Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 418

Page 418

ਥਾਨ ਮੁਕਾਮ ਜਲੇ ਬਿਜ ਮੰਦਰ ਮੁਛਿ ਮੁਛਿ ਕੁਇਰ ਰੁਲਾਇਆ ॥ थान मुकाम जले बिज मंदर मुछि मुछि कुइर रुलाइआ ॥ मुगलों ने पठानों के घर, सुख के निवास एवं मजबूत महल जला दिए और टुकड़े-टुकड़े किए हुए शहजादों को मिट्टी में मिला दिया।
ਕੋਈ ਮੁਗਲੁ ਨ ਹੋਆ ਅੰਧਾ ਕਿਨੈ ਨ ਪਰਚਾ ਲਾਇਆ ॥੪॥ कोई मुगलु न होआ अंधा किनै न परचा लाइआ ॥४॥ कोई मुगल अन्धा न हुआ और किसी ने भी कोई करिश्मा नहीं दिखाया॥ ४॥
ਮੁਗਲ ਪਠਾਣਾ ਭਈ ਲੜਾਈ ਰਣ ਮਹਿ ਤੇਗ ਵਗਾਈ ॥ मुगल पठाणा भई लड़ाई रण महि तेग वगाई ॥ मुगलों एवं पठानों के बीच भयंकर लड़ाई हुई और रणभूमि में खूब तलवार चलाई गई।
ਓਨ੍ਹ੍ਹੀ ਤੁਪਕ ਤਾਣਿ ਚਲਾਈ ਓਨ੍ਹ੍ਹੀ ਹਸਤਿ ਚਿੜਾਈ ॥ ओन्ही तुपक ताणि चलाई ओन्ही हसति चिड़ाई ॥ मुगलों ने अपनी बन्दूकों के निशाने लगा-लगाकर गोलियाँ चलाई और उन पठानों ने हाथियों से आक्रमण किया!
ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਕੀ ਚੀਰੀ ਦਰਗਹ ਪਾਟੀ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਮਰਣਾ ਭਾਈ ॥੫॥ जिन्ह की चीरी दरगह पाटी तिन्हा मरणा भाई ॥५॥ हे भाई ! प्रभु के दरबार से जिनकी आयु की चिट्ठी फाड़ दी जाती है, उन्हें अवश्य ही मरना पड़ता है॥ ५॥
ਇਕ ਹਿੰਦਵਾਣੀ ਅਵਰ ਤੁਰਕਾਣੀ ਭਟਿਆਣੀ ਠਕੁਰਾਣੀ ॥ इक हिंदवाणी अवर तुरकाणी भटिआणी ठकुराणी ॥ क्या हिन्दू नारियाँ, क्या मुसलमान औरतें, क्या भाटों एवं ठाकुरों की स्त्रियां-
ਇਕਨ੍ਹ੍ਹਾ ਪੇਰਣ ਸਿਰ ਖੁਰ ਪਾਟੇ ਇਕਨ੍ਹ੍ਹਾ ਵਾਸੁ ਮਸਾਣੀ ॥ इकन्हा पेरण सिर खुर पाटे इकन्हा वासु मसाणी ॥ कितनी ही औरतों के वस्त्र सिर से पैरों तक फटे हुए थे और कितनी ही औरतों का निवास श्मशान में हो गया था।
ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਕੇ ਬੰਕੇ ਘਰੀ ਨ ਆਇਆ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਕਿਉ ਰੈਣਿ ਵਿਹਾਣੀ ॥੬॥ जिन्ह के बंके घरी न आइआ तिन्ह किउ रैणि विहाणी ॥६॥ जिनके सुन्दर पति घरों में नहीं आए, उनकी रात्रि कैसे बीती होगी॥ ६॥
ਆਪੇ ਕਰੇ ਕਰਾਏ ਕਰਤਾ ਕਿਸ ਨੋ ਆਖਿ ਸੁਣਾਈਐ ॥ आपे करे कराए करता किस नो आखि सुणाईऐ ॥ यह दर्द भरी दास्तान किसे कहकर सुनाई जाए ? क्योंकि कर्ता प्रभु स्वयं ही करता और जीवों से करवाता है।
ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਤੇਰੈ ਭਾਣੈ ਹੋਵੈ ਕਿਸ ਥੈ ਜਾਇ ਰੂਆਈਐ ॥ दुखु सुखु तेरै भाणै होवै किस थै जाइ रूआईऐ ॥ हे जग के रचयिता ! जीवों को दुःख-सुख आपके आदेशानुसार ही होता है। आपके अतिरिक्त किसके पास जाकर अपना दुःख रोएं।
ਹੁਕਮੀ ਹੁਕਮਿ ਚਲਾਏ ਵਿਗਸੈ ਨਾਨਕ ਲਿਖਿਆ ਪਾਈਐ ॥੭॥੧੨॥ हुकमी हुकमि चलाए विगसै नानक लिखिआ पाईऐ ॥७॥१२॥ हे नानक ! भगवान् अपनी दिव्य आज्ञा के अनुसार संसार का संचालन करके प्रसन्न होते हैं; प्रत्येक प्राणी को वही प्राप्त होता है, जो उसके लिए पूर्व निर्धारित है।॥ ७॥ १२॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਆਸਾ ਕਾਫੀ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੮ ਅਸਟਪਦੀਆ ॥ आसा काफी महला १ घरु ८ असटपदीआ ॥ राग आसा, काफी, आठवां ताल, अष्टपदी, प्रथम गुरु: ॥
ਜੈਸੇ ਗੋਇਲਿ ਗੋਇਲੀ ਤੈਸੇ ਸੰਸਾਰਾ ॥ जैसे गोइलि गोइली तैसे संसारा ॥ जिस प्रकार ग्वाला चरागाह में अल्प समय के लिए पशु लेकर आता है, वैसे ही जीव थोड़े समय के लिए संसार में आता है।
ਕੂੜੁ ਕਮਾਵਹਿ ਆਦਮੀ ਬਾਂਧਹਿ ਘਰ ਬਾਰਾ ॥੧॥ कूड़ु कमावहि आदमी बांधहि घर बारा ॥१॥ आदमी झूठ की कमाई करते हैं और अपना घर-द्वार निर्मित करते हैं।॥ १॥
ਜਾਗਹੁ ਜਾਗਹੁ ਸੂਤਿਹੋ ਚਲਿਆ ਵਣਜਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जागहु जागहु सूतिहो चलिआ वणजारा ॥१॥ रहाउ ॥ हे अज्ञानता की निद्रा में सोए हुए जीवो ! जागो, देखो कि वणजारा जीव दुनिया में से जा रहा है॥ १॥ रहाउ ॥
ਨੀਤ ਨੀਤ ਘਰ ਬਾਂਧੀਅਹਿ ਜੇ ਰਹਣਾ ਹੋਈ ॥ नीत नीत घर बांधीअहि जे रहणा होई ॥ हमेशा रहने वाले घर तभी बनाने चाहिए, यदि दुनिया में सदैव जीवित रहना हो।
ਪਿੰਡੁ ਪਵੈ ਜੀਉ ਚਲਸੀ ਜੇ ਜਾਣੈ ਕੋਈ ॥੨॥ पिंडु पवै जीउ चलसी जे जाणै कोई ॥२॥ परन्तु यदि कोई विचार करे तो उसे ज्ञान हो जाएगा कि जब आत्मा चली जाती है तो शरीर भी पार्थिव हो जाता है॥ २॥
ਓਹੀ ਓਹੀ ਕਿਆ ਕਰਹੁ ਹੈ ਹੋਸੀ ਸੋਈ ॥ ओही ओही किआ करहु है होसी सोई ॥ तुम क्यों क्हाय ! हाय !! करते हो। आत्मा तो अब भी है और सदैव रहेगी।
ਤੁਮ ਰੋਵਹੁਗੇ ਓਸ ਨੋ ਤੁਮ੍ਹ੍ ਕਉ ਕਉਣੁ ਰੋਈ ॥੩॥ तुम रोवहुगे ओस नो तुम्ह कउ कउणु रोई ॥३॥ यदि तुम किसी की मृत्यु पर रोते हो तो तुम्हें कौन रोएगा ॥ ३॥
ਧੰਧਾ ਪਿਟਿਹੁ ਭਾਈਹੋ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਕੂੜੁ ਕਮਾਵਹੁ ॥ धंधा पिटिहु भाईहो तुम्ह कूड़ु कमावहु ॥ हे मेरे भाई ! तुम लोग सांसारिक धन्धों में ग्रस्त हुए हो और झूठ की कमाई करते हो।
ਓਹੁ ਨ ਸੁਣਈ ਕਤ ਹੀ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਲੋਕ ਸੁਣਾਵਹੁ ॥੪॥ ओहु न सुणई कत ही तुम्ह लोक सुणावहु ॥४॥ वह मृतक बिल्कुल नहीं सुनता। तुम केवल दूसरे लोगों को ही अपना रोना सुनाते हो।॥ ४॥
ਜਿਸ ਤੇ ਸੁਤਾ ਨਾਨਕਾ ਜਾਗਾਏ ਸੋਈ ॥ जिस ते सुता नानका जागाए सोई ॥ हे नानक ! जिस मालिक ने अपने आदेश से उसे सुलाया है, वही उसे जगाएगा।
ਜੇ ਘਰੁ ਬੂਝੈ ਆਪਣਾ ਤਾਂ ਨੀਦ ਨ ਹੋਈ ॥੫॥ जे घरु बूझै आपणा तां नीद न होई ॥५॥ यदि मनुष्य अपने असली घर को समझ ले उसे नींद नहीं आती॥ ५॥
ਜੇ ਚਲਦਾ ਲੈ ਚਲਿਆ ਕਿਛੁ ਸੰਪੈ ਨਾਲੇ ॥ जे चलदा लै चलिआ किछु स्मपै नाले ॥ यदि परलोक को जाता हुआ मनुष्य कुछ संपति साथ ले गया है
ਤਾ ਧਨੁ ਸੰਚਹੁ ਦੇਖਿ ਕੈ ਬੂਝਹੁ ਬੀਚਾਰੇ ॥੬॥ ता धनु संचहु देखि कै बूझहु बीचारे ॥६॥ तो तू भी धन संचित करके देख, सोच-समझ और विचार कर॥ ६॥
ਵਣਜੁ ਕਰਹੁ ਮਖਸੂਦੁ ਲੈਹੁ ਮਤ ਪਛੋਤਾਵਹੁ ॥ वणजु करहु मखसूदु लैहु मत पछोतावहु ॥ ऐसा नाम का व्यापार कर जिससे जीवन-मनोरथ का लाभ प्राप्त हो सके, अन्यथा पछताना पड़ेगा।
ਅਉਗਣ ਛੋਡਹੁ ਗੁਣ ਕਰਹੁ ਐਸੇ ਤਤੁ ਪਰਾਵਹੁ ॥੭॥ अउगण छोडहु गुण करहु ऐसे ततु परावहु ॥७॥ अवगुण छोड़कर गुण ग्रहण करो, इस तरह तुझे सच्ची कमाई प्राप्त होगी॥ ७॥
ਧਰਮੁ ਭੂਮਿ ਸਤੁ ਬੀਜੁ ਕਰਿ ਐਸੀ ਕਿਰਸ ਕਮਾਵਹੁ ॥ धरमु भूमि सतु बीजु करि ऐसी किरस कमावहु ॥ शरीर रूपी धर्मभूमि में सत्य का बीज बोओ। इस प्रकार की कृषि करो।
ਤਾਂ ਵਾਪਾਰੀ ਜਾਣੀਅਹੁ ਲਾਹਾ ਲੈ ਜਾਵਹੁ ॥੮॥ तां वापारी जाणीअहु लाहा लै जावहु ॥८॥ यदि तुम लाभ प्राप्त करके ले जाओगे तो बुद्धिमान व्यापारी समझे जाओगे॥ ८॥
ਕਰਮੁ ਹੋਵੈ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਬੂਝੈ ਬੀਚਾਰਾ ॥ करमु होवै सतिगुरु मिलै बूझै बीचारा ॥ यदि प्रभु की मेहर हो तो जीव सतगुरु से मिलता है और उसके उपदेश को समझता है।
ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੈ ਸੁਣੇ ਨਾਮੁ ਨਾਮੇ ਬਿਉਹਾਰਾ ॥੯॥ नामु वखाणै सुणे नामु नामे बिउहारा ॥९॥ वह नाम उच्चरित करता है, नाम सुनता एवं नाम का ही व्यापार करता है॥ ६॥
ਜਿਉ ਲਾਹਾ ਤੋਟਾ ਤਿਵੈ ਵਾਟ ਚਲਦੀ ਆਈ ॥ जिउ लाहा तोटा तिवै वाट चलदी आई ॥ जैसे नाम सुनने से लाभ है, वैसे ही नाम भुलाने से हानि है। संसार की यह मर्यादा सदा से ही चली आ रही है।
ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਨਾਨਕਾ ਸਾਈ ਵਡਿਆਈ ॥੧੦॥੧੩॥ जो तिसु भावै नानका साई वडिआई ॥१०॥१३॥ हे नानक ! ईश्वर को जो कुछ भला लगता है वही होता है, यही उसकी महिमा है॥ १०॥ १३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥ आसा महला १ ॥ राग आसा, प्रथम गुरु: १ ॥
ਚਾਰੇ ਕੁੰਡਾ ਢੂਢੀਆ ਕੋ ਨੀਮ੍ਹ੍ਹੀ ਮੈਡਾ ॥ चारे कुंडा ढूढीआ को नीम्ही मैडा ॥ मैंने चारों दिशाओं में खोज की है परन्तु मेरा कोई भी हितैषी नहीं है।
ਜੇ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਸਾਹਿਬਾ ਤੂ ਮੈ ਹਉ ਤੈਡਾ ॥੧॥ जे तुधु भावै साहिबा तू मै हउ तैडा ॥१॥ हे प्रभु! यदि यह आपकी इच्छा और प्रसन्नता में सम्मिलित हो, तो कृपा कर मुझे अपना सेवक स्वीकार करें और स्वयं मेरे स्वामी बनें॥ १॥
ਦਰੁ ਬੀਭਾ ਮੈ ਨੀਮ੍ਹ੍ ਕੋ ਕੈ ਕਰੀ ਸਲਾਮੁ ॥ दरु बीभा मै नीम्हि को कै करी सलामु ॥ मेरे लिए आपके बिना दूसरा कोई शरण-द्वार नहीं है, मैं किसे वन्दना करूँ ?"
ਹਿਕੋ ਮੈਡਾ ਤੂ ਧਣੀ ਸਾਚਾ ਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हिको मैडा तू धणी साचा मुखि नामु ॥१॥ रहाउ ॥ आप ही मेरे स्वामी हैं, आपका सत्य नाम मेरे मुँह में हमेशा रहता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਸਿਧਾ ਸੇਵਨਿ ਸਿਧ ਪੀਰ ਮਾਗਹਿ ਰਿਧਿ ਸਿਧਿ ॥ सिधा सेवनि सिध पीर मागहि रिधि सिधि ॥ कुछ लोग सिद्धों एवं पीरों की सेवा करते हैं और उनसे ऋद्धियाँ-सिद्धियाँ मांगते हैं।
ਮੈ ਇਕੁ ਨਾਮੁ ਨ ਵੀਸਰੈ ਸਾਚੇ ਗੁਰ ਬੁਧਿ ॥੨॥ मै इकु नामु न वीसरै साचे गुर बुधि ॥२॥ मुझे एक परमात्मा का नाम न भूले, सतगुरु ने मुझे यह सुमति प्रदान की है॥ २ ॥


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top