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ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਮਨਸਾ ਮਨਹਿ ਸਮਾਣੀ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਪਛਾਤਾ ॥੪॥
अपने आत्माभिमान को नष्ट करके एवं तृष्णा को मन में ही मिटा कर मैंने गुरु के शब्द द्वारा परम-सत्य को पहचान लिया है ॥४॥
ਅਚਿੰਤ ਕੰਮ ਕਰਹਿ ਪ੍ਰਭ ਤਿਨ ਕੇ ਜਿਨ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਪਿਆਰਾ ॥
जिन लोगों को हरि का नाम प्यारा लगता है, प्रभु उनके सभी कार्य सहज ही संवार देता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਸਦਾ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਸਭਿ ਕਾਜ ਸਵਾਰਣਹਾਰਾ ॥
सभी कार्य संवारने वाला परमात्मा गुरु की अपार कृपा से सदा ही मन में बसा रहता है।
ਓਨਾ ਕੀ ਰੀਸ ਕਰੇ ਸੁ ਵਿਗੁਚੈ ਜਿਨ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਹੈ ਰਖਵਾਰਾ ॥੫॥
जिनका मेरा हरि-प्रभु रखवाला है, जो उनकी रीस करता है, वह नष्ट हो जाता है ॥५॥
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵੇ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਆ ਮਨਮੁਖਿ ਭਉਕਿ ਮੁਏ ਬਿਲਲਾਈ ॥
सतगुरु की सेवा किए बिना कभी किसी को परमात्मा की प्राप्ति नहीं हुई। मनमुख व्यक्ति तो रोते एवं चिल्लाते हुए ही प्राण त्याग गए हैं और
ਆਵਹਿ ਜਾਵਹਿ ਠਉਰ ਨ ਪਾਵਹਿ ਦੁਖ ਮਹਿ ਦੁਖਿ ਸਮਾਈ ॥
योनि-चक्र में फँसकर जन्मते-मरते ही रहते हैं और कोई सुख का स्थान नहीं पाते। वे तो दुःख में दुखी रहकर मिट जाते हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਸੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਵੈ ਸਹਜੇ ਸਾਚਿ ਸਮਾਈ ॥੬॥
यदि कोई गुरुमुख बन जाता है तो वह नामामृत का पान करके सहज ही सत्य में समा जाता है॥ ६॥
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵੇ ਜਨਮੁ ਨ ਛੋਡੈ ਜੇ ਅਨੇਕ ਕਰਮ ਕਰੈ ਅਧਿਕਾਈ ॥
सतगुरु की सेवा किए बिना मनुष्य को जन्मों का बन्धन नहीं छोड़ता, चाहे वे कितने ही प्रकार के अनेक कर्मकाण्ड करता रहे।
ਵੇਦ ਪੜਹਿ ਤੈ ਵਾਦ ਵਖਾਣਹਿ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਪਤਿ ਗਵਾਈ ॥
जो वेदों का अध्ययन करते हैं, वे भी वाद-विवाद में ही रहते हैं और परमात्मा के बिना अपना मान-सम्मान गंवा देते हैं।
ਸਚਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਾਚੀ ਜਿਸੁ ਬਾਣੀ ਭਜਿ ਛੂਟਹਿ ਗੁਰ ਸਰਣਾਈ ॥੭॥
सतगुरु सत्य है, जिसकी वाणी भी सत्य है। गुरु की शरण में आने से ही मनुष्य की मुक्ति हो जाती है।॥७॥
ਜਿਨ ਹਰਿ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਸੇ ਦਰਿ ਸਾਚੇ ਦਰਿ ਸਾਚੈ ਸਚਿਆਰਾ ॥
जिनके हृदय में ईश्वर का वास हो गया है, वे उसके दरबार में सच्चे हैं और सत्य के दरबार में वे सत्यशील ही कहलाए जाते हैं।
ਓਨਾ ਦੀ ਸੋਭਾ ਜੁਗਿ ਜੁਗਿ ਹੋਈ ਕੋਇ ਨ ਮੇਟਣਹਾਰਾ ॥
उनकी शोभा युगों-युगान्तरों में लोकप्रिय होती है और कोई भी इसे मिटा नहीं सकता।
ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਕੈ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਿਨ ਹਰਿ ਰਾਖਿਆ ਉਰਿ ਧਾਰਾ ॥੮॥੧॥
जिन्होंने भगवान को अपने हृदय में धारण किया हुआ है; नानक हमेशा ही उन पर कुर्बान जाता है ॥८॥१॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੩ ਦੁਤੁਕੀ ॥
सोरठि महला ३ दुतुकी ॥
ਨਿਗੁਣਿਆ ਨੋ ਆਪੇ ਬਖਸਿ ਲਏ ਭਾਈ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ਲਾਇ ॥
हे भाई ! सतगुरु की सेवा में लगाकर ईश्वर स्वयं ही गुणविहीन जीवों को क्षमा कर देता है।
ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ਊਤਮ ਹੈ ਭਾਈ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥੧॥
सतगुरु की सेवा बड़ी उत्तम है, चूंकि इसके फलस्वरूप ही चित राम-नाम में संलग्न हो जाता है ॥ १॥
ਹਰਿ ਜੀਉ ਆਪੇ ਬਖਸਿ ਮਿਲਾਇ ॥
परमेश्वर स्वयं ही जीव को क्षमा करके अपने साथ मिला लेता है।
ਗੁਣਹੀਣ ਹਮ ਅਪਰਾਧੀ ਭਾਈ ਪੂਰੈ ਸਤਿਗੁਰਿ ਲਏ ਰਲਾਇ ॥ ਰਹਾਉ ॥
हे भाई ! हम बड़े गुणविहीन एवं अपराधी हैं लेकिन पूर्ण सतगुरु ने कृपा करके हमें अपने साथ मिला लिया है॥ रहाउ॥
ਕਉਣ ਕਉਣ ਅਪਰਾਧੀ ਬਖਸਿਅਨੁ ਪਿਆਰੇ ਸਾਚੈ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰਿ ॥
हे प्यारे ! शब्द गुरु का चिन्तन करने से भगवान ने कितने ही अपराधियों को क्षमा कर दिया है।
ਭਉਜਲੁ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰਿਅਨੁ ਭਾਈ ਸਤਿਗੁਰ ਬੇੜੈ ਚਾੜਿ ॥੨॥
भगवान ने सतगुरु रूपी जहाज पर सवार करवा कर कितने ही जीवों को भवसागर से पार कर दिया है॥ २॥
ਮਨੂਰੈ ਤੇ ਕੰਚਨ ਭਏ ਭਾਈ ਗੁਰੁ ਪਾਰਸੁ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਇ ॥
हे भाई ! गुरु रूपी पारस के मिलाप में मिलन होने से हम जले हुए लोहे से स्वर्ण अर्थात् गुणवान बन गए हैं
ਆਪੁ ਛੋਡਿ ਨਾਉ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਭਾਈ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਇ ॥੩॥
आत्माभिमान को त्याग देने से नाम हमारे हृदय में बस गया है और हमारी ज्योति परम-ज्योति में विलीन हो गई है ॥३॥
ਹਉ ਵਾਰੀ ਹਉ ਵਾਰਣੈ ਭਾਈ ਸਤਿਗੁਰ ਕਉ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਾਉ ॥
हे भाई ! मैं गुरु पर सदैव बलिहारी जाता हूँ।
ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਜਿਨਿ ਦਿਤਾ ਭਾਈ ਗੁਰਮਤਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਉ ॥੪॥
जिसने हमें नाम का भण्डार दिया है, गुरु-उपदेश द्वारा हम सहज अवस्था में समा गए हैं।॥ ४॥
ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਸਹਜੁ ਨ ਊਪਜੈ ਭਾਈ ਪੂਛਹੁ ਗਿਆਨੀਆ ਜਾਇ ॥
गुरु के बिना सहज अवस्था उत्पन्न नहीं होती; चाहे इस बारे ज्ञानियों से जाकर पूछ लो।
ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸਦਾ ਕਰਿ ਭਾਈ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇ ॥੫॥
हे भाई ! अपने मन से अपने आत्माभिमान को दूर करके हमेशा ही सतगुरु की सेवा करो ॥५॥
ਗੁਰਮਤੀ ਭਉ ਊਪਜੈ ਭਾਈ ਭਉ ਕਰਣੀ ਸਚੁ ਸਾਰੁ ॥
गुरु की शिक्षा द्वारा प्रभु का भय-प्रेम उत्पन्न होता है और प्रभु के भय-प्रेम में किए गए सभी कर्म सत्य एवं श्रेष्ठ हैं।
ਪ੍ਰੇਮ ਪਦਾਰਥੁ ਪਾਈਐ ਭਾਈ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਆਧਾਰੁ ॥੬॥
तब मनुष्य को प्रभु के प्रेम का पदार्थ (धन) प्राप्त हो जाता है और सत्य नाम ही उसका आधार बन जाता है॥ ६॥
ਜੋ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਹਿ ਆਪਣਾ ਭਾਈ ਤਿਨ ਕੈ ਹਉ ਲਾਗਉ ਪਾਇ ॥
हे भाई जो अपने सतगुरु की निष्काम सेवा करते हैं, हम उनके चरण स्पर्श करते हैं।
ਜਨਮੁ ਸਵਾਰੀ ਆਪਣਾ ਭਾਈ ਕੁਲੁ ਭੀ ਲਈ ਬਖਸਾਇ ॥੭॥
हमने अपना अमूल्य मानव-जन्म सफल कर लिया है और अपने वंश के लिए भी क्षमा-दान प्राप्त कर लिया है ॥७॥
ਸਚੁ ਬਾਣੀ ਸਚੁ ਸਬਦੁ ਹੈ ਭਾਈ ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਹੋਇ ॥
हे भाई ! वाणी सत्य है और (गुरु का) शब्द भी सत्य है और इसकी उपलब्धि गुरु की कृपा से ही होती है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਮਨਿ ਵਸੈ ਭਾਈ ਤਿਸੁ ਬਿਘਨੁ ਨ ਲਾਗੈ ਕੋਇ ॥੮॥੨॥
नानक का कथन है कि हे भाई ! जिसके मन में हरि-नाम का वास हो गया है, उसे कोई भी विघ्न नहीं लगता ॥८॥२॥