Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 454

Page 454

ਪ੍ਰਿਉ ਸਹਜ ਸੁਭਾਈ ਛੋਡਿ ਨ ਜਾਈ ਮਨਿ ਲਾਗਾ ਰੰਗੁ ਮਜੀਠਾ ॥ जिस व्यक्ति का हृदय ईश्वर के प्रति अगाध प्रेम से भरा होता है, उसे ईश्वर अपने स्वभाववश कभी नहीं त्यागते।
ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਬੇਧੇ ਚਰਨ ਕਮਲ ਕਿਛੁ ਆਨ ਨ ਮੀਠਾ ॥੧॥ हे नानक ! हरि के चरण-कमलों ने मेरा मन बिंध दिया है और उसे अन्य कुछ भी अच्छा नहीं लगता ॥ १ ॥
ਜਿਉ ਰਾਤੀ ਜਲਿ ਮਾਛੁਲੀ ਤਿਉ ਰਾਮ ਰਸਿ ਮਾਤੇ ਰਾਮ ਰਾਜੇ ॥ जैसे मछली जल में मस्त रहती है, वैसे ही मैं राम रस से मस्त हुआ हूँ।
ਗੁਰ ਪੂਰੈ ਉਪਦੇਸਿਆ ਜੀਵਨ ਗਤਿ ਭਾਤੇ ਰਾਮ ਰਾਜੇ ॥ जिन्हें पूर्ण गुरु ने नाम और ध्यान की शिक्षा दी है, वे ईश्वर जो आध्यात्मिक जीवन के दाता हैं को प्रसन्न करते हैं।
ਜੀਵਨ ਗਤਿ ਸੁਆਮੀ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਆਪਿ ਲੀਏ ਲੜਿ ਲਾਏ ॥ जिन मनुष्यों को अंतर्यामी स्वामी अपने दामन के साथ लगा लेता है, वे जीवन में मुक्ति प्राप्त कर लेते हैं।
ਹਰਿ ਰਤਨ ਪਦਾਰਥੋ ਪਰਗਟੋ ਪੂਰਨੋ ਛੋਡਿ ਨ ਕਤਹੂ ਜਾਏ ॥ हरि अपना रत्न जैसा अमूल्य नाम अपने भक्तों के हृदय में प्रगट कर देते हैं। वह सब जीवों में समाए हुए हैं और अपने भक्तों को छोड़कर कहीं नहीं जाते।
ਪ੍ਰਭੁ ਸੁਘਰੁ ਸਰੂਪੁ ਸੁਜਾਨੁ ਸੁਆਮੀ ਤਾ ਕੀ ਮਿਟੈ ਨ ਦਾਤੇ ॥ जगत् के स्वामी प्रभु सुन्दर स्वरूप एवं बुद्धिमान है, जो पूर्ण गुरु की शिक्षाओं का अनुसरण करते हैं, उन पर उनकी कृपा सदैव बनी रहती है।
ਜਲ ਸੰਗਿ ਰਾਤੀ ਮਾਛੁਲੀ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਮਾਤੇ ॥੨॥ हे नानक ! जैसे मछली जल में लीन हुई है वैसे ही मैं प्रभु में समाया हुआ हूँ॥ २॥
ਚਾਤ੍ਰਿਕੁ ਜਾਚੈ ਬੂੰਦ ਜਿਉ ਹਰਿ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰਾ ਰਾਮ ਰਾਜੇ ॥ जिस प्रकार प्यासा चातक वर्षा की पहली बूंद के लिए व्याकुल रहता है, उसी प्रकार संत भगवान् के नाम के लिए तड़पते हैं, जो उनके जीवन का एकमात्र आधार है।
ਮਾਲੁ ਖਜੀਨਾ ਸੁਤ ਭ੍ਰਾਤ ਮੀਤ ਸਭਹੂੰ ਤੇ ਪਿਆਰਾ ਰਾਮ ਰਾਜੇ ॥ उन्हें प्रभु धन-भण्डार, पुत्र, भाई एवं मित्र सभी से बढ़कर प्रिय है।
ਸਭਹੂੰ ਤੇ ਪਿਆਰਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਾਰਾ ਤਾ ਕੀ ਗਤਿ ਨਹੀ ਜਾਣੀਐ ॥ ईश्वर, जो सर्वव्यापी होकर भी सब कुछ से न्यारे हैं और जिनकी वास्तविक स्थिति को जान पाना असंभव है, वे सभी से बढ़कर प्रिय हैं।
ਹਰਿ ਸਾਸਿ ਗਿਰਾਸਿ ਨ ਬਿਸਰੈ ਕਬਹੂੰ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਰੰਗੁ ਮਾਣੀਐ ॥ प्रत्येक श्वास एवं ग्रास भर के लिए भी मैं हरि को विस्मृत नहीं करता। गुरु के शब्द द्वारा मैं उसके प्रेम का आनंद प्राप्त करता हूँ।
ਪ੍ਰਭੁ ਪੁਰਖੁ ਜਗਜੀਵਨੋ ਸੰਤ ਰਸੁ ਪੀਵਨੋ ਜਪਿ ਭਰਮ ਮੋਹ ਦੁਖ ਡਾਰਾ ॥ परमपुरुष प्रभु जगत् का जीवन है। संतजन हरि-रस का पान करते हैं और उसका सिमरन करके अपना भ्रम, मोह एवं दुःख दूर कर लेते हैं।
ਚਾਤ੍ਰਿਕੁ ਜਾਚੈ ਬੂੰਦ ਜਿਉ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਪਿਆਰਾ ॥੩॥ जैसे चातक स्वाति-बूंद की अभिलाषा करता है वैसे ही नानक को हरि प्यारे लगते हैं॥ ३॥
ਮਿਲੇ ਨਰਾਇਣ ਆਪਣੇ ਮਾਨੋਰਥੋ ਪੂਰਾ ਰਾਮ ਰਾਜੇ ॥ अपने नारायण से मिलकर मेरे मनोरथ पूरे हो गए हैं।
ਢਾਠੀ ਭੀਤਿ ਭਰੰਮ ਕੀ ਭੇਟਤ ਗੁਰੁ ਸੂਰਾ ਰਾਮ ਰਾਜੇ ॥ शूरवीर गुरु को मिलने से भ्रम की दीवार ध्वस्त हो गई है।
ਪੂਰਨ ਗੁਰ ਪਾਏ ਪੁਰਬਿ ਲਿਖਾਏ ਸਭ ਨਿਧਿ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥ जिन्होंने अपने पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार अपने भाग्य में सर्व निधियाँ देने वाले दीन-दयाल परमात्मा से शुभ लेख लिखाए हैं, पूर्ण गुरु उन्हें ही मिले हैं।
ਆਦਿ ਮਧਿ ਅੰਤਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਈ ਸੁੰਦਰ ਗੁਰ ਗੋਪਾਲਾ ॥ उनका यह अटूट विश्वास है कि परम सुंदर ईश्वर, जो ब्रह्मांड के स्वामी हैं, आदि काल में भी विद्यमान थे, मध्य में भी हैं और अंत में भी रहेंगे।
ਸੂਖ ਸਹਜ ਆਨੰਦ ਘਨੇਰੇ ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਸਾਧੂ ਧੂਰਾ ॥ साधुओं की चरण-धूलि पतितों को पावन कर देती है और बड़ा सुख एवं सहज आनंद प्रदान करती है।
ਹਰਿ ਮਿਲੇ ਨਰਾਇਣ ਨਾਨਕਾ ਮਾਨੋਰਥੋੁ ਪੂਰਾ ॥੪॥੧॥੩॥ नानक को नारायण मिल गए हैं और उनका मनोरथ पूरा हो गया है॥ ४॥ १॥ ३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਛੰਤ ਘਰੁ ੬॥ राग आसा, पांचवें गुरु: छंद, छठा ताल: ६
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक।
ਜਾ ਕਉ ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਪ੍ਰਭ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸੇਈ ਜਪਾਤ ॥ जिन मनुष्यों पर प्रभु कृपा करते हैं, वे हरि-नाम ही जपते रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗੀ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਰਾਮ ਸਿਉ ਭੇਟਤ ਸਾਧ ਸੰਗਾਤ ॥੧॥ हे नानक ! साधसंगत में मिलने से ही उनका प्रेम राम से लगा है॥ १॥
ਛੰਤੁ ॥ छंद ॥
ਜਲ ਦੁਧ ਨਿਆਈ ਰੀਤਿ ਅਬ ਦੁਧ ਆਚ ਨਹੀ ਮਨ ਐਸੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਹਰੇ ॥ हे मन ! ईश्वर से ऐसा प्रेम कर, जैसा प्रेम जल का दूध से है। जब दोनों को आग पर रखा जाता है तो जल दूध को आंच नहीं आने देता।
ਅਬ ਉਰਝਿਓ ਅਲਿ ਕਮਲੇਹ ਬਾਸਨ ਮਾਹਿ ਮਗਨ ਇਕੁ ਖਿਨੁ ਭੀ ਨਾਹਿ ਟਰੈ ॥ जैसे भंवरा जब कमल की मधुर सुगंध से मोहित होता है, तो वह उसे पल भर के लिए भी नहीं छोड़ता और उसकी पंखुड़ियों में ही उलझा रह जाता है।
ਖਿਨੁ ਨਾਹਿ ਟਰੀਐ ਪ੍ਰੀਤਿ ਹਰੀਐ ਸੀਗਾਰ ਹਭਿ ਰਸ ਅਰਪੀਐ ॥ हे मन ! इस तरह एक क्षण भर के लिए प्रभु के प्रेम से पीछे नहीं हटना चाहिए। अपने सारे श्रृंगार एवं रस प्रभु को अर्पण कर देने चाहिए।
ਜਹ ਦੂਖੁ ਸੁਣੀਐ ਜਮ ਪੰਥੁ ਭਣੀਐ ਤਹ ਸਾਧਸੰਗਿ ਨ ਡਰਪੀਐ ॥ जहाँ दु:ख सुना जाता और यम का मार्ग बताया जाता है, वहां सत्संगति के प्रभाव से कोई भय प्रभावित नहीं करता।
ਕਰਿ ਕੀਰਤਿ ਗੋਵਿੰਦ ਗੁਣੀਐ ਸਗਲ ਪ੍ਰਾਛਤ ਦੁਖ ਹਰੇ ॥ गोविंद की कीर्ति का गुणगान करते रहो, इससे सब दुःख एवं पाप दूर हो जाएँगे।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਛੰਤ ਗੋਵਿੰਦ ਹਰਿ ਕੇ ਮਨ ਹਰਿ ਸਿਉ ਨੇਹੁ ਕਰੇਹੁ ਐਸੀ ਮਨ ਪ੍ਰੀਤਿ ਹਰੇ ॥੧॥ नानक कहते हैं की हे मन ! गोविन्द की महिमा के गीत गाता रह और हरी से प्रेम बनाये रख। हे मन ! ऐसा प्रेम बनाये रख ॥ १ ॥
ਜੈਸੀ ਮਛੁਲੀ ਨੀਰ ਇਕੁ ਖਿਨੁ ਭੀ ਨਾ ਧੀਰੇ ਮਨ ਐਸਾ ਨੇਹੁ ਕਰੇਹੁ ॥ जैसे मछली जल के बिना धैर्य नहीं करती, हे मन ! वैसे ही प्रभु से प्रेम बना कर रख ।


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