Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 391

Page 391

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਨਾ ਓਹੁ ਮਰਤਾ ਨਾ ਹਮ ਡਰਿਆ ॥ जीवात्मा कहती है कि जब ईश्वर अमर है, तो उसके अंशस्वरूप हमें भी मृत्यु से क्यों डरना चाहिए?
ਨਾ ਓਹੁ ਬਿਨਸੈ ਨਾ ਹਮ ਕੜਿਆ ॥ जिसका आधार ईश्वर है, उसे विनाश की चिंता कैसी? क्योंकि वह स्वयं कभी नष्ट नहीं होता।
ਨਾ ਓਹੁ ਨਿਰਧਨੁ ਨਾ ਹਮ ਭੂਖੇ ॥ चूँकि भगवान् स्वयं सर्वसमर्थ और धन-धान्य से पूर्ण हैं, इसलिए उनके भक्तों को कभी स्वयं को भूखा या गरीब नहीं समझना चाहिए।
ਨਾ ਓਸੁ ਦੂਖੁ ਨ ਹਮ ਕਉ ਦੂਖੇ ॥੧॥ जिस तरह ईश्वर को न तो कोई कष्ट है और न ही दुःख, उसी तरह उसके शरणागत भक्तों को भी किसी कष्ट की अनुभूति नहीं होती। ॥१॥
ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਊ ਮਾਰਨਵਾਰਾ ॥ भगवान् के अतिरिक्त अन्य कोई मारने वाला नहीं।
ਜੀਅਉ ਹਮਾਰਾ ਜੀਉ ਦੇਨਹਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मेरा जीवनदाता भगवान् है, वह मुझे जीवन प्रदान करते हैं॥ १॥ रहाउ॥
ਨਾ ਉਸੁ ਬੰਧਨ ਨਾ ਹਮ ਬਾਧੇ ॥ चूँकि भगवान् स्वयं बंधनों से मुक्त हैं, इसलिए उनके भक्तों को भी मोह-माया के जाल में नहीं उलझना चाहिए।
ਨਾ ਉਸੁ ਧੰਧਾ ਨਾ ਹਮ ਧਾਧੇ ॥ जैसे ईश्वर किसी झगड़े में शामिल नहीं होता, वैसे ही हमें भी किसी प्रकार के विवाद में नहीं उलझना चाहिए।
ਨਾ ਉਸੁ ਮੈਲੁ ਨ ਹਮ ਕਉ ਮੈਲਾ ॥ जैसे भगवान् विकारों की मलिनता से सर्वथा मुक्त हैं, वैसे ही हमें भी अपने मन को विकारों से शुद्ध करना चाहिए।
ਓਸੁ ਅਨੰਦੁ ਤ ਹਮ ਸਦ ਕੇਲਾ ॥੨॥ वह सदैव आनन्द में है तो हम भी सदैव प्रसन्न रहना चाहिए।॥ २॥
ਨਾ ਉਸੁ ਸੋਚੁ ਨ ਹਮ ਕਉ ਸੋਚਾ ॥ जिस परमात्मा को कोई चिंता नहीं, उसके शरणागत भक्त को भी चिंता का कोई कारण नहीं होता।
ਨਾ ਉਸੁ ਲੇਪੁ ਨ ਹਮ ਕਉ ਪੋਚਾ ॥ उसमें कोई माया का लेप नहीं और उसके शरणागत भक्त को भी सांसारिक मोह से पीड़ित नहीं होना चाहिए।
ਨਾ ਉਸੁ ਭੂਖ ਨ ਹਮ ਕਉ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ॥ जिस प्रभु को कुछ भी पाने की लालसा नहीं, उसके भक्तों को भी माया की मोहिनी में नहीं बहना चाहिए।
ਜਾ ਉਹੁ ਨਿਰਮਲੁ ਤਾਂ ਹਮ ਜਚਨਾ ॥੩॥ जब वह निर्मल है तों हम भी उस जैसे निर्मल लगते हैं। ॥३॥
ਹਮ ਕਿਛੁ ਨਾਹੀ ਏਕੈ ਓਹੀ ॥ हम कुछ भी नहीं केवल वही सब कुछ है।
ਆਗੈ ਪਾਛੈ ਏਕੋ ਸੋਈ ॥ वह परमात्मा ही वर्तमान काल से पूर्व भूतकाल में भी था और भविष्यकाल में भी एक वही होगा।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਖੋਏ ਭ੍ਰਮ ਭੰਗਾ ॥ हे नानक ! गुरु ने मेरे सारे भ्रम एवं भेदभाव दूर कर दिए हैं।
ਹਮ ਓਇ ਮਿਲਿ ਹੋਏ ਇਕ ਰੰਗਾ ॥੪॥੩੨॥੮੩॥ जब हम ईश्वर से सच्चे प्रेम में मिलते हैं, तो हमारी सत्ता उसकी सत्ता में विलीन हो जाती है।॥ ४॥ ३२॥ ८३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਅਨਿਕ ਭਾਂਤਿ ਕਰਿ ਸੇਵਾ ਕਰੀਐ ॥ अनेक प्रकार से भगवान् की सेवा-भक्ति करनी चाहिए।
ਜੀਉ ਪ੍ਰਾਨ ਧਨੁ ਆਗੈ ਧਰੀਐ ॥ अपने प्राण, आत्मा एवं धन को उसके समक्ष अर्पण कर देना चाहिए।
ਪਾਨੀ ਪਖਾ ਕਰਉ ਤਜਿ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥ अपना अभिमान त्याग कर जल एवं पंखे की सेवा करनी चाहिए।
ਅਨਿਕ ਬਾਰ ਜਾਈਐ ਕੁਰਬਾਨੁ ॥੧॥ अनेक बार उस पर बलिहारी होना चाहिए॥ १॥
ਸਾਈ ਸੁਹਾਗਣਿ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਭਾਈ ॥ हे मेरी माता ! केवल वही सुहागिन है जो अपने प्राणनाथ प्रभु को अच्छी लगती है।
ਤਿਸ ਕੈ ਸੰਗਿ ਮਿਲਉ ਮੇਰੀ ਮਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मैं उसकी संगति में उठती-बैठती हूँ॥ १॥ रहाउ ॥
ਦਾਸਨਿ ਦਾਸੀ ਕੀ ਪਨਿਹਾਰਿ ॥ मैं उसकी दासों की दासी की पानी भरने वाली हूँ।
ਉਨ੍ਹ੍ਹ ਕੀ ਰੇਣੁ ਬਸੈ ਜੀਅ ਨਾਲਿ ॥ मैं अपने मन में उनकी चरण-धूलि प्रेमपूर्वक रखती हूँ।
ਮਾਥੈ ਭਾਗੁ ਤ ਪਾਵਉ ਸੰਗੁ ॥ यदि मेरे माथे पर भाग्योदय हो जाएँ तो मैं उनकी संगति को प्राप्त होती हूँ।
ਮਿਲੈ ਸੁਆਮੀ ਅਪੁਨੈ ਰੰਗਿ ॥੨॥ अपनी प्रसन्नता द्वारा स्वामी मुझे मिल गया है॥ २ ॥
ਜਾਪ ਤਾਪ ਦੇਵਉ ਸਭ ਨੇਮਾ ॥ मैं सभी जप, तप एवं धार्मिक संस्कार उसे अर्पण करती हूँ।
ਕਰਮ ਧਰਮ ਅਰਪਉ ਸਭ ਹੋਮਾ ॥ सभी धर्म कर्म, यज्ञ एवं होम मैं उसको अर्पित करती हूँ।
ਗਰਬੁ ਮੋਹੁ ਤਜਿ ਹੋਵਉ ਰੇਨ ॥ अभिमान एवं मोह को त्याग कर मैं उसकी चरण-धूलि हो गई हूँ
ਉਨ੍ਹ੍ਹ ਕੈ ਸੰਗਿ ਦੇਖਉ ਪ੍ਰਭੁ ਨੈਨ ॥੩॥ मैं उनकी संगति में प्रभु को अपने नेत्रों से देखती हूँ॥३॥
ਨਿਮਖ ਨਿਮਖ ਏਹੀ ਆਰਾਧਉ ॥ क्षण-क्षण में इस तरह भगवान् की आराधना करती हूँ।
ਦਿਨਸੁ ਰੈਣਿ ਏਹ ਸੇਵਾ ਸਾਧਉ ॥ दिन-रात मैं इस तरह भगवान् की सेवा करती हूँ।
ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਗੁਪਾਲ ਗੋਬਿੰਦ ॥ ਸਾਧਸੰਗਿ ਨਾਨਕ ਬਖਸਿੰਦ ॥੪॥੩੩॥੮੪॥ हे नानक ! जो आत्मा दुल्हन बनकर संतों की पवित्र संगति में प्रवेश करती है, उस पर ब्रह्मांड का सदा क्षमाशील प्रभु अपनी कृपा बरसाता है।॥४॥ ३३॥ ८४॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥ प्रभु की प्रीति से सदैव सुख मिलता है।
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਦੁਖੁ ਲਗੈ ਨ ਕੋਇ ॥ इससे कोई दु:ख स्पर्श नहीं कर सकता।
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਹਉਮੈ ਮਲੁ ਖੋਇ ॥ प्रभु की प्रीति से अहंत्व की मैल दूर हो जाती है और
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਦ ਨਿਰਮਲ ਹੋਇ ॥੧॥ मनुष्य सदैव निर्मल हो जाता है॥ १॥
ਸੁਨਹੁ ਮੀਤ ਐਸਾ ਪ੍ਰੇਮ ਪਿਆਰੁ ॥ हे मित्र ! सुन, भगवान् का प्रेम प्यार ऐसा है कि
ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਘਟ ਘਟ ਆਧਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ यह प्रत्येक जीव के शरीर, जीवन एवं प्राणों का आधार है॥ १॥ रहाउ॥
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਭਏ ਸਗਲ ਨਿਧਾਨ ॥ प्रभु की प्रीति से समस्त भण्डार मिल जाते हैं।
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਰਿਦੈ ਨਿਰਮਲ ਨਾਮ ॥ इससे निर्मल नाम मन में बस जाता है।
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਦ ਸੋਭਾਵੰਤ ॥ प्रभु की प्रीति से मैं हमेशा के लिए शोभा वाला बन गया हूँ ।
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਭ ਮਿਟੀ ਹੈ ਚਿੰਤ ॥੨॥ प्रभु की प्रीति से सारी चिन्ता मिट गई है॥ २॥
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਇਹੁ ਭਵਜਲੁ ਤਰੈ ॥ प्रभु की प्रीति से मनुष्य भवसागर से पार हो जाता है।
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਜਮ ਤੇ ਨਹੀ ਡਰੈ ॥ प्रभु की प्रीति से जीव मृत्यु से नहीं डरता।
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਗਲ ਉਧਾਰੈ ॥ प्रभु की प्रीति सबका उद्धार कर देती है और
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਚਲੈ ਸੰਗਾਰੈ ॥੩॥ परलोक में उनके साथ जाती है। ॥३॥
ਆਪਹੁ ਕੋਈ ਮਿਲੈ ਨ ਭੂਲੈ ॥ अपने आप न कोई मनुष्य (प्रभु-चरणों में) मिला रह सकता है और न कोई कुमार्गगामी होता है।
ਜਿਸੁ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਤਿਸੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਘੂਲੈ ॥ जिस पर प्रभु कृपालु होते हैं, वह साधुओं की संगति में मिलता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤੇਰੈ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥ नानक कहते हैं कि हे प्रभु ! मैं आप पर बलिहारी जाता हूँ,"
ਸੰਤ ਓਟ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰਾ ਤਾਣੁ ॥੪॥੩੪॥੮੫॥ आप ही संतों का सहारा एवं उनका बल है॥ ४॥ ३४॥ ८५ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਭੂਪਤਿ ਹੋਇ ਕੈ ਰਾਜੁ ਕਮਾਇਆ ॥| किसी (जीव) ने राजा बनकर लोगों पर राज किया है और
ਕਰਿ ਕਰਿ ਅਨਰਥ ਵਿਹਾਝੀ ਮਾਇਆ ॥ बहुत सारे अनर्थ-जुल्म करके धन संचय किया है।


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top