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ਬਿਖੁ ਮਾਇਆ ਚਿਤੁ ਮੋਹਿਆ ਭਾਈ ਚਤੁਰਾਈ ਪਤਿ ਖੋਇ ॥
हे प्रियवर ! विषैली माया ने मनुष्य के मन को मोहित कर दिया है और उसने चतुराई द्वारा अपनी इज्जत गंवा दी है।
ਚਿਤ ਮਹਿ ਠਾਕੁਰੁ ਸਚਿ ਵਸੈ ਭਾਈ ਜੇ ਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ਸਮੋਇ ॥੨॥
हे भाई ! यदि गुरु का ज्ञान मन में समा जाए तो ही सच्चा ठाकुर चित में बस जाता है॥ २॥
ਰੂੜੌ ਰੂੜੌ ਆਖੀਐ ਭਾਈ ਰੂੜੌ ਲਾਲ ਚਲੂਲੁ ॥
हमारे ठाकुर जी को तो बहुत सुन्दर, मनोहर कहा जाता है, वह तो गहरे लाल रंग जैसा मनोहर है।
ਜੇ ਮਨੁ ਹਰਿ ਸਿਉ ਬੈਰਾਗੀਐ ਭਾਈ ਦਰਿ ਘਰਿ ਸਾਚੁ ਅਭੂਲੁ ॥੩॥
हे भाई ! यदि मन भगवान के साथ मोहब्बत कर ले तो वह उसके दरबार में सत्यशील एवं भूल-रहित माना जाता है।॥ ३॥
ਪਾਤਾਲੀ ਆਕਾਸਿ ਤੂ ਭਾਈ ਘਰਿ ਘਰਿ ਤੂ ਗੁਣ ਗਿਆਨੁ ॥
हे परमेश्वर ! तू ही आकाश एवं पाताल में समाया हुआ है और सबके हृदय में तेरे ही गुण एवं ज्ञान मौजूद है।
ਗੁਰ ਮਿਲਿਐ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਭਾਈ ਚੂਕਾ ਮਨਹੁ ਗੁਮਾਨੁ ॥੪॥
हे भाई ! गुरु से साक्षात्कार होने पर ही सुख की उपलब्धि होती है और मन से घमण्ड दूर हो जाता है॥ ४॥
ਜਲਿ ਮਲਿ ਕਾਇਆ ਮਾਜੀਐ ਭਾਈ ਭੀ ਮੈਲਾ ਤਨੁ ਹੋਇ ॥
हे भाई ! इस काया को जल से भलीभांति मलकर स्वच्छ किया जाए तो भी यह तन फिर भी मैला ही रहता है।
ਗਿਆਨਿ ਮਹਾ ਰਸਿ ਨਾਈਐ ਭਾਈ ਮਨੁ ਤਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਇ ॥੫॥
यदि ज्ञान के महारस से स्नान किया जाए तो मन एवं तन निर्मल हो जाते हैं॥ ५॥
ਦੇਵੀ ਦੇਵਾ ਪੂਜੀਐ ਭਾਈ ਕਿਆ ਮਾਗਉ ਕਿਆ ਦੇਹਿ ॥
हे भाई ! देवी-देवताओं की (मूर्ति) पूजा करके मनुष्य क्या मांग सकता है और देवी-देवता भी क्या दे सकते हैं ?
ਪਾਹਣੁ ਨੀਰਿ ਪਖਾਲੀਐ ਭਾਈ ਜਲ ਮਹਿ ਬੂਡਹਿ ਤੇਹਿ ॥੬॥
देवताओं की मूर्तियों का जल से स्नान करवाया जाता है, हे भाई ! परन्तु वह पत्थर स्वयं ही जल में डूब जाते हैं।॥६॥
ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਅਲਖੁ ਨ ਲਖੀਐ ਭਾਈ ਜਗੁ ਬੂਡੈ ਪਤਿ ਖੋਇ ॥
गुरु के बिना अदृश्य परमात्मा की पहचान नहीं हो सकती और मोह-माया में आसक्त यह गुरु के बिना अपनी प्रतिष्ठा गंवा कर डूब जाती है।
ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਹਾਥਿ ਵਡਾਈਆ ਭਾਈ ਜੈ ਭਾਵੈ ਤੈ ਦੇਇ ॥੭॥
हे भाई ! सारी बड़ाई तो मेरे ठाकुर जी के हाथ में है, यदि उसे मंजूर हो तो ही बड़ाई देता है॥ ७॥
ਬਈਅਰਿ ਬੋਲੈ ਮੀਠੁਲੀ ਭਾਈ ਸਾਚੁ ਕਹੈ ਪਿਰ ਭਾਇ ॥
जो जीव-स्त्री मधुर वचन बोलती है और सत्य वचन कहती है, वह अपने पति-परमेश्वर को अच्छी लगने लगती है।
ਬਿਰਹੈ ਬੇਧੀ ਸਚਿ ਵਸੀ ਭਾਈ ਅਧਿਕ ਰਹੀ ਹਰਿ ਨਾਇ ॥੮॥
वह अपने स्वामी के प्रेम में आकर्षित हुई सत्य में निवास करती है और प्रभु के नाम में ही मग्न रहती है।॥ ८ ॥
ਸਭੁ ਕੋ ਆਖੈ ਆਪਣਾ ਭਾਈ ਗੁਰ ਤੇ ਬੁਝੈ ਸੁਜਾਨੁ ॥
हे भाई ! मनुष्य सभी को अपना ही कहता है अर्थात् मोह-माया में फंसकर हरेक वस्तु पर अपना ही अधिकार समझता है लेकिन यदि गुरु द्वारा सूझ प्राप्त हो जाए तो वह बुद्धिमान बन जाता है।
ਜੋ ਬੀਧੇ ਸੇ ਊਬਰੇ ਭਾਈ ਸਬਦੁ ਸਚਾ ਨੀਸਾਨੁ ॥੯॥
जो व्यक्ति अपने प्रभु के प्रेम में बिंधे हुए हैं, वे भवसागर से पार हो गए हैं और उनके पास दरगाह में जाने के लिए शब्द रूपी परवाना है।॥९॥
ਈਧਨੁ ਅਧਿਕ ਸਕੇਲੀਐ ਭਾਈ ਪਾਵਕੁ ਰੰਚਕ ਪਾਇ ॥
हे भाई ! यदि अधिकतर ईधन संग्रह करके उसे जरा-सी अग्नि प्रज्वलित कर दी जाए तो वह जलकर भस्म हो जाता है;
ਖਿਨੁ ਪਲੁ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਵਸੈ ਭਾਈ ਨਾਨਕ ਮਿਲਣੁ ਸੁਭਾਇ ॥੧੦॥੪॥
हे नानक ! यूं ही यदि एक क्षण एवं पल भर के लिए नाम हृदय में बस जाए तो फिर सहज ही ईश्वर से मिलन हो जाता है ॥१०॥४॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੩ ਘਰੁ ੧ ਤਿਤੁਕੀ
सोरठि महला ३ घरु १ तितुकी
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਭਗਤਾ ਦੀ ਸਦਾ ਤੂ ਰਖਦਾ ਹਰਿ ਜੀਉ ਧੁਰਿ ਤੂ ਰਖਦਾ ਆਇਆ ॥
हे हरि ! तू सदैव ही अपने भक्तों की रक्षा करता आया है, जगत-रचना से ही उनकी लाज बचाता आया है।
ਪ੍ਰਹਿਲਾਦ ਜਨ ਤੁਧੁ ਰਾਖਿ ਲਏ ਹਰਿ ਜੀਉ ਹਰਣਾਖਸੁ ਮਾਰਿ ਪਚਾਇਆ ॥
अपने भक्त प्रहलाद की तूने ही रक्षा की थी और तूने ही नृसिंह अवतार धारण करके दैत्य हिरण्यकशिपु का वध करके उसे नष्ट कर दिया था।
ਗੁਰਮੁਖਾ ਨੋ ਪਰਤੀਤਿ ਹੈ ਹਰਿ ਜੀਉ ਮਨਮੁਖ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇਆ ॥੧॥
हे प्रभु जी ! गुरुमुख व्यक्तियों की तुझ पर पूर्ण आस्था है किन्तु मनमुख व्यक्ति भ्रम में ही भटकते रहते हैं।॥ १॥
ਹਰਿ ਜੀ ਏਹ ਤੇਰੀ ਵਡਿਆਈ ॥
हे परमेश्वर ! यह तेरी ही बड़ाई है।
ਭਗਤਾ ਕੀ ਪੈਜ ਰਖੁ ਤੂ ਸੁਆਮੀ ਭਗਤ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
हे स्वामी ! तू अपने भक्तों की लाज रखना, क्योंकि भक्त तो तेरी ही शरण में रहते हैं।॥ रहाउ॥
ਭਗਤਾ ਨੋ ਜਮੁ ਜੋਹਿ ਨ ਸਾਕੈ ਕਾਲੁ ਨ ਨੇੜੈ ਜਾਈ ॥
भक्तों को तो यमराज भी स्पर्श नहीं कर सकता और न ही काल (मृत्यु) उनके निकट जाता है।
ਕੇਵਲ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਨਾਮੇ ਹੀ ਮੁਕਤਿ ਪਾਈ ॥
भक्तों के मन में तो केवल राम-नाम ही बसा हुआ है और नाम द्वारा ही वे मुक्ति प्राप्त करते हैं।
ਰਿਧਿ ਸਿਧਿ ਸਭ ਭਗਤਾ ਚਰਣੀ ਲਾਗੀ ਗੁਰ ਕੈ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਈ ॥੨॥
गुरु के सहज स्वभाव के कारण सभी ऋद्धियाँ एवं सिद्धियाँ भक्तों के चरणों में लगी रहती हैं।॥२॥
ਮਨਮੁਖਾ ਨੋ ਪਰਤੀਤਿ ਨ ਆਵੀ ਅੰਤਰਿ ਲੋਭ ਸੁਆਉ ॥
स्वेच्छाचारी पुरुषों के भीतर तो भगवान के प्रति बिल्कुल आस्था नहीं होती, उनके भीतर तो लोभ एवं स्वार्थ की भावना ही बनी रहती है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਿਰਦੈ ਸਬਦੁ ਨ ਭੇਦਿਓ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਨ ਲਾਗਾ ਭਾਉ ॥
गुरु के सान्निध्य में रहकर उनके हृदय में शब्द का भेदन नहीं होता और न ही हरि-नाम से उनका प्रेम होता है।
ਕੂੜ ਕਪਟ ਪਾਜੁ ਲਹਿ ਜਾਸੀ ਮਨਮੁਖ ਫੀਕਾ ਅਲਾਉ ॥੩॥
मनमुख व्यक्ति हमेशा ही रुक्ष एवं कटु वचन बोलते हैं और उनके झूठ एवं कपट का ढोंग प्रत्यक्ष होकर उतर जाता है।॥३॥
ਭਗਤਾ ਵਿਚਿ ਆਪਿ ਵਰਤਦਾ ਪ੍ਰਭ ਜੀ ਭਗਤੀ ਹੂ ਤੂ ਜਾਤਾ ॥
हे प्रभु ! तू स्वयं ही अपने भक्तों में प्रवृत रहता है; तू भक्ति के द्वारा ही जाना जाता है।
ਮਾਇਆ ਮੋਹ ਸਭ ਲੋਕ ਹੈ ਤੇਰੀ ਤੂ ਏਕੋ ਪੁਰਖੁ ਬਿਧਾਤਾ ॥
तेरी माया का मोह सब लोगों में रमा हुआ है और एक तू ही परमपुरुष विधाता है।