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ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੩ ॥
सोरठि महला ३ ॥
ਹਰਿ ਜੀਉ ਸਬਦੇ ਜਾਪਦਾ ਭਾਈ ਪੂਰੈ ਭਾਗਿ ਮਿਲਾਇ ॥
हे भाई ! परमात्मा तो गुरु के शब्द द्वारा ही ज्ञात होता है, जो पूर्ण भाग्य से ही मिलता है।
ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਸੋਹਾਗਣੀ ਭਾਈ ਅਨਦਿਨੁ ਰਤੀਆ ਰੰਗੁ ਲਾਇ ॥੧॥
वे सुहागिन जीव-स्त्रियाँ तो सदा ही सुखपूर्वक रहती हैं जो प्रेम-रंग लगाकर रात-दिन स्वामी के साथ मग्न रहती हैं।॥ १॥
ਹਰਿ ਜੀ ਤੂ ਆਪੇ ਰੰਗੁ ਚੜਾਇ ॥
हे परमेश्वर ! तू आप ही उन्हें अपना प्रेम-रंग चढ़ाता है।
ਗਾਵਹੁ ਗਾਵਹੁ ਰੰਗਿ ਰਾਤਿਹੋ ਭਾਈ ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਰੰਗੁ ਲਾਇ ॥ ਰਹਾਉ ॥
हे प्रभु-प्रेम में लीन जीव-स्त्रियो ! ईश्वर से प्रेम लगाकर उसके गुण गाओ॥ रहाउ॥
ਗੁਰ ਕੀ ਕਾਰ ਕਮਾਵਣੀ ਭਾਈ ਆਪੁ ਛੋਡਿ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥
हे भाई ! जो जीव-स्त्री अपना आत्माभिमान छोड़कर मन लगाकर गुरु की सेवा करती है।
ਸਦਾ ਸਹਜੁ ਫਿਰਿ ਦੁਖੁ ਨ ਲਗਈ ਭਾਈ ਹਰਿ ਆਪਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥੨॥
इस तरह सदा सुख में रहकर उसे फिर कोई दुःख नहीं लगता और ईश्वर स्वयं ही आकर हृदय में निवास कर लेता है॥ २॥
ਪਿਰ ਕਾ ਹੁਕਮੁ ਨ ਜਾਣਈ ਭਾਈ ਸਾ ਕੁਲਖਣੀ ਕੁਨਾਰਿ ॥
हे भाई ! जो जीव-स्त्री अपने प्रियतम के हुक्म को नहीं जानती, वह कुलक्षणी एवं व्यभिचारिणी नारी है और
ਮਨਹਠਿ ਕਾਰ ਕਮਾਵਣੀ ਭਾਈ ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਕੂੜਿਆਰਿ ॥੩॥
अपना प्रत्येक कार्य अपने मन के हठ से ही करती है, हे भाई ! पति-परमेश्वर के नाम से विहीन होने के कारण वह झूठी है॥ ३॥
ਸੇ ਗਾਵਹਿ ਜਿਨ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗੁ ਹੈ ਭਾਈ ਭਾਇ ਸਚੈ ਬੈਰਾਗੁ ॥
जिनके माथे पर शुभ भाग्य है, हे भाई ! वही भगवान का गुणगान करते हैं और सच्चे परमेश्वर के प्रेम द्वारा वे वैराग्यवान बन जाते हैं।
ਅਨਦਿਨੁ ਰਾਤੇ ਗੁਣ ਰਵਹਿ ਭਾਈ ਨਿਰਭਉ ਗੁਰ ਲਿਵ ਲਾਗੁ ॥੪॥
वे अपनी सुरति निर्भय गुरु के साथ लगाकर रात-दिन प्रभु का यश-गान करने में मग्न रहते हैं।॥ ४॥
ਸਭਨਾ ਮਾਰਿ ਜੀਵਾਲਦਾ ਭਾਈ ਸੋ ਸੇਵਹੁ ਦਿਨੁ ਰਾਤਿ ॥
हे भाई ! दिन-रात उसकी उपासना करो; जो सभी को मारता एवं पुनः जीवित कर देता है।
ਸੋ ਕਿਉ ਮਨਹੁ ਵਿਸਾਰੀਐ ਭਾਈ ਜਿਸ ਦੀ ਵਡੀ ਹੈ ਦਾਤਿ ॥੫॥
अपने मन से हम उसे क्यों विस्मृत करें, जिसकी देन बहुत बड़ी है॥ ५॥
ਮਨਮੁਖਿ ਮੈਲੀ ਡੁੰਮਣੀ ਭਾਈ ਦਰਗਹ ਨਾਹੀ ਥਾਉ ॥
हे भाई ! मनमुख जीव-स्त्री बड़ी मैली एवं दुविधाग्रस्त है और भगवान के दरबार में उसे कोई सुख का स्थान नहीं मिलता।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਤ ਗੁਣ ਰਵੈ ਭਾਈ ਮਿਲਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸਾਚਿ ਸਮਾਉ ॥੬॥
यदि वह भी गुरुमुख बन जाए तो ही वह प्रभु का यश गान करने में मग्न होती है और अपने प्रियतम से मिलकर उस सत्य में ही विलीन हो जाती है॥ ६॥
ਏਤੁ ਜਨਮਿ ਹਰਿ ਨ ਚੇਤਿਓ ਭਾਈ ਕਿਆ ਮੁਹੁ ਦੇਸੀ ਜਾਇ ॥
हे भाई ! इस जन्म में यदि भगवान का सिमरन नहीं किया तो आगे परलोक में क्या मुँह लेकर जाओगे ?
ਕਿੜੀ ਪਵੰਦੀ ਮੁਹਾਇਓਨੁ ਭਾਈ ਬਿਖਿਆ ਨੋ ਲੋਭਾਇ ॥੭॥
हम तुझे निर्देश भी देते रहे लेकिन माया के कारण विकारों में फँसकर तूने अपना जीवन ही बर्बाद कर दिया ॥ ७॥
ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਹਿ ਸੁਖਿ ਵਸਹਿ ਭਾਈ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਸਾਂਤਿ ਸਰੀਰ ॥
हे भाई ! जो भगवान का नाम सिमरन करते हैं, वे सुखी रहते हैं और उनका शरीर भी हमेशा शान्त एवं सुखी रहता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਿ ਤੂ ਭਾਈ ਅਪਰੰਪਰ ਗੁਣੀ ਗਹੀਰ ॥੮॥੩॥
नानक का कथन है कि हे भाई ! तू उस भगवान का नाम-सिमरन करता रह, जो अपरंपार, गुणवान एवं गहन गंभीर है ॥८॥३॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧ ਅਸਟਪਦੀਆ
सोरठि महला ५ घरु १ असटपदीआ
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸਭੁ ਜਗੁ ਜਿਨਹਿ ਉਪਾਇਆ ਭਾਈ ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥੁ ॥
हे भाई ! जिस ईश्वर ने समूचे जगत को पैदा किया है, वह सब कुछ करने-कराने में समर्थ है।
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਜਿਨਿ ਸਾਜਿਆ ਭਾਈ ਦੇ ਕਰਿ ਅਪਣੀ ਵਥੁ ॥
वह ऐसा परमेश्वर है, जिसने अपनी सत्ता देकर आत्मा एवं शरीर का निर्माण किया है।
ਕਿਨਿ ਕਹੀਐ ਕਿਉ ਦੇਖੀਐ ਭਾਈ ਕਰਤਾ ਏਕੁ ਅਕਥੁ ॥
उसका किस तरह कथन किया जा सकता है, किस तरह उसके दर्शन किए जा सकते हैं, जो एक ही अकथनीय जग का रचयिता है।
ਗੁਰੁ ਗੋਵਿੰਦੁ ਸਲਾਹੀਐ ਭਾਈ ਜਿਸ ਤੇ ਜਾਪੈ ਤਥੁ ॥੧॥
हे भाई ! उस गोविन्द-गुरु की ही स्तुति करनी चाहिए, जिससे इस तथ्य का ज्ञान होता है॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਜਪੀਐ ਹਰਿ ਭਗਵੰਤਾ ॥
हे मेरे मन ! हमें तो भगवान का ही भजन करना चाहिए।
ਨਾਮ ਦਾਨੁ ਦੇਇ ਜਨ ਅਪਨੇ ਦੂਖ ਦਰਦ ਕਾ ਹੰਤਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥
वह तो सदैव ही अपने भक्तजनों को नाम-दान देता रहता है और दुःख-दर्द का अंत करने वाला है ॥ रहाउ॥
ਜਾ ਕੈ ਘਰਿ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹੈ ਭਾਈ ਨਉ ਨਿਧਿ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰ ॥
हे भाई ! जिसके घर में सब कुछ है, जिसके भण्डार नवनिधियों से भरे हुए हैं;
ਤਿਸ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਨਾ ਪਵੈ ਭਾਈ ਊਚਾ ਅਗਮ ਅਪਾਰ ॥
उसका कैसे मूल्यांकन किया जा सकता है, जो स्वयं ही सर्वोच्च, अगम्य एवं अपार है।
ਜੀਅ ਜੰਤ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਦਾ ਭਾਈ ਨਿਤ ਨਿਤ ਕਰਦਾ ਸਾਰ ॥
सृष्टि में जितने भी जीव-जन्तु हैं, वह सबका पालन-पोषण करता है और प्रतिदिन उनकी देखरेख करता है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਭੇਟੀਐ ਭਾਈ ਸਬਦਿ ਮਿਲਾਵਣਹਾਰ ॥੨॥
हमें पूर्ण सतगुरु से साक्षात्कार करना चाहिए, जो अपने शब्द द्वारा भगवान से मिला देता है॥ २॥
ਸਚੇ ਚਰਣ ਸਰੇਵੀਅਹਿ ਭਾਈ ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਹੋਵੈ ਨਾਸੁ ॥
हे भाई ! सच्चे परमेश्वर के चरणों की पूजा करने से भ्रम एवं भय का नाश हो जाता है।
ਮਿਲਿ ਸੰਤ ਸਭਾ ਮਨੁ ਮਾਂਜੀਐ ਭਾਈ ਹਰਿ ਕੈ ਨਾਮਿ ਨਿਵਾਸੁ ॥
संतों की पावन सभा में सम्मिलित होकर अपने मन को स्वच्छ करना चाहिए, तो ही भगवान के नाम का मन में निवास हो जाता है।
ਮਿਟੈ ਅੰਧੇਰਾ ਅਗਿਆਨਤਾ ਭਾਈ ਕਮਲ ਹੋਵੈ ਪਰਗਾਸੁ ॥
फिर अज्ञानता का अन्धेरा मिट जाता है और हृदय-कमल उज्ज्वल हो जाता है।
ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਸੁਖੁ ਊਪਜੈ ਭਾਈ ਸਭਿ ਫਲ ਸਤਿਗੁਰ ਪਾਸਿ ॥੩॥
गुरु के वचन से ही मन में सुख पैदा होता है और सतगुरु के पास सब फल हैं॥ ३॥