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ਸਬਦਿ ਮਰਹੁ ਫਿਰਿ ਜੀਵਹੁ ਸਦ ਹੀ ਤਾ ਫਿਰਿ ਮਰਣੁ ਨ ਹੋਈ ॥
सबदि मरहु फिरि जीवहु सद ही ता फिरि मरणु न होई ॥
अगर आप गुरु के वचनों पर चलकर विकारों से मुक्त हो जाते हैं, तो आपका जीवन सदा आध्यात्मिक रहेगा और आपको कभी आत्मिक मृत्यु नहीं होगी।
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਮਨਿ ਮੀਠਾ ਸਬਦੇ ਪਾਵੈ ਕੋਈ ॥੩॥
अम्रितु नामु सदा मनि मीठा सबदे पावै कोई ॥३॥
हरिनामामृत सर्वदा ही मन को मीठा लगता है लेकिन गुरु के शब्द द्वारा कोई विरला ही इसे प्राप्त करता है ॥३॥
ਦਾਤੈ ਦਾਤਿ ਰਖੀ ਹਥਿ ਅਪਣੈ ਜਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਿਸੁ ਦੇਈ ॥
दातै दाति रखी हथि अपणै जिसु भावै तिसु देई ॥
भगवान् ने नाम का उपहार अपने अधीन रखा है और वह इसे उसी को देते हैं, जिसे देना वे उचित समझते हैं।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਦਰਗਹ ਜਾਪਹਿ ਸੇਈ ॥੪॥੧੧॥
नानक नामि रते सुखु पाइआ दरगह जापहि सेई ॥४॥११॥
हे नानक ! हरि-नाम में मग्न होकर जिन्होंने सुख प्राप्त किया है, भगवान् के दरबार में वे सत्यवादी लगते हैं ॥४॥११॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੩ ॥
सोरठि महला ३ ॥
राग सोरठ, तीसरे गुरु: ३ ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵੇ ਤਾ ਸਹਜ ਧੁਨਿ ਉਪਜੈ ਗਤਿ ਮਤਿ ਤਦ ਹੀ ਪਾਏ ॥
सतिगुर सेवे ता सहज धुनि उपजै गति मति तद ही पाए ॥
जब कोई गुरु की शिक्षा पर चलता है, तो उसके भीतर दिव्य रस की धारा बहने लगती है, और तभी उसे उन्नत बुद्धि और उच्च आध्यात्मिक स्थिति का वरदान मिलता है।
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਸਚਾ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਨਾਮੇ ਨਾਮਿ ਸਮਾਏ ॥੧॥
हरि का नामु सचा मनि वसिआ नामे नामि समाए ॥१॥
हरि का सच्चा नाम उसके मन में निवास कर लेता है और नाम द्वारा वह नाम-स्वरूप भगवान् में विलीन हो जाता है।॥१॥
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਸਭੁ ਜਗੁ ਬਉਰਾਨਾ ॥
बिनु सतिगुर सभु जगु बउराना ॥
सतगुरु के बिना सारी दुनिया पागल हो गई है।
ਮਨਮੁਖਿ ਅੰਧਾ ਸਬਦੁ ਨ ਜਾਣੈ ਝੂਠੈ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਨਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥
मनमुखि अंधा सबदु न जाणै झूठै भरमि भुलाना ॥ रहाउ ॥
अन्धा मनमुख व्यक्ति शब्द के भेद को नहीं जानता और झूठे भ्रम में ही भटकता रहता है ॥ रहाउ ॥
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਮਾਇਆ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇਆ ਹਉਮੈ ਬੰਧਨ ਕਮਾਏ ॥
त्रै गुण माइआ भरमि भुलाइआ हउमै बंधन कमाए ॥
माया के तीन गुण - शक्ति, बुराई और आकर्षण मनुष्य को भ्रमित कर देते हैं; और अहंकार में डूबा हुआ वह अपने लिए और भी सांसारिक बंधन बना लेता है।
ਜੰਮਣੁ ਮਰਣੁ ਸਿਰ ਊਪਰਿ ਊਭਉ ਗਰਭ ਜੋਨਿ ਦੁਖੁ ਪਾਏ ॥੨॥
जमणु मरणु सिर ऊपरि ऊभउ गरभ जोनि दुखु पाए ॥२॥
जन्म-मरण उसके सिर ऊपर खड़े रहते हैं और गर्भ-योनि में पड़कर वह दुःख प्राप्त करता रहता है॥ २॥
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਵਰਤਹਿ ਸਗਲ ਸੰਸਾਰਾ ਹਉਮੈ ਵਿਚਿ ਪਤਿ ਖੋਈ ॥
त्रै गुण वरतहि सगल संसारा हउमै विचि पति खोई ॥
सारा संसार ही माया के त्रिगुणों के प्रभाव अधीन क्रियाशील है और अहंकार में इसने अपना मान-सम्मान गंवा दिया है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਚਉਥਾ ਪਦੁ ਚੀਨੈ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥੩॥
गुरमुखि होवै चउथा पदु चीनै राम नामि सुखु होई ॥३॥
जो व्यक्ति गुरुमुख बन जाता है, उसे चौथे पद का ज्ञान हो जाता है और राम नाम से सुखी रहता है॥ ३॥
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਸਭਿ ਤੇਰੇ ਤੂ ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਜੋ ਤੂ ਕਰਹਿ ਸੁ ਹੋਈ ॥
त्रै गुण सभि तेरे तू आपे करता जो तू करहि सु होई ॥
हे परमेश्वर ! माया के तीनों गुण आपके ही हैं। आप ही सृष्टि के रचयिता हैं, और जो कुछ होता है, वह आपकी ही इच्छा से होता है।
ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਨਿਸਤਾਰਾ ਸਬਦੇ ਹਉਮੈ ਖੋਈ ॥੪॥੧੨॥
नानक राम नामि निसतारा सबदे हउमै खोई ॥४॥१२॥
हे नानक ! राम नाम द्वारा ही मोक्ष की प्राप्ति होती है और गुरु के शब्द द्वारा आत्माभिमान दूर हो जाता है ॥४॥१२॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੧
सोरठि महला ४ घरु १
राग सोरठ, चतुर्थ गुरु, प्रथम ताल: १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਆਪੇ ਆਪਿ ਵਰਤਦਾ ਪਿਆਰਾ ਆਪੇ ਆਪਿ ਅਪਾਹੁ ॥
आपे आपि वरतदा पिआरा आपे आपि अपाहु ॥
प्रिय प्रभु स्वयं ही सब जीवों में व्याप्त है और स्वयं निर्लिप्त रहते हैं।
ਵਣਜਾਰਾ ਜਗੁ ਆਪਿ ਹੈ ਪਿਆਰਾ ਆਪੇ ਸਾਚਾ ਸਾਹੁ ॥
वणजारा जगु आपि है पिआरा आपे साचा साहु ॥
वह स्वयं ही जगत् रूपी वणजारा है और स्वयं ही सच्चा साहूकार है।
ਆਪੇ ਵਣਜੁ ਵਾਪਾਰੀਆ ਪਿਆਰਾ ਆਪੇ ਸਚੁ ਵੇਸਾਹੁ ॥੧॥
आपे वणजु वापारीआ पिआरा आपे सचु वेसाहु ॥१॥
वह प्यारा प्रभु स्वयं ही वाणिज्य एवं व्यापारी है और स्वयं ही सच्ची रास-पूंजी है॥ १॥
ਜਪਿ ਮਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਲਾਹ ॥
जपि मन हरि हरि नामु सलाह ॥
हे मेरे मन ! हरि का जाप करो, उसकी ही स्तुति करो।
ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਪਾਈਐ ਪਿਆਰਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਅਗਮ ਅਥਾਹ ॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर किरपा ते पाईऐ पिआरा अम्रितु अगम अथाह ॥ रहाउ ॥
गुरु की अपार कृपा से ही वह अमृत रूप अगम्य एवं अथाह प्यारा परमेश्वर पाया जा सकता है॥ रहाउ ॥
ਆਪੇ ਸੁਣਿ ਸਭ ਵੇਖਦਾ ਪਿਆਰਾ ਮੁਖਿ ਬੋਲੇ ਆਪਿ ਮੁਹਾਹੁ ॥
आपे सुणि सभ वेखदा पिआरा मुखि बोले आपि मुहाहु ॥
वह प्यारा प्रभु स्वयं ही सबको सुनता एवं देखता है और स्वयं ही सभी प्राणियों के मुख द्वारा अपने मुखारविंद से बोलता है।
ਆਪੇ ਉਝੜਿ ਪਾਇਦਾ ਪਿਆਰਾ ਆਪਿ ਵਿਖਾਲੇ ਰਾਹੁ ॥
आपे उझड़ि पाइदा पिआरा आपि विखाले राहु ॥
वह प्यारा प्रभु स्वयं ही कुमार्ग लगाता है और स्वयं ही सन्मार्ग प्रदान करता है।
ਆਪੇ ਹੀ ਸਭੁ ਆਪਿ ਹੈ ਪਿਆਰਾ ਆਪੇ ਵੇਪਰਵਾਹੁ ॥੨॥
आपे ही सभु आपि है पिआरा आपे वेपरवाहु ॥२॥
वह प्रियतम आप ही सबकुछ है और आप ही बेपरवाह है॥ २॥
ਆਪੇ ਆਪਿ ਉਪਾਇਦਾ ਪਿਆਰਾ ਸਿਰਿ ਆਪੇ ਧੰਧੜੈ ਲਾਹੁ ॥
आपे आपि उपाइदा पिआरा सिरि आपे धंधड़ै लाहु ॥
वह स्वयं ही सृष्टि-रचना करता है और स्वयं ही प्रत्येक प्राणी को सांसारिक कार्यों में लगाता है।
ਆਪਿ ਕਰਾਏ ਸਾਖਤੀ ਪਿਆਰਾ ਆਪਿ ਮਾਰੇ ਮਰਿ ਜਾਹੁ ॥
आपि कराए साखती पिआरा आपि मारे मरि जाहु ॥
वह प्रिय प्रभु स्वयं ही जीवों को पैदा करते है और जब वह प्राणवायु वापस ले लेते है, तो जीव का अंत हो जाता है।
ਆਪੇ ਪਤਣੁ ਪਾਤਣੀ ਪਿਆਰਾ ਆਪੇ ਪਾਰਿ ਲੰਘਾਹੁ ॥੩॥
आपे पतणु पातणी पिआरा आपे पारि लंघाहु ॥३॥
वह स्वयं ही घाट और स्वयं ही नाविक हैं, वही हमें संसार रूपी विकारों के समुद्र से पार कराते हैं।॥ ३॥
ਆਪੇ ਸਾਗਰੁ ਬੋਹਿਥਾ ਪਿਆਰਾ ਗੁਰੁ ਖੇਵਟੁ ਆਪਿ ਚਲਾਹੁ ॥
आपे सागरु बोहिथा पिआरा गुरु खेवटु आपि चलाहु ॥
वह स्वयं ही सागर है और स्वयं ही जहाज है। वह स्वयं ही गुरु-खेवट बनकर इस जहाज को चलाते है।
ਆਪੇ ਹੀ ਚੜਿ ਲੰਘਦਾ ਪਿਆਰਾ ਕਰਿ ਚੋਜ ਵੇਖੈ ਪਾਤਿਸਾਹੁ ॥
आपे ही चड़ि लंघदा पिआरा करि चोज वेखै पातिसाहु ॥
प्रिय भगवान् स्वयं ही जीवन-नौका पर सवार होते हैं, संसार-सागर को पार करते हैं, और अपनी अद्भुत लीला करते हुए उसे स्वयं ही निहारते भी हैं।
ਆਪੇ ਆਪਿ ਦਇਆਲੁ ਹੈ ਪਿਆਰਾ ਜਨ ਨਾਨਕ ਬਖਸਿ ਮਿਲਾਹੁ ॥੪॥੧॥
आपे आपि दइआलु है पिआरा जन नानक बखसि मिलाहु ॥४॥१॥
वह स्वयं ही दयावान है, हे नानक ! वह स्वयं ही जीवों को क्षमा करके अपने साथ मिला लेते है॥ ४॥ १॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੪ ਚਉਥਾ ॥
सोरठि महला ४ चउथा ॥
राग सोरठ, चौथे गुरु: ॥
ਆਪੇ ਅੰਡਜ ਜੇਰਜ ਸੇਤਜ ਉਤਭੁਜ ਆਪੇ ਖੰਡ ਆਪੇ ਸਭ ਲੋਇ ॥
आपे अंडज जेरज सेतज उतभुज आपे खंड आपे सभ लोइ ॥
परमेश्वर स्वयं ही अंडज (अण्डे से उत्पन्न), जेरज (भ्रूण से उत्पन्न), स्वेदज (पसीने से उत्पन्न), उदभिज (धरती से उत्पन्न) है। वह स्वयं ही धरती के खण्ड एवं स्वयं ही समस्त लोक है।
ਆਪੇ ਸੂਤੁ ਆਪੇ ਬਹੁ ਮਣੀਆ ਕਰਿ ਸਕਤੀ ਜਗਤੁ ਪਰੋਇ ॥
आपे सूतु आपे बहु मणीआ करि सकती जगतु परोइ ॥
वह स्वयं ही सूत्र है और स्वयं ही अनेक मणियां हैं। अपनी शक्ति धारण करके उसने सारी दुनिया को सूत्र में पिरोया हुआ है।