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ਸੰਚਤ ਸੰਚਤ ਥੈਲੀ ਕੀਨ੍ਹ੍ਹੀ ॥
इसप्रकार बहुत सा धन संचय करके उसने खजाने भर लिए परन्तु
ਪ੍ਰਭਿ ਉਸ ਤੇ ਡਾਰਿ ਅਵਰ ਕਉ ਦੀਨ੍ਹ੍ਹੀ ॥੧॥
परन्तु अंततः परमात्मा ने उसकी धन-दौलत उससे छीनकर किसी दूसरे को दे दी है॥ १॥
ਕਾਚ ਗਗਰੀਆ ਅੰਭ ਮਝਰੀਆ ॥
यह मानव-शरीर कच्ची मिट्टी की गागर के समान है जो जल में ही गल जाता है।
ਗਰਬਿ ਗਰਬਿ ਉਆਹੂ ਮਹਿ ਪਰੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अभिमान एवं घमण्ड कर करके यह उस जल में ही डूब जाता है।॥ १॥ रहाउ ॥
ਨਿਰਭਉ ਹੋਇਓ ਭਇਆ ਨਿਹੰਗਾ ॥
मनुष्य मृत्यु के भय से निडर होकर निर्भीक बन जाता है लेकिन
ਚੀਤਿ ਨ ਆਇਓ ਕਰਤਾ ਸੰਗਾ ॥
जगत के रचयिता परमात्मा को याद नहीं करता जो सदा उसके साथ है।
ਲਸਕਰ ਜੋੜੇ ਕੀਆ ਸੰਬਾਹਾ ॥
वह फौजें भर्ती करता और हथियार संग्रह करता है।
ਨਿਕਸਿਆ ਫੂਕ ਤ ਹੋਇ ਗਇਓ ਸੁਆਹਾ ॥੨॥
जब उसके प्राण निकल जाते हैं तो वह राख बन जाता है॥ २॥
ਊਚੇ ਮੰਦਰ ਮਹਲ ਅਰੁ ਰਾਨੀ ॥
उसके पास ऊँचे मन्दिर, महल, महारानियाँ,"
ਹਸਤਿ ਘੋੜੇ ਜੋੜੇ ਮਨਿ ਭਾਨੀ ॥
मन को लुभाने वाले हाथी-घोड़े, सुन्दर वस्त्र एवं
ਵਡ ਪਰਵਾਰੁ ਪੂਤ ਅਰੁ ਧੀਆ ॥
पुत्र व पुत्रियों का बड़ा परिवार था परन्तु
ਮੋਹਿ ਪਚੇ ਪਚਿ ਅੰਧਾ ਮੂਆ ॥੩॥
उनके मोह में लीन हुआ ज्ञानहीन मनुष्य दु:खी होकर प्राण त्याग देता है॥ ३॥
ਜਿਨਹਿ ਉਪਾਹਾ ਤਿਨਹਿ ਬਿਨਾਹਾ ॥
जिस विधाता ने उसे पैदा किया था, उसने ही उसे मार दिया है।
ਰੰਗ ਰਸਾ ਜੈਸੇ ਸੁਪਨਾਹਾ ॥
भोगविलास एवं स्वाद स्वप्न की भांति है
ਸੋਈ ਮੁਕਤਾ ਤਿਸੁ ਰਾਜੁ ਮਾਲੁ ॥ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਜਿਸੁ ਖਸਮੁ ਦਇਆਲੁ ॥੪॥੩੫॥੮੬॥
हे दास नानक ! वही व्यक्ति माया के बंधनों से मुक्त होता है, जिसके पास नाम की शाश्वत शक्ति-संपत्ति होती है और जिस पर प्रभु की कृपा दृष्टि होती है। ॥ ४॥ ३५ ॥ ८६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥|
राग आसा, पांचवें गुरु : ५ ॥
ਇਨ੍ਹ੍ਹ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕਰੀ ਘਨੇਰੀ ॥
आदमी इस माया (धन) से बहुत ज्यादा प्रेम करता है।
ਜਉ ਮਿਲੀਐ ਤਉ ਵਧੈ ਵਧੇਰੀ ॥
जैसे-जैसे यह (धन) मिलता जाता है वैसे ही इसके साथ मोह बढ़ता जाता है।
ਗਲਿ ਚਮੜੀ ਜਉ ਛੋਡੈ ਨਾਹੀ ॥
गले से चिपकी हुई यह माया किसी भी तरह आदमी को छोड़ती नहीं परन्तु
ਲਾਗਿ ਛੁਟੋ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਪਾਈ ॥੧॥
सच्चे गुरु के चरण-स्पर्श करने से इससे छुटकारा मिल जाता है॥ १॥
ਜਗ ਮੋਹਨੀ ਹਮ ਤਿਆਗਿ ਗਵਾਈ ॥
जगत् को मुग्ध करने वाली माया हमने त्याग कर स्वयं से दूर कर दी है।
ਨਿਰਗੁਨੁ ਮਿਲਿਓ ਵਜੀ ਵਧਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अब हमें निर्गुण प्रभु मिल गए हैं और सब ओर से शुभ कामनाएँ मिल रही है॥ १॥ रहाउ ॥
ਐਸੀ ਸੁੰਦਰਿ ਮਨ ਕਉ ਮੋਹੈ ॥
माया इतनी सुन्दर है कि यह मन को आकर्षित कर लेती है।
ਬਾਟਿ ਘਾਟਿ ਗ੍ਰਿਹਿ ਬਨਿ ਬਨਿ ਜੋਹੈ ॥
यह मनुष्य के पथ, घाट, घर एवं वन-वन में दृष्टि लगाकर प्रभावित करती है।
ਮਨਿ ਤਨਿ ਲਾਗੈ ਹੋਇ ਕੈ ਮੀਠੀ ॥
मन एवं तन को यह बहुत मीठी लगती है।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਮੈ ਖੋਟੀ ਡੀਠੀ ॥੨॥
गुरु की दया से मैंने देख लिया है कि यह माया बहुत खोटी है॥ २॥
ਅਗਰਕ ਉਸ ਕੇ ਵਡੇ ਠਗਾਊ ॥
उस माया के आगे काम करने वाले काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार इत्यादि विकार बड़े ठग हैं।
ਛੋਡਹਿ ਨਾਹੀ ਬਾਪ ਨ ਮਾਊ ॥
(और तो और) यह अपने माता-पिता को भी नहीं छोड़ते।
ਮੇਲੀ ਅਪਨੇ ਉਨਿ ਲੇ ਬਾਂਧੇ ॥
अपने मेल-मुलाकात करने वाले लोगों को भी इन्होंने भलीभांति फँसा लिया है।
ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਮੈ ਸਗਲੇ ਸਾਧੇ ॥੩॥
परन्तु गुरु की कृपा से मैंने उन सब ठगों को वश में कर लिया है॥ ३॥
ਅਬ ਮੋਰੈ ਮਨਿ ਭਇਆ ਅਨੰਦ ॥
अब मेरे हृदय में आनंद है।
ਭਉ ਚੂਕਾ ਟੂਟੇ ਸਭਿ ਫੰਦ ॥
मेरा भय मिट गया है और मेरे सभी बन्धन कट गए हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ॥
हे नानक ! जब से मुझे सच्चा गुरु मिले हैं,"
ਘਰੁ ਸਗਲਾ ਮੈ ਸੁਖੀ ਬਸਾਇਆ ॥੪॥੩੬॥੮੭॥
तब से मैंने अपना सारा घर सुखी बसा लिया है अर्थात् मेरे शरीर रूपी घर में बसने वाली ज्ञानेन्द्रियाँ सुखी हो गई हैं॥ ४॥ ३६ ॥ ८७ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु : ५ ॥
ਆਠ ਪਹਰ ਨਿਕਟਿ ਕਰਿ ਜਾਨੈ ॥
संतजन आठों प्रहर प्रभु को अपने निकट बसता समझते हैं।
ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਕੀਆ ਮੀਠਾ ਮਾਨੈ ॥
ईश्वर जो कुछ भी करता है, वह उसे न केवल उचित, बल्कि सर्वोत्तम मानता है।
ਏਕੁ ਨਾਮੁ ਸੰਤਨ ਆਧਾਰੁ ॥
प्रभु का एक नाम ही संतों के जीवन का आधार है और
ਹੋਇ ਰਹੇ ਸਭ ਕੀ ਪਗ ਛਾਰੁ ॥੧॥
सन्तजन सबकी चरण-धूलि बने रहते हैं।॥ १॥
ਸੰਤ ਰਹਤ ਸੁਨਹੁ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥ |
हे मेरे भाई ! संतों का जीवन-आचरण ध्यानपूर्वक सुनो।
ਉਆ ਕੀ ਮਹਿਮਾ ਕਥਨੁ ਨ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
उनकी महिमा कथन नहीं की जा सकती ॥ १॥ रहाउ॥
ਵਰਤਣਿ ਜਾ ਕੈ ਕੇਵਲ ਨਾਮ ॥
उनका कार्य-व्यवहार केवल प्रभु का नाम है।
ਅਨਦ ਰੂਪ ਕੀਰਤਨੁ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ॥
आनंद स्वरूप प्रभु का भजन-कीर्तन उनका सच्चा सुख विश्राम है।
ਮਿਤ੍ਰ ਸਤ੍ਰੁ ਜਾ ਕੈ ਏਕ ਸਮਾਨੈ ॥
मित्र एवं शत्रु उनके लिए एक समान हैं।
ਪ੍ਰਭ ਅਪੁਨੇ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਜਾਨੈ ॥੨॥
अपने प्रभु के बिना वह किसी को नहीं जानते॥ २॥
ਕੋਟਿ ਕੋਟਿ ਅਘ ਕਾਟਨਹਾਰਾ ॥
संतजन करोड़ों ही पाप मिटाने वाले हैं।
ਦੁਖ ਦੂਰਿ ਕਰਨ ਜੀਅ ਕੇ ਦਾਤਾਰਾ ॥
वह जीवों के दुःख को निवृत्त कर देते हैं और मनुष्य को आत्मिक जीवन प्रदान करने में सक्षम हैं।
ਸੂਰਬੀਰ ਬਚਨ ਕੇ ਬਲੀ ॥
वे काम, क्रोध, इत्यादि विकारों को जीतने वाले शूरवीर एवं वचन के बली हैं।
ਕਉਲਾ ਬਪੁਰੀ ਸੰਤੀ ਛਲੀ ॥੩॥
इस तुच्छ माया को भी संतों ने छल लिया है॥ ३॥
ਤਾ ਕਾ ਸੰਗੁ ਬਾਛਹਿ ਸੁਰਦੇਵ ॥
संतों की संगति देवतागण भी चाहते हैं।
ਅਮੋਘ ਦਰਸੁ ਸਫਲ ਜਾ ਕੀ ਸੇਵ ॥
उनके दर्शन बड़े सफल हैं और उनकी सेवा बड़ी फलदायक है।
ਕਰ ਜੋੜਿ ਨਾਨਕੁ ਕਰੇ ਅਰਦਾਸਿ ॥
हाथ जोड़कर नानक एक यही प्रार्थना करते हैं कि
ਮੋਹਿ ਸੰਤਹ ਟਹਲ ਦੀਜੈ ਗੁਣਤਾਸਿ ॥੪॥੩੭॥੮੮॥
हे गुणों के भण्डार प्रभु ! मुझे संतों की सेवा की देन प्रदान कीजिए॥ ४॥ ३७॥ ८८ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु : ५ ॥
ਸਗਲ ਸੂਖ ਜਪਿ ਏਕੈ ਨਾਮ ॥
केवल एक भगवान् का नाम जपने से ही सर्व सुख मिल जाते हैं।
ਸਗਲ ਧਰਮ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਮ ॥
श्रीहरि का गुणगान करने से तीर्थ, तप, दान-पुण्य एवं दया इत्यादि सभी धर्मो का फल भी मिल जाता है।
ਮਹਾ ਪਵਿਤ੍ਰ ਸਾਧ ਕਾ ਸੰਗੁ ॥
साधु की संगति महापवित्र है,"