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ਸੋ ਛੂਟੈ ਮਹਾ ਜਾਲ ਤੇ ਜਿਸੁ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਨਿਰੰਤਰਿ ॥੨॥
जिसके अन्तर्मन में गुरु का शब्द विद्यमान होता है केवल वही महाजाल से छूट सकता है॥ २॥
ਗੁਰ ਕੀ ਮਹਿਮਾ ਕਿਆ ਕਹਾ ਗੁਰੁ ਬਿਬੇਕ ਸਤ ਸਰੁ ॥
गुरु की महिमा मैं क्या वर्णन करूँ ? (क्योंकि) गुरु विवेक एवं सत्य का सरोवर है।
ਓਹੁ ਆਦਿ ਜੁਗਾਦੀ ਜੁਗਹ ਜੁਗੁ ਪੂਰਾ ਪਰਮੇਸਰੁ ॥੩॥
वह आदि, युगों के आरंभ एवं युगों-युगांतरों में पूर्ण परमेश्वर है॥ ३॥
ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਹੁ ਸਦ ਸਦਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮਨੁ ਰੰਗੇ ॥
सदैव हरि-नाम का ध्यान करते रहो और अपने मन को प्रभु के प्रेम रंग में रंगो ।
ਜੀਉ ਪ੍ਰਾਣ ਧਨੁ ਗੁਰੂ ਹੈ ਨਾਨਕ ਕੈ ਸੰਗੇ ॥੪॥੨॥੧੦੪॥
गुरु ही मेरी आत्मा, प्राण एवं धन है और वह सदा नानक के साथ रहता है॥ ४॥ २॥ १०४ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਸਾਈ ਅਲਖੁ ਅਪਾਰੁ ਭੋਰੀ ਮਨਿ ਵਸੈ ॥
हे मेरी माता ! जब मेरे हृदय में एक क्षण को भी उस अनंत और अनिर्वचनीय ईश्वर की उपस्थिति का आभास होता है।
ਦੂਖੁ ਦਰਦੁ ਰੋਗੁ ਮਾਇ ਮੈਡਾ ਹਭੁ ਨਸੈ ॥੧॥
मेरे दुःख, दर्द एवं रोग सब दूर हो जाते हैं।॥ १॥
ਹਉ ਵੰਞਾ ਕੁਰਬਾਣੁ ਸਾਈ ਆਪਣੇ ॥
मैं अपने मालिक पर बलिहारी जाती हूँ।
ਹੋਵੈ ਅਨਦੁ ਘਣਾ ਮਨਿ ਤਨਿ ਜਾਪਣੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
उसका सिमरन करने से मेरे तन-मनमें बड़ा आनंद उत्पन्न होता है॥ १॥ रहाउ॥
ਬਿੰਦਕ ਗਾਲ੍ਹ੍ਹਿ ਸੁਣੀ ਸਚੇ ਤਿਸੁ ਧਣੀ ॥
उस सच्चे प्रभु के बारे में मैंने थोड़ी-सी बात सुनी है।
ਸੂਖੀ ਹੂੰ ਸੁਖੁ ਪਾਇ ਮਾਇ ਨ ਕੀਮ ਗਣੀ ॥੨॥
हे मेरी माता! मैं बहुत सुखी हूँ और सुख पाकर भी मैं उस प्रभु का मूल्यांकन नहीं कर सकती॥ २॥
ਨੈਣ ਪਸੰਦੋ ਸੋਇ ਪੇਖਿ ਮੁਸਤਾਕ ਭਈ ॥
वह प्राणनाथ प्रभु मेरे नयनों को बहुत अच्छा लगता है। उसके दर्शन करके मैं मुग्ध हो गई हूँ।
ਮੈ ਨਿਰਗੁਣਿ ਮੇਰੀ ਮਾਇ ਆਪਿ ਲੜਿ ਲਾਇ ਲਈ ॥੩॥
हे मेरी माता! मैं गुणहीन हूँ, (फिर भी) प्रभु ने स्वयं ही मुझे अपने दामन के साथ लगा लिया है॥ ३॥
ਬੇਦ ਕਤੇਬ ਸੰਸਾਰ ਹਭਾ ਹੂੰ ਬਾਹਰਾ ॥
वह दृश्य-जगत की सीमा से परे है; वेद, कुरान और समस्त धर्मग्रंथ भी उस अनंत परमात्मा की महिमा को पूर्ण रूप से व्यक्त नहीं कर सकते।
ਨਾਨਕ ਕਾ ਪਾਤਿਸਾਹੁ ਦਿਸੈ ਜਾਹਰਾ ॥੪॥੩॥੧੦੫॥
नानक कहते हैं कि सर्वशक्तिमान ईश्वर हर स्थान पर प्रकट होता है; वह कण-कण में व्याप्त है॥४॥३॥१०५॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਲਾਖ ਭਗਤ ਆਰਾਧਹਿ ਜਪਤੇ ਪੀਉ ਪੀਉ ॥
हे भगवान् ! आपके लाखों ही भक्त आपकी आराधना करते रहले हैं और मुंह से प्रिय-प्रिय' जपते रहते हैं।
ਕਵਨ ਜੁਗਤਿ ਮੇਲਾਵਉ ਨਿਰਗੁਣ ਬਿਖਈ ਜੀਉ ॥੧॥
फिर किस युक्ति से आप मुझ गुणहीन एवं विकारी पुरुष को अपने साथ मिलाओगे॥ १॥
ਤੇਰੀ ਟੇਕ ਗੋਵਿੰਦ ਗੁਪਾਲ ਦਇਆਲ ਪ੍ਰਭ ॥
हे गोविन्द गोपाल ! हे दयालु प्रभु ! मुझे आपका ही आश्रय है।
ਤੂੰ ਸਭਨਾ ਕੇ ਨਾਥ ਤੇਰੀ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸਭ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आप सब जीवों के स्वामी हैं, सारी सृष्टि आपके द्वारा उत्पन्न की हुई है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਦਾ ਸਹਾਈ ਸੰਤ ਪੇਖਹਿ ਸਦਾ ਹਜੂਰਿ ॥
आप सदा ही संतों के सहायक है, जो आपको सदैव प्रत्यक्ष देखते हैं।
ਨਾਮ ਬਿਹੂਨੜਿਆ ਸੇ ਮਰਨ੍ਹ੍ਹਿ ਵਿਸੂਰਿ ਵਿਸੂਰਿ ॥੨॥
जो नाम विहीन मनुष्य हैं, वे दुःख एवं प्रायश्चित करते मरते हैं॥ २॥
ਦਾਸ ਦਾਸਤਣ ਭਾਇ ਮਿਟਿਆ ਤਿਨਾ ਗਉਣੁ ॥
जो सेवक दास भावना से प्रभु की सेवा करते हैं, उनका जन्म-मरण का चक्र मिट जाता है।
ਵਿਸਰਿਆ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਨਾਮੁ ਤਿਨਾੜਾ ਹਾਲੁ ਕਉਣੁ ॥੩॥
जिन्होंने प्रभु नाम को भुला दिया है, उनका क्या हाल होगा ?॥ ३॥
ਜੈਸੇ ਪਸੁ ਹਰ੍ਹ੍ਹਿਆਉ ਤੈਸਾ ਸੰਸਾਰੁ ਸਭ ॥
जैसे पराए खेत में हरियाली खाने हेतु पशु जाता है और अपनी पिटाई करवाता है वैसे ही यह सारा संसार है।
ਨਾਨਕ ਬੰਧਨ ਕਾਟਿ ਮਿਲਾਵਹੁ ਆਪਿ ਪ੍ਰਭ ॥੪॥੪॥੧੦੬॥
हे प्रभु ! नानक के बन्धन काट कर उसे अपने साथ मिला लोll ४ ॥ ४॥ १०६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਹਭੇ ਥੋਕ ਵਿਸਾਰਿ ਹਿਕੋ ਖਿਆਲੁ ਕਰਿ ॥
हे भाई ! दुनिया के समस्त पदार्थ भुलाकर एक ईश्वर का ही चिन्तन करो।
ਝੂਠਾ ਲਾਹਿ ਗੁਮਾਨੁ ਮਨੁ ਤਨੁ ਅਰਪਿ ਧਰਿ ॥੧॥
अपने झूठे अभिमान को छोड़कर अपना मन-तन प्रभु के समक्ष अर्पण कर दो॥ १॥
ਆਠ ਪਹਰ ਸਾਲਾਹਿ ਸਿਰਜਨਹਾਰ ਤੂੰ ॥
तू आठ प्रहर जग के रचयिता परमात्मा की स्तुति किया कर।
ਜੀਵਾਂ ਤੇਰੀ ਦਾਤਿ ਕਿਰਪਾ ਕਰਹੁ ਮੂੰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे मेरे मालिक ! मैं आपके नाम की देन से जीवित हूँ, मुझ पर कृपा कीजिए। १॥ रहाउ॥
ਸੋਈ ਕੰਮੁ ਕਮਾਇ ਜਿਤੁ ਮੁਖੁ ਉਜਲਾ ॥
हे भाई ! वही कर्म कर जिससे तेरा मुख लोक-परलोक मेंउस हृदय घर को सुन्दर बना,"
ਸੋਈ ਲਗੈ ਸਚਿ ਜਿਸੁ ਤੂੰ ਦੇਹਿ ਅਲਾ ॥੨॥
जो कभी ध्वस्त नहीं होता।
ਜੋ ਨ ਢਹੰਦੋ ਮੂਲਿ ਸੋ ਘਰੁ ਰਾਸਿ ਕਰਿ ॥
एक परमात्मा को अपने हृदय में बसाकर रख,"
ਹਿਕੋ ਚਿਤਿ ਵਸਾਇ ਕਦੇ ਨ ਜਾਇ ਮਰਿ ॥੩॥
वह अमर है, जो कभी मरता नहीं ॥ ३॥
ਤਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਪਿਆਰਾ ਰਾਮੁ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਭਾਣਿਆ ॥
जो लोग प्रभु को अच्छे लगते हैं, उन्हें प्रभु प्यारा लगने लग जाता है
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਅਕਥੁ ਨਾਨਕਿ ਵਖਾਣਿਆ ॥੪॥੫॥੧੦੭॥
गुरु की कृपा से ही नानक ने अकथनीय परमात्मा का वर्णन किया है ॥४॥५॥१०७॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਨ ਵਿਸਰੈ ਨਾਮੁ ਸੇ ਕਿਨੇਹਿਆ ॥
जो प्रभु-नाम को कभी विस्मृत नहीं करते, वे लोग कैसे होते हैं ?"
ਭੇਦੁ ਨ ਜਾਣਹੁ ਮੂਲਿ ਸਾਂਈ ਜੇਹਿਆ ॥੧॥
वे मालिक-प्रभु जैसे ही होते हैं, उनमें तथा प्रभु में बिल्कुल ही कोई भेद मत समझो॥ १॥
ਮਨੁ ਤਨੁ ਹੋਇ ਨਿਹਾਲੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ ਸੰਗਿ ਭੇਟਿਆ ॥
हे प्रभु ! तुझे मिलने से मन-तन आनंदित हो जाते हैं।
ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਜਨ ਪਰਸਾਦਿ ਦੁਖੁ ਸਭੁ ਮੇਟਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
प्रभु-भक्त की कृपा से मैंने सुख पाया है और उसने मेरा सारा दुःख मिटा दिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਜੇਤੇ ਖੰਡ ਬ੍ਰਹਮੰਡ ਉਧਾਰੇ ਤਿੰਨ੍ਹ੍ ਖੇ ॥
हे मालिक ! जितने भी खण्ड-ब्रह्मण्ड में आपके भक्त रहते हैं, उनका आपने उद्धार कर दिया है।
ਜਿਨ੍ਹ੍ ਮਨਿ ਵੁਠਾ ਆਪਿ ਪੂਰੇ ਭਗਤ ਸੇ ॥੨॥
जिनके मन में आप स्वयं निवास करते हैं, वही पूर्ण भक्त होते हैं।॥२॥