Page 455
ਜੈਸੀ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਪਿਆਸ ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਬੂੰਦ ਚਵੈ ਬਰਸੁ ਸੁਹਾਵੇ ਮੇਹੁ ॥
जैसे चातक को स्वाति बून्द की प्यास रहती है और प्रत्येक क्षण कहता है हे सुन्दर मेघ ! वर्षा कर।
ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕਰੀਜੈ ਇਹੁ ਮਨੁ ਦੀਜੈ ਅਤਿ ਲਾਈਐ ਚਿਤੁ ਮੁਰਾਰੀ ॥
वैसे ही तू अपने हरि से प्रीति कर। अपना यह मन उसको अर्पित कर देना चाहिए और अपना चित्त मुरारी लगाना चाहिए।
ਮਾਨੁ ਨ ਕੀਜੈ ਸਰਣਿ ਪਰੀਜੈ ਦਰਸਨ ਕਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥
हे मन! हमें अपने प्रेम पर गर्व नहीं करना चाहिए, बल्कि केवल भगवान् की शरण ग्रहण कर स्वयं को उनके दर्शन के लिए समर्पित करना चाहिए।
ਗੁਰ ਸੁਪ੍ਰਸੰਨੇ ਮਿਲੁ ਨਾਹ ਵਿਛੁੰਨੇ ਧਨ ਦੇਦੀ ਸਾਚੁ ਸਨੇਹਾ ॥
जब गुरु सुप्रसन्न होते हैं तो जीव -स्त्री अपने सच्चे प्रेम का सन्देश भेजती है और उसका बिछड़े हुए प्रभु पति आकर उसे मिल जाते हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਛੰਤ ਅਨੰਤ ਠਾਕੁਰ ਕੇ ਹਰਿ ਸਿਉ ਕੀਜੈ ਨੇਹਾ ਮਨ ਐਸਾ ਨੇਹੁ ਕਰੇਹੁ ॥੨॥
नानक का कथन है की हे मेरे मन ! तू अनंत ठाकुर की महिमा के गीत गायन कर, तू हरी से प्रेम कर तथा उससे तू ऐसा स्नेह कर ॥ २ ॥
ਚਕਵੀ ਸੂਰ ਸਨੇਹੁ ਚਿਤਵੈ ਆਸ ਘਣੀ ਕਦਿ ਦਿਨੀਅਰੁ ਦੇਖੀਐ ॥
हे मेरे मन, अपने ईश्वर से वैसे प्रेम कर जैसे चकवी सूर्य से करता है; पूरी रात उसकी सबसे बड़ी इच्छा सूरज को देखने की रहती है।
ਕੋਕਿਲ ਅੰਬ ਪਰੀਤਿ ਚਵੈ ਸੁਹਾਵੀਆ ਮਨ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਕੀਜੀਐ ॥
कोयल का आम से प्रेम है और वो मीठा गीत गाती है।
ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕਰੀਜੈ ਮਾਨੁ ਨ ਕੀਜੈ ਇਕ ਰਾਤੀ ਕੇ ਹਭਿ ਪਾਹੁਣਿਆ ॥
है मेरे मन ! इस तरह तू भी हरि से प्रेम कर और प्रेम का अहंकार मत कर क्योंकि हम सभी एक रात्रि के अतिथि है।
ਅਬ ਕਿਆ ਰੰਗੁ ਲਾਇਓ ਮੋਹੁ ਰਚਾਇਓ ਨਾਗੇ ਆਵਣ ਜਾਵਣਿਆ ॥
अब तुम कोन से रंगरलियों में फँस कर मोह में लीन हो गए हो ? क्यों की जीव नंग्न ही दुनिया में आता और जाता है।
ਥਿਰੁ ਸਾਧੂ ਸਰਣੀ ਪੜੀਐ ਚਰਣੀ ਅਬ ਟੂਟਸਿ ਮੋਹੁ ਜੁ ਕਿਤੀਐ ॥
साधु की शरण लेने एवं उसके चरणों पर नतमस्तक होने से सांसारिक मोह जो तुम अब अनुभव करते हो, वह मिट जाएगा और तुम स्थिर अनुभव करोगे।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਛੰਤ ਦਇਆਲ ਪੁਰਖ ਕੇ ਮਨ ਹਰਿ ਲਾਇ ਪਰੀਤਿ ਕਬ ਦਿਨੀਅਰੁ ਦੇਖੀਐ ॥੩॥
नानक कहते हैं कि हे मन ! दयालु परमात्मा की महिमा के गीत गायन कर और हरि से प्रीति लगा, अन्यथा तुम हरि रूपी सूर्य को कैसे देखोगे ? ॥ ३ ॥
ਨਿਸਿ ਕੁਰੰਕ ਜੈਸੇ ਨਾਦ ਸੁਣਿ ਸ੍ਰਵਣੀ ਹੀਉ ਡਿਵੈ ਮਨ ਐਸੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕੀਜੈ ॥
हे मन ! तू प्रभु से ऐसी प्रीति कर जैसे रात को हिरण नाद सुनकर अपना हदय नाद को अर्पित कर देता है।
ਜੈਸੀ ਤਰੁਣਿ ਭਤਾਰ ਉਰਝੀ ਪਿਰਹਿ ਸਿਵੈ ਇਹੁ ਮਨੁ ਲਾਲ ਦੀਜੈ ॥
जैसे अपने पति के प्रेम में लीन हुई पत्नी अपने प्रियतम की सेवा करती है, वैसे ही तू यह मन अपने प्रिय-प्रभु को अर्पण कर दे।
ਮਨੁ ਲਾਲਹਿ ਦੀਜੈ ਭੋਗ ਕਰੀਜੈ ਹਭਿ ਖੁਸੀਆ ਰੰਗ ਮਾਣੇ ॥
अपना मन अपने प्रियतम को दे दे और उसके साथ रमण कर। इस तरह तुझे समस्त खुशियाँ एवं आनंद प्राप्त हो जाऐंगे।
ਪਿਰੁ ਅਪਨਾ ਪਾਇਆ ਰੰਗੁ ਲਾਲੁ ਬਣਾਇਆ ਅਤਿ ਮਿਲਿਓ ਮਿਤ੍ਰ ਚਿਰਾਣੇ ॥
वह अपने पति-परमेश्वर, अपने लंबे समय से बिछड़े हुए प्रिय मित्र के साथ फिर से एक हो जाती है। उसकी आत्मा उनके गहरे प्रेम से पूर्ण हो जाती है।
ਗੁਰੁ ਥੀਆ ਸਾਖੀ ਤਾ ਡਿਠਮੁ ਆਖੀ ਪਿਰ ਜੇਹਾ ਅਵਰੁ ਨ ਦੀਸੈ ॥
जब गुरुदेव मध्यस्थ बने तो मैंने अपने नेत्रों से प्रियतम-प्रभु के दर्शन कर लिए तथा दूसरा कोई भी मुझे मेरे प्रियतम जैसा दिखाई नहीं देता।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਛੰਤ ਦਇਆਲ ਮੋਹਨ ਕੇ ਮਨ ਹਰਿ ਚਰਣ ਗਹੀਜੈ ਐਸੀ ਮਨ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕੀਜੈ ॥੪॥੧॥੪॥
नानक कहते हैं कि हे मन ! तू दयालु एवं मोहन प्रभु की महिमा के गीत गाता रह, हरि के चरण पकड़ तथा अपने हृदय में ऐसा प्रेम बनाकर रख ॥ ४॥ १ ॥४ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक॥
ਬਨੁ ਬਨੁ ਫਿਰਤੀ ਖੋਜਤੀ ਹਾਰੀ ਬਹੁ ਅਵਗਾਹਿ ॥
मैं ईश्वर को पाने के लिए वन-वन में भटकती और खोजती हुई बहुत थक गई हूँ।
ਨਾਨਕ ਭੇਟੇ ਸਾਧ ਜਬ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥੧॥
हे नानक ! जब साधु से भेंट हुई तो मैंने अपने मन में ही भगवान् को पा लिया ॥ १॥
ਛੰਤ ॥
छंद॥
ਜਾ ਕਉ ਖੋਜਹਿ ਅਸੰਖ ਮੁਨੀ ਅਨੇਕ ਤਪੇ ॥
जिस प्रभु को असंख्य मुनि एवं अनेक तपस्वी खोजते हैं।
ਬ੍ਰਹਮੇ ਕੋਟਿ ਅਰਾਧਹਿ ਗਿਆਨੀ ਜਾਪ ਜਪੇ ॥
जिसकी करोड़ों ही ब्रह्मा आराधना करते और ज्ञानी जिसके नाम का जाप जपते हैं।
ਜਪ ਤਾਪ ਸੰਜਮ ਕਿਰਿਆ ਪੂਜਾ ਅਨਿਕ ਸੋਧਨ ਬੰਦਨਾ ॥
जिसकी प्राप्ति हेतु अनेक जप, तपस्या, संयम, क्रियाएं, पूजा-अर्चना, शुद्धिकरण एवं वन्दना होती रहती है।
ਕਰਿ ਗਵਨੁ ਬਸੁਧਾ ਤੀਰਥਹ ਮਜਨੁ ਮਿਲਨ ਕਉ ਨਿਰੰਜਨਾ ॥
जिस निरंजन प्रभु को मिलने हेतु लोग पृथ्वी पर भ्रमण करते और तीर्थों पर स्नान करते हैं।
ਮਾਨੁਖ ਬਨੁ ਤਿਨੁ ਪਸੂ ਪੰਖੀ ਸਗਲ ਤੁਝਹਿ ਅਰਾਧਤੇ ॥
हे भगवान् ! मनुष्य, वन, तृण, पशु-पक्षी सभी आपकी ही आराधना करते हैं।
ਦਇਆਲ ਲਾਲ ਗੋਬਿੰਦ ਨਾਨਕ ਮਿਲੁ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਹੋਇ ਗਤੇ ॥੧॥
नानक कहते हैं, हे दयालु भगवान्, कृपया मुझे पवित्र संगत का आशीर्वाद दें, जिससे मैं परम आध्यात्मिक अवस्था प्राप्त कर सकूँ।॥ १॥
ਕੋਟਿ ਬਿਸਨ ਅਵਤਾਰ ਸੰਕਰ ਜਟਾਧਾਰ ॥
हे दयालु प्रभु ! करोड़ों ही विष्णु अवतार एवं जटाधारी शंकर
ਚਾਹਹਿ ਤੁਝਹਿ ਦਇਆਰ ਮਨਿ ਤਨਿ ਰੁਚ ਅਪਾਰ ॥
अपने मन एवं तन की अपार रुचि से तुझसे मिलने की तीव्र अभिलाषा करते हैं।
ਅਪਾਰ ਅਗਮ ਗੋਬਿੰਦ ਠਾਕੁਰ ਸਗਲ ਪੂਰਕ ਪ੍ਰਭ ਧਨੀ ॥
हे गोविंद ! आप अपरंपार, अगम्य एवं सब के ठाकुर हैं। आप सबमें समाए हुए हैं और सब के स्वामी है।
ਸੁਰ ਸਿਧ ਗਣ ਗੰਧਰਬ ਧਿਆਵਹਿ ਜਖ ਕਿੰਨਰ ਗੁਣ ਭਨੀ ॥
देवता, सिद्धगण एवं गंधर्व सब आपकी ही आराधना करते हैं और यक्ष एवं किन्नर आपका ही गुणगान करते रहते हैं।
ਕੋਟਿ ਇੰਦ੍ਰ ਅਨੇਕ ਦੇਵਾ ਜਪਤ ਸੁਆਮੀ ਜੈ ਜੈ ਕਾਰ ॥
करोड़ों ही इन्द्र एवं अनेकों ही देवगण अपने प्रभु का जाप एवं जय-जयकार करते हैं।
ਅਨਾਥ ਨਾਥ ਦਇਆਲ ਨਾਨਕ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਉਧਾਰ ॥੨॥
हे नानक ! जो कोई पवित्र मंडली में सम्मिलित होता है और दयालु भगवान् को अपने हृदय में अनुभव करता है, वह विकारों के संसार-सागर को पार कर सकता है। ॥२॥
ਕੋਟਿ ਦੇਵੀ ਜਾ ਕਉ ਸੇਵਹਿ ਲਖਿਮੀ ਅਨਿਕ ਭਾਤਿ ॥
करोड़ों ही देवियाँ एवं धन की देवी लक्ष्मी विभिन्न प्रकार से उनकी सेवा करती हैं।