Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 433

Page 433

ਛਛੈ ਛਾਇਆ ਵਰਤੀ ਸਭ ਅੰਤਰਿ ਤੇਰਾ ਕੀਆ ਭਰਮੁ ਹੋਆ ॥ छ-हे भगवान ! यह जो आध्यात्मिक अज्ञानता और मन का संशय है, जो हर जीव के भीतर विद्यमान है - वह भी आपकी ही इच्छा से है।
ਭਰਮੁ ਉਪਾਇ ਭੁਲਾਈਅਨੁ ਆਪੇ ਤੇਰਾ ਕਰਮੁ ਹੋਆ ਤਿਨ੍ਹ੍ ਗੁਰੂ ਮਿਲਿਆ ॥੧੦॥ भ्रम उत्पन्न करके तुम स्वयं ही जीवों को कुमार्गगामी करते हो। जिन पर आपकी कृपा है, उन्हें गुरु मिल जाते हैं। १० ॥
ਜਜੈ ਜਾਨੁ ਮੰਗਤ ਜਨੁ ਜਾਚੈ ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਭੀਖ ਭਵਿਆ ॥ ज-हे मन! उस परमात्मा को जान, जिसे पाने के लिए जीव करोड़ों योनियों में भटकते हैं और उसी के नाम की याचना करते हैं।
ਏਕੋ ਲੇਵੈ ਏਕੋ ਦੇਵੈ ਅਵਰੁ ਨ ਦੂਜਾ ਮੈ ਸੁਣਿਆ ॥੧੧॥ एक प्रभु ही (दान) ले जाता है और एक वही दान देता है। किसी दूसरे के बारे में मैंने अभी तक नहीं सुना। ॥११॥
ਝਝੈ ਝੂਰਿ ਮਰਹੁ ਕਿਆ ਪ੍ਰਾਣੀ ਜੋ ਕਿਛੁ ਦੇਣਾ ਸੁ ਦੇ ਰਹਿਆ ॥ झ - हे नश्वर मानव! तू चिंता में क्यों घुल रहा है? जो कुछ भगवान को तुझे देना है, वह तुझे मिल ही रहा है।
ਦੇ ਦੇ ਵੇਖੈ ਹੁਕਮੁ ਚਲਾਏ ਜਿਉ ਜੀਆ ਕਾ ਰਿਜਕੁ ਪਇਆ ॥੧੨॥ जैसे-जैसे प्राणियों हेतु विधि के विधान अनुसार भोजन निश्चित है, भगवान सबको दे रहा है, वह सबका भरण-पोषण कर रहा है ॥ १२ ॥
ਞੰਞੈ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਜਾ ਦੇਖਾ ਦੂਜਾ ਕੋਈ ਨਾਹੀ ॥ ज-जब मैं अपनी दृष्टि से हर तरफ देखता हूँ तो मुझे भगवान् के अतिरिक्त कोई भी दिखाई नहीं देता।
ਏਕੋ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸਭ ਥਾਈ ਏਕੁ ਵਸਿਆ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥੧੩॥ एक ईश्वर समस्त स्थानों में विद्यमान है और वही मन में बसता है। १३॥
ਟਟੈ ਟੰਚੁ ਕਰਹੁ ਕਿਆ ਪ੍ਰਾਣੀ ਘੜੀ ਕਿ ਮੁਹਤਿ ਕਿ ਉਠਿ ਚਲਣਾ ॥ ट-हे प्राणी! तुम क्यों छल-कपट कर रहे हो। इस दुनिया से तुम एक क्षण एवं पल भर में ही उठकर चले जाओगे अर्थात् प्राण त्याग दोगे।
ਜੂਐ ਜਨਮੁ ਨ ਹਾਰਹੁ ਅਪਣਾ ਭਾਜਿ ਪੜਹੁ ਤੁਮ ਹਰਿ ਸਰਣਾ ॥੧੪॥ अपने जीवन खेल को जुए में मत हारो और भाग कर हरि की शरण में चले जाओ। १४ ॥
ਠਠੈ ਠਾਢਿ ਵਰਤੀ ਤਿਨ ਅੰਤਰਿ ਹਰਿ ਚਰਣੀ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਕਾ ਚਿਤੁ ਲਾਗਾ ॥ ठ-जिनका चित्त हरि के चरणों से लग जाता है, उनके अन्तर्मन में सुख-शांति बस जाती है।
ਚਿਤੁ ਲਾਗਾ ਸੇਈ ਜਨ ਨਿਸਤਰੇ ਤਉ ਪਰਸਾਦੀ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੧੫॥ हे प्रभु! जिनका चित्त आपसे जुड़ा हुआ है, वे मनुष्य संसार-सागर से पार हो जाते हैं और आपकी कृपा से उन्हें सुख प्राप्त होता है। १५॥
ਡਡੈ ਡੰਫੁ ਕਰਹੁ ਕਿਆ ਪ੍ਰਾਣੀ ਜੋ ਕਿਛੁ ਹੋਆ ਸੁ ਸਭੁ ਚਲਣਾ ॥ ड-हे नश्वर प्राणी ! तुम क्यों व्यर्थ के आडम्बर करते हो, सृष्टि में जो कुछ उत्पन्न हुआ है, वे सब नाशवान है।
ਤਿਸੈ ਸਰੇਵਹੁ ਤਾ ਸੁਖੁ ਪਾਵਹੁ ਸਰਬ ਨਿਰੰਤਰਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ॥੧੬॥ यदि प्रभु की भक्ति करोगे तभी तुझे आत्मिक सुख प्राप्त होगा। प्रभु समस्त जीवों में निरन्तर व्यापक है। १६ ॥
ਢਢੈ ਢਾਹਿ ਉਸਾਰੈ ਆਪੇ ਜਿਉ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਿਵੈ ਕਰੇ ॥ ढ-प्रभु स्वयं ही सृष्टि रचना को ध्वस्त करता है और स्वयं ही निर्मित करता है। जैसे उसकी इच्छा होती है वह वैसे ही करता है।
ਕਰਿ ਕਰਿ ਵੇਖੈ ਹੁਕਮੁ ਚਲਾਏ ਤਿਸੁ ਨਿਸਤਾਰੇ ਜਾ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ॥੧੭॥ सृष्टि की रचना करके वह देखता एवं अपना आदेश जीवों पर लागू करता है। वह जिस जीव पर अपनी करुणा-दृष्टि करते हैं, उसे मुक्ति प्रदान कर देते हैं॥ १७ ॥
ਣਾਣੈ ਰਵਤੁ ਰਹੈ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਸੋਈ ॥ ण-जिस प्राणी के अन्तर्मन में प्रभु समाए हुए हैं, वह हरि का गुणगान करता रहता है।
ਆਪੇ ਆਪਿ ਮਿਲਾਏ ਕਰਤਾ ਪੁਨਰਪਿ ਜਨਮੁ ਨ ਹੋਈ ॥੧੮॥ कर्ता प्रभु जिसे अपने साथ मिला लेता है, वह बार-बार जन्म नहीं लेता। १८ ॥
ਤਤੈ ਤਾਰੂ ਭਵਜਲੁ ਹੋਆ ਤਾ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥ त-यह भयानक संसार-सागर बहुत गहरा है, इसका कोई भी अन्त (किनारा) नहीं पाया जा सकता।
ਨਾ ਤਰ ਨਾ ਤੁਲਹਾ ਹਮ ਬੂਡਸਿ ਤਾਰਿ ਲੇਹਿ ਤਾਰਣ ਰਾਇਆ ॥੧੯॥ हमारे पास न कोई नैया है और न ही कोई तुला है। हे तारनहार प्रभु ! मैं डूब रहा हूँ, मुझे पार कर दीजिए॥१९॥
ਥਥੈ ਥਾਨਿ ਥਾਨੰਤਰਿ ਸੋਈ ਜਾ ਕਾ ਕੀਆ ਸਭੁ ਹੋਆ ॥ थ-समस्त स्थानों एवं हर जगह पर ईश्वर विद्यमान है। उसका किया ही सृष्टि में सब कुछ होता है।
ਕਿਆ ਭਰਮੁ ਕਿਆ ਮਾਇਆ ਕਹੀਐ ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋਈ ਭਲਾ ॥੨੦॥ हम क्या कहें इस माया और संदेह के बारे में? जो कुछ भी प्रभु को भाता है, वही समस्त संसार के लिए कल्याणकारी है। ॥२०॥
ਦਦੈ ਦੋਸੁ ਨ ਦੇਊ ਕਿਸੈ ਦੋਸੁ ਕਰੰਮਾ ਆਪਣਿਆ ॥ द-हमें किसी पर दोष नहीं लगाना चाहिए क्योंकि दोष तो हमारे अपने कर्मों का है।
ਜੋ ਮੈ ਕੀਆ ਸੋ ਮੈ ਪਾਇਆ ਦੋਸੁ ਨ ਦੀਜੈ ਅਵਰ ਜਨਾ ॥੨੧॥ जो कुछ (अच्छा-बुरा) कर्म मैंने किया था, उसका फल मुझे मिल गया है। इसलिए मैं किसी दूसरे पर दोष नहीं लगाता ॥ २१ ॥
ਧਧੈ ਧਾਰਿ ਕਲਾ ਜਿਨਿ ਛੋਡੀ ਹਰਿ ਚੀਜੀ ਜਿਨਿ ਰੰਗ ਕੀਆ ॥ ध-जिस परमात्मा की कला (शक्ति) ने धरती को टिकाया एवं स्थापित किया हुआ है, जिसने प्रत्येक वस्तु को रंग (अस्तित्व) प्रदान किया है,
ਤਿਸ ਦਾ ਦੀਆ ਸਭਨੀ ਲੀਆ ਕਰਮੀ ਕਰਮੀ ਹੁਕਮੁ ਪਇਆ ॥੨੨॥ जिसका दिया सभी प्राप्त करते हैं और उसका आदेश प्राणियों के कर्मों के अनुसार क्रियाशील है॥२२॥
ਨੰਨੈ ਨਾਹ ਭੋਗ ਨਿਤ ਭੋਗੈ ਨਾ ਡੀਠਾ ਨਾ ਸੰਮ੍ਹਲਿਆ ॥ न-मैं अपने मालिक-प्रभु के दिए पदार्थ नित्य भोगती रहती हूँ लेकिन मैंने आज तक उसे न कभी देखा है और न कभी याद किया है।
ਗਲੀ ਹਉ ਸੋਹਾਗਣਿ ਭੈਣੇ ਕੰਤੁ ਨ ਕਬਹੂੰ ਮੈ ਮਿਲਿਆ ॥੨੩॥ हे बहन ! बातों से तो कहने को मैं सुहागिन कही जाती हूँ परन्तु मेरा पति-प्रभु मुझे कभी नहीं मिले ॥२३॥
ਪਪੈ ਪਾਤਿਸਾਹੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਵੇਖਣ ਕਉ ਪਰਪੰਚੁ ਕੀਆ ॥ प-पातशाह परमेश्वर ने सृष्टि की रचना अपने देखने के लिए की है।
ਦੇਖੈ ਬੂਝੈ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਜਾਣੈ ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ॥੨੪॥ वह हमारे मन की हर बात जानता है और हम सभी से प्रेम करता है; वह बाहर और भीतर — सर्वत्र व्याप्त है। ॥ २४॥
ਫਫੈ ਫਾਹੀ ਸਭੁ ਜਗੁ ਫਾਸਾ ਜਮ ਕੈ ਸੰਗਲਿ ਬੰਧਿ ਲਇਆ ॥ फ-समूचा जगत फाँसी में फँसा हुआ है और यम ने जंजीर से बांधा हुआ है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਸੇ ਨਰ ਉਬਰੇ ਜਿ ਹਰਿ ਸਰਣਾਗਤਿ ਭਜਿ ਪਇਆ ॥੨੫॥ गुरु के प्रसाद (कृपा) से वही नर पार होते हैं जो भागकर हरि की शरण लेते हैं।॥ २५॥
ਬਬੈ ਬਾਜੀ ਖੇਲਣ ਲਾਗਾ ਚਉਪੜਿ ਕੀਤੇ ਚਾਰਿ ਜੁਗਾ ॥ ब-चारों ही युगों को अपनी चौपड़ बनाकर प्रभु ने खेल खेलना शुरू कर दिया।


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