Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 525

Page 525

ਗੂਜਰੀ ਸ੍ਰੀ ਨਾਮਦੇਵ ਜੀ ਕੇ ਪਦੇ ਘਰੁ ੧॥ गूजरी स्री नामदेव जी के पदे घरु १ राग गूजरी, नाम दैव जी के भजन, पहली ताल: १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਜੌ ਰਾਜੁ ਦੇਹਿ ਤ ਕਵਨ ਬਡਾਈ ॥ जौ राजु देहि त कवन बडाई ॥ हे परमेश्वर ! यदि आप मुझे साम्राज्य भी दे दो तो इसमें मेरी कौन-सी बड़ाई है ?
ਜੌ ਭੀਖ ਮੰਗਾਵਹਿ ਤ ਕਿਆ ਘਟਿ ਜਾਈ ॥੧॥ जौ भीख मंगावहि त किआ घटि जाई ॥१॥ यदि आप मुझे भिखारी बनाकर भिक्षा मंगवा ले तो भी इसमें मेरा क्या कम हो जाएगा ? ॥ १॥
ਤੂੰ ਹਰਿ ਭਜੁ ਮਨ ਮੇਰੇ ਪਦੁ ਨਿਰਬਾਨੁ ॥ तूं हरि भजु मन मेरे पदु निरबानु ॥ हे मेरे मन ! तू हरि का भजन कर, तुझे मोक्ष की पदवी प्राप्त हो जाएगी।
ਬਹੁਰਿ ਨ ਹੋਇ ਤੇਰਾ ਆਵਨ ਜਾਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ बहुरि न होइ तेरा आवन जानु ॥१॥ रहाउ ॥ इस तरह तेरा इस दुनिया में दोबारा जन्म-मरण नहीं होगा।॥ १॥ रहाउ॥
ਸਭ ਤੈ ਉਪਾਈ ਭਰਮ ਭੁਲਾਈ ॥ सभ तै उपाई भरम भुलाई ॥ हे प्रभु ! सारी सृष्टि तूने स्वयं ही उत्पन्न की हुई है तथा स्वयं ही इसे भ्रम में भटकाया हुआ है।
ਜਿਸ ਤੂੰ ਦੇਵਹਿ ਤਿਸਹਿ ਬੁਝਾਈ ॥੨॥ जिस तूं देवहि तिसहि बुझाई ॥२॥ जिसे आप सुमति प्रदान करते हैं, वही आपको समझता है॥ २ ॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਤ ਸਹਸਾ ਜਾਈ ॥ सतिगुरु मिलै त सहसा जाई ॥ जब सतगुरु मिल जाता है तो मन की दुविधा नष्ट हो जाती है।
ਕਿਸੁ ਹਉ ਪੂਜਉ ਦੂਜਾ ਨਦਰਿ ਨ ਆਈ ॥੩॥ किसु हउ पूजउ दूजा नदरि न आई ॥३॥ हे भगवान् ! आपके अतिरिक्त मैं किसकी पूजा करूं? क्योंकि मुझे अन्य कोई गुणदाता दिखाई ही नहीं देता ॥३॥
ਏਕੈ ਪਾਥਰ ਕੀਜੈ ਭਾਉ ॥ एकै पाथर कीजै भाउ ॥ बड़ी हैरानी है कि एक पत्थर (मूर्ति बनाकर) श्रद्धा से पूजा जाता है और
ਦੂਜੈ ਪਾਥਰ ਧਰੀਐ ਪਾਉ ॥ दूजै पाथर धरीऐ पाउ ॥ दूसरा पत्थर पैर से लताड़ा जाता है।
ਜੇ ਓਹੁ ਦੇਉ ਤ ਓਹੁ ਭੀ ਦੇਵਾ ॥ जे ओहु देउ त ओहु भी देवा ॥ यदि एक पत्थर देवता है तो दूसरा भी देवता ही है।
ਕਹਿ ਨਾਮਦੇਉ ਹਮ ਹਰਿ ਕੀ ਸੇਵਾ ॥੪॥੧॥ कहि नामदेउ हम हरि की सेवा ॥४॥१॥ नामदेव का कथन है कि हम तो (मूर्ति पूजा को छोड़कर केवल) परमात्मा की ही सेवा करते हैं।॥ ४॥ १॥
ਗੂਜਰੀ ਘਰੁ ੧ ॥ गूजरी घरु १ ॥ राग गूजरी, पहली ताल: १ ॥
ਮਲੈ ਨ ਲਾਛੈ ਪਾਰ ਮਲੋ ਪਰਮਲੀਓ ਬੈਠੋ ਰੀ ਆਈ ॥ मलै न लाछै पार मलो परमलीओ बैठो री आई ॥ हे बहन ! उस ईश्वर में मोह-माया की मैल का लेशमात्र भी चिन्ह नहीं, वह तो मैल से परे है अर्थात् पवित्र-पावन है तथा चन्दन की सुगन्धि के समान सबके हृदय में आकर बसा हुआ है।
ਆਵਤ ਕਿਨੈ ਨ ਪੇਖਿਓ ਕਵਨੈ ਜਾਣੈ ਰੀ ਬਾਈ ॥੧॥ आवत किनै न पेखिओ कवनै जाणै री बाई ॥१॥ उस ईश्वर को कभी किसी ने आते हुए नहीं देखा, इसलिए उसे कौन जान सकता है कि उसका स्वरूप कैसा है?॥ १॥
ਕਉਣੁ ਕਹੈ ਕਿਣਿ ਬੂਝੀਐ ਰਮਈਆ ਆਕੁਲੁ ਰੀ ਬਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ कउणु कहै किणि बूझीऐ रमईआ आकुलु री बाई ॥१॥ रहाउ ॥ हे बहन ! सर्वव्यापक प्रभु के गुणों के बारे में कौन वर्णन कर सकता है और उसके स्वरूप को कौन समझ सकता है? वह तो कुल रहित है ॥१॥ रहाउ॥
ਜਿਉ ਆਕਾਸੈ ਪੰਖੀਅਲੋ ਖੋਜੁ ਨਿਰਖਿਓ ਨ ਜਾਈ ॥ जिउ आकासै पंखीअलो खोजु निरखिओ न जाई ॥ जैसे आकाश में पक्षी उड़ता है किन्तु उसका रास्ता नजर नहीं आ सकता,
ਜਿਉ ਜਲ ਮਾਝੈ ਮਾਛਲੋ ਮਾਰਗੁ ਪੇਖਣੋ ਨ ਜਾਈ ॥੨॥ जिउ जल माझै माछलो मारगु पेखणो न जाई ॥२॥ जैसे जल में मछली तैरती है किन्तु उसका भी रास्ता दिखाई नहीं दे सकता॥ २॥
ਜਿਉ ਆਕਾਸੈ ਘੜੂਅਲੋ ਮ੍ਰਿਗ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਭਰਿਆ ॥ जिउ आकासै घड़ूअलो म्रिग त्रिसना भरिआ ॥ जिस प्रकार खुले स्थान में मृगतृष्णा जल के रूप में दिखाई देती है
ਨਾਮੇ ਚੇ ਸੁਆਮੀ ਬੀਠਲੋ ਜਿਨਿ ਤੀਨੈ ਜਰਿਆ ॥੩॥੨॥ नामे चे सुआमी बीठलो जिनि तीनै जरिआ ॥३॥२॥ नामदेव का स्वामी विठ्ठल भगवान् तो ऐसे है, जिसने तीनों संताप नाश कर दिए हैं ॥३॥२॥
ਗੂਜਰੀ ਸ੍ਰੀ ਰਵਿਦਾਸ ਜੀ ਕੇ ਪਦੇ ਘਰੁ ੩ गूजरी स्री रविदास जी के पदे घरु ३ गूराग गूजरी, रविदास जी के भजन, तीसरी ताल: ३
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਦੂਧੁ ਤ ਬਛਰੈ ਥਨਹੁ ਬਿਟਾਰਿਓ ॥ दूधु त बछरै थनहु बिटारिओ ॥ दूध तो गाय के थनों में ही बछड़े ने जूठा कर दिया है,
ਫੂਲੁ ਭਵਰਿ ਜਲੁ ਮੀਨਿ ਬਿਗਾਰਿਓ ॥੧॥ फूलु भवरि जलु मीनि बिगारिओ ॥१॥ फूलों को भंवरे ने सूंघा हुआ है तथा जल मछली ने अशुद्ध कर दिया है॥ १॥
ਮਾਈ ਗੋਬਿੰਦ ਪੂਜਾ ਕਹਾ ਲੈ ਚਰਾਵਉ ॥ माई गोबिंद पूजा कहा लै चरावउ ॥ हे मेरी माता ! गोविन्द की पूजा-अर्चना करने के लिए मैं कौन-सी भेंट-सामग्री अर्पित करूँ ?
ਅਵਰੁ ਨ ਫੂਲੁ ਅਨੂਪੁ ਨ ਪਾਵਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ अवरु न फूलु अनूपु न पावउ ॥१॥ रहाउ ॥ मुझे कोई अन्य अनूप सुन्दर फूल नहीं मिल सकता, क्या इसके अभाव से प्रभु को प्राप्त नहीं कर सकूंगा ?॥ १॥ रहाउ॥
ਮੈਲਾਗਰ ਬੇਰ੍ਹੇ ਹੈ ਭੁਇਅੰਗਾ ॥ मैलागर बेर्हे है भुइअंगा ॥ जहरीले साँपों ने चन्दन के पेड़ को लपेटा हुआ है।
ਬਿਖੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਬਸਹਿ ਇਕ ਸੰਗਾ ॥੨॥ बिखु अम्रितु बसहि इक संगा ॥२॥ विष एवं अमृत सागर में साथ-साथ ही बसते हैं।॥ २॥
ਧੂਪ ਦੀਪ ਨਈਬੇਦਹਿ ਬਾਸਾ ॥ धूप दीप नईबेदहि बासा ॥ हे प्रभु! धूप, दीप, नैवेद्य एवं सुगन्धियों से
ਕੈਸੇ ਪੂਜ ਕਰਹਿ ਤੇਰੀ ਦਾਸਾ ॥੩॥ कैसे पूज करहि तेरी दासा ॥३॥ आपका सेवक कैसे पूजा कर सकता है ? क्योंकि वे भी अशुद्ध ही हैं।॥ ३॥
ਤਨੁ ਮਨੁ ਅਰਪਉ ਪੂਜ ਚਰਾਵਉ ॥ तनु मनु अरपउ पूज चरावउ ॥ अपना तन-मन भगवान् को अर्पण करके पूजा की जाए तो
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਨਿਰੰਜਨੁ ਪਾਵਉ ॥੪॥ गुर परसादि निरंजनु पावउ ॥४॥ गुरु की कृपा से निरंजन प्रभु को पाया जा सकता है॥ ४॥
ਪੂਜਾ ਅਰਚਾ ਆਹਿ ਨ ਤੋਰੀ ॥ पूजा अरचा आहि न तोरी ॥ रविदास का कथन है कि हे ईश्वर ! यदि मुझसे आपकी पूजा-अर्चना नहीं हो सकी तो
ਕਹਿ ਰਵਿਦਾਸ ਕਵਨ ਗਤਿ ਮੋਰੀ ॥੫॥੧॥ कहि रविदास कवन गति मोरी ॥५॥१॥ फिर आगे मेरी क्या गति होगी ॥५॥१॥
ਗੂਜਰੀ ਸ੍ਰੀ ਤ੍ਰਿਲੋਚਨ ਜੀਉ ਕੇ ਪਦੇ ਘਰੁ ੧ गूजरी स्री त्रिलोचन जीउ के पदे घरु १ राग गूजरी, त्रिलोचन जी के भजन, पहली ताल:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਅੰਤਰੁ ਮਲਿ ਨਿਰਮਲੁ ਨਹੀ ਕੀਨਾ ਬਾਹਰਿ ਭੇਖ ਉਦਾਸੀ ॥ अंतरु मलि निरमलु नही कीना बाहरि भेख उदासी ॥ यदि अन्तर मैला है और उसे निर्मल नहीं किया तथा बाहर से चाहे उदासीन का वेष धारण किया हुआ है तो इसका क्या अभिप्राय है ?
ਹਿਰਦੈ ਕਮਲੁ ਘਟਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਨ ਚੀਨ੍ਹ੍ਹਾ ਕਾਹੇ ਭਇਆ ਸੰਨਿਆਸੀ ॥੧॥ हिरदै कमलु घटि ब्रहमु न चीन्हा काहे भइआ संनिआसी ॥१॥ हे भाई ! अपने हृदय कमल में ब्रह्मा को न पहचान कर क्यों संन्यासी बने हुए हो ? ॥१॥


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