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ਜਿ ਕਰਾਵੈ ਸੋ ਕਰਣਾ ॥
जि करावै सो करणा ॥
जो कुछ आप जीवों से कराते हो, वे वहीं करते हैं।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾ ॥੨॥੭॥੭੧॥
नानक दास तेरी सरणा ॥२॥७॥७१॥
दास नानक ने तो आपकी ही शरण ली है॥ २ ॥ ७ ॥ ७१ ॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਪਰੋਇਆ ॥
हरि नामु रिदै परोइआ ॥
जब से हमने परमात्मा का नाम अपने हृदय में स्थापित करते हैं,
ਸਭੁ ਕਾਜੁ ਹਮਾਰਾ ਹੋਇਆ ॥
सभु काजु हमारा होइआ ॥
हमारे सभी कार्य सम्पूर्ण हो गए हैं।
ਪ੍ਰਭ ਚਰਣੀ ਮਨੁ ਲਾਗਾ ॥
प्रभ चरणी मनु लागा ॥
प्रभु के चरणों में उसी का मन लगता है,
ਪੂਰਨ ਜਾ ਕੇ ਭਾਗਾ ॥੧॥
पूरन जा के भागा ॥१॥
जिसका पूर्ण भाग्योदय हो जाता है॥ १॥
ਮਿਲਿ ਸਾਧਸੰਗਿ ਹਰਿ ਧਿਆਇਆ ॥
मिलि साधसंगि हरि धिआइआ ॥
सत्संगति में सम्मिलित होकर हमने भगवान् का सिमरन किया है।
ਆਠ ਪਹਰ ਅਰਾਧਿਓ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮਨ ਚਿੰਦਿਆ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ॥ ਰਹਾਉ ॥
आठ पहर अराधिओ हरि हरि मन चिंदिआ फलु पाइआ ॥ रहाउ ॥
आठ प्रहर परमेश्वर की आराधना करने से हमें मनोवांछित फल की प्राप्ति हो गई है॥ १॥
ਪਰਾ ਪੂਰਬਲਾ ਅੰਕੁਰੁ ਜਾਗਿਆ ॥
परा पूरबला अंकुरु जागिआ ॥
हमारे आदि एवं पूर्व कर्मों का अंकुर जाग गया है और
ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਮਨੁ ਲਾਗਿਆ ॥
राम नामि मनु लागिआ ॥
मन राम-नाम में मग्न हो गया है।
ਮਨਿ ਤਨਿ ਹਰਿ ਦਰਸਿ ਸਮਾਵੈ ॥
मनि तनि हरि दरसि समावै ॥
अब मन एवं तन हरि के दर्शनों में ही लीन रहता है।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਸਚੇ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ॥੨॥੮॥੭੨॥
नानक दास सचे गुण गावै ॥२॥८॥७२॥
दास नानक तो सच्चे परमेश्वर का ही गुणगान करता है॥ २॥ ८॥ ७२॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਪ੍ਰਭੂ ਚਿਤਾਰਿਆ ॥
गुर मिलि प्रभू चितारिआ ॥
गुरु से मिलकर हमने प्रभु को याद किया है,
ਕਾਰਜ ਸਭਿ ਸਵਾਰਿਆ ॥
कारज सभि सवारिआ ॥
जिसके फलस्वरूप हमारे सभी कार्य सम्पूर्ण हो गए हैं।
ਮੰਦਾ ਕੋ ਨ ਅਲਾਏ ॥
मंदा को न अलाए ॥
अब कोई भी हमें बुरा नहीं कहता और
ਸਭ ਜੈ ਜੈ ਕਾਰੁ ਸੁਣਾਏ ॥੧॥
सभ जै जै कारु सुणाए ॥१॥
हर कोई हमारी जय-जयकार करता है॥ १॥
ਸੰਤਹੁ ਸਾਚੀ ਸਰਣਿ ਸੁਆਮੀ ॥
संतहु साची सरणि सुआमी ॥
हे भक्तजनो ! उस सच्चे परमेश्वर की शरण ही शाश्वत है।
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਹਾਥਿ ਤਿਸੈ ਕੈ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥
जीअ जंत सभि हाथि तिसै कै सो प्रभु अंतरजामी ॥ रहाउ ॥
सभी जीव-जन्तु उसके वश में हैं और वह प्रभु बड़ा अन्तर्यामी है ॥ रहाउ ॥
ਕਰਤਬ ਸਭਿ ਸਵਾਰੇ ॥ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪੁਨਾ ਬਿਰਦੁ ਸਮਾਰੇ ॥
करतब सभि सवारे ॥ प्रभि अपुना बिरदु समारे ॥
प्रभु ने हमारे सभी कार्य संवार दिए हैं और उसने अपने विरद् का पालन किया है ।
ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਪ੍ਰਭ ਨਾਮਾ ॥
पतित पावन प्रभ नामा ॥
प्रभु का नाम पापियों को पावन करने वाला है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਦ ਕੁਰਬਾਨਾ ॥੨॥੯॥੭੩॥
जन नानक सद कुरबाना ॥२॥९॥७३॥
दास नानक तो हमेशा ही उस पर कुर्बान जाता है॥ २॥ ६॥ ७३॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮਿ ਸਾਜਿ ਸਵਾਰਿਆ ॥ ਇਹੁ ਲਹੁੜਾ ਗੁਰੂ ਉਬਾਰਿਆ ॥
पारब्रहमि साजि सवारिआ ॥ इहु लहुड़ा गुरू उबारिआ ॥
परब्रह्म-परमेश्वर ने हमारे पुत्र (हरिगोविन्द) को उत्पन्न करके सुशोभित किया है। इस नन्हे बालक (हरिगोविन्द) की गुरु ने रक्षा की है।
ਅਨਦ ਕਰਹੁ ਪਿਤ ਮਾਤਾ ॥ ਪਰਮੇਸਰੁ ਜੀਅ ਕਾ ਦਾਤਾ ॥੧॥
अनद करहु पित माता ॥ परमेसरु जीअ का दाता ॥१॥
हे माता-पिता ! आनंद करो। परमेश्वर ही प्राणों का दाता है॥ १॥
ਸੁਭ ਚਿਤਵਨਿ ਦਾਸ ਤੁਮਾਰੇ ॥
सुभ चितवनि दास तुमारे ॥
हे प्रभु ! आपके सेवक सबका शुभ-भला ही सोचते हैं।
ਰਾਖਹਿ ਪੈਜ ਦਾਸ ਅਪੁਨੇ ਕੀ ਕਾਰਜ ਆਪਿ ਸਵਾਰੇ ॥ ਰਹਾਉ ॥
राखहि पैज दास अपुने की कारज आपि सवारे ॥ रहाउ ॥
आप अपने सेवक की प्रतिष्ठा बनाए रखते हैं और स्वयं ही उसके कार्य संवार देता है॥ रहाउ॥
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਪਰਉਪਕਾਰੀ ॥
मेरा प्रभु परउपकारी ॥
मेरे प्रभु बड़े परोपकारी है,
ਪੂਰਨ ਕਲ ਜਿਨਿ ਧਾਰੀ ॥
पूरन कल जिनि धारी ॥
जिसने सम्पूर्ण कला (शक्ति) धारण की हुई है।
ਨਾਨਕ ਸਰਣੀ ਆਇਆ ॥
नानक सरणी आइआ ॥
नानक तो उनकी शरण में आया है और
ਮਨ ਚਿੰਦਿਆ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ॥੨॥੧੦॥੭੪॥
मन चिंदिआ फलु पाइआ ॥२॥१०॥७४॥
उसे मनोवांछित फल प्राप्त हो गया है॥ २॥ १०॥ ७४॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਸਦਾ ਸਦਾ ਹਰਿ ਜਾਪੇ ॥
सदा सदा हरि जापे ॥
मैं सदैव ही हरि का भजन करता हूँ।
ਪ੍ਰਭ ਬਾਲਕ ਰਾਖੇ ਆਪੇ ॥
प्रभ बालक राखे आपे ॥
प्रभु ने स्वयं ही बालक (हरिगोबिन्द) की रक्षा की है।
ਸੀਤਲਾ ਠਾਕਿ ਰਹਾਈ ॥
सीतला ठाकि रहाई ॥
उसने कृपा करके शीतला (चेचक) पर अंकुश लगा दिया है।
ਬਿਘਨ ਗਏ ਹਰਿ ਨਾਈ ॥੧॥
बिघन गए हरि नाई ॥१॥
हरिनाम स्मरण से हमारे सभी विघ्न नष्ट हो गए हैं॥१॥
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਹੋਆ ਸਦਾ ਦਇਆਲਾ ॥
मेरा प्रभु होआ सदा दइआला ॥
मेरे प्रभु सदैव ही मुझ पर दयालु हुए हैं।
ਅਰਦਾਸਿ ਸੁਣੀ ਭਗਤ ਅਪੁਨੇ ਕੀ ਸਭ ਜੀਅ ਭਇਆ ਕਿਰਪਾਲਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥
अरदासि सुणी भगत अपुने की सभ जीअ भइआ किरपाला ॥ रहाउ ॥
उसने अपने भक्त की प्रार्थना सुन ली है और वह सभी जीवों पर कृपालु हो गए है॥ रहाउ॥
ਪ੍ਰਭ ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਾਥਾ ॥
प्रभ करण कारण समराथा ॥
प्रभु सभी कार्य करने कराने में सर्वशक्तिमान है।
ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਸਭੁ ਦੁਖੁ ਲਾਥਾ ॥
हरि सिमरत सभु दुखु लाथा ॥
भगवान् का सिमरन करने से सभी दुःखं दूर हो गए हैं।
ਅਪਣੇ ਦਾਸ ਕੀ ਸੁਣੀ ਬੇਨੰਤੀ ॥
अपणे दास की सुणी बेनंती ॥
अपने दास की उसने प्रार्थना सुन ली है।
ਸਭ ਨਾਨਕ ਸੁਖਿ ਸਵੰਤੀ ॥੨॥੧੧॥੭੫॥
सभ नानक सुखि सवंती ॥२॥११॥७५॥
हे नानक ! अब सभी सुखी रहते हैं।॥ २॥ ११॥ ७५ ॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਅਪਨਾ ਗੁਰੂ ਧਿਆਏ ॥
अपना गुरू धिआए ॥
मैंने अपने गुरु का ध्यान किया है,
ਮਿਲਿ ਕੁਸਲ ਸੇਤੀ ਘਰਿ ਆਏ ॥
मिलि कुसल सेती घरि आए ॥
जिससे मिलकर मैं कुशलपूर्वक घर को लौट आया हूँ।
ਨਾਮੈ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥
नामै की वडिआई ॥
प्रभु नाम की इतनी महिमा है कि
ਤਿਸੁ ਕੀਮਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ॥੧॥
तिसु कीमति कहणु न जाई ॥१॥
उनका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता ॥१॥
ਸੰਤਹੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਆਰਾਧਹੁ ॥
संतहु हरि हरि हरि आराधहु ॥
हे भक्तजनों ! परमात्मा की आराधना करो चूंकि
ਹਰਿ ਆਰਾਧਿ ਸਭੋ ਕਿਛੁ ਪਾਈਐ ਕਾਰਜ ਸਗਲੇ ਸਾਧਹੁ ॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि आराधि सभो किछु पाईऐ कारज सगले साधहु ॥ रहाउ ॥
उसकी आराधना करने से सबकुछ प्राप्त हो जाता है और तुम्हारे भी सभी कार्य सिद्ध (सफल) हो जाएँगे ॥ रहाउ ॥
ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਪ੍ਰਭ ਲਾਗੀ ॥ ਸੋ ਪਾਏ ਜਿਸੁ ਵਡਭਾਗੀ ॥
प्रेम भगति प्रभ लागी ॥ सो पाए जिसु वडभागी ॥
हमारा मन प्रभु की प्रेम-भक्ति में ही मग्न है लेकिन इसे वही प्राप्त करता है, जो भाग्यशाली होता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥
जन नानक नामु धिआइआ ॥
दास नानक ने प्रभु-नाम का ही ध्यान किया है और
ਤਿਨਿ ਸਰਬ ਸੁਖਾ ਫਲ ਪਾਇਆ ॥੨॥੧੨॥੭੬॥
तिनि सरब सुखा फल पाइआ ॥२॥१२॥७६॥
उसे सर्व सुखों के फल की प्राप्ति हो गई है॥ २॥१२॥७६॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਪਰਮੇਸਰਿ ਦਿਤਾ ਬੰਨਾ ॥
परमेसरि दिता बंना ॥
परमेश्वर ने हमें पुत्र दिया है और
ਦੁਖ ਰੋਗ ਕਾ ਡੇਰਾ ਭੰਨਾ ॥
दुख रोग का डेरा भंना ॥
समस्त दु:खों एवं रोगों का डेरा ही मिटा दिया है।
ਅਨਦ ਕਰਹਿ ਨਰ ਨਾਰੀ ॥ ਹਰਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ॥੧॥
अनद करहि नर नारी ॥ हरि हरि प्रभि किरपा धारी ॥१॥
अब सभी नर-नारी आनंद करते हैं। चूंकि हरि-प्रभु ने अपनी कृपा की है॥१॥