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ਜੋਗੀ ਭੋਗੀ ਕਾਪੜੀ ਕਿਆ ਭਵਹਿ ਦਿਸੰਤਰ ॥
योगी, भोगी एवं फटे-पुराने वस्त्र पहनने वाले फकीर निरर्थक ही परदेसों में भटकते रहते हैं।
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਨ ਚੀਨ੍ਹ੍ਹਹੀ ਤਤੁ ਸਾਰੁ ਨਿਰੰਤਰ ॥੩॥
वह गुरु के शब्द एवं निरन्तर श्रेष्ठ सच्चाई को नहीं खोजते ॥ ३ ॥
ਪੰਡਿਤ ਪਾਧੇ ਜੋਇਸੀ ਨਿਤ ਪੜ੍ਹਹਿ ਪੁਰਾਣਾ ॥
पण्डित, प्रचारक एवं ज्योतिषी नित्य ही पुराण इत्यादि ग्रंथों को पढ़ते हैं।
ਅੰਤਰਿ ਵਸਤੁ ਨ ਜਾਣਨ੍ਹ੍ਹੀ ਘਟਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਲੁਕਾਣਾ ॥੪॥
लेकिन वह अन्तर में नाम वस्तु को नहीं पहचानते, यह नहीं जानते कि पारब्रह्म हृदय में ही छिपा हुआ है॥ ४॥
ਇਕਿ ਤਪਸੀ ਬਨ ਮਹਿ ਤਪੁ ਕਰਹਿ ਨਿਤ ਤੀਰਥ ਵਾਸਾ ॥
कई तपस्वी वनों में तपस्या करते हैं और कई नित्य ही तीर्थों पर निवास करते हैं।
ਆਪੁ ਨ ਚੀਨਹਿ ਤਾਮਸੀ ਕਾਹੇ ਭਏ ਉਦਾਸਾ ॥੫॥
वह तामसी पुरुष अपने आत्मस्वरूप को नहीं समझते, वह किसके लिए विरक्त हुए हैं ? ॥ ५॥
ਇਕਿ ਬਿੰਦੁ ਜਤਨ ਕਰਿ ਰਾਖਦੇ ਸੇ ਜਤੀ ਕਹਾਵਹਿ ॥
कई प्रयास करके वीर्य को संयमित करते हैं, इस प्रकार वे ब्रह्मचारी कहलाए जाते हैं।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਸਬਦ ਨ ਛੂਟਹੀ ਭ੍ਰਮਿ ਆਵਹਿ ਜਾਵਹਿ ॥੬॥
लेकिन फिर भी गुरु के शब्द बिना उनको मुक्ति नहीं होती और भ्रम में पड़कर जन्म-मरण के चक्र में पड़े रहते हैं।॥ ६॥
ਇਕਿ ਗਿਰਹੀ ਸੇਵਕ ਸਾਧਿਕਾ ਗੁਰਮਤੀ ਲਾਗੇ ॥
कई गृहस्थी, प्रभु के सेवक, साधक हैं और वह गुरु की मति अनुसार चलते हैं।
ਨਾਮੁ ਦਾਨੁ ਇਸਨਾਨੁ ਦ੍ਰਿੜੁ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਸੁ ਜਾਗੇ ॥੭॥
वह नाम, दान, स्नान को सुदृढ़ करते हैं और प्रभु की भक्ति में सचेत रहते हैं।॥ ७॥
ਗੁਰ ਤੇ ਦਰੁ ਘਰੁ ਜਾਣੀਐ ਸੋ ਜਾਇ ਸਿਞਾਣੈ ॥
गुरु के माध्यम से ही प्रभु का घर-द्वार जाना जाता है और मनुष्य उस स्थान को पहचान लेता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨ ਵੀਸਰੈ ਸਾਚੇ ਮਨੁ ਮਾਨੈ ॥੮॥੧੪॥
हे नानक ! उसे प्रभु का नाम कभी नहीं भूलता, उसका मन सत्य की स्मृति में रम गया है ॥८॥१४॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
राग आसा, प्रथम गुरु: १ ॥
ਮਨਸਾ ਮਨਹਿ ਸਮਾਇਲੇ ਭਉਜਲੁ ਸਚਿ ਤਰਣਾ ॥
अपनी इच्छाओं को मन में ही नियंत्रित करके सत्य द्वारा भवसागर से पार हुआ जा सकता है।
ਆਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਦਇਆਲੁ ਤੂ ਠਾਕੁਰ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾ ॥੧॥
हे ठाकुर ! आप जगत के आदि युगों-युगान्तरों से ही सब पर दयालु है और मैं आापकी ही शरण में आया हूँ॥ १॥
ਤੂ ਦਾਤੌ ਹਮ ਜਾਚਿਕਾ ਹਰਿ ਦਰਸਨੁ ਦੀਜੈ ॥
हे हरि !आप दाता है और मैं आपके दर का भिखारी हूँ। मुझे दर्शन देकर कृतार्थ करो।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ਮਨ ਮੰਦਰੁ ਭੀਜੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरु के माध्यम से नाम का ध्यान करने से मन-मन्दिर हरि-नाम से भीग जाता है।॥ १॥ रहाउ॥
ਕੂੜਾ ਲਾਲਚੁ ਛੋਡੀਐ ਤਉ ਸਾਚੁ ਪਛਾਣੈ ॥
जब मनुष्य झूठे लालच को छोड़ देता है तो वह सत्य को पहचान लेता है।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸਮਾਈਐ ਪਰਮਾਰਥੁ ਜਾਣੈ ॥੨॥
गुरु के शब्द में समाया हुआ वह जीवन के परमार्थ को समझ लेता है॥ २॥
ਇਹੁ ਮਨੁ ਰਾਜਾ ਲੋਭੀਆ ਲੁਭਤਉ ਲੋਭਾਈ ॥
यह लोभी मन शरीर रूपी नगरी का बादशाह है जो सदैव लोभ में आकर्षित हुआ (मोहिनी का) लोभ करता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਲੋਭੁ ਨਿਵਾਰੀਐ ਹਰਿ ਸਿਉ ਬਣਿ ਆਈ ॥੩॥
गुरु के माध्यम से लोभ दूर हो जाता है और मनुष्य का प्रभु से प्रेम बन जाता है॥ ३॥
ਕਲਰਿ ਖੇਤੀ ਬੀਜੀਐ ਕਿਉ ਲਾਹਾ ਪਾਵੈ ॥
बंजर भूमि में फसल बीज कर मनुष्य कैसे लाभ प्राप्त कर सकता है?
ਮਨਮੁਖੁ ਸਚਿ ਨ ਭੀਜਈ ਕੂੜੁ ਕੂੜਿ ਗਡਾਵੈ ॥੪॥
मनमुख सत्य से खुश नहीं होता। ऐसा झूठा मनुष्य झूठ में फँसा रहता है। ४॥
ਲਾਲਚੁ ਛੋਡਹੁ ਅੰਧਿਹੋ ਲਾਲਚਿ ਦੁਖੁ ਭਾਰੀ ॥
हे अन्धे जीवो ! माया का लालच त्याग दो अन्यथा लालच का भारी दु:ख सहना पड़ेगा।
ਸਾਚੌ ਸਾਹਿਬੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਹਉਮੈ ਬਿਖੁ ਮਾਰੀ ॥੫॥
यदि सत्यस्वरूप साहिब मन में बस जाए तो अहंकार का विष निवृत्त हो जाता है॥ ५॥
ਦੁਬਿਧਾ ਛੋਡਿ ਕੁਵਾਟੜੀ ਮੂਸਹੁਗੇ ਭਾਈ ॥
हे मेरे भाई ! दुविधा के कुमार्ग को त्याग दो अन्यथा लूटे जाओगे।
ਅਹਿਨਿਸਿ ਨਾਮੁ ਸਲਾਹੀਐ ਸਤਿਗੁਰ ਸਰਣਾਈ ॥੬॥
दिन-रात गुरु की शरण में नाम का स्तुतिगान करो ॥ ६ ॥
ਮਨਮੁਖ ਪਥਰੁ ਸੈਲੁ ਹੈ ਧ੍ਰਿਗੁ ਜੀਵਣੁ ਫੀਕਾ ॥
मनमुख का हृदय एक पत्थर एवं चट्टान है और उसका जीवन धिक्कार योग्य एवं नीरस है।
ਜਲ ਮਹਿ ਕੇਤਾ ਰਾਖੀਐ ਅਭ ਅੰਤਰਿ ਸੂਕਾ ॥੭॥
पत्थर को कितनी ही देर तक पानी में रखा जाए तो भी अभ्यंतर से सूखा ही रहता है।॥ ७ ॥
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹੈ ਪੂਰੈ ਗੁਰਿ ਦੀਆ ॥
पूर्ण गुरु ने मुझे हरि का नाम दिया है, जो गुणों का भण्डार है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨ ਵੀਸਰੈ ਮਥਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਆ ॥੮॥੧੫॥
हे नानक ! जिस व्यक्ति ने नाम रूपी अमृत को मंथन करके पी लिया है, वह नाम को कभी भी नहीं भूलता॥॥ ८॥१५॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
राग आसा, प्रथम गुरु: १ ॥
ਚਲੇ ਚਲਣਹਾਰ ਵਾਟ ਵਟਾਇਆ ॥
जीव रूपी यात्री सद्मार्ग से विचलित होकर कुमार्ग पर चल रहे हैं।
ਧੰਧੁ ਪਿਟੇ ਸੰਸਾਰੁ ਸਚੁ ਨ ਭਾਇਆ ॥੧॥
यह नश्वर संसार सांसारिक धन्धों में लीन है और सत्य से स्नेह नहीं करता ॥ १॥
ਕਿਆ ਭਵੀਐ ਕਿਆ ਢੂਢੀਐ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਦਿਖਾਇਆ ॥
जिस व्यक्ति को गुरु-शब्द ने सत्य (परमात्मा) दिखा दिया है, फिर वह इधर-उधर क्यों भटकता फिरे और क्यों खोज-तलाश करे।
ਮਮਤਾ ਮੋਹੁ ਵਿਸਰਜਿਆ ਅਪਨੈ ਘਰਿ ਆਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अब वह ममता एवं मोह को त्याग कर अपने घर (प्रभु के पास) आ गया है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਚਿ ਮਿਲੈ ਸਚਿਆਰੁ ਕੂੜਿ ਨ ਪਾਈਐ ॥
सत्यवादियों को ही सत्य (प्रभु) मिलता है। झूठ से यह पाया नहीं जाता।
ਸਚੇ ਸਿਉ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ਬਹੁੜਿ ਨ ਆਈਐ ॥੨॥
सत्य के साथ चित्त लगाने से मनुष्य दोबारा जगत में नहीं आता॥ २॥
ਮੋਇਆ ਕਉ ਕਿਆ ਰੋਵਹੁ ਰੋਇ ਨ ਜਾਣਹੂ ॥
हे बन्धु ! तुम मृतक संबंधी हेतु क्यों रोते हो ? तुम्हें यथार्थ तौर पर रोना ही नहीं आता।
ਰੋਵਹੁ ਸਚੁ ਸਲਾਹਿ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣਹੂ ॥੩॥
सत्यस्वरूप प्रभु की सराहना करते हुए प्रेम में विलाप करो और उसके आदेश को पहचानो ॥ ३॥
ਹੁਕਮੀ ਵਜਹੁ ਲਿਖਾਇ ਆਇਆ ਜਾਣੀਐ ॥
जिसके भाग्य में भगवान् ने नाम के निर्वाह की प्राप्ति लिखी है, उसका आगमन सफल है।
ਲਾਹਾ ਪਲੈ ਪਾਇ ਹੁਕਮੁ ਸਿਞਾਣੀਐ ॥੪॥
उसके आदेश को अनुभव करने से प्राणी लाभ प्राप्त कर लेता है॥ ४॥