Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 608

Page 608

ਰਤਨੁ ਲੁਕਾਇਆ ਲੂਕੈ ਨਾਹੀ ਜੇ ਕੋ ਰਖੈ ਲੁਕਾਈ ॥੪॥ रतनु लुकाइआ लूकै नाही जे को रखै लुकाई ॥४॥ नाम-रत्न छिपाने पर भी छिपा नहीं रह सकता चाहे कोई छिपाने की कितनी ही कोशिश करे॥ ४॥
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤੇਰਾ ਤੂ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਤੂ ਸਭਨਾ ਕਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਈ ॥ सभु किछु तेरा तू अंतरजामी तू सभना का प्रभु सोई ॥ हे परमात्मा ! यह सारी सृष्टि आपकी ही है। आप ही प्रत्येक हृदय में विद्यमान अंतर्यामी हैं, और समस्त सृष्टि का पालन-पोषण करते हैं।
ਜਿਸ ਨੋ ਦਾਤਿ ਕਰਹਿ ਸੋ ਪਾਏ ਜਨ ਨਾਨਕ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥੫॥੯॥ जिस नो दाति करहि सो पाए जन नानक अवरु न कोई ॥५॥९॥ नानक कहते हैं कि हे प्रभु ! जिसे आप दान देते हैं, वही इसे प्राप्त करता है। आपके बिना वरदान देने वाला और दूसरा कोई नहीं। ॥ ५ ॥ ६॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧ ਤਿਤੁਕੇ सोरठि महला ५ घरु १ तितुके राग सोरठ, पाँचवाँ गुरु, प्रथम ताल, तीन पंक्तियाँ:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਕਿਸੁ ਹਉ ਜਾਚੀ ਕਿਸ ਆਰਾਧੀ ਜਾ ਸਭੁ ਕੋ ਕੀਤਾ ਹੋਸੀ ॥ किसु हउ जाची किस आराधी जा सभु को कीता होसी ॥ जब सब जीवों को ईश्वर ने ही पैदा किया हुआ है तो फिर उसके अतिरिक्त मैं किससे मांगू? किसकी आराधना करूँ ?
ਜੋ ਜੋ ਦੀਸੈ ਵਡਾ ਵਡੇਰਾ ਸੋ ਸੋ ਖਾਕੂ ਰਲਸੀ ॥ जो जो दीसै वडा वडेरा सो सो खाकू रलसी ॥ जो कोई बड़े से बड़ा आदमी दिखाई देता है, वह भी आखिरकार मिट्टी में ही मिल जाता है।
ਨਿਰਭਉ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ਭਵ ਖੰਡਨੁ ਸਭਿ ਸੁਖ ਨਵ ਨਿਧਿ ਦੇਸੀ ॥੧॥ निरभउ निरंकारु भव खंडनु सभि सुख नव निधि देसी ॥१॥ वह निरंकार निर्भय है, संसार के जन्म-मरण के बंधन मिटाने वाला है और वह स्वयं ही सर्वसुख एवं नवनिधियाँ देता है॥ १॥
ਹਰਿ ਜੀਉ ਤੇਰੀ ਦਾਤੀ ਰਾਜਾ ॥ हरि जीउ तेरी दाती राजा ॥ हे श्री हरि ! जब आपके दिए हुए दान से मैं तृप्त हो जाता हूँ तो फिर
ਮਾਣਸੁ ਬਪੁੜਾ ਕਿਆ ਸਾਲਾਹੀ ਕਿਆ ਤਿਸ ਕਾ ਮੁਹਤਾਜਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥ माणसु बपुड़ा किआ सालाही किआ तिस का मुहताजा ॥ रहाउ ॥ मैं किसी व्यक्ति की प्रशंसा क्यों करूं या उस पर निर्भर क्यों रहूं?॥ रहाउ॥
ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਧਿਆਇਆ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤਿਸ ਕਾ ਤਿਸ ਕੀ ਭੂਖ ਗਵਾਈ ॥ जिनि हरि धिआइआ सभु किछु तिस का तिस की भूख गवाई ॥ जिसने भी भगवान् का ध्यान किया है, विश्व का सब कुछ उसका हो गया है और भगवान् ने उसकी समस्त भूख निवृत्त कर दी है।
ਐਸਾ ਧਨੁ ਦੀਆ ਸੁਖਦਾਤੈ ਨਿਖੁਟਿ ਨ ਕਬ ਹੀ ਜਾਈ ॥ ऐसा धनु दीआ सुखदातै निखुटि न कब ही जाई ॥ सुखों के दाता प्रभु ने ऐसा धन दिया है, जो कदापि खत्म नहीं होता।
ਅਨਦੁ ਭਇਆ ਸੁਖ ਸਹਜਿ ਸਮਾਣੇ ਸਤਿਗੁਰਿ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਈ ॥੨॥ अनदु भइआ सुख सहजि समाणे सतिगुरि मेलि मिलाई ॥२॥ सतगुरु ने मुझे उससे मिला दिया है, अब मैं बड़ा आनंदित हूँ और सहज सुख में लीन रहता हूँ॥ २॥
ਮਨ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਨਾਮੁ ਆਰਾਧਿ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੀ ॥ मन नामु जपि नामु आराधि अनदिनु नामु वखाणी ॥ हे मेरे मन ! नाम का भजन कर, नाम की आराधना कर और प्रतिदिन नाम का ही वर्णन कर।
ਉਪਦੇਸੁ ਸੁਣਿ ਸਾਧ ਸੰਤਨ ਕਾ ਸਭ ਚੂਕੀ ਕਾਣਿ ਜਮਾਣੀ ॥ उपदेसु सुणि साध संतन का सभ चूकी काणि जमाणी ॥ साधु-संतों का ध्यानपूर्वक उपदेश सुनकर मृत्यु का सारा भय दूर हो गया है।
ਜਿਨ ਕਉ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਹੋਆ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਸੇ ਲਾਗੇ ਗੁਰ ਕੀ ਬਾਣੀ ॥੩॥ जिन कउ क्रिपालु होआ प्रभु मेरा से लागे गुर की बाणी ॥३॥ जिन पर मेरे प्रभु कृपा करते हैं, उसने गुरु की वाणी में वृति लगा ली है ॥ ३॥
ਕੀਮਤਿ ਕਉਣੁ ਕਰੈ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੀ ਤੂ ਸਰਬ ਜੀਆ ਦਇਆਲਾ ॥ कीमति कउणु करै प्रभ तेरी तू सरब जीआ दइआला ॥ हे प्रभु ! आपका मूल्यांकन कौन कर सकता है, आप तो सब जीवों पर दयालु है।
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਕੀਤਾ ਤੇਰਾ ਵਰਤੈ ਕਿਆ ਹਮ ਬਾਲ ਗੁਪਾਲਾ ॥ सभु किछु कीता तेरा वरतै किआ हम बाल गुपाला ॥ हे परमपिता ! विश्व में सब कुछ आपका किया ही होता है, हम जीव क्या करने में समर्थ हैं?
ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਨਾਨਕੁ ਜਨੁ ਤੁਮਰਾ ਜਿਉ ਪਿਤਾ ਪੂਤ ਕਿਰਪਾਲਾ ॥੪॥੧॥ राखि लेहु नानकु जनु तुमरा जिउ पिता पूत किरपाला ॥४॥१॥ हे ईश्वर ! नानक आपका ही दास है, उसकी इस तरह रक्षा कर, जैसे पिता अपने पुत्र पर कृपालु होता है॥ ४॥ १॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧ ਚੌਤੁਕੇ ॥ सोरठि महला ५ घरु १ चौतुके ॥ राग सोरठ, पाँचवाँ गुरु, प्रथम ताल, चार पंक्तियाँ: ॥
ਗੁਰੁ ਗੋਵਿੰਦੁ ਸਲਾਹੀਐ ਭਾਈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਹਿਰਦੈ ਧਾਰ ॥ गुरु गोविंदु सलाहीऐ भाई मनि तनि हिरदै धार ॥ हे भाई ! अपने मन, तन एवं हृदय में प्रेम बसाकर गोविन्द-गुरु की स्तुति करनी चाहिए।
ਸਾਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਭਾਈ ਏਹਾ ਕਰਣੀ ਸਾਰ ॥ साचा साहिबु मनि वसै भाई एहा करणी सार ॥ सच्चा परमेश्वर हृदय में बसा रहे, यही सर्वश्रेष्ठ जीवन-आचरण है।
ਜਿਤੁ ਤਨਿ ਨਾਮੁ ਨ ਊਪਜੈ ਭਾਈ ਸੇ ਤਨ ਹੋਏ ਛਾਰ ॥ जितु तनि नामु न ऊपजै भाई से तन होए छार ॥ जिस शरीर में भगवान् का नाम उत्पन्न नहीं होता, वह शरीर भस्म हो जाता है।
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਕਉ ਵਾਰਿਆ ਭਾਈ ਜਿਨ ਏਕੰਕਾਰ ਅਧਾਰ ॥੧॥ साधसंगति कउ वारिआ भाई जिन एकंकार अधार ॥१॥ मैं उस सत्संगति पर मन-तन से न्यौछावर हूँ, जिसे केवल एक परमेश्वर का ही सहारा है॥ १॥
ਸੋਈ ਸਚੁ ਅਰਾਧਣਾ ਭਾਈ ਜਿਸ ਤੇ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹੋਇ ॥ सोई सचु अराधणा भाई जिस ते सभु किछु होइ ॥ हे भाई ! उस परम-सत्य परमेश्वर की ही आराधना करो, जिससे सब कुछ उत्पन्न हुआ है।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਜਾਣਾਇਆ ਭਾਈ ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरि पूरै जाणाइआ भाई तिसु बिनु अवरु न कोइ ॥ रहाउ ॥ पूर्ण गुरु ने ज्ञान दिया है कि उस एक परमेश्वर के अतिरिक्त अन्य कोई पूजनीय नहीं है।॥ रहाउ ॥
ਨਾਮ ਵਿਹੂਣੇ ਪਚਿ ਮੁਏ ਭਾਈ ਗਣਤ ਨ ਜਾਇ ਗਣੀ ॥ नाम विहूणे पचि मुए भाई गणत न जाइ गणी ॥ हे भाई ! परमेश्वर के नाम बिना कितने ही गल सड़ कर मर गए हैं, जिनकी गणना नहीं की जा सकती।
ਵਿਣੁ ਸਚ ਸੋਚ ਨ ਪਾਈਐ ਭਾਈ ਸਾਚਾ ਅਗਮ ਧਣੀ ॥ विणु सच सोच न पाईऐ भाई साचा अगम धणी ॥ सत्य के बिना पवित्रता प्राप्त नहीं होती और वह मालिक सत्यस्वरूप एवं अगम्य है।
ਆਵਣ ਜਾਣੁ ਨ ਚੁਕਈ ਭਾਈ ਝੂਠੀ ਦੁਨੀ ਮਣੀ ॥ आवण जाणु न चुकई भाई झूठी दुनी मणी ॥ हे भाई ! सांसारिक पदार्थों का अहंकार झूठा है और इन में मग्न होने से जन्म-मरण का चक्र नष्ट नहीं होता।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਕੋਟਿ ਉਧਾਰਦਾ ਭਾਈ ਦੇ ਨਾਵੈ ਏਕ ਕਣੀ ॥੨॥ गुरमुखि कोटि उधारदा भाई दे नावै एक कणी ॥२॥ हे भाई ! गुरुमुख मनुष्य परमात्मा के नाम का एक कण-मात्र ही प्रदान करके करोड़ों की मुक्ति कर देता है॥ २॥
ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਸਾਸਤ ਸੋਧਿਆ ਭਾਈ ਵਿਣੁ ਸਤਿਗੁਰ ਭਰਮੁ ਨ ਜਾਇ ॥ सिम्रिति सासत सोधिआ भाई विणु सतिगुर भरमु न जाइ ॥ हे भाई ! स्मृतियों तथा शास्त्रों का मैंने भली भांति विश्लेषण किया है परन्तु सतगुरु के बिना भ्रम दूर नहीं होता।
ਅਨਿਕ ਕਰਮ ਕਰਿ ਥਾਕਿਆ ਭਾਈ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਬੰਧਨ ਪਾਇ ॥ अनिक करम करि थाकिआ भाई फिरि फिरि बंधन पाइ ॥ मनुष्य चाहे अनगिनत कर्मकांड करता रहे, थककर चूर हो जाए — फिर भी वह बार-बार मोह-माया के बंधनों में उलझता ही रहता है।
ਚਾਰੇ ਕੁੰਡਾ ਸੋਧੀਆ ਭਾਈ ਵਿਣੁ ਸਤਿਗੁਰ ਨਾਹੀ ਜਾਇ ॥ चारे कुंडा सोधीआ भाई विणु सतिगुर नाही जाइ ॥ हे भाई ! मैंने चारों-दिशाओं में पड़ताल कर ली है लेकिन सतगुरु के अतिरिक्त मुक्ति का कोई मार्ग नहीं।


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top