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ਏ ਮਨ ਰੂੜ੍ਹ੍ਹੇ ਰੰਗੁਲੇ ਤੂੰ ਸਚਾ ਰੰਗੁ ਚੜਾਇ ॥
हे मेरे सुन्दर, आनन्दमय मन ! तू प्रभु प्रेम का सच्चा रंग अपने ऊपर चढ़ा।
ਰੂੜੀ ਬਾਣੀ ਜੇ ਰਪੈ ਨਾ ਇਹੁ ਰੰਗੁ ਲਹੈ ਨ ਜਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
यदि तुम सुन्दर गुरु-वाणी से रंग जाओ तो यह रंग कभी नहीं उतरेगा और न ही कहीं जाएगा ॥ १॥ रहाउ ॥
ਹਮ ਨੀਚ ਮੈਲੇ ਅਤਿ ਅਭਿਮਾਨੀ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਵਿਕਾਰ ॥
हम जीव नीच, मैले एवं अति अभिमानी हैं और द्वैतभाव के कारण विकारों में फँसे हुए हैं।
ਗੁਰਿ ਪਾਰਸਿ ਮਿਲਿਐ ਕੰਚਨੁ ਹੋਏ ਨਿਰਮਲ ਜੋਤਿ ਅਪਾਰ ॥੨॥
गुरु रूपी पारस मणि से मिलकर हम सोना बन जाते हैं और हमारे भीतर अपार प्रभु की निर्मल ज्योति उदित हो जाती है।॥ २॥
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਕੋਇ ਨ ਰੰਗੀਐ ਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਰੰਗੁ ਚੜਾਉ ॥
गुरु के बिना कोई भी मनुष्य प्रभु प्रेम में नहीं रंगा गया। गुरु से मिलकर प्रभु का रंग चढ़ता है।
ਗੁਰ ਕੈ ਭੈ ਭਾਇ ਜੋ ਰਤੇ ਸਿਫਤੀ ਸਚਿ ਸਮਾਉ ॥੩॥
जो मनुष्य गुरु के भय एवं स्नेह में अनुरक्त है, वे प्रभु की कीर्ति द्वारा सत्य में समा जाते हैं।॥ ३॥
ਭੈ ਬਿਨੁ ਲਾਗਿ ਨ ਲਗਈ ਨਾ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਇ ॥
प्रभु भय के बिना प्रेम उत्पन्न नहीं होता और न ही मन निर्मल होता है।
ਬਿਨੁ ਭੈ ਕਰਮ ਕਮਾਵਣੇ ਝੂਠੇ ਠਾਉ ਨ ਕੋਇ ॥੪॥
भय के बिना कर्मकाण्ड करने झूठे हैं और प्राणी को कोई सुख का स्थान नहीं मिलता॥ ४॥
ਜਿਸ ਨੋ ਆਪੇ ਰੰਗੇ ਸੁ ਰਪਸੀ ਸਤਸੰਗਤਿ ਮਿਲਾਇ ॥
जिसे प्रभु स्वयं रंग देते हैं, वही वास्तव में रंगा जाता है और वह सत्संगति में मिल जाता है।
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਸਤਸੰਗਤਿ ਊਪਜੈ ਸਹਜੇ ਸਚਿ ਸੁਭਾਇ ॥੫॥
पूर्ण गुरु द्वारा ही सत्संगति प्राप्त होती है और मनुष्य सहज ही सत्य से मिल जाता है॥ ५॥
ਬਿਨੁ ਸੰਗਤੀ ਸਭਿ ਐਸੇ ਰਹਹਿ ਜੈਸੇ ਪਸੁ ਢੋਰ ॥
सत्संगति के बिना मनुष्य ऐसे हैं जैसे पशु, मवेशी इत्यादि रहते हैं।
ਜਿਨ੍ਹ੍ਹਿ ਕੀਤੇ ਤਿਸੈ ਨ ਜਾਣਨ੍ਹ੍ਹੀ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਸਭਿ ਚੋਰ ॥੬॥
जिस परमात्मा ने उन्हें पैदा किया है, वे उसे नहीं जानते, नाम के बिना सभी प्रभु के चोर हैं। ६॥
ਇਕਿ ਗੁਣ ਵਿਹਾਝਹਿ ਅਉਗਣ ਵਿਕਣਹਿ ਗੁਰ ਕੈ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥
गुरु के प्रदान किए हुए सहज-स्वभाव से ही कई मनुष्य गुणों को खरीदते एवं अवगुणों को बेचते हैं।
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਨਾਉ ਪਾਇਆ ਵੁਠਾ ਅੰਦਰਿ ਆਇ ॥੭॥
गुरु की श्रद्धापूर्वक सेवा करने से ही नाम प्राप्त होता है और प्रभु आकर हृदय में निवास करते है॥ ७॥
ਸਭਨਾ ਕਾ ਦਾਤਾ ਏਕੁ ਹੈ ਸਿਰਿ ਧੰਧੈ ਲਾਇ ॥
एक ईश्वर ही सारी सृष्टि का दाता है, वह प्रत्येक जीव को कामकाज में लगाता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੇ ਲਾਇ ਸਵਾਰਿਅਨੁ ਸਬਦੇ ਲਏ ਮਿਲਾਇ ॥੮॥੯॥੩੧॥
हे नानक ! प्रभु अपने नाम के साथ लगाकर मनुष्य का जीवन संवार देते हैं और गुरु के शब्द द्वारा उसे अपने साथ मिला लेते हैं॥ ८॥ ६॥ ३१॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ॥
राग आसा, तीसरे गुरु: ३ ॥
ਸਭ ਨਾਵੈ ਨੋ ਲੋਚਦੀ ਜਿਸੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਸੋ ਪਾਏ ॥
सारी ही दुनिया नाम की अभिलाषा करती है परन्तु जिस पर भगवान् कृपा करते हैं, उसे ही नाम प्राप्त होता है।
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਸਭੁ ਦੁਖੁ ਹੈ ਸੁਖੁ ਤਿਸੁ ਜਿਸੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥੧॥
प्रभु-नाम के बिना सभी दु:खी हैं। लेकिन सुखी वही है, जिसके मन में प्रभु अपना नाम बसा देते हैं॥ १॥
ਤੂੰ ਬੇਅੰਤੁ ਦਇਆਲੁ ਹੈ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਈ ॥
हे ईश्वर ! आप बेअंत एवं दयालु है, मैं आपकी शरण में आया हूँ।
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਤੇ ਪਾਈਐ ਨਾਮੇ ਵਡਿਆਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पूर्ण गुरु के माध्यम से ही प्रभु-नाम की शोभा मिलती है॥ १॥ रहाउ॥
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਏਕੁ ਹੈ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਉਪਾਈ ॥
सब जीवों के भीतर एवं बाहर एक ईश्वर ही विद्यमान है, जिसने अनेक विधियों की सृष्टि उत्पन्न की है।
ਹੁਕਮੇ ਕਾਰ ਕਰਾਇਦਾ ਦੂਜਾ ਕਿਸੁ ਕਹੀਐ ਭਾਈ ॥੨॥
हे भाई ! अपने आदेश अनुसार वह मनुष्य से कार्य करवाते हैं, दूसरा कौन है जिसका वर्णन किया जाए॥ २॥
ਬੁਝਣਾ ਅਬੁਝਣਾ ਤੁਧੁ ਕੀਆ ਇਹ ਤੇਰੀ ਸਿਰਿ ਕਾਰ ॥
हे भगवान् ! ज्ञान एवं अज्ञान आपकी रचना है, इन पर आपका नियंत्रण है।
ਇਕਨ੍ਹ੍ਹਾ ਬਖਸਿਹਿ ਮੇਲਿ ਲੈਹਿ ਇਕਿ ਦਰਗਹ ਮਾਰਿ ਕਢੇ ਕੂੜਿਆਰ ॥੩॥
हे ईश्वर ! कईयों को आप क्षमादान करके अपने साथ मिला लेते हो और कई झूठे अधर्मीयों को आप मार-पीट कर अपने दरबार से बाहर निकाल देते हो।॥ ३॥
ਇਕਿ ਧੁਰਿ ਪਵਿਤ ਪਾਵਨ ਹਹਿ ਤੁਧੁ ਨਾਮੇ ਲਾਏ ॥
कई धुर (आदि) से ही पवित्र एवं पावन हैं, उनको आपने अपने नाम स्मरण में लगाया हुआ है।
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਸੁਖੁ ਊਪਜੈ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਬੁਝਾਏ ॥੪॥
गुरु की सेवा से ही सुख उत्पन्न होता है और सत्य नाम द्वारा मनुष्य प्रभु को समझ लेता है। ॥४॥
ਇਕਿ ਕੁਚਲ ਕੁਚੀਲ ਵਿਖਲੀ ਪਤੇ ਨਾਵਹੁ ਆਪਿ ਖੁਆਏ ॥
कई कुटिल चाल वाले, मलिन एवं चरित्रहीन जीव हैं, उन्हें भगवान् ने स्वयं अपने नाम से विहीन किया हुआ है।
ਨਾ ਓਨ ਸਿਧਿ ਨ ਬੁਧਿ ਹੈ ਨ ਸੰਜਮੀ ਫਿਰਹਿ ਉਤਵਤਾਏ ॥੫॥
उनके पास न सिद्धि है, न सुबुद्धि है, न ही वह संयमी हैं। वह डगमगाते हुए भटकते रहते हैं।॥५॥
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਜਿਸੁ ਆਪਣੀ ਤਿਸ ਨੋ ਭਾਵਨੀ ਲਾਏ ॥
जिस पर ईश्वर अपनी कृपा-दृष्टि करते हैं, उसके भीतर नाम की श्रद्धा एवं आस्था उत्पन्न हो जाती है।
ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਇਹ ਸੰਜਮੀ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਸਬਦੁ ਸੁਣਾਏ ॥੬॥
ऐसा मनुष्य निर्मल शब्द को सुनकर सत्यवादी, संतोषी एवं संयमी बन जाता है। ॥६॥
ਲੇਖਾ ਪੜਿ ਨ ਪਹੂਚੀਐ ਕਥਿ ਕਹਣੈ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਇ ॥
प्रभु का लेखा-जोखा पढ़ने से मनुष्य उसके निष्कर्ष तक नहीं पहुँच सकता। कथन एवं वर्णन द्वारा उसका अन्त नहीं मिलता।
ਗੁਰ ਤੇ ਕੀਮਤਿ ਪਾਈਐ ਸਚਿ ਸਬਦਿ ਸੋਝੀ ਪਾਇ ॥੭॥
गुरु के माध्यम से प्रभु की महत्त्वता का पता लगता है और सच्चे शब्द द्वारा उसकी सूझ प्राप्त होती है। ॥७॥
ਇਹੁ ਮਨੁ ਦੇਹੀ ਸੋਧਿ ਤੂੰ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰਿ ॥
हे भाई ! गुरु के शब्द द्वारा तू अपने इस मन एवं शरीर का शोधन कर ले।
ਨਾਨਕ ਇਸੁ ਦੇਹੀ ਵਿਚਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹੈ ਪਾਈਐ ਗੁਰ ਕੈ ਹੇਤਿ ਅਪਾਰਿ ॥੮॥੧੦॥੩੨॥
हे नानक ! इस शरीर के भीतर नाम का खजाना विद्यमान है, जो गुरु की अपार कृपा द्वारा ही प्राप्त होता है। ॥८॥१०॥ ३२॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ॥
राग आसा, तीसरे गुरु: ३ ॥
ਸਚਿ ਰਤੀਆ ਸੋਹਾਗਣੀ ਜਿਨਾ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸੀਗਾਰਿ ॥
जिन सुहागिनों ने गुरु के शब्द द्वारा अपने जीवन का श्रृंगार किया हुआ है, वे सत्य में लीन रहती हैं।