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ਕਵਲ ਪ੍ਰਗਾਸ ਭਏ ਸਾਧਸੰਗੇ ਦੁਰਮਤਿ ਬੁਧਿ ਤਿਆਗੀ ॥੨॥
कवल प्रगास भए साधसंगे दुरमति बुधि तिआगी ॥२॥
साधु की संगति करने से हृदय कमल खिल गया है और कुबुद्धि त्याग दी है॥ २॥
ਆਠ ਪਹਰ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਸਿਮਰੈ ਦੀਨ ਦੈਆਲਾ ॥
आठ पहर हरि के गुण गावै सिमरै दीन दैआला ॥
जो प्राणी आठों प्रहर हरि का गुणगान करता है और दीनदयाल का सिमरन करता है तो
ਆਪਿ ਤਰੈ ਸੰਗਤਿ ਸਭ ਉਧਰੈ ਬਿਨਸੇ ਸਗਲ ਜੰਜਾਲਾ ॥੩॥
आपि तरै संगति सभ उधरै बिनसे सगल जंजाला ॥३॥
वह स्वयं भी मोक्ष प्राप्त कर लेता है और संगति में आने वालों का भी उद्धार कर देता है तथा उनके समस्त बंधन कट जाते हैं। ३॥
ਚਰਣ ਅਧਾਰੁ ਤੇਰਾ ਪ੍ਰਭ ਸੁਆਮੀ ਓਤਿ ਪੋਤਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸਾਥਿ ॥
चरण अधारु तेरा प्रभ सुआमी ओति पोति प्रभु साथि ॥
हे प्रभु स्वामी ! आपके चरणों का ही मुझे आधार है। आपके ताने-बाने की भाँति लोक-परलोक में सहायक है।
ਸਰਨਿ ਪਰਿਓ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮਰੀ ਦੇ ਰਾਖਿਓ ਹਰਿ ਹਾਥ ॥੪॥੨॥੩੨॥
सरनि परिओ नानक प्रभ तुमरी दे राखिओ हरि हाथ ॥४॥२॥३२॥
हे प्रभु ! दास नानक ने आपकी शरण ली है, आपने अपना हाथ देकर उसे संसार रूपी सागर से बचा लिया है॥ ४॥ २॥ ३२॥
ਗੂਜਰੀ ਅਸਟਪਦੀਆ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧॥
गूजरी असटपदीआ महला १ घरु १
राग गूजरी, अष्टपदी, प्रथम गुरु, प्रथम ताल:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਏਕ ਨਗਰੀ ਪੰਚ ਚੋਰ ਬਸੀਅਲੇ ਬਰਜਤ ਚੋਰੀ ਧਾਵੈ ॥
एक नगरी पंच चोर बसीअले बरजत चोरी धावै ॥
शरीर रूपी एक नगरी में काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार पाँच चोर निवास करते हैं। निषिद्ध करने पर भी वे शुभ गुणों को चोरी करने के लिए दौड़ते रहते हैं।
ਤ੍ਰਿਹਦਸ ਮਾਲ ਰਖੈ ਜੋ ਨਾਨਕ ਮੋਖ ਮੁਕਤਿ ਸੋ ਪਾਵੈ ॥੧॥
त्रिहदस माल रखै जो नानक मोख मुकति सो पावै ॥१॥
हे नानक ! जो प्राणी तीन गुणों एवं दस इन्द्रियों से अपने आत्मिक गुणों का सामान बचाकर रखता है, वह मोक्ष पा लेता है॥ १॥
ਚੇਤਹੁ ਬਾਸੁਦੇਉ ਬਨਵਾਲੀ ॥
चेतहु बासुदेउ बनवाली ॥
हे भाई ! भगवान् वासुदेव को हमेशा याद करो।
ਰਾਮੁ ਰਿਦੈ ਜਪਮਾਲੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
रामु रिदै जपमाली ॥१॥ रहाउ ॥
प्रभु राम को हृदय में बसाना ही जपमाला है॥ १॥ रहाउ
ਉਰਧ ਮੂਲ ਜਿਸੁ ਸਾਖ ਤਲਾਹਾ ਚਾਰਿ ਬੇਦ ਜਿਤੁ ਲਾਗੇ ॥
उरध मूल जिसु साख तलाहा चारि बेद जितु लागे ॥
संसार एक उल्टे वृक्ष के समान है, जिसकी जड़ें ऊपर (परमात्मा) हैं और शाखाएँ नीचे की ओर फैली हैं; यह सम्पूर्ण माया के अधीन है, जिसका वर्णन चारों वेदों में किया गया है।
ਸਹਜ ਭਾਇ ਜਾਇ ਤੇ ਨਾਨਕ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਲਿਵ ਜਾਗੇ ॥੨॥
सहज भाइ जाइ ते नानक पारब्रहम लिव जागे ॥२॥
हे नानक ! माया (भौतिक मोह) उन लोगों से चुपचाप दूर हो जाती है जो अपने मन को परमात्मा में लगाते हैं और माया के छल-कपट से सावधान रहते हैं।।॥ २॥
ਪਾਰਜਾਤੁ ਘਰਿ ਆਗਨਿ ਮੇਰੈ ਪੁਹਪ ਪਤ੍ਰ ਤਤੁ ਡਾਲਾ ॥
पारजातु घरि आगनि मेरै पुहप पत्र ततु डाला ॥
मैंने अपने हृदय में समस्त मंगलों के दाता ईश्वर की अनुभूति इस प्रकार की है, मानो मेरे ही आँगन में शाखाओं, पत्तों, पुष्पों और फलों सहित मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला कल्पवृक्ष स्वयं उग आया हो।
ਸਰਬ ਜੋਤਿ ਨਿਰੰਜਨ ਸੰਭੂ ਛੋਡਹੁ ਬਹੁਤੁ ਜੰਜਾਲਾ ॥੩॥
सरब जोति निरंजन स्मभू छोडहु बहुतु जंजाला ॥३॥
हे भाई ! उस स्वयंभू निरंजन परमात्मा की ज्योति सब में समाई हुई है, अतः दुनिया के जंजाल छोड़ दो॥ ३॥
ਸੁਣਿ ਸਿਖਵੰਤੇ ਨਾਨਕੁ ਬਿਨਵੈ ਛੋਡਹੁ ਮਾਇਆ ਜਾਲਾ ॥
सुणि सिखवंते नानकु बिनवै छोडहु माइआ जाला ॥
हे उपदेशक ! सुनो, नानक विनती करते हैं कि यह सांसारिक माया-जाल त्याग दो।
ਮਨਿ ਬੀਚਾਰਿ ਏਕ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ਪੁਨਰਪਿ ਜਨਮੁ ਨ ਕਾਲਾ ॥੪॥
मनि बीचारि एक लिव लागी पुनरपि जनमु न काला ॥४॥
अपने मन में विचार कर ले कि एक ईश्वर से ध्यान लगाने से बार-बार के जन्म-मरण के चक्र में नहीं आना पड़ेगा ॥ ४॥
ਸੋ ਗੁਰੂ ਸੋ ਸਿਖੁ ਕਥੀਅਲੇ ਸੋ ਵੈਦੁ ਜਿ ਜਾਣੈ ਰੋਗੀ ॥
सो गुरू सो सिखु कथीअले सो वैदु जि जाणै रोगी ॥
हृदय में ईश्वर को प्रतिष्ठित कर लेने वाला ही सच्चा गुरु, शिष्य अथवा चिकित्सक होता है, क्योंकि वही मानव-पीड़ा को आत्मा की गहराइयों से समझने में सक्षम होता है।
ਤਿਸੁ ਕਾਰਣਿ ਕੰਮੁ ਨ ਧੰਧਾ ਨਾਹੀ ਧੰਧੈ ਗਿਰਹੀ ਜੋਗੀ ॥੫॥
तिसु कारणि कमु न धंधा नाही धंधै गिरही जोगी ॥५॥
वह सांसारिक काम-धंधे में लिप्त नहीं होता और गृहस्थी में ही कर्म करता हुआ प्रभु से जुड़ा रहता है॥ ५॥
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਅਹੰਕਾਰੁ ਤਜੀਅਲੇ ਲੋਭੁ ਮੋਹੁ ਤਿਸ ਮਾਇਆ ॥
कामु क्रोधु अहंकारु तजीअले लोभु मोहु तिस माइआ ॥
वह काम, क्रोध, अहंकार, लोभ, मोह एवं माया को त्याग देता है।
ਮਨਿ ਤਤੁ ਅਵਿਗਤੁ ਧਿਆਇਆ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਪਾਇਆ ॥੬॥
मनि ततु अविगतु धिआइआ गुर परसादी पाइआ ॥६॥
अपने मन में वह सत्यस्वरूप एवं अमूर्त प्रभु का ध्यान करता है और गुरु की कृपा से उसे प्राप्त कर लेता है॥ ६ ॥
ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਸਭ ਦਾਤਿ ਕਥੀਅਲੇ ਸੇਤ ਬਰਨ ਸਭਿ ਦੂਤਾ ॥
गिआनु धिआनु सभ दाति कथीअले सेत बरन सभि दूता ॥
ज्ञान-ध्यान समस्त देन ईश्वर द्वारा उसे मिली कही जाती है। सभी कामादिक विकार उसके समक्ष सतोगुणी हो जाते हैं।
ਬ੍ਰਹਮ ਕਮਲ ਮਧੁ ਤਾਸੁ ਰਸਾਦੰ ਜਾਗਤ ਨਾਹੀ ਸੂਤਾ ॥੭॥
ब्रहम कमल मधु तासु रसादं जागत नाही सूता ॥७॥
वह ब्रह्म रूपी कमल के शहद का पान करता है और सदैव जागृत रहता है तथा माया की निद्रा का शिकार नहीं होता। ७॥
ਮਹਾ ਗੰਭੀਰ ਪਤ੍ਰ ਪਾਤਾਲਾ ਨਾਨਕ ਸਰਬ ਜੁਆਇਆ ॥
महा ग्मभीर पत्र पाताला नानक सरब जुआइआ ॥
हे नानक ! ईश्वर अथाह है, अपनी रचना के माध्यम से वह पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त है।
ਉਪਦੇਸ ਗੁਰੂ ਮਮ ਪੁਨਹਿ ਨ ਗਰਭੰ ਬਿਖੁ ਤਜਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਆਇਆ ॥੮॥੧॥
उपदेस गुरू मम पुनहि न गरभं बिखु तजि अम्रितु पीआइआ ॥८॥१॥
गुरु के उपदेश के फलस्वरूप मैं पुनः गर्भ में प्रवेश नहीं करूँगा, क्योंकि मैंने सांसारिक विष को त्याग कर नामामृत का पान किया है॥ ८ ॥ १॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
गूजरी महला १ ॥
राग गूजरी, प्रथम गुरु: १ ॥
ਕਵਨ ਕਵਨ ਜਾਚਹਿ ਪ੍ਰਭ ਦਾਤੇ ਤਾ ਕੇ ਅੰਤ ਨ ਪਰਹਿ ਸੁਮਾਰ ॥
कवन कवन जाचहि प्रभ दाते ता के अंत न परहि सुमार ॥
उस दाता प्रभु के समक्ष कौन-कौन मांगते हैं ? उनका कोई अंत नहीं एवं उनकी गिनती नहीं की जा सकती।
ਜੈਸੀ ਭੂਖ ਹੋਇ ਅਭ ਅੰਤਰਿ ਤੂੰ ਸਮਰਥੁ ਸਚੁ ਦੇਵਣਹਾਰ ॥੧॥
जैसी भूख होइ अभ अंतरि तूं समरथु सचु देवणहार ॥१॥
हे सत्यस्वरूप प्रभु ! जैसी लालसा किसी के हृदय में होती है, आप वैसे ही देने में समर्थ है॥ १॥
ਐ ਜੀ ਜਪੁ ਤਪੁ ਸੰਜਮੁ ਸਚੁ ਅਧਾਰ ॥
ऐ जी जपु तपु संजमु सचु अधार ॥
हे प्रभु जी ! आपके सत्यनाम का आधार ही मेरा जप, तपस्या एवं संयम है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦੇਹਿ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ਤੇਰੀ ਭਗਤਿ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हरि नामु देहि सुखु पाईऐ तेरी भगति भरे भंडार ॥१॥ रहाउ ॥
मुझे अपना हरि-हरि नाम प्रदान करो चूंकि मैं सुख प्राप्त कर लूं। आपकी भक्ति के भण्डार भरे हुए हैं।॥ १॥ रहाउ ॥
ਸੁੰਨ ਸਮਾਧਿ ਰਹਹਿ ਲਿਵ ਲਾਗੇ ਏਕਾ ਏਕੀ ਸਬਦੁ ਬੀਚਾਰ ॥
सुंन समाधि रहहि लिव लागे एका एकी सबदु बीचार ॥
तू शून्य समाधि लगाकर अपनी वृति में लीन रहता था
ਜਲੁ ਥਲੁ ਧਰਣਿ ਗਗਨੁ ਤਹ ਨਾਹੀ ਆਪੇ ਆਪੁ ਕੀਆ ਕਰਤਾਰ ॥੨॥
जलु थलु धरणि गगनु तह नाही आपे आपु कीआ करतार ॥२॥
जब सृष्टिकर्त्ता ने स्वयं ही अपने स्वरूप की रचना की थी तो तब न जल था, न थल था, न धरती थी और न ही गगन था॥ २ ॥
ਨਾ ਤਦਿ ਮਾਇਆ ਮਗਨੁ ਨ ਛਾਇਆ ਨਾ ਸੂਰਜ ਚੰਦ ਨ ਜੋਤਿ ਅਪਾਰ ॥
ना तदि माइआ मगनु न छाइआ ना सूरज चंद न जोति अपार ॥
तब न माया की मस्ती, न ही अज्ञानता की छाया, न सूर्य और न ही चन्द्रमा था और तब परमात्मा की अपार ज्योति ही थी।
ਸਰਬ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਲੋਚਨ ਅਭ ਅੰਤਰਿ ਏਕਾ ਨਦਰਿ ਸੁ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਸਾਰ ॥੩॥
सरब द्रिसटि लोचन अभ अंतरि एका नदरि सु त्रिभवण सार ॥३॥
सबको देखने वाली आंखें परमात्मा के हृदय में ही हैं। वह अपनी एक कृपा-दृष्टि से ही पाताल, पृथ्वी एवं आकाश-तीनों लोकों की संभाल करता है॥ ३॥