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ਨਾਨਕ ਪਾਇਆ ਨਾਮ ਖਜਾਨਾ ॥੪॥੨੭॥੭੮॥
नानक को भगवान् के नाम का खजाना प्राप्त हो गया है॥ ४॥ २७ ॥ ७८ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसा, पाँचवें गुरुः ५ ॥
ਠਾਕੁਰ ਸਿਉ ਜਾ ਕੀ ਬਨਿ ਆਈ ॥
जिन लोगों की ठाकुर जी के साथ प्रीति बन गई है,"
ਭੋਜਨ ਪੂਰਨ ਰਹੇ ਅਘਾਈ ॥੧॥
ये नाम रूपी अक्षय भोजन खाकर तृप्त रहते हैं। ॥१॥
ਕਛੂ ਨ ਥੋਰਾ ਹਰਿ ਭਗਤਨ ਕਉ ॥
हरि के भक्तजनों को किसी भी पदार्थ की कमी नहीं आती।
ਖਾਤ ਖਰਚਤ ਬਿਲਛਤ ਦੇਵਨ ਕਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
उनके पास खाने, खर्चने, आनंद प्राप्ति एवं देने हेतु बहुत कुछ है॥ १॥ रहाउ॥
ਜਾ ਕਾ ਧਨੀ ਅਗਮ ਗੁਸਾਈ ॥
जिसका मालिक अगम्य गुसाई है,"
ਮਾਨੁਖ ਕੀ ਕਹੁ ਕੇਤ ਚਲਾਈ ॥੨॥!
कहो-उस मनुष्य का कोई क्या बिगाड़ सकता है॥ २॥
ਜਾ ਕੀ ਸੇਵਾ ਦਸ ਅਸਟ ਸਿਧਾਈ ॥ ਪਲਕ ਦਿਸਟਿ ਤਾ ਕੀ ਲਾਗਹੁ ਪਾਈ ॥੩॥!
जिसकी सेवा अठारह सिद्धियाँ करती हैं, उसके चरणों में लगने की एक पल भर की देरी भी मत करो॥ ३॥
ਜਾ ਕਉ ਦਇਆ ਕਰਹੁ ਮੇਰੇ ਸੁਆਮੀ ॥
नानक कहते हैं कि हे मेरे स्वामी ! जिस पर आप दया करते हो,"
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਨਾਹੀ ਤਿਨ ਕਾਮੀ ॥੪॥੨੮॥੭੯॥!
उसे किसी भी पदार्थ की कमी नहीं आती॥ ४॥ २८॥ ७६ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसा, पाँचवें गुरुः ५ ॥
ਜਉ ਮੈ ਅਪੁਨਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਧਿਆਇਆ ॥
जब से मैंने अपने सतगुरु का ध्यान-मनन किया है,"
ਤਬ ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਮਹਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੧॥
तब से मेरे मन को महा सुख प्राप्त हो गया है॥ १ ॥
ਮਿਟਿ ਗਈ ਗਣਤ ਬਿਨਾਸਿਉ ਸੰਸਾ ॥ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਜਨ ਭਏ ਭਗਵੰਤਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो लोग नाम के प्रेम में डूब जाते हैं, वे वास्तव में सौभाग्यशाली होते हैं; उनकी सारी चिंताएँ और भय अपने आप मिट जाते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਜਉ ਮੈ ਅਪੁਨਾ ਸਾਹਿਬੁ ਚੀਤਿ ॥
जब मैंने अपने मालिक को याद किया तो
ਤਉ ਭਉ ਮਿਟਿਓ ਮੇਰੇ ਮੀਤ ॥੨॥
हे मेरे मित्र ! मेरा भय मिट गया।॥ २
ਜਉ ਮੈ ਓਟ ਗਹੀ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੀ ॥
हे प्रभु ! जब से मैंने आपकी शरण ली है,"
ਤਾਂ ਪੂਰਨ ਹੋਈ ਮਨਸਾ ਮੇਰੀ ॥੩॥
मेरी अभिलाषा पूरी हो गई है॥ ३॥
ਦੇਖਿ ਚਲਿਤ ਮਨਿ ਭਏ ਦਿਲਾਸਾ ॥
हे भगवान् ! आपके आश्चर्यजनक खेल देख कर मेरे मन को धैर्य हो गया है।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤੇਰਾ ਭਰਵਾਸਾ ॥੪॥੨੯॥੮੦॥
दास नानक को आपका ही भरोसा है॥ ४ ॥ २६ ॥ ८० ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसा, पाँचवें गुरुः ५ ॥
ਅਨਦਿਨੁ ਮੂਸਾ ਲਾਜੁ ਟੁਕਾਈ ॥
यम रूपी चूहा रात-दिन जीवन रूपी रस्सी को कुतरता जा रहा है।
ਗਿਰਤ ਕੂਪ ਮਹਿ ਖਾਹਿ ਮਿਠਾਈ ॥੧॥
माया रूपी कुएँ में गिरता हुआ प्राणी (विषय-विकारों की) मिठाई खा रहा है॥ १॥
ਸੋਚਤ ਸਾਚਤ ਰੈਨਿ ਬਿਹਾਨੀ ॥
सोचते-विचारते जीवन रूपी रात्रि बीतती जा रही है।
ਅਨਿਕ ਰੰਗ ਮਾਇਆ ਕੇ ਚਿਤਵਤ ਕਬਹੂ ਨ ਸਿਮਰੈ ਸਾਰਿੰਗਪਾਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मनुष्य माया के अनेक रंग-तमाशों को सोचता रहता है परन्तु सारिंगपाणि प्रभु को कभी याद नहीं करता ॥ १॥ रहाउ॥
ਦ੍ਰੁਮ ਕੀ ਛਾਇਆ ਨਿਹਚਲ ਗ੍ਰਿਹੁ ਬਾਂਧਿਆ ॥
माया में डूबा हुआ व्यक्ति यह सोचता है कि संसार में उसका ठहराव स्थायी है; यह उसी तरह है जैसे कोई व्यक्ति एक पेड़ की छाया को स्थायी समझकर उसके नीचे अपना घर बना ले।
ਕਾਲ ਕੈ ਫਾਂਸਿ ਸਕਤ ਸਰੁ ਸਾਂਧਿਆ ॥੨॥
काल (मृत्यु) की फाँसी उसकी गर्दन नीचे है और माया ने मोह रूपी अपना तीर उस पर चलाया हुआ है॥ २
ਬਾਲੂ ਕਨਾਰਾ ਤਰੰਗ ਮੁਖਿ ਆਇਆ ॥
माया में फंसा मनुष्य संसार को स्थायी समझता है, जैसे कोई क्षणिक छाया में घर बसाए या रेतीले किनारे को अडिग माने, जिसे हर लहर थोड़ा-थोड़ा मिटा रही हो।
ਸੋ ਥਾਨੁ ਮੂੜਿ ਨਿਹਚਲੁ ਕਰਿ ਪਾਇਆ ॥੩॥
लेकिन उस स्थान को मूर्ख मनुष्य अटल समझता है॥ ३॥
ਸਾਧਸੰਗਿ ਜਪਿਓ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥
साधु की संगति में मैंने जगत के बादशाह प्रभु का सिमरन किया है।
ਨਾਨਕ ਜੀਵੈ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥੪॥੩੦॥੮੧॥
हे नानक ! हरि का गुणगान करके आध्यात्मिक रूप से जीवित रहता हूँ। ॥ ४॥ ३० ॥ ८१ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਦੁਤੁਕੇ ੯ ॥
राग आसा, दु-तुके(दो पंंक्तियाँ) पाँचवें गुरुः ५ ९ ॥
ਉਨ ਕੈ ਸੰਗਿ ਤੂ ਕਰਤੀ ਕੇਲ ॥
हे मेरी काया ! उस आत्मा के साथ मिलकर तू अदभुत खेल खेलती है।
ਉਨ ਕੈ ਸੰਗਿ ਹਮ ਤੁਮ ਸੰਗਿ ਮੇਲ ॥
उसके साथ ही तेरा प्रत्येक से मेल-मिलाप बना हुआ है
ਉਨ੍ਹ੍ਹ ਕੈ ਸੰਗਿ ਤੁਮ ਸਭੁ ਕੋਊ ਲੋਰੈ ॥
उसकी संगति में हर कोई तुझे चाहता है।
ਓਸੁ ਬਿਨਾ ਕੋਊ ਮੁਖੁ ਨਹੀ ਜੋਰੈ ॥੧॥
उसके बिना कोई भी तुझे देखना नहीं चाहता ॥ १
ਤੇ ਬੈਰਾਗੀ ਕਹਾ ਸਮਾਏ ॥
हे मेरी काया ! वह वैरागी आत्मा अब किधर समा गई है ?
ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਤੁਹੀ ਦੁਹੇਰੀ ਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
उसके बिना तू दयनीय अवस्था में है॥ १॥ रहाउ॥
ਉਨ੍ਹ੍ਹ ਕੈ ਸੰਗਿ ਤੂ ਗ੍ਰਿਹ ਮਹਿ ਮਾਹਰਿ ॥
उसके साथ तू घर में महारानी थी।
ਉਨ੍ਹ੍ਹ ਕੈ ਸੰਗਿ ਤੂ ਹੋਈ ਹੈ ਜਾਹਰਿ ॥
उसके साथ ही जगत में तू प्रगट हुई थी।
ਉਨ੍ਹ੍ਹ ਕੈ ਸੰਗਿ ਤੂ ਰਖੀ ਪਪੋਲਿ ॥
उसके साथ ही तुझे पाल-पोसकर रखा जाता था।
ਓਸੁ ਬਿਨਾ ਤੂੰ ਛੁਟਕੀ ਰੋਲਿ ॥੨॥
जब आत्मा छोड़कर चली जाती है तो तुम मिट्टी में मिल जाती हो।॥ २॥
ਉਨ੍ਹ੍ਹ ਕੈ ਸੰਗਿ ਤੇਰਾ ਮਾਨੁ ਮਹਤੁ ॥
(हे काया !) उसके साथ ही तेरा मान-सम्मान है।
ਉਨ੍ਹ੍ਹ ਕੈ ਸੰਗਿ ਤੁਮ ਸਾਕੁ ਜਗਤੁ ॥
उसके साथ ही तेरा जगत में रिश्ता है।
ਉਨ੍ਹ੍ਹ ਕੈ ਸੰਗਿ ਤੇਰੀ ਸਭ ਬਿਧਿ ਥਾਟੀ ॥
उसकी संगति में तुझे समस्त विधियों से श्रृंगारा जाता था।
ਓਸੁ ਬਿਨਾ ਤੂੰ ਹੋਈ ਹੈ ਮਾਟੀ ॥੩॥
उसके बिना तुम मिट्टी हो गई हो।॥ ३॥
ਓਹੁ ਬੈਰਾਗੀ ਮਰੈ ਨ ਜਾਇ ॥
वह निर्लिप्त आत्मा न कभी मरती है और न ही जन्म लेती है।
ਹੁਕਮੇ ਬਾਧਾ ਕਾਰ ਕਮਾਇ ॥
प्रभु के आदेश में वह कार्य करती है।
ਜੋੜਿ ਵਿਛੋੜੇ ਨਾਨਕ ਥਾਪਿ ॥
हे नानक ! शरीर की रचना करके प्रभु आत्मा को इससे मिलाता और फिर इससे अलग कर देता है।
ਅਪਨੀ ਕੁਦਰਤਿ ਜਾਣੈ ਆਪਿ ॥੪॥੩੧॥੮੨॥
परमात्मा अपनी रचनात्मक प्रकृति को आप ही जानते हैं। ॥ ४ ॥ ३१ ॥ ८२ ॥