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ਗੁਪਤ ਪ੍ਰਗਟ ਜਾ ਕਉ ਅਰਾਧਹਿ ਪਉਣ ਪਾਣੀ ਦਿਨਸੁ ਰਾਤਿ ॥
अदृश्य और दृश्य प्राणी जिसकी दिन-रात पूजा करते हैं और हवा तथा पानी उसकी आज्ञा का पालन करते हैं।
ਨਖਿਅਤ੍ਰ ਸਸੀਅਰ ਸੂਰ ਧਿਆਵਹਿ ਬਸੁਧ ਗਗਨਾ ਗਾਵਏ ॥
जिसकी नक्षत्र, चाँद एवं सूर्य वन्दना करते हैं और जिसकी स्तुति गगन एवं धरती गाते रहते हैं।
ਸਗਲ ਖਾਣੀ ਸਗਲ ਬਾਣੀ ਸਦਾ ਸਦਾ ਧਿਆਵਏ ॥
सृष्टि के सभी मूल स्रोत और सभी भाषाएँ, अपनी विविधता में भी, सदैव उस एक परम चेतना की इच्छा के अधीन हैं।
ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਪੁਰਾਣ ਚਤੁਰ ਬੇਦਹ ਖਟੁ ਸਾਸਤ੍ਰ ਜਾ ਕਉ ਜਪਾਤਿ ॥
स्मृतियाँ, पुराण, चार वेद, छ:शास्त्र जिसका जाप करते रहते हैं।
ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਭਗਤਿ ਵਛਲ ਨਾਨਕ ਮਿਲੀਐ ਸੰਗਿ ਸਾਤਿ ॥੩॥
हे नानक ! वह पतितपावन भक्तवत्सल प्रभु सत्संगति द्वारा ही मिलते हैं॥ ३॥
ਜੇਤੀ ਪ੍ਰਭੂ ਜਨਾਈ ਤੇਤ ਭਨੀ ॥
सृष्टि का जितना ज्ञान मुझे प्रभु ने प्रदान किया है, उतना मेरी जिह्वा ने वर्णन कर दिया है।
ਅਨਜਾਨਤ ਜੋ ਸੇਵੈ ਤੇਤੀ ਨਹ ਜਾਇ ਗਨੀ ॥
आपकी भक्ति में लीन अनेक अज्ञात सृष्टियाँ हैं, जिनकी गणना संभव नहीं है।
ਅਵਿਗਤ ਅਗਨਤ ਅਥਾਹ ਠਾਕੁਰ ਸਗਲ ਮੰਝੇ ਬਾਹਰਾ ॥
जगत् के ठाकुर प्रभु अविनाशी, अगणित एवं अथाह है। सब जीवों में एवं बाहर प्रभु ही विद्यमान है।
ਸਰਬ ਜਾਚਿਕ ਏਕੁ ਦਾਤਾ ਨਹ ਦੂਰਿ ਸੰਗੀ ਜਾਹਰਾ ॥
हे प्रभु ! हम सभी भिखारी हैं किंतु एक आप ही दाता है। आप कहीं दूर नहीं अपितु हमारे पास ही प्रत्यक्ष है।
ਵਸਿ ਭਗਤ ਥੀਆ ਮਿਲੇ ਜੀਆ ਤਾ ਕੀ ਉਪਮਾ ਕਿਤ ਗਨੀ ॥
वह प्रभु अपने भक्तों के वश में है। जो प्राणी प्रभु से मिल चुके हैं, उनकी उपमा मैं किस तरह कर सकता हूँ?
ਇਹੁ ਦਾਨੁ ਮਾਨੁ ਨਾਨਕੁ ਪਾਏ ਸੀਸੁ ਸਾਧਹ ਧਰਿ ਚਰਨੀ ॥੪॥੨॥੫॥
नानक की यही कामना है कि वह परमात्मा से यह दान एवं सम्मान प्राप्त करे कि वह अपना शीश साधुओं के चरणों पर रख दे ॥ ४॥ २॥ ५॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਸਲੋਕ ॥
श्लोक II
ਉਦਮੁ ਕਰਹੁ ਵਡਭਾਗੀਹੋ ਸਿਮਰਹੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥
हे भाग्यशाली जीवो ! थोड़ा-सा उद्यम करो एवं जगत् के मालिक परमात्मा को याद करो।
ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਸਿਮਰਤ ਸਭ ਸੁਖ ਹੋਵਹਿ ਦੂਖੁ ਦਰਦੁ ਭ੍ਰਮੁ ਜਾਇ ॥੧॥
हे नानक ! उस प्रभु का सिमरन करने से सर्व सुख प्राप्त होते हैं तथा दु:ख, दर्द एवं भ्रम दूर हो जाते हैं।॥ १॥
ਛੰਤੁ ॥
छंद ॥
ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਗੋਬਿੰਦ ਨਹ ਅਲਸਾਈਐ ॥
गोविन्द का नाम जपने में आलस्य नहीं करना चाहिए।
ਭੇਟਤ ਸਾਧੂ ਸੰਗ ਜਮ ਪੁਰਿ ਨਹ ਜਾਈਐ ॥
साधु की संगति में रहने से यमपुरी नहीं जाना पड़ता।
ਦੂਖ ਦਰਦ ਨ ਭਉ ਬਿਆਪੈ ਨਾਮੁ ਸਿਮਰਤ ਸਦ ਸੁਖੀ ॥
प्रभु का नाम याद करने से प्राणी सदा सुखी रहता है और उसे दुःख-दर्द एवं भय नहीं सताते।
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਅਰਾਧਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਧਿਆਇ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਮਨਿ ਮੁਖੀ ॥
हे बन्धु ! प्रत्येक श्वास के साथ हरि-परमेश्वर की आराधना करते रहो और मुख एवं मन से प्रभु को ही याद करो।
ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਦਇਆਲ ਰਸਾਲ ਗੁਣ ਨਿਧਿ ਕਰਿ ਦਇਆ ਸੇਵਾ ਲਾਈਐ ॥
हे अमृत के घर ! हे गुणों के भण्डार ! हे कृपालु एवं दयालु प्रभु ! दया करके मुझे अपनी सेवा-भक्ति में लगाओ।
ਨਾਨਕੁ ਪਇਅੰਪੈ ਚਰਣ ਜੰਪੈ ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਗੋਬਿੰਦ ਨਹ ਅਲਸਾਈਐ ॥੧॥
गुरु नानक ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया कि हम सदा शुद्ध भाव से गोविन्द के नाम का ध्यान करें; हमें इसमें कभी भी आलस्य नहीं करना चाहिए।॥ १॥
ਪਾਵਨ ਪਤਿਤ ਪੁਨੀਤ ਨਾਮ ਨਿਰੰਜਨਾ ॥
निरंजन प्रभु का पुनीत नाम पतितों को पावन करने वाला है।
ਭਰਮ ਅੰਧੇਰ ਬਿਨਾਸ ਗਿਆਨ ਗੁਰ ਅੰਜਨਾ ॥
गुरु के ज्ञान का सुरमा भ्रम के अन्धेरे का विनाश कर देता है।
ਗੁਰ ਗਿਆਨ ਅੰਜਨ ਪ੍ਰਭ ਨਿਰੰਜਨ ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਪੂਰਿਆ ॥
गुरु के ज्ञान का सुरमा यह ज्ञान प्रदान करता है कि निरंजन प्रभु जल, धरती एवं गगन में हर जगह समाया हुआ है।
ਇਕ ਨਿਮਖ ਜਾ ਕੈ ਰਿਦੈ ਵਸਿਆ ਮਿਟੇ ਤਿਸਹਿ ਵਿਸੂਰਿਆ ॥
जिस मनुष्य के हृदय में प्रभु एक क्षण भर के लिए निवास कर लेता है, उसके दुःख-संताप मिट जाते हैं।
ਅਗਾਧਿ ਬੋਧ ਸਮਰਥ ਸੁਆਮੀ ਸਰਬ ਕਾ ਭਉ ਭੰਜਨਾ ॥
जगत् का स्वामी प्रभु अगाध ज्ञान वाला है और वह सब कुछ करने में समर्थ है तथा सभी के भय नाश करने वाला है।
ਨਾਨਕੁ ਪਇਅੰਪੈ ਚਰਣ ਜੰਪੈ ਪਾਵਨ ਪਤਿਤ ਪੁਨੀਤ ਨਾਮ ਨਿਰੰਜਨਾ ॥੨॥
भक्त नानक प्रार्थना करते हैं और निष्कलंक ईश्वर का स्मरण करते हुए कहते हैं कि उसका पवित्र नाम पापियों को भी शुद्ध कर देता है। ॥ २॥
ਓਟ ਗਹੀ ਗੋਪਾਲ ਦਇਆਲ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧੇ ॥
मैंने कृपानिधि दयालु गोपाल की ओट ली है।
ਮੋਹਿ ਆਸਰ ਤੁਅ ਚਰਨ ਤੁਮਾਰੀ ਸਰਨਿ ਸਿਧੇ ॥
हे प्रभु ! मुझे आपके चरणों का सहारा है और आपकी ही शरण में मेरी सफलता है।
ਹਰਿ ਚਰਨ ਕਾਰਨ ਕਰਨ ਸੁਆਮੀ ਪਤਿਤ ਉਧਰਨ ਹਰਿ ਹਰੇ ॥
सब कुछ करने एवं कराने वाले जगत् के स्वामी हरि के चरणों में लगकर पतितों का उद्धार हो जाता है।
ਸਾਗਰ ਸੰਸਾਰ ਭਵ ਉਤਾਰ ਨਾਮੁ ਸਿਮਰਤ ਬਹੁ ਤਰੇ ॥
भगवान् का नाम ही भयानक संसार-सागर से पार करने वाला है और उसका नाम-सिमरन करके बहुत सारे जीव पार हो गए हैं।
ਆਦਿ ਅੰਤਿ ਬੇਅੰਤ ਖੋਜਹਿ ਸੁਨੀ ਉਧਰਨ ਸੰਤਸੰਗ ਬਿਧੇ ॥
आदि से अंत तक बेअंत लोग ईश्वर को खोजते रहे हैं लेकिन मैंने सुना है कि संतों की संगत ही मुक्ति का मार्ग है।
ਨਾਨਕੁ ਪਇਅੰਪੈ ਚਰਨ ਜੰਪੈ ਓਟ ਗਹੀ ਗੋਪਾਲ ਦਇਆਲ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧੇ ॥੩॥
हे दयालु ईश्वर, नानक आपके शुद्ध नाम का ध्यान करते हैं और कहते हैं - मैंने आपकी शरण ली है, अब आप ही जैसा उचित समझें, मेरा उद्धार करें। ॥ ३॥
ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਹਰਿ ਬਿਰਦੁ ਆਪਿ ਬਨਾਇਆ ॥
भक्तों से प्रेम करना ईश्वर का सहज स्वभाव है; वह सदा अपने प्रेमियों की रक्षा करते हैं।
ਜਹ ਜਹ ਸੰਤ ਅਰਾਧਹਿ ਤਹ ਤਹ ਪ੍ਰਗਟਾਇਆ ॥
जहाँ कहीं भी संतजन प्रभु की आराधना करते हैं, वह वही प्रगट हो जाते हैं।
ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ਲੀਏ ਸਮਾਇ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ਭਗਤ ਕਾਰਜ ਸਾਰਿਆ ॥
वह अपने भक्तों को सहज-स्वभाव ही अपने साथ मिला लेते हैं और उनके सभी कार्य सम्पूर्ण कर देते हैं।
ਆਨੰਦ ਹਰਿ ਜਸ ਮਹਾ ਮੰਗਲ ਸਰਬ ਦੂਖ ਵਿਸਾਰਿਆ ॥
अपने भगवान् की स्तुति में लीन भक्त परम आनंद की प्राप्ति करते हैं और अपने दुःखों को विस्मृत कर देते हैं।