया जा सकता है ?
ਰਿਜਕੁ ਸੰਬਾਹੇ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਭਾਈ ਗੂੜਾ ਜਾ ਕਾ ਨਾਉ ॥ "(गुरु नानक देव जी उत्तर देते हैं कि) जो व्यक्ति गुरु के शब्द द्वारा अहम् रूपी विष को समाप्त कर देता है, उसका सच्चे घर में निवास हो जाता है।
ਜਿਸੁ ਗੁਰੁ ਸਾਚਾ ਭੇਟੀਐ ਭਾਈ ਪੂਰਾ ਤਿਸੁ ਕਰਮਾਉ ॥੭॥ जिसने यह सृष्टि रचना की है, जो उसे शब्द द्वारा पहचान लेता है, नानक तो उसका दास है॥ २१॥
ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਘੜੀ ਨ ਜੀਵੀਐ ਭਾਈ ਸਰਬ ਕਲਾ ਭਰਪੂਰਿ ॥ (सिद्धों ने पुनः प्रश्न किया कि) यह जीव कहाँ से आता है और कहीं चला जाता है ? आने से पूर्व एवं जाने के बाद यह कहाँ समाया रहता है ?
ਸਾਸਿ ਗਿਰਾਸਿ ਨ ਵਿਸਰੈ ਭਾਈ ਪੇਖਉ ਸਦਾ ਹਜੂਰਿ ॥ जो इस शब्द के अर्थ समझा देता है, उस गुरु को तिल मात्र भी लोभ नहीं है।
ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਮਿਲਾਇਆ ਭਾਈ ਸਰਬ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰਿ ॥ जीव कैसे परम तत्व परमात्मा को प्राप्त करे और गुरु के माध्यम से उसका किस तरह सत्य से प्रेम हो ?
ਜਿਨਾ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨ ਲਗੀਆ ਭਾਈ ਸੇ ਨਿਤ ਨਿਤ ਮਰਦੇ ਝੂਰਿ ॥੮॥ हे नानक ! उस परमेश्वर के बारे में अपना विचार बताओ, जो स्वयं ही जीवों को पैदा करने वाला है और स्वयं ही दुख-सुख सुनने वाला है।
ਅੰਚਲਿ ਲਾਇ ਤਰਾਇਆ ਭਾਈ ਭਉਜਲੁ ਦੁਖੁ ਸੰਸਾਰੁ ॥ "(गुरु नानक उत्तर देते हैं कि) जीव परमात्मा के हुक्म से जन्म लेता है, उसके हुक्म से ही चला जाता है और उसके हुक्म से ही सत्य में समाया रहता है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿਆ ਭਾਈ ਕੀਤੋਨੁ ਅੰਗੁ ਅਪਾਰੁ ॥ जीव पूर्ण गुरु द्वारा ही सत्कर्म करता है और शब्द से ही सत्य की गति को समझा लेता है॥ २३॥
ਮਨੁ ਤਨੁ ਸੀਤਲੁ ਹੋਇਆ ਭਾਈ ਭੋਜਨੁ ਨਾਮ ਅਧਾਰੁ ॥ (पिछले पूछे प्रश्नों के उत्तर देते हुए गुरु जी सिद्धों को बताते हैं कि) सृष्टि-रचना के बारे में मेरा विचार यह है कि उसे अद्भुत ही कहा जा सकता है। ईश्वर ने निरन्तर शून्यावस्था में निवास किया हुआ था।
ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਸਰਣਾਗਤੀ ਭਾਈ ਜਿ ਕਿਲਬਿਖ ਕਾਟਣਹਾਰੁ ॥੯॥੧॥ गुरु का ज्ञान ही निर्विकल्प मुद्रा है, जिसका विचार करने से यह पता लगता है कि सब जीवों का सच्चा परमेश्वर घट-घट में व्याप्त है।
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥ जब जीव गुरु के वचनों द्वारा प्रभु में लीन हो जाता है तो वह सहज ही परमतत्व निरंजन को पा लेता है।
ਮਾਤ ਗਰਭ ਦੁਖ ਸਾਗਰੋ ਪਿਆਰੇ ਤਹ ਅਪਣਾ ਨਾਮੁ ਜਪਾਇਆ ॥ नानक कहते हैं कि जो शिष्य गुरु की सेवा करता है, वह खोज करके सत्य को प्राप्त कर लेता है और उसे अन्य कार्य नहीं करना चाहिए।
ਬਾਹਰਿ ਕਾਢਿ ਬਿਖੁ ਪਸਰੀਆ ਪਿਆਰੇ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਵਧਾਇਆ ॥ परमात्मा का हुक्म विस्मय है, जो उसके हुक्म को पहचान लेता है, वह इस युक्ति द्वारा उस सत्य को जान लेता है।
ਜਿਸ ਨੋ ਕੀਤੋ ਕਰਮੁ ਆਪਿ ਪਿਆਰੇ ਤਿਸੁ ਪੂਰਾ ਗੁਰੂ ਮਿਲਾਇਆ ॥ वही सच्चा योगी कहा जाता है, जो अपने अहम् को मिटाकर दुनिया से निर्लिप्त हो जाता है और उसके अन्तर्मन में सत्य का निवास हो जाता है। ॥२३॥
ਸੋ ਆਰਾਧੇ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਪਿਆਰੇ ਰਾਮ ਨਾਮ ਲਿਵ ਲਾਇਆ ॥੧॥ (गुरु नानक देव जी सिद्धों को समझाते हैं कि) निर्मल परमात्मा अविगत रूप से पैदा हुआ है और वह अपने निर्गुण रूप से सगुण स्वरूप हो गया।
ਮਨਿ ਤਨਿ ਤੇਰੀ ਟੇਕ ਹੈ ਪਿਆਰੇ ਮਨਿ ਤਨਿ ਤੇਰੀ ਟੇਕ ॥ यदि जीव का मन सतगुरु में लीन रहे तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है और वह सच्चे-शब्द में ही विलीन हो जाता है।
ਤੁਧੁ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕਰਨਹਾਰੁ ਪਿਆਰੇ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਏਕ ॥ ਰਹਾਉ ॥ वह उस एक सत्य को जानता है और अपना अहम् एवं द्वैतभाव को दूर कर देता है।
ਕੋਟਿ ਜਨਮ ਭ੍ਰਮਿ ਆਇਆ ਪਿਆਰੇ ਅਨਿਕ ਜੋਨਿ ਦੁਖੁ ਪਾਇ ॥ जो शब्द-गुरु को पहचान लेता है, वही सच्चा योगी है और उसके हृदय-कमल में परम-ज्योति का प्रकाश हो जाता है।
ਸਾਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਵਿਸਰਿਆ ਪਿਆਰੇ ਬਹੁਤੀ ਮਿਲੈ ਸਜਾਇ ॥ यदि जीव अपने अहंत्व को समाप्त कर दे तो उसे सबकुछ सूझ जाता है और अन्तर्मन में सब पर दया करने वाले ईश्वर को जान लेता है।
ਜਿਨ ਭੇਟੈ ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੂ ਪਿਆਰੇ ਸੇ ਲਾਗੇ ਸਾਚੈ ਨਾਇ ॥ नानक कहते हैं कि जो सब जीवों में बसने वाले परमात्मा को पहचान लेता है, उसे ही कीर्ति प्राप्त होती है।॥ २४ ॥


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