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ਸਨਕ ਸਨੰਦਨ ਨਾਰਦ ਮੁਨਿ ਸੇਵਹਿ ਅਨਦਿਨੁ ਜਪਤ ਰਹਹਿ ਬਨਵਾਰੀ ॥
सनक सनंदन नारद मुनि सेवहि अनदिनु जपत रहहि बनवारी ॥
सनक, सनंदन एवं नारद मुनि इत्यादि बनवारी प्रभु की सेवा-उपासना करते हैं और रात-दिन प्रभु-नाम का जाप करने में मग्न हैं।
ਸਰਣਾਗਤਿ ਪ੍ਰਹਲਾਦ ਜਨ ਆਏ ਤਿਨ ਕੀ ਪੈਜ ਸਵਾਰੀ ॥੨॥
सरणागति प्रहलाद जन आए तिन की पैज सवारी ॥२॥
हे प्रभु ! जब भक्त प्रहलाद आपकी शरण में आया था तो आपने उसकी लाज रख ली थी॥ २॥
ਅਲਖ ਨਿਰੰਜਨੁ ਏਕੋ ਵਰਤੈ ਏਕਾ ਜੋਤਿ ਮੁਰਾਰੀ ॥
अलख निरंजनु एको वरतै एका जोति मुरारी ॥
अलख निरंजन एक ईश्वर ही सर्वव्यापक है तथा एक उसकी ज्योति ही समूची सृष्टि में प्रज्वलित हो रही है।
ਸਭਿ ਜਾਚਿਕ ਤੂ ਏਕੋ ਦਾਤਾ ਮਾਗਹਿ ਹਾਥ ਪਸਾਰੀ ॥੩॥
सभि जाचिक तू एको दाता मागहि हाथ पसारी ॥३॥
हे प्रभु ! एक आप ही दाता है, शेष सभी याचक हैं, अपना हाथ फैलाकर सभी आपसे दान मांगते हैं।॥ ३॥
ਭਗਤ ਜਨਾ ਕੀ ਊਤਮ ਬਾਣੀ ਗਾਵਹਿ ਅਕਥ ਕਥਾ ਨਿਤ ਨਿਆਰੀ ॥
भगत जना की ऊतम बाणी गावहि अकथ कथा नित निआरी ॥
भक्तजनों की वाणी सर्वोत्तम है। वे सदा प्रभु की निराली एवं अकथनीय कथा गायन करते रहते हैं।
ਸਫਲ ਜਨਮੁ ਭਇਆ ਤਿਨ ਕੇਰਾ ਆਪਿ ਤਰੇ ਕੁਲ ਤਾਰੀ ॥੪॥
सफल जनमु भइआ तिन केरा आपि तरे कुल तारी ॥४॥
उनका जन्म सफल हो जाता है, वे स्वयं संसार-सागर से पार हो जाते हैं और अपनी कुल का भी उद्धार कर लेते हैं।॥ ४॥
ਮਨਮੁਖ ਦੁਬਿਧਾ ਦੁਰਮਤਿ ਬਿਆਪੇ ਜਿਨ ਅੰਤਰਿ ਮੋਹ ਗੁਬਾਰੀ ॥
मनमुख दुबिधा दुरमति बिआपे जिन अंतरि मोह गुबारी ॥
स्वेच्छाचारी लोग दुविधा एवं दुर्मति में फँसे हुए हैं। उनके भीतर सांसारिक मोह का अन्धेरा है।
ਸੰਤ ਜਨਾ ਕੀ ਕਥਾ ਨ ਭਾਵੈ ਓਇ ਡੂਬੇ ਸਣੁ ਪਰਵਾਰੀ ॥੫॥
संत जना की कथा न भावै ओइ डूबे सणु परवारी ॥५॥
उन्हें सन्तजनों की कथा पसंद नहीं आती। इसलिए वे अपने परिवार सहित संसार-सागर में डूब जाते हैं।॥ ५॥
ਨਿੰਦਕੁ ਨਿੰਦਾ ਕਰਿ ਮਲੁ ਧੋਵੈ ਓਹੁ ਮਲਭਖੁ ਮਾਇਆਧਾਰੀ ॥
निंदकु निंदा करि मलु धोवै ओहु मलभखु माइआधारी ॥
निंदक निंदा करके दूसरों की मैल साफ करता है। वह मलभक्षी एवं मायाधारी है और
ਸੰਤ ਜਨਾ ਕੀ ਨਿੰਦਾ ਵਿਆਪੇ ਨਾ ਉਰਵਾਰਿ ਨ ਪਾਰੀ ॥੬॥
संत जना की निंदा विआपे ना उरवारि न पारी ॥६॥
संतजनों की निंदा करने में ही प्रवृत्त रहता है, इससे न वह इधर का होता है और न ही पार होता है॥ ६॥
ਏਹੁ ਪਰਪੰਚੁ ਖੇਲੁ ਕੀਆ ਸਭੁ ਕਰਤੈ ਹਰਿ ਕਰਤੈ ਸਭ ਕਲ ਧਾਰੀ ॥
एहु परपंचु खेलु कीआ सभु करतै हरि करतै सभ कल धारी ॥
यह समूचा जगत् का प्रपंच खेल रचनाकार ने ही रचा है तथा रचनाकार प्रभु ने ही सभी के भीतर अपनी सत्ता स्थापित की है।
ਹਰਿ ਏਕੋ ਸੂਤੁ ਵਰਤੈ ਜੁਗ ਅੰਤਰਿ ਸੂਤੁ ਖਿੰਚੈ ਏਕੰਕਾਰੀ ॥੭॥
हरि एको सूतु वरतै जुग अंतरि सूतु खिंचै एकंकारी ॥७॥
ईश्वर की शक्ति का एक सूक्ष्म धागा ही सम्पूर्ण सृष्टि को संचालित और स्थिर रखता है। जब वह इस धागे को खींच लेते हैं, तो समस्त सृष्टि विलीन हो जाती है, और केवल परमात्मा ही शेष रहते हैं।॥ ७ ॥
ਰਸਨਿ ਰਸਨਿ ਰਸਿ ਗਾਵਹਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਰਸਨਾ ਹਰਿ ਰਸੁ ਧਾਰੀ ॥
रसनि रसनि रसि गावहि हरि गुण रसना हरि रसु धारी ॥
जो भक्त प्रेमपूर्वक भगवान् की स्तुति करते हैं, उनकी जिह्वा पर सदैव भगवान के नाम का अमृत बरसता रहता है।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਮਾਗਉ ਹਰਿ ਰਸ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪਿਆਰੀ ॥੮॥੧॥੭॥
नानक हरि बिनु अवरु न मागउ हरि रस प्रीति पिआरी ॥८॥१॥७॥
हे नानक ! हरि के अतिरिक्त मैं कुछ भी नहीं माँगता, क्योंकि हरि-रस की प्रीति ही मुझे प्यारी लगती है॥ ८॥ १॥ ७॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨॥
गूजरी महला ५ घरु २
राग गूजरी, पांचवें गुरु, दूसरा ताल:२
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਰਾਜਨ ਮਹਿ ਤੂੰ ਰਾਜਾ ਕਹੀਅਹਿ ਭੂਮਨ ਮਹਿ ਭੂਮਾ ॥
राजन महि तूं राजा कहीअहि भूमन महि भूमा ॥
हे परमात्मा ! राजाओं में आप सबसे बड़े राजा कहे जाते हैं तथा भूमि पतियों में आप सबसे बड़ा भूमिपति है।
ਠਾਕੁਰ ਮਹਿ ਠਕੁਰਾਈ ਤੇਰੀ ਕੋਮਨ ਸਿਰਿ ਕੋਮਾ ॥੧॥
ठाकुर महि ठकुराई तेरी कोमन सिरि कोमा ॥१॥
ठाकुरों में तुम्हारी ठकुराई का ही वर्चस्व है तथा कौमों में तुम्हारी सर्वोपरि कौम है॥ १ ॥
ਪਿਤਾ ਮੇਰੋ ਬਡੋ ਧਨੀ ਅਗਮਾ ॥
पिता मेरो बडो धनी अगमा ॥
मेरा पिता-प्रभु बड़ा धनवान एवं अगम्य स्वामी है।
ਉਸਤਤਿ ਕਵਨ ਕਰੀਜੈ ਕਰਤੇ ਪੇਖਿ ਰਹੇ ਬਿਸਮਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
उसतति कवन करीजै करते पेखि रहे बिसमा ॥१॥ रहाउ ॥
हे सृषटिकर्त्ता ! मैं आपकी कौन-सी स्तुति का वर्णन करूँ ? आपकी लीला देखकर मैं आश्चर्यचकित हो गया हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਸੁਖੀਅਨ ਮਹਿ ਸੁਖੀਆ ਤੂੰ ਕਹੀਅਹਿ ਦਾਤਨ ਸਿਰਿ ਦਾਤਾ ॥
सुखीअन महि सुखीआ तूं कहीअहि दातन सिरि दाता ॥
हे प्रभु ! सुखी लोगों में आप सबसे बड़े सुखी कहलवाते हैं और दानियों में महान् दानी है।
ਤੇਜਨ ਮਹਿ ਤੇਜਵੰਸੀ ਕਹੀਅਹਿ ਰਸੀਅਨ ਮਹਿ ਰਾਤਾ ॥੨॥
तेजन महि तेजवंसी कहीअहि रसीअन महि राता ॥२॥
तेजस्वीयों में आप महातेजस्वी हैं और रसियों में आप सर्वोच्च रसिया है॥ २॥
ਸੂਰਨ ਮਹਿ ਸੂਰਾ ਤੂੰ ਕਹੀਅਹਿ ਭੋਗਨ ਮਹਿ ਭੋਗੀ ॥
सूरन महि सूरा तूं कहीअहि भोगन महि भोगी ॥
हे स्वामी ! शूरवीरों में आप सबसे बड़े शूरवीर हैं तथा भोगियों में तू महाभोगी है।
ਗ੍ਰਸਤਨ ਮਹਿ ਤੂੰ ਬਡੋ ਗ੍ਰਿਹਸਤੀ ਜੋਗਨ ਮਹਿ ਜੋਗੀ ॥੩॥
ग्रसतन महि तूं बडो ग्रिहसती जोगन महि जोगी ॥३॥
गृहस्थियों में आप महान् गृहस्थी है (तुझ समान दूसरा कोई नहीं) तथा योगियों में आप महान् योगी है ॥३॥
ਕਰਤਨ ਮਹਿ ਤੂੰ ਕਰਤਾ ਕਹੀਅਹਿ ਆਚਾਰਨ ਮਹਿ ਆਚਾਰੀ ॥
करतन महि तूं करता कहीअहि आचारन महि आचारी ॥
हे ईश्वर ! आप ही नवसृजन के महानतम शिल्पी हैं, और श्रद्धा के अनुष्ठानों में समर्पित कलाकारों के बीच, आप परम पवित्र कलाकार के रूप में पूजित हैं।
ਸਾਹਨ ਮਹਿ ਤੂੰ ਸਾਚਾ ਸਾਹਾ ਵਾਪਾਰਨ ਮਹਿ ਵਾਪਾਰੀ ॥੪॥
साहन महि तूं साचा साहा वापारन महि वापारी ॥४॥
हे दाता ! साहूकारों में भी आप सच्चे साहूकार हो तथा व्यापारियों में महान् व्यापारी हो।॥ ४॥
ਦਰਬਾਰਨ ਮਹਿ ਤੇਰੋ ਦਰਬਾਰਾ ਸਰਨ ਪਾਲਨ ਟੀਕਾ ॥
दरबारन महि तेरो दरबारा सरन पालन टीका ॥
हे स्वामी ! दरबार लगाने वालों में भी आपका ही सच्चा दरबार है तथा शरणागतों की प्रतिष्ठा रखने वालों में भी आप सर्वोत्तम हो।
ਲਖਿਮੀ ਕੇਤਕ ਗਨੀ ਨ ਜਾਈਐ ਗਨਿ ਨ ਸਕਉ ਸੀਕਾ ॥੫॥
लखिमी केतक गनी न जाईऐ गनि न सकउ सीका ॥५॥
हे प्रभु, आपकी संपदा असीम है, आपके खज़ानों की गणना असंभव है।॥५॥
ਨਾਮਨ ਮਹਿ ਤੇਰੋ ਪ੍ਰਭ ਨਾਮਾ ਗਿਆਨਨ ਮਹਿ ਗਿਆਨੀ ॥
नामन महि तेरो प्रभ नामा गिआनन महि गिआनी ॥
हे सर्वेश्वर ! नामों में आपका ही नाम श्रेष्ठ है (अर्थात् लोकप्रियता प्राप्त करने वालों में आपकी ही लोकप्रियता है) तथा ज्ञानियों में आप महान् ज्ञानी है।
ਜੁਗਤਨ ਮਹਿ ਤੇਰੀ ਪ੍ਰਭ ਜੁਗਤਾ ਇਸਨਾਨਨ ਮਹਿ ਇਸਨਾਨੀ ॥੬॥
जुगतन महि तेरी प्रभ जुगता इसनानन महि इसनानी ॥६॥
समस्त युक्तियों में आपकी ही युक्ति सर्वश्रेष्ठ है तथा सभी प्रकार के तीर्थ स्नानों में आप में किया हुआ स्नान महान् है॥ ६॥
ਸਿਧਨ ਮਹਿ ਤੇਰੀ ਪ੍ਰਭ ਸਿਧਾ ਕਰਮਨ ਸਿਰਿ ਕਰਮਾ ॥
सिधन महि तेरी प्रभ सिधा करमन सिरि करमा ॥
हे प्रभु ! सिद्धियों में आपकी सिद्धि ही सर्वश्रेष्ठ है तथा कर्मो में आपका कर्म प्रधान है।
ਆਗਿਆ ਮਹਿ ਤੇਰੀ ਪ੍ਰਭ ਆਗਿਆ ਹੁਕਮਨ ਸਿਰਿ ਹੁਕਮਾ ॥੭॥
आगिआ महि तेरी प्रभ आगिआ हुकमन सिरि हुकमा ॥७॥
हे प्रभु ! सभी आज्ञाओं में आपकी आज्ञा ही सर्वोपरि है और सभी आदेशों में आपका आदेश सबसे ऊपर अग्रणी है ॥७॥