Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 524

Page 524

ਮਥੇ ਵਾਲਿ ਪਛਾੜਿਅਨੁ ਜਮ ਮਾਰਗਿ ਮੁਤੇ ॥ मथे वालि पछाड़िअनु जम मारगि मुते ॥ परमेश्वर निंदकों को वह उनके कर्मों के अनुसार मृत्यु के भय में छोड़ देता है, मानो उन्हें ललाट पकड़कर स्वयं यम के मार्ग पर धकेल देता हो।
ਦੁਖਿ ਲਗੈ ਬਿਲਲਾਣਿਆ ਨਰਕਿ ਘੋਰਿ ਸੁਤੇ ॥ दुखि लगै बिललाणिआ नरकि घोरि सुते ॥ वह उन्हें घोर नरक में भेज देता है, जहाँ वे दुःखी होकर रोते-चिल्लाते हैं।
ਕੰਠਿ ਲਾਇ ਦਾਸ ਰਖਿਅਨੁ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਸਤੇ ॥੨੦॥ कंठि लाइ दास रखिअनु नानक हरि सते ॥२०॥ हे नानक ! (लेकिन) अपने दासों को गले से लगाकर सत्य परमेश्वर उनकी रक्षा करते हैं॥ २० ॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥ सलोक मः ५ ॥ श्लोक, पांचवें गुरु: ५॥
ਰਾਮੁ ਜਪਹੁ ਵਡਭਾਗੀਹੋ ਜਲਿ ਥਲਿ ਪੂਰਨੁ ਸੋਇ ॥ रामु जपहु वडभागीहो जलि थलि पूरनु सोइ ॥ हे भाग्यशाली प्राणियो ! राम का नाम जपो, क्योंकि वह जल एवं धरती में पूर्ण तौर पर विद्यमान है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਧਿਆਇਐ ਬਿਘਨੁ ਨ ਲਾਗੈ ਕੋਇ ॥੧॥ नानक नामि धिआइऐ बिघनु न लागै कोइ ॥१॥ हे नानक ! प्रभु-नाम का ध्यान करने से जीव को कोई विघ्न नहीं आता ॥१॥
ਮਃ ੫ ॥ मः ५ ॥ पांचवें गुरु: ५॥
ਕੋਟਿ ਬਿਘਨ ਤਿਸੁ ਲਾਗਤੇ ਜਿਸ ਨੋ ਵਿਸਰੈ ਨਾਉ ॥ कोटि बिघन तिसु लागते जिस नो विसरै नाउ ॥ जिस जीव को भगवान् का नाम भूल जाता है, उसे करोड़ों ही विघ्न घेर लेते हैं।
ਨਾਨਕ ਅਨਦਿਨੁ ਬਿਲਪਤੇ ਜਿਉ ਸੁੰਞੈ ਘਰਿ ਕਾਉ ॥੨॥ नानक अनदिनु बिलपते जिउ सुंञै घरि काउ ॥२॥ हे नानक ! वे रात-दिन ऐसे रोते रहते हैं जैसे सूने घर में कौआ कांव-कांव करता है ॥२॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਦਾਤਾਰੁ ਮਨੋਰਥ ਪੂਰਿਆ ॥ सिमरि सिमरि दातारु मनोरथ पूरिआ ॥ कल्याणकारी प्रभु का सिमरन करने से सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।
ਇਛ ਪੁੰਨੀ ਮਨਿ ਆਸ ਗਏ ਵਿਸੂਰਿਆ ॥ इछ पुंनी मनि आस गए विसूरिआ ॥ मेरे मन की इच्छा एवं आशा पूर्ण हो गई है तथा सर्व प्रकार के दुःख-संताप नष्ट हो गए हैं।
ਪਾਇਆ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਜਿਸ ਨੋ ਭਾਲਦਾ ॥ पाइआ नामु निधानु जिस नो भालदा ॥ जिसे खोजता रहता था, उस प्रभु नाम रूपी भण्डार को प्राप्त कर लिया है
ਜੋਤਿ ਮਿਲੀ ਸੰਗਿ ਜੋਤਿ ਰਹਿਆ ਘਾਲਦਾ ॥ जोति मिली संगि जोति रहिआ घालदा ॥ मेरी ज्योति परम-ज्योत में लीन हो गई है और मेरी साधना पूर्ण हो गई है।
ਸੂਖ ਸਹਜ ਆਨੰਦ ਵੁਠੇ ਤਿਤੁ ਘਰਿ ॥ सूख सहज आनंद वुठे तितु घरि ॥ मैं अब उस घर में रहता हूँ, जहाँ सहज सुख एवं आनंद प्रवृत्त हो रहे हैं।
ਆਵਣ ਜਾਣ ਰਹੇ ਜਨਮੁ ਨ ਤਹਾ ਮਰਿ ॥ आवण जाण रहे जनमु न तहा मरि ॥ मेरा आवागमन भी मिट गया है क्योंकि वहाँ जन्म-मरण नहीं होता।
ਸਾਹਿਬੁ ਸੇਵਕੁ ਇਕੁ ਇਕੁ ਦ੍ਰਿਸਟਾਇਆ ॥ साहिबु सेवकु इकु इकु द्रिसटाइआ ॥ स्वामी एवं सेवक एकरूप ही हो गए हैं और दोनों एक समान ही दृष्टिगत होते हैं।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਨਾਨਕ ਸਚਿ ਸਮਾਇਆ ॥੨੧॥੧॥੨॥ ਸੁਧੁ गुर प्रसादि नानक सचि समाइआ ॥२१॥१॥२॥ सुधु हे नानक ! गुरु की कृपा से मैं सत्य में समा गया हूँ ॥२१॥१॥२॥शुद्ध ॥
ਰਾਗੁ ਗੂਜਰੀ ਭਗਤਾ ਕੀ ਬਾਣੀ रागु गूजरी भगता की बाणी राग गूजरी, भक्तों की बाणी:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸ੍ਰੀ ਕਬੀਰ ਜੀਉ ਕਾ ਚਉਪਦਾ ਘਰੁ ੨ ਦੂਜਾ ॥ स्री कबीर जीउ का चउपदा घरु २ दूजा ॥ कबीर जी की चौ-पद (चौकड़ी), दूसरी ताल: ॥
ਚਾਰਿ ਪਾਵ ਦੁਇ ਸਿੰਗ ਗੁੰਗ ਮੁਖ ਤਬ ਕੈਸੇ ਗੁਨ ਗਈਹੈ ॥ चारि पाव दुइ सिंग गुंग मुख तब कैसे गुन गईहै ॥ हे जीव ! पशु योनि में आकर जब तू चार पैर, दो सीग एवं मुँह से गूंगा बन जाएगा तो फिर कैसे ईश्वर का गुणगान करेगा?
ਊਠਤ ਬੈਠਤ ਠੇਗਾ ਪਰਿਹੈ ਤਬ ਕਤ ਮੂਡ ਲੁਕਈਹੈ ॥੧॥ ऊठत बैठत ठेगा परिहै तब कत मूड लुकईहै ॥१॥ उठते-बैठते तुझे डण्डे से मार पड़ेगी, तब तू अपना सिर कहाँ छिपा सकेगा? ॥१॥
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਬੈਲ ਬਿਰਾਨੇ ਹੁਈਹੈ ॥ हरि बिनु बैल बिराने हुईहै ॥ हरि-नाम के बिना तू उधारी बैल जैसा बन जाएगा,
ਫਾਟੇ ਨਾਕਨ ਟੂਟੇ ਕਾਧਨ ਕੋਦਉ ਕੋ ਭੁਸੁ ਖਈਹੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ फाटे नाकन टूटे काधन कोदउ को भुसु खईहै ॥१॥ रहाउ ॥ जिसका नाक फटा हुआ तथा कन्धा टूटा हुआ होता है और जो भूसा ही खाता रहता है॥१॥ रहाउ ॥
ਸਾਰੋ ਦਿਨੁ ਡੋਲਤ ਬਨ ਮਹੀਆ ਅਜਹੁ ਨ ਪੇਟ ਅਘਈਹੈ ॥ सारो दिनु डोलत बन महीआ अजहु न पेट अघईहै ॥ हे जीव ! सारा दिन वन में भटकने के पश्चात् भी तेरा पेट नहीं भरेगा।
ਜਨ ਭਗਤਨ ਕੋ ਕਹੋ ਨ ਮਾਨੋ ਕੀਓ ਅਪਨੋ ਪਈਹੈ ॥੨॥ जन भगतन को कहो न मानो कीओ अपनो पईहै ॥२॥ तूने भक्तजनों का कहना तो माना नहीं, परिणामस्वरूप अपने कर्मों का फल अवश्य पाओगे॥ २॥
ਦੁਖ ਸੁਖ ਕਰਤ ਮਹਾ ਭ੍ਰਮਿ ਬੂਡੋ ਅਨਿਕ ਜੋਨਿ ਭਰਮਈਹੈ ॥ दुख सुख करत महा भ्रमि बूडो अनिक जोनि भरमईहै ॥ अब जीव दुःख-सुख भोगता तथा महा दुविधा में डूबा हुआ अनेक योनियों के चक्र में भटकेगा।
ਰਤਨ ਜਨਮੁ ਖੋਇਓ ਪ੍ਰਭੁ ਬਿਸਰਿਓ ਇਹੁ ਅਉਸਰੁ ਕਤ ਪਈਹੈ ॥੩॥ रतन जनमु खोइओ प्रभु बिसरिओ इहु अउसरु कत पईहै ॥३॥ हे जीव ! प्रभु को भुला कर तूने हीरे जैसा अनमोल मनुष्य-जन्म व्यर्थ ही गंवा दिया है, ऐसा अवसर तुझे अब कहाँ प्राप्त होगा? ॥३॥
ਭ੍ਰਮਤ ਫਿਰਤ ਤੇਲਕ ਕੇ ਕਪਿ ਜਿਉ ਗਤਿ ਬਿਨੁ ਰੈਨਿ ਬਿਹਈਹੈ ॥ भ्रमत फिरत तेलक के कपि जिउ गति बिनु रैनि बिहईहै ॥ हे जीव ! तेली के बैल एवं बन्दर की तरह भटकते हुए तेरी जीवन रूपी रात्रि मुक्ति प्राप्त किए बिना ही व्यतीत हो जाएगी।
ਕਹਤ ਕਬੀਰ ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਮੂੰਡ ਧੁਨੇ ਪਛੁਤਈਹੈ ॥੪॥੧॥ कहत कबीर राम नाम बिनु मूंड धुने पछुतईहै ॥४॥१॥ कबीर कहते हैं कि हे जीव ! राम नाम के बिना तू अपना सिर पटक पटक कर पछताएगा।॥४॥१॥
ਗੂਜਰੀ ਘਰੁ ੩ ॥ गूजरी घरु ३ ॥ राग गूजरी, तीसरी ताल: ३ ॥
ਮੁਸਿ ਮੁਸਿ ਰੋਵੈ ਕਬੀਰ ਕੀ ਮਾਈ ॥ मुसि मुसि रोवै कबीर की माई ॥ कबीर की माता सुबक-सुबक रोती है और
ਏ ਬਾਰਿਕ ਕੈਸੇ ਜੀਵਹਿ ਰਘੁਰਾਈ ॥੧॥ ए बारिक कैसे जीवहि रघुराई ॥१॥ निवेदन करती है कि हे रघुराई ! ये (कबीर के) बच्चे किस तरह जीवित रह सकेंगे।॥१॥
ਤਨਨਾ ਬੁਨਨਾ ਸਭੁ ਤਜਿਓ ਹੈ ਕਬੀਰ ॥ तनना बुनना सभु तजिओ है कबीर ॥ क्योंकि कबीर ने कातना एवं बुनना सभी छोड़ दिया है तथा
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਲਿਖਿ ਲੀਓ ਸਰੀਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हरि का नामु लिखि लीओ सरीर ॥१॥ रहाउ ॥ वह इस प्रकार ईश्वर-चिंतन में लीन है, मानो उसके रोम-रोम पर भगवान् का नाम अंकित हो गया हो॥१॥विराम॥
ਜਬ ਲਗੁ ਤਾਗਾ ਬਾਹਉ ਬੇਹੀ ॥ जब लगु तागा बाहउ बेही ॥ कबीर अपनी माता से कहते हैं कि जितनी देर मैं नली के छेद में धागा पिरोता हूँ,
ਤਬ ਲਗੁ ਬਿਸਰੈ ਰਾਮੁ ਸਨੇਹੀ ॥੨॥ तब लगु बिसरै रामु सनेही ॥२॥ उतनी देर तक तो मुझे अपना स्नेही राम भूल जाता है ॥२॥
ਓਛੀ ਮਤਿ ਮੇਰੀ ਜਾਤਿ ਜੁਲਾਹਾ ॥ ओछी मति मेरी जाति जुलाहा ॥ मैं जाति का जुलाहा हूँ तथा मेरी बुद्धि ओछी (छोटी) है।
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਲਹਿਓ ਮੈ ਲਾਹਾ ॥੩॥ हरि का नामु लहिओ मै लाहा ॥३॥ हरि के नाम का लाभ मैंने प्राप्त कर लिया है॥३॥
ਕਹਤ ਕਬੀਰ ਸੁਨਹੁ ਮੇਰੀ ਮਾਈ ॥ कहत कबीर सुनहु मेरी माई ॥ कबीर जी कहते हैं कि हे मेरी माता ! जरा ध्यान से सुनो,
ਹਮਰਾ ਇਨ ਕਾ ਦਾਤਾ ਏਕੁ ਰਘੁਰਾਈ ॥੪॥੨॥ हमरा इन का दाता एकु रघुराई ॥४॥२॥ मेरा और इन बच्चों का दाता तो एक परमात्मा ही है ॥४॥२॥


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